तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

विश्व जल दिवस पर विशेष
प्रकृति और इंसान के बनाए ढाँचों में सन्तुलन कैसे हो?
प्रकृति है, तो पानी है। पानी है, तो प्रकृति का हर जीव है; पारिस्थितिकी है। समृद्ध जल सम्पदा के बगैर, पारिस्थितिकीय समृद्धि सम्भव नहीं। पारिस्थितिकीय समृद्धि के बगैर, जल समृद्धि की कल्पना करना ही बेवकूफी है। विश्व जल दिवस के प्रणेताओं की चिन्ता है कि जलचक्र, अपना अनुशासन और तारतम्य खो रहा है। प्रकृति और इंसान की बनाए ढाँचों के बीच में सन्तुलन कैसे बने? प्रकृति को बदलने का आदेश हम दे नहीं सकते। हम अपने रहन-सहन और आदतों को प्रकृति के अनुरूप कैसे बदलें? चिन्ता इसकी है।
स्लम बढ़े या गाँव रहें?
पानी बसाता है। सारी सभ्यताएँ पानी के किनारे ही बसीं। किन्तु दुनिया भर में हर सप्ताह करीब 10 लाख लोग अपनी जड़ों से उखड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहेे हैं। 7400 लाख लोगों को वह पानी मुहैया नहीं, जिसे किसी भी मुल्क के मानक पानी योग्य मानते हैं।
विश्व जल दिवस पर विशेष
प्रकृति है, तो पानी है। पानी है, तो प्रकृति का हर जीव है; पारिस्थितिकी है। समृद्ध जल सम्पदा के बगैर, पारिस्थितिकीय समृद्धि सम्भव नहीं। पारिस्थितिकीय समृद्धि के बगैर, जल समृद्धि की कल्पना करना ही बेवकूफी है। विश्व जल दिवस के प्रणेताओं की चिन्ता है कि जलचक्र, अपना अनुशासन और तारतम्य खो रहा है। प्रकृति और इंसान की बनाए ढाँचों के बीच में सन्तुलन कैसे बने? प्रकृति को बदलने का आदेश हम दे नहीं सकते। हम अपने रहन-सहन और आदतों को प्रकृति के अनुरूप कैसे बदलें? चिन्ता इसकी है।
पानी बसाता है। सारी सभ्यताएँ पानी के किनारे ही बसीं। किन्तु दुनिया भर में हर सप्ताह करीब 10 लाख लोग अपनी जड़ों से उखड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहेे हैं। 7400 लाख लोगों को वह पानी मुहैया नहीं, जिसे किसी भी मुल्क के मानक पानी योग्य मानते हैं।
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