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जनसत्ता रविवारी, 05 मई 2013
उत्तराखंड हिमालय, गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियों और उनकी सैकड़ों सदानीरा जलधाराओं के कारण पूरे विश्व में जलभंडार के रूप में प्रसिद्ध है। मगर तथाकथित विकास और समृद्धि के झूठे दंभ से ग्रस्त राज्य सरकारें गंगा और उसकी धाराओं के प्राकृतिक सनातन प्रवाह को बांधों से बाधित कर रही हैं। इनसे इन नदियों का अस्तित्व खतरे में है। इसके चलते राज्य की वर्षापोषित और हिमपोषित तमाम नदियों पर संकट छा गया है। जहां वर्षापोषित कोसी, रामगंगा, जलकुर आदि नदियों का पानी निरंतर सूख रहा है वहीं भागीरथी, यमुना, अलकनंदा, भिलंगना, सरयू, महाकाली, मंदाकिनी आदि हिमपोषित नदियों पर सुरंग बांधों का खतरा है। उत्तराखंड समेत सभी हिमालयी राज्यों में सुरंग आधारित जल विद्युत परियोजनाओं के कारण नदियों का प्राकृतिक स्वरूप बिगड़ गया है। ढालदार पहाड़ियों पर बसे गाँवों के नीचे बांधों की सुरंग बनाई जा रही है। जहां-जहां ऐसे बांध बन रहे हैं, लोग सवाल उठा रहे हैं। इन बांधों के निर्माण के लिए निजी कंपनियों के अलावा एनटीपीसी और एनएचपीसी जैसी कमाऊ कंपनियों को बुलाया जा रहा है। राज्य सरकार ऊर्जा प्रदेश का सपना भी इन्हीं के सहारे देख रही है। ऊर्जा प्रदेश बनाने के लिए पारंपरिक जल संस्कृति और संरक्षण जैसी बातों को बिल्कुल भुला दिया गया है। निजी क्षेत्र के हितों को ध्यान में रख कर नीति बनाई जा रही है। निजी क्षेत्र के प्रति सरकारी लगाव के पीछे दुनिया की वैश्विक ताक़तों का दबाव है। इसे विकास का मुख्य आधार मान कर स्थानीय लोगों की आजीविका की मांग कुचली जा रही है। बांध बनाने वाली व्यवस्था ने इस दिशा में संवादहीनता पैदा कर दी है। वह लोगों की उपेक्षा कर रही है। उत्तराखंड में जहां-जहां सुरंगी बांