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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

Submitted by Hindi on Tue, 09/03/2013 - 11:50
Source:
गांधी-मार्ग, सितंबर-अक्टूबर 2013

सन 1908 में हुई एक वैज्ञानिक खोज ने हमारी दुनिया बदल दी है। शायद किसी एक आविष्कार का इतना गहरा असर इतिहास में नहीं होगा। आज हममें से हर किसी के जीवन में इस खोज का असर सीधा दीखता है। इससे मनुष्य इतना खाना उगाने लगा है कि एक शताब्दी में ही चौगुनी बढ़ी आबादी के लिए भी अनाज कम नहीं पड़ा। लेकिन इस आविष्कार ने हिंसा का भी एक ऐसा रास्ता खोला है, जिससे हमारी कोई निजाद नहीं है। दो विश्व युद्धों से लेकर आतंकवादी हमलों तक। जमीन की पैदावार बढ़ाने वाले इस आविष्कार से कई तरह के वार पैदा हुए हैं, चाहे विस्फोटकों के रूप में और चाहे पर्यावरण के विराट प्रदूषण के रूप में।

दुनिया के कई हिस्सों में ऐसे ही हादसे छोटे-बड़े रूप में होते रहे हैं। इनको जोड़ने वाली कड़ी है उर्वरक के कारखाने में अमोनियम नाइट्रेट। आखिर खेती के लिए इस्तेमाल होने वाले इस रसायन में ऐसा क्या है कि इससे इतनी तबाही मच सकती है? इसके लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा उन कारणों को जानने के लिए, जिनसे हरित क्रांति के उर्वरक तैयार हुए थे।

इस साल 17 अप्रैल को एक बड़ा धमाका हुआ था। इसकी गूंज कई दिनों तक दुनिया भर में सुनाई देती रही थी। अमेरिका के टेक्सास राज्य के वेस्ट नामक गांव में हुए इस विस्फोट से फैले दावानल ने 15 लोगों को मारा था और कोई 180 लोग हताहत हुए थे। हादसे तो यहां-वहां होते ही रहते हैं और न जाने कितने लोगों को मारते भी हैं। लेकिन यह धमाका कई दिनों तक खबर में बना रहा। इससे हुए नुकसान के कारण नहीं, जिस जगह यह हुआ था, उस वजह से। धमाका किसी आतंकवादी संगठन के हमले से नहीं हुआ था। उर्वरक बनाने के लिए काम आने वाले रसायनों के एक भंडार में आग लग गई थी। कुछ वैसी ही जैसी कारखानों में यहां-वहां कभी-कभी लग जाती है। दमकल की गाड़ियां पहुंचीं और अग्निशमन दल अपने काम में लग गया। लेकिन उसके बाद जो धमाका हुआ, उसे आसपास रहने वाले लोगों ने किसी एक भूचाल की तरह महसूस किया।
Submitted by admin on Sun, 09/01/2013 - 13:49
Source:
जनसत्ता (रविवारी), 25 अगस्त 2013
उत्तराखंड की आपदा ऐसे छोड़ गई है जिसकी टीस मिटने में लंबा वक्त लगेगा। दो महीने बाद भी कहीं राहत सामग्री और मुआवजे की बंदरबांट चल रही है तो कहीं मलबों में दबे शव डीएनए परीक्षण के इंतजार में दुर्गंध फैला रहे हैं। प्रशासन की उदासनता और हीलाहवाली लोगों की तकलीफ़ को और बढ़ा रही है। इस उथल-पुथल की दास्तान बयान कर रहे हैं गुंजन कुमार साथ में शंभूनाथ शुक्ल का यात्रा अनुभव।

