तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

पानी का चंचल रूप है नदी। यह अपने कछार में बसे लोगों की जीवनरेखा है। नदी के कारण कृषि सम्भव हुआ। जो शिकारी था, वह किसान बन गया। उसे शिकार की भागदौड़ से मुक्ति मिली। वह एक जगह घर बसा कर कला, धर्म, आध्यात्म, विज्ञान और साहित्य की ओर अग्रसर हो सका। हजारों वर्षों से मनुष्य नदी की ओर खिंचता चला आया है।
संस्कृतियों का जन्म नदियों की कोख से हुआ है। नदी हमारी आत्मा को तृप्त करती है। नदी हमारी चेतना का प्रवाह भी है।
इन शास्त्रीय उल्लेखों के अलावा नदियों के बारे में अनेक साहित्यिक अभिव्यक्तियाँ भी मिलती हैं। जैसे नदियाँ राष्ट्रों की माताएँ हैं और पर्वत पिता। पिता निष्चेष्ट, निर्बन्ध और चिन्तामुक्त निर्द्वन्द्व पुरुष है तो नदियाँ सचेष्ट, गतिशील-मुक्तिदात्री एवं रसवती सरस्वती हैं। शून्य में स्वच्छन्द विचरण करने वाले मेघ जब क्षितिज की शय्या पर हलचल मचाकर रिक्त हो जाते हैं तब माता पृथ्वी उस तेजोदीप्त जीवन-पुष्प को अपनी सरितन्तुओं द्वारा धारण करती है।
पानी का चंचल रूप है नदी। यह अपने कछार में बसे लोगों की जीवनरेखा है। नदी के कारण कृषि सम्भव हुआ। जो शिकारी था, वह किसान बन गया। उसे शिकार की भागदौड़ से मुक्ति मिली। वह एक जगह घर बसा कर कला, धर्म, आध्यात्म, विज्ञान और साहित्य की ओर अग्रसर हो सका। हजारों वर्षों से मनुष्य नदी की ओर खिंचता चला आया है।
संस्कृतियों का जन्म नदियों की कोख से हुआ है। नदी हमारी आत्मा को तृप्त करती है। नदी हमारी चेतना का प्रवाह भी है।
इन शास्त्रीय उल्लेखों के अलावा नदियों के बारे में अनेक साहित्यिक अभिव्यक्तियाँ भी मिलती हैं। जैसे नदियाँ राष्ट्रों की माताएँ हैं और पर्वत पिता। पिता निष्चेष्ट, निर्बन्ध और चिन्तामुक्त निर्द्वन्द्व पुरुष है तो नदियाँ सचेष्ट, गतिशील-मुक्तिदात्री एवं रसवती सरस्वती हैं। शून्य में स्वच्छन्द विचरण करने वाले मेघ जब क्षितिज की शय्या पर हलचल मचाकर रिक्त हो जाते हैं तब माता पृथ्वी उस तेजोदीप्त जीवन-पुष्प को अपनी सरितन्तुओं द्वारा धारण करती है।
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