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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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Submitted by admin on Fri, 10/04/2013 - 10:27
Source:
Ganga
गंगा के किनारे में तुलसी का रामचरित, आदिगुरु शंकराचार्य का गंगाष्टक और पांच श्लोकों में लिखा जीवन सार - मनीषा पंचगम, जगन्नाथ की गंगालहरी, कर्नाटक संगीत के स्थापना पुरुष मुत्तुस्वामी दीक्षित का राग झंझूती, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, टैगोर की गीतांजलि और प्रेमचंद्र के भीत
Submitted by admin on Sun, 09/29/2013 - 10:20
Source:
MC Mehta
एक सन्यासी निगमानंद की मौत के बाद कोई हंगामा नहीं हुआ, समाज ने ठीक से अश्रु भी नहीं बहाए...तो इस दूसरे सन्यासी की मृत्यु से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। संभवतः हमारी सरकारें अब यही सोचती हैं। यदि ऐसा है, तो स्थिति सचमुच विकट है। ऐसे में इस मांग का उठना पूरी तरह वाजिब है
Submitted by admin on Mon, 09/23/2013 - 16:41
Source:
जनसत्ता (रविवारी), 23 सितंबर 2013
जल संचय की आधुनिक तकनीक अपनाने के बावजूद राजस्थान के थार मरुस्थल में पानी का संकट बरकरार है। जल संरक्षण की परंपरागत प्रणालियों की उपेक्षा की वजह से स्थिति और नाज़ुक होती जा रही है। इस कठिनाई से निजात पाने का सही तरीका क्या हो सकता है? बता रहे हैं शूभू पटवा।

थार मरुस्थल में पानी के प्रति समाज का रिश्ता बड़ा ही आस्था भरा रहा है। पानी को श्रद्धा और पवित्रता के भाव से देखा जाता रहा है। इसीलिए पानी का उपयोग विलासिता के रूप में न होकर, जरूरत को पूरा करने के लिए ही होता रहा है। पानी को अमूल्य माना जाता रहा है। इसका कोई ‘मोल’ यहां कभी नहीं रहा। थार में यह परंपरा रही है कि यहां ‘दूध’ बेचना और ‘पूत’ बेचना एक ही बात मानी जाती है। इसी प्रकार पानी को ‘आबरू’ भी माना जाता है। बरसात के पानी को संचित करने के सैकड़ों वर्षों के परंपरागत तरीकों पर फिर से सोचा जाने लगा है। राजस्थान का थार मरुस्थलीय क्षेत्र में सदियों से जीवन रहा है। यहां औसतन 380 मिलीमीटर बारिश होती है। इस क्षेत्र में जैव विविधता भी अपार रही है। जहां राष्ट्रीय औसत बारह सौ मिलीमीटर माना गया है, वहीं राजस्थान में बारिश का यह औसत करीब 531 मिलीमीटर है। क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान समूचे देश में सबसे बड़ा राज्य है और इसका दो-तिहाई हिस्सा थार मरुस्थल का है। इसी थार मरुस्थल में जल संरक्षण की परंपरागत संरचनाएं काफी समृद्धशाली रही हैं। जब तक इनको समाज का संरक्षण मिलता रहा, तब तक इन संरचनाओं का बिगाड़ा न के बराबर हुआ और ज्यों-ज्यों शासन की दखलदारी बढ़ी, त्यों-त्यों समाज ने हाथ खींचना शुरू कर दिया और इस तरह वे संरचनाएं जो एक समय जीवन का आधार थीं, समाज की विमुखता के साथ ये ढांचें भी ध्वस्त होते गए या बेकार मान लिए गए।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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गंगा जैसी मां और कहां

Submitted by admin on Fri, 10/04/2013 - 10:27
Author
अरुण तिवारी
Ganga
गंगा के किनारे में तुलसी का रामचरित, आदिगुरु शंकराचार्य का गंगाष्टक और पांच श्लोकों में लिखा जीवन सार - मनीषा पंचगम, जगन्नाथ की गंगालहरी, कर्नाटक संगीत के स्थापना पुरुष मुत्तुस्वामी दीक्षित का राग झंझूती, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, टैगोर की गीतांजलि और प्रेमचंद्र के भीत

एम.सी. मेहता ने मांगा प्रधानमंत्री से इस्तीफ़ा

Submitted by admin on Sun, 09/29/2013 - 10:20
Author
अरुण तिवारी
MC Mehta
एक सन्यासी निगमानंद की मौत के बाद कोई हंगामा नहीं हुआ, समाज ने ठीक से अश्रु भी नहीं बहाए...तो इस दूसरे सन्यासी की मृत्यु से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। संभवतः हमारी सरकारें अब यही सोचती हैं। यदि ऐसा है, तो स्थिति सचमुच विकट है। ऐसे में इस मांग का उठना पूरी तरह वाजिब है

मरुस्थल में पानी की कहानी

Submitted by admin on Mon, 09/23/2013 - 16:41
Author
शुभू पटवा
Source
जनसत्ता (रविवारी), 23 सितंबर 2013
जल संचय की आधुनिक तकनीक अपनाने के बावजूद राजस्थान के थार मरुस्थल में पानी का संकट बरकरार है। जल संरक्षण की परंपरागत प्रणालियों की उपेक्षा की वजह से स्थिति और नाज़ुक होती जा रही है। इस कठिनाई से निजात पाने का सही तरीका क्या हो सकता है? बता रहे हैं शूभू पटवा।

थार मरुस्थल में पानी के प्रति समाज का रिश्ता बड़ा ही आस्था भरा रहा है। पानी को श्रद्धा और पवित्रता के भाव से देखा जाता रहा है। इसीलिए पानी का उपयोग विलासिता के रूप में न होकर, जरूरत को पूरा करने के लिए ही होता रहा है। पानी को अमूल्य माना जाता रहा है। इसका कोई ‘मोल’ यहां कभी नहीं रहा। थार में यह परंपरा रही है कि यहां ‘दूध’ बेचना और ‘पूत’ बेचना एक ही बात मानी जाती है। इसी प्रकार पानी को ‘आबरू’ भी माना जाता है। बरसात के पानी को संचित करने के सैकड़ों वर्षों के परंपरागत तरीकों पर फिर से सोचा जाने लगा है। राजस्थान का थार मरुस्थलीय क्षेत्र में सदियों से जीवन रहा है। यहां औसतन 380 मिलीमीटर बारिश होती है। इस क्षेत्र में जैव विविधता भी अपार रही है। जहां राष्ट्रीय औसत बारह सौ मिलीमीटर माना गया है, वहीं राजस्थान में बारिश का यह औसत करीब 531 मिलीमीटर है। क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान समूचे देश में सबसे बड़ा राज्य है और इसका दो-तिहाई हिस्सा थार मरुस्थल का है। इसी थार मरुस्थल में जल संरक्षण की परंपरागत संरचनाएं काफी समृद्धशाली रही हैं। जब तक इनको समाज का संरक्षण मिलता रहा, तब तक इन संरचनाओं का बिगाड़ा न के बराबर हुआ और ज्यों-ज्यों शासन की दखलदारी बढ़ी, त्यों-त्यों समाज ने हाथ खींचना शुरू कर दिया और इस तरह वे संरचनाएं जो एक समय जीवन का आधार थीं, समाज की विमुखता के साथ ये ढांचें भी ध्वस्त होते गए या बेकार मान लिए गए।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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