आपदा के शुरुआती दिनों में आपदाग्रस्त गाँवों में हेलिकॉप्टर से बिस्कुट, पानी वगैरह गिराया गया था। उसके बाद लोग रोज़ाना दर्जनों बार हेलिकॉटर को अपने गांव के ऊपर से उड़ान भरते देखते हैं। जैसे ही किसी हेलिकॉप्टर की आवाज़ इनके कानों में पड़ती है तो सभी अपने आंगन में आकर आसमान को निहारने लगते हैं। ऐसा करते हुए इन्हें दो महीने हो गए हैं। लेकिन एक भी पैकेट अन्न इस क्षेत्र में नहीं गिरा। राहत सामग्री नहीं मिलने के कारण घाटी के लोगों पर भुखमरी का संकट गहराने लगा है। आपदा के दो महीने बाद भी उत्तराखंड में केदारनाथ इलाके की हकीक़त अब भी भयावह है। वहां मलबों में अब भी दबी लाशें डीएनए परीक्षण के इंतजार में दुर्गंध फैला रही हैं। भूख से तड़पते लोग हैं, मगर राहत सामग्री उन तक नहीं पहुंच पाई है। कालीमठ और मदमहेश्वर घाटी की सूरत-ए-हाल जानने के लिए जान जोखिम में डालकर उन दुर्गंध घाटियों में गया, जहां अभी तक कोई मीडियाकर्मी नहीं पहुंचा पाया था और न सरकारी कारिंदा। मुआवज़े का मरहम ज़ख्म तक पहुंचने से पहले ही प्रहसन में तब्दील हो रहा है। पीड़ा की घाटियों को जानने-समझने के क्रम में हमारा पहला पड़ाव ऊखीमठ था। इसी तहसील में केदारनाथ है, जो रुद्रप्रयाग जनपद में है। अगले दिन सबसे पहले ऊखीमठ का पैंज गांव जाना हुआ। बताया गया कि इस गांव के आठ लोग केदारनाथ के काल के गाल में समा गए, जिनमें पांच बच्चे थे।
Submitted by admin on Fri, 08/30/2013 - 10:41
Source:
नेशनल दुनिया, 28 अगस्त 2013
गुजरात की रिफ़ाइनरी में रोज़ाना पांच से छह मिलियन गैलन पानी का इस्तेमाल होता है। यानी अगर बाड़मेर की प्रस्तावित रिफ़ाइनरी बनती है तो सूखा प्रभावित इलाके में रोज़ाना लाखों लीटर पानी की जरूरत होगी। जल संसाधन मंत्रालय पहले ही राजस्थान को ज़मीन के अंदर के पानी के मामले में काला क्षेत्र घोषित कर चुका है। ऐसे में, सवाल उठता है कि इतना सारा पानी कहां से आएगा। इसके लिए अभी तक कोई कार्ययोजना भी पेश नहीं की गई है। फिर राजस्थान समुद्र के किनारे भी नहीं है कि वहां से खारा पानी लाकर उसे पहले मीठे पानी में तब्दील करके फिर रिफ़ाइनरी में इस्तेमाल किया जाए। विकास के लिए जारी आपाधापी और मशक्कत के दौर में यह सवाल निश्चित तौर पर कड़वा लग सकता है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु काफी पहले ही कह गए हैं कि बड़े उद्योग देश के नए तीर्थस्थल हैं। जिस देश में ऐसी परंपरा रही हो और जहां उदारीकरण की तेज बयार बह रही हो, ऐसे में यह सवाल न सिर्फ बेमानी, बल्कि विकास विरोधी भी लग सकता है। इस सवाल पर विस्तार से चर्चा से पहले उत्तराखंड में 16 जून को आई त्रासदी और उसके बाद उठ रहे सवालों पर गौर फरमाया जाए तो निश्चित मानिए कि यह सवाल कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण लगने लगेगा। यह सच है कि तमाम कोशिशों के बावजूद राजस्थान अब भी विकसित राज्यों की उस पांत में शामिल नहीं हो पाया है, जिसमें तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे राज्य स्थापित हो चुके हैं। ऐसे मे अगर बाड़मेर में तेल रिफायनरी बनती हैं तो उसका स्वागत ही होना चाहिए। क्योंकि इससे राजस्थान के राजस्व ना सिर्फ बढ़ोतरी होगी, बल्कि रोज़गार के नए मौके बढ़ेगे। बीमारू राज्यों में शुमार रहे राजस्थान के लिए यह प्रस्ताव बेहतरी की गुंजाइश ही लेकर आया है।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

Latest

खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

उर्वरता की हिंसक भूमि

Submitted by Hindi on Tue, 09/03/2013 - 11:50
Author
सोपान जोशी
Source
गांधी-मार्ग, सितंबर-अक्टूबर 2013

