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चेन्नई व उसके आसपास के शहरी इलाकों की रिहायशी बस्तियों के जलमग्न होने का जो हाहाकर आज मचा है, असल में वहाँ ऐसे हालात बीते एक महीने से थे। यह सच है कि वहाँ झमाझम बारिश ने सौ साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है, लेकिन यह भी बड़ा सच है कि मद्रास शहर के पारम्परिक बुनावट और बसावट इस तरह की थी कि 15 मिमी तक पानी बरसन
मैं अड्यार नदी हूँ, दक्षिण के महानगर चेन्नई की जीवनरेखा भी कहते हैं मुझे। मैं भी जीवनरेखा ही बनी रहना चाहती हूँ लेकिन लोग हैं कि अपने जीवन को सुविधाजनक बनाने के लिये मेरी रेखा को ही छोटा करते रहे हैं।
कभी भी नहीं चाहा था मैंने कि हवाई जहाज और ट्रेनें नावों की तरह मुझ पर बहती नजर आये। वे तो आसमान में और मुझ पर बनाए गए पुलों के ऊपर से गुजरती ही ठीक लगतीं हैं। मैनें कभी नहीं चाहा था कि यह महानगर टापू में तब्दील हो जाये और समुद्र का आर्थिक दोहन करते–करते सागर का ही एक हिस्सा नजर आने लगे।
आज हर शख्स मुझे देख कर डर रहा है, अपनी माँ को देखकर डर रहा है? मेरे इन बच्चों को मुझ पर तब दया नहीं आई जब मेरे पाट पर ही पूरा हवाई अड्डा तैयार किया जा रहा था। क्या स्मार्ट सिटी के रास्ते पर तेजी से दौड़ते इस शहर को नहीं पता कि पूरा महानगर ही नमभूमि और कच्छभूमि पर बसा है?
क्या गजब की बात है कि जिस-जिस पर खतरा मँडराया, हमने उस-उस के नाम पर दिवस घोषित कर दिये! मछली, गोरैया, पानी, मिट्टी, धरती, माँ, पिता...यहाँ तक कि हाथ धोने और खोया-पाया के नाम पर भी दिवस मनाने का चलन चल पड़ा है। यह नया चलन है; संकट को याद करने का नया तरीका।
यूँ अस्तित्व में आया मानवाधिकार दिवस
संकट का एक ऐसा ही समय तक आया, जब द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत हुई। वर्ष 1939 -पूरे विश्व के लिये यह एक अंधेरा समय था। उस वक्त तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रुजावेल्ट ने अपने एक सम्बोधन में चार तरह की आज़ादी का नारा बुलन्द किया: अभिव्यक्ति की आज़ादी, धार्मिक आजादी, अभाव से मुक्ति और भय से मुक्ति।
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चेन्नई बड़ी चेतावनी है
चेन्नई व उसके आसपास के शहरी इलाकों की रिहायशी बस्तियों के जलमग्न होने का जो हाहाकर आज मचा है, असल में वहाँ ऐसे हालात बीते एक महीने से थे। यह सच है कि वहाँ झमाझम बारिश ने सौ साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है, लेकिन यह भी बड़ा सच है कि मद्रास शहर के पारम्परिक बुनावट और बसावट इस तरह की थी कि 15 मिमी तक पानी बरसन
मैं अड्यार बोल रही हूँ
मैं अड्यार नदी हूँ, दक्षिण के महानगर चेन्नई की जीवनरेखा भी कहते हैं मुझे। मैं भी जीवनरेखा ही बनी रहना चाहती हूँ लेकिन लोग हैं कि अपने जीवन को सुविधाजनक बनाने के लिये मेरी रेखा को ही छोटा करते रहे हैं।
कभी भी नहीं चाहा था मैंने कि हवाई जहाज और ट्रेनें नावों की तरह मुझ पर बहती नजर आये। वे तो आसमान में और मुझ पर बनाए गए पुलों के ऊपर से गुजरती ही ठीक लगतीं हैं। मैनें कभी नहीं चाहा था कि यह महानगर टापू में तब्दील हो जाये और समुद्र का आर्थिक दोहन करते–करते सागर का ही एक हिस्सा नजर आने लगे।
आज हर शख्स मुझे देख कर डर रहा है, अपनी माँ को देखकर डर रहा है? मेरे इन बच्चों को मुझ पर तब दया नहीं आई जब मेरे पाट पर ही पूरा हवाई अड्डा तैयार किया जा रहा था। क्या स्मार्ट सिटी के रास्ते पर तेजी से दौड़ते इस शहर को नहीं पता कि पूरा महानगर ही नमभूमि और कच्छभूमि पर बसा है?
मानवाधिकार, मायने और पानी
विश्व मानवाधिकार दिवस, 10 दिसम्बर पर विशेष
क्या गजब की बात है कि जिस-जिस पर खतरा मँडराया, हमने उस-उस के नाम पर दिवस घोषित कर दिये! मछली, गोरैया, पानी, मिट्टी, धरती, माँ, पिता...यहाँ तक कि हाथ धोने और खोया-पाया के नाम पर भी दिवस मनाने का चलन चल पड़ा है। यह नया चलन है; संकट को याद करने का नया तरीका।
यूँ अस्तित्व में आया मानवाधिकार दिवस
संकट का एक ऐसा ही समय तक आया, जब द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत हुई। वर्ष 1939 -पूरे विश्व के लिये यह एक अंधेरा समय था। उस वक्त तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रुजावेल्ट ने अपने एक सम्बोधन में चार तरह की आज़ादी का नारा बुलन्द किया: अभिव्यक्ति की आज़ादी, धार्मिक आजादी, अभाव से मुक्ति और भय से मुक्ति।
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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