तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

जल संकट नई बात नहीं है। यह लगातार बढ़ता जा रहा है। विकास के चाहे जितने बड़े-बड़े दावें किए जा रहे हों पर अब भी भारत के ही विभिन्न इलाकों में पानी का विकराल संकट है। लोगों को कई किलोमीटर दूर जाकर वहां से पीने के लिए पानी ले आना पड़ता है। कई इलाकों में जल स्तर इतना नीचे चला जा रहा है कि उसे खोज पाना मुश्किल होता जा रहा है। जहां पानी मिल भी जा रहा है वह इतना खराब होता है कि उससे कपड़े तक नहीं धोए जा सकते, पीने लायक तो वह कतई होता ही नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि आने वाले समय में जल संकट गहरा जाएगा। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सन 2025 तक दुनिया की करीब 3.4 अरब जनसंख्या गंभीर जल संकट से जुझ रही होगी। यह संकट अगले 25 सालों में और भी गहरा हो जाएगा। यह इतना गहरा हो जाएगा कि पानी के लिए लोग एक दूसरे की जान के दुश्मन हो जाएंगे। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जल संकट का सबसे खराब असर दक्षिण एशिया खासकर भारत पर पड़ सकता है। ऐसा यहां की भौगोलिक स्थितियों के कारण होगा।
आज पृथ्वी अपनी प्राकृतिक रूप खोती जा रही है। जहां देखो वहां कूड़े के ढेर व बेतरतीब फैले कचरे ने इसके सौंदर्य को नष्ट कर दिया है। विश्व में बढ़ती जनसंख्या तथा औद्योगीकरण एवं शहरीकरण में तेजी से वृद्धि के साथ-साथ ठोस अपशिष्ट पदार्थों द्वारा उत्पन्न पर्यावरण प्रदूषण की समस्या भी विकराल होती जा रही है।
जल संकट नई बात नहीं है। यह लगातार बढ़ता जा रहा है। विकास के चाहे जितने बड़े-बड़े दावें किए जा रहे हों पर अब भी भारत के ही विभिन्न इलाकों में पानी का विकराल संकट है। लोगों को कई किलोमीटर दूर जाकर वहां से पीने के लिए पानी ले आना पड़ता है। कई इलाकों में जल स्तर इतना नीचे चला जा रहा है कि उसे खोज पाना मुश्किल होता जा रहा है। जहां पानी मिल भी जा रहा है वह इतना खराब होता है कि उससे कपड़े तक नहीं धोए जा सकते, पीने लायक तो वह कतई होता ही नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि आने वाले समय में जल संकट गहरा जाएगा। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सन 2025 तक दुनिया की करीब 3.4 अरब जनसंख्या गंभीर जल संकट से जुझ रही होगी। यह संकट अगले 25 सालों में और भी गहरा हो जाएगा। यह इतना गहरा हो जाएगा कि पानी के लिए लोग एक दूसरे की जान के दुश्मन हो जाएंगे। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जल संकट का सबसे खराब असर दक्षिण एशिया खासकर भारत पर पड़ सकता है। ऐसा यहां की भौगोलिक स्थितियों के कारण होगा।
आज पृथ्वी अपनी प्राकृतिक रूप खोती जा रही है। जहां देखो वहां कूड़े के ढेर व बेतरतीब फैले कचरे ने इसके सौंदर्य को नष्ट कर दिया है। विश्व में बढ़ती जनसंख्या तथा औद्योगीकरण एवं शहरीकरण में तेजी से वृद्धि के साथ-साथ ठोस अपशिष्ट पदार्थों द्वारा उत्पन्न पर्यावरण प्रदूषण की समस्या भी विकराल होती जा रही है।
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