सन 1908 में हुई एक वैज्ञानिक खोज ने हमारी दुनिया बदल दी है। शायद किसी एक आविष्कार का इतना गहरा असर इतिहास में नहीं होगा। आज हममें से हर किसी के जीवन में इस खोज का असर सीधा दीखता है। इससे मनुष्य इतना खाना उगाने लगा है कि एक शताब्दी में ही चौगुनी बढ़ी आबादी के लिए भी अनाज कम नहीं पड़ा। लेकिन इस आविष्कार ने हिंसा का भी एक ऐसा रास्ता खोला है, जिससे हमारी कोई निजाद नहीं है। दो विश्व युद्धों से लेकर आतंकवादी हमलों तक। जमीन की पैदावार बढ़ाने वाले इस आविष्कार से कई तरह के वार पैदा हुए हैं, चाहे विस्फोटकों के रूप में और चाहे पर्यावरण के विराट प्रदूषण के रूप में।

दुनिया के कई हिस्सों में ऐसे ही हादसे छोटे-बड़े रूप में होते रहे हैं। इनको जोड़ने वाली कड़ी है उर्वरक के कारखाने में अमोनियम नाइट्रेट। आखिर खेती के लिए इस्तेमाल होने वाले इस रसायन में ऐसा क्या है कि इससे इतनी तबाही मच सकती है? इसके लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा उन कारणों को जानने के लिए, जिनसे हरित क्रांति के उर्वरक तैयार हुए थे।

इस साल 17 अप्रैल को एक बड़ा धमाका हुआ था। इसकी गूंज कई दिनों तक दुनिया भर में सुनाई देती रही थी। अमेरिका के टेक्सास राज्य के वेस्ट नामक गांव में हुए इस विस्फोट से फैले दावानल ने 15 लोगों को मारा था और कोई 180 लोग हताहत हुए थे। हादसे तो यहां-वहां होते ही रहते हैं और न जाने कितने लोगों को मारते भी हैं। लेकिन यह धमाका कई दिनों तक खबर में बना रहा। इससे हुए नुकसान के कारण नहीं, जिस जगह यह हुआ था, उस वजह से। धमाका किसी आतंकवादी संगठन के हमले से नहीं हुआ था। उर्वरक बनाने के लिए काम आने वाले रसायनों के एक भंडार में आग लग गई थी। कुछ वैसी ही जैसी कारखानों में यहां-वहां कभी-कभी लग जाती है। दमकल की गाड़ियां पहुंचीं और अग्निशमन दल अपने काम में लग गया। लेकिन उसके बाद जो धमाका हुआ, उसे आसपास रहने वाले लोगों ने किसी एक भूचाल की तरह महसूस किया।

आपदा के बाद उत्तराखंड

Submitted by admin on Sun, 09/01/2013 - 13:49
Author
गुंजन कुमार
शंभूनाथ शुक्ल
Source
जनसत्ता (रविवारी), 25 अगस्त 2013
उत्तराखंड की आपदा ऐसे छोड़ गई है जिसकी टीस मिटने में लंबा वक्त लगेगा। दो महीने बाद भी कहीं राहत सामग्री और मुआवजे की बंदरबांट चल रही है तो कहीं मलबों में दबे शव डीएनए परीक्षण के इंतजार में दुर्गंध फैला रहे हैं। प्रशासन की उदासनता और हीलाहवाली लोगों की तकलीफ़ को और बढ़ा रही है। इस उथल-पुथल की दास्तान बयान कर रहे हैं गुंजन कुमार साथ में शंभूनाथ शुक्ल का यात्रा अनुभव।

