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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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Submitted by admin on Tue, 09/10/2013 - 13:46
Source:
आदित्य अवस्थी की पुस्तक 'नीली दिल्ली प्यासी दिल्ली'
दिल्ली के विभिन्न इलाकों में बनी बावड़ियों में से कई तो ऐसी हैं, जिन्हें बनवाए हुए 600 से 800 साल या उससे भी अधिक का समय गुजर चुका है। इनमें से कुछ तो अभी भी बची हुई हैं। हां, जिस संरक्षण और संवर्धन के इरादे से इनका निर्माण किया गया था, अब उनमें पानी नहीं रह गया है। उनका पानी आस-पास के विकास की बलि चढ़ गया। हालांकि इस विकास के बाद उनके आस-पास रहने आने वालों के लिए पानी उतना ही जरूरी है जितना कि सैकड़ों साल पहले यहां रहने वालों के लिए था। हां, तब उन्हें बोतलबंद मिनरल वाटर नहीं मिलता था, भले ही इन मिनरल वाटर की बोतलों में मिनरल के अलावा सब कुछ हो।दिल्ली के ज्ञात इतिहास में बावड़ी बनाने का काम इल्तुतमिश के शासन काल के दौरान शुरू किए जाने के ही प्रमाण हैं। दिल्ली में बावड़ी के विकास पर एक नजर डाली जाए तो कम-से-कम दो दर्जन बावड़ियों का पता चलता है। इनका इस्तेमाल गुज़रे कल की दिल्ली और दिल्लीवालों ने अपने जीवन की सबसे प्रमुख जरूरत पानी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए किया। ये बावड़ियां उस समय की दिल्ली के लगभग सभी हिस्सों में बनाई गई थीं। यहां यह याद रखना जरूरी है कि जब ये बावड़ियां बनाई जा रही थीं तब की दिल्ली मुख्य रूप से यमुना के पश्चिमी किनारे और रिज की पहाड़ियों के बीच ही हुआ करती थी। इस पुस्तक में शामिल की गई बावड़ियों की सूची को अंतिम नहीं कहा जा सकता। हो सकता है कि 1,000 साल से पुराने शहर में और भी बावड़ियां रही हों। शायद जो हों भी, वे भी विकास की भेंट चढ़ गई हों, अभी भी कूड़े-कचरे, मिट्टी से ढकी कहीं हों। उनके बारे में जानकारी आमतौर पर उपलब्ध नहीं है। इनका पता लगाकर उन्हें फिर बहाल किए जाने की आवश्यकता है। ऐसा किया जा पाना तकनीकी दृष्टि से संभव है और ऐसा भी किया जाना चाहिए।
Submitted by admin on Mon, 09/09/2013 - 13:16
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जनसत्ता (रविवारी), 08 सितंबर 2013
अमृतलाल वेगड़ की नर्मदा परिक्रमा एक तरह से उनकी कलायात्रा भी है। नदी-संस्कृति के तमाम रूप उनके चित्रों और रेखांकनों में मुखरित हुए हैं। साथ में लोकजीवन की दूसरी बहुतेरी छवियां भी उनके रचना संसार में रची-बसी हैं। उनके कलारूपों को कलमबद्ध कर रहे हैं राजेश कुमार व्यास।