आपदा के शुरुआती दिनों में आपदाग्रस्त गाँवों में हेलिकॉप्टर से बिस्कुट, पानी वगैरह गिराया गया था। उसके बाद लोग रोज़ाना दर्जनों बार हेलिकॉटर को अपने गांव के ऊपर से उड़ान भरते देखते हैं। जैसे ही किसी हेलिकॉप्टर की आवाज़ इनके कानों में पड़ती है तो सभी अपने आंगन में आकर आसमान को निहारने लगते हैं। ऐसा करते हुए इन्हें दो महीने हो गए हैं। लेकिन एक भी पैकेट अन्न इस क्षेत्र में नहीं गिरा। राहत सामग्री नहीं मिलने के कारण घाटी के लोगों पर भुखमरी का संकट गहराने लगा है। आपदा के दो महीने बाद भी उत्तराखंड में केदारनाथ इलाके की हकीक़त अब भी भयावह है। वहां मलबों में अब भी दबी लाशें डीएनए परीक्षण के इंतजार में दुर्गंध फैला रही हैं। भूख से तड़पते लोग हैं, मगर राहत सामग्री उन तक नहीं पहुंच पाई है। कालीमठ और मदमहेश्वर घाटी की सूरत-ए-हाल जानने के लिए जान जोखिम में डालकर उन दुर्गंध घाटियों में गया, जहां अभी तक कोई मीडियाकर्मी नहीं पहुंचा पाया था और न सरकारी कारिंदा। मुआवज़े का मरहम ज़ख्म तक पहुंचने से पहले ही प्रहसन में तब्दील हो रहा है। पीड़ा की घाटियों को जानने-समझने के क्रम में हमारा पहला पड़ाव ऊखीमठ था। इसी तहसील में केदारनाथ है, जो रुद्रप्रयाग जनपद में है। अगले दिन सबसे पहले ऊखीमठ का पैंज गांव जाना हुआ। बताया गया कि इस गांव के आठ लोग केदारनाथ के काल के गाल में समा गए, जिनमें पांच बच्चे थे।

रिफ़ाइनरी चाहिए तो पर्यावरण का भी रहे ध्यान

Submitted by admin on Fri, 08/30/2013 - 10:41
Author
उमेश चतुर्वेदी
Source
नेशनल दुनिया, 28 अगस्त 2013
गुजरात की रिफ़ाइनरी में रोज़ाना पांच से छह मिलियन गैलन पानी का इस्तेमाल होता है। यानी अगर बाड़मेर की प्रस्तावित रिफ़ाइनरी बनती है तो सूखा प्रभावित इलाके में रोज़ाना लाखों लीटर पानी की जरूरत होगी। जल संसाधन मंत्रालय पहले ही राजस्थान को ज़मीन के अंदर के पानी के मामले में काला क्षेत्र घोषित कर चुका है। ऐसे में, सवाल उठता है कि इतना सारा पानी कहां से आएगा। इसके लिए अभी तक कोई कार्ययोजना भी पेश नहीं की गई है। फिर राजस्थान समुद्र के किनारे भी नहीं है कि वहां से खारा पानी लाकर उसे पहले मीठे पानी में तब्दील करके फिर रिफ़ाइनरी में इस्तेमाल किया जाए। विकास के लिए जारी आपाधापी और मशक्कत के दौर में यह सवाल निश्चित तौर पर कड़वा लग सकता है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु काफी पहले ही कह गए हैं कि बड़े उद्योग देश के नए तीर्थस्थल हैं। जिस देश में ऐसी परंपरा रही हो और जहां उदारीकरण की तेज बयार बह रही हो, ऐसे में यह सवाल न सिर्फ बेमानी, बल्कि विकास विरोधी भी लग सकता है। इस सवाल पर विस्तार से चर्चा से पहले उत्तराखंड में 16 जून को आई त्रासदी और उसके बाद उठ रहे सवालों पर गौर फरमाया जाए तो निश्चित मानिए कि यह सवाल कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण लगने लगेगा। यह सच है कि तमाम कोशिशों के बावजूद राजस्थान अब भी विकसित राज्यों की उस पांत में शामिल नहीं हो पाया है, जिसमें तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे राज्य स्थापित हो चुके हैं। ऐसे मे अगर बाड़मेर में तेल रिफायनरी बनती हैं तो उसका स्वागत ही होना चाहिए। क्योंकि इससे राजस्थान के राजस्व ना सिर्फ बढ़ोतरी होगी, बल्कि रोज़गार के नए मौके बढ़ेगे। बीमारू राज्यों में शुमार रहे राजस्थान के लिए यह प्रस्ताव बेहतरी की गुंजाइश ही लेकर आया है।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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