अमृतलाल वेगड़ ने नर्मदा की चार हजार से अधिक किलोमीटर की पदयात्रा की है। इस पदयात्रा में निर्जन वन, पहाड़, नदी के संगम गुफाओं, चट्टानों, आदिवासियों, ग्रामीणों की संस्कृति को उन्होंने गहरे से छुआ। अनुभूत किया नर्मदाव्रती चित्रकार के रूप में तात्कालिक स्तर पर रेखाओं के जो जीवनानुभव उन्होंने उकेरे बाद में उनके आधार पर ही रंगीन पेपर कोलाजों में उन्हें अनूठे रूपाकर दिए। इन्हीं में उन्होंने नर्मदा की अपनी की पदयात्रा को फिर से एक प्रकार से जिया भी है। नर्मदा, अमृतलाल वेगड़ के लिए नदी नहीं, पूरी एक संस्कृति है। रेखाओं की सांगीतिक लय में वह नदी और उससे जुड़े संस्कारों,सभ्यता और जीवन से जुड़े तमाम दूसरे सरोकारों से हमारा अपनापा कराते हैं। उनके रेखाचित्रों और पेपर कोलाज में नदी मधुर गान करती हमें लुभाती है तो कभी चीखती-चिल्लाती अपनी पीड़ा भी बताती है। कभी नदी के मोड़ हमसे बतियाते अपने साथ चलने के लिए आमंत्रित करते हैं तो कभी तट के गांव और आदिवासी सभ्यता से जुड़े सरोकार औचक ही हममें बसने लगते हैं। उनके चित्र देखने के हमारे संस्कारों को एक तरह से संपन्न करते हैं। उनके चित्रों में नर्मदा नदी रूप में नहीं, संस्कृति के रूप में हममें जैसे प्रवेश करती है। चित्र देखते लगता है, नर्मदा नदी का अनथक यात्री हमें भी अपने साथ पद परिक्रमा करा रहा है। सम् और कृति के योग से बना है संस्कृति शब्द। संस्कृति इस अर्थ में सम्गति की द्योतक ही तो है।
Submitted by admin on Wed, 09/04/2013 - 10:53
Source:
यू-ट्यूब

भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी गंगा, जो भारत और बांग्लादेश तक 2,510 किमी की दूरी में उत्तराखंड के गंगोत्री से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन तक विशाल भू भाग को सींचती है, गंगा देश की प्राकृतिक संपदा ही नहीं, जन जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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दिल्ली की बावड़ियां, भाग -1

Submitted by admin on Tue, 09/10/2013 - 13:46
Author
आदित्य अवस्थी
Source
आदित्य अवस्थी की पुस्तक 'नीली दिल्ली प्यासी दिल्ली'
दिल्ली के विभिन्न इलाकों में बनी बावड़ियों में से कई तो ऐसी हैं, जिन्हें बनवाए हुए 600 से 800 साल या उससे भी अधिक का समय गुजर चुका है। इनमें से कुछ तो अभी भी बची हुई हैं। हां, जिस संरक्षण और संवर्धन के इरादे से इनका निर्माण किया गया था, अब उनमें पानी नहीं रह गया है। उनका पानी आस-पास के विकास की बलि चढ़ गया। हालांकि इस विकास के बाद उनके आस-पास रहने आने वालों के लिए पानी उतना ही जरूरी है जितना कि सैकड़ों साल पहले यहां रहने वालों के लिए था। हां, तब उन्हें बोतलबंद मिनरल वाटर नहीं मिलता था, भले ही इन मिनरल वाटर की बोतलों में मिनरल के अलावा सब कुछ हो।दिल्ली के ज्ञात इतिहास में बावड़ी बनाने का काम इल्तुतमिश के शासन काल के दौरान शुरू किए जाने के ही प्रमाण हैं। दिल्ली में बावड़ी के विकास पर एक नजर डाली जाए तो कम-से-कम दो दर्जन बावड़ियों का पता चलता है। इनका इस्तेमाल गुज़रे कल की दिल्ली और दिल्लीवालों ने अपने जीवन की सबसे प्रमुख जरूरत पानी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए किया। ये बावड़ियां उस समय की दिल्ली के लगभग सभी हिस्सों में बनाई गई थीं। यहां यह याद रखना जरूरी है कि जब ये बावड़ियां बनाई जा रही थीं तब की दिल्ली मुख्य रूप से यमुना के पश्चिमी किनारे और रिज की पहाड़ियों के बीच ही हुआ करती थी। इस पुस्तक में शामिल की गई बावड़ियों की सूची को अंतिम नहीं कहा जा सकता। हो सकता है कि 1,000 साल से पुराने शहर में और भी बावड़ियां रही हों। शायद जो हों भी, वे भी विकास की भेंट चढ़ गई हों, अभी भी कूड़े-कचरे, मिट्टी से ढकी कहीं हों। उनके बारे में जानकारी आमतौर पर उपलब्ध नहीं है। इनका पता लगाकर उन्हें फिर बहाल किए जाने की आवश्यकता है। ऐसा किया जा पाना तकनीकी दृष्टि से संभव है और ऐसा भी किया जाना चाहिए।

रंग-रेखाओं में बसा लोक

Submitted by admin on Mon, 09/09/2013 - 13:16
Author
राजेश कुमार व्यास
Source
जनसत्ता (रविवारी), 08 सितंबर 2013
अमृतलाल वेगड़ की नर्मदा परिक्रमा एक तरह से उनकी कलायात्रा भी है। नदी-संस्कृति के तमाम रूप उनके चित्रों और रेखांकनों में मुखरित हुए हैं। साथ में लोकजीवन की दूसरी बहुतेरी छवियां भी उनके रचना संसार में रची-बसी हैं। उनके कलारूपों को कलमबद्ध कर रहे हैं राजेश कुमार व्यास।

अमृतलाल वेगड़ ने नर्मदा की चार हजार से अधिक किलोमीटर की पदयात्रा की है। इस पदयात्रा में निर्जन वन, पहाड़, नदी के संगम गुफाओं, चट्टानों, आदिवासियों, ग्रामीणों की संस्कृति को उन्होंने गहरे से छुआ। अनुभूत किया नर्मदाव्रती चित्रकार के रूप में तात्कालिक स्तर पर रेखाओं के जो जीवनानुभव उन्होंने उकेरे बाद में उनके आधार पर ही रंगीन पेपर कोलाजों में उन्हें अनूठे रूपाकर दिए। इन्हीं में उन्होंने नर्मदा की अपनी की पदयात्रा को फिर से एक प्रकार से जिया भी है। नर्मदा, अमृतलाल वेगड़ के लिए नदी नहीं, पूरी एक संस्कृति है। रेखाओं की सांगीतिक लय में वह नदी और उससे जुड़े संस्कारों,सभ्यता और जीवन से जुड़े तमाम दूसरे सरोकारों से हमारा अपनापा कराते हैं। उनके रेखाचित्रों और पेपर कोलाज में नदी मधुर गान करती हमें लुभाती है तो कभी चीखती-चिल्लाती अपनी पीड़ा भी बताती है। कभी नदी के मोड़ हमसे बतियाते अपने साथ चलने के लिए आमंत्रित करते हैं तो कभी तट के गांव और आदिवासी सभ्यता से जुड़े सरोकार औचक ही हममें बसने लगते हैं। उनके चित्र देखने के हमारे संस्कारों को एक तरह से संपन्न करते हैं। उनके चित्रों में नर्मदा नदी रूप में नहीं, संस्कृति के रूप में हममें जैसे प्रवेश करती है। चित्र देखते लगता है, नर्मदा नदी का अनथक यात्री हमें भी अपने साथ पद परिक्रमा करा रहा है। सम् और कृति के योग से बना है संस्कृति शब्द। संस्कृति इस अर्थ में सम्गति की द्योतक ही तो है।

गंगा : कोई तो थाम लो...

Submitted by admin on Wed, 09/04/2013 - 10:53
Author
यू-ट्यूब
Source
यू-ट्यूब

भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी गंगा, जो भारत और बांग्लादेश तक 2,510 किमी की दूरी में उत्तराखंड के गंगोत्री से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन तक विशाल भू भाग को सींचती है, गंगा देश की प्राकृतिक संपदा ही नहीं, जन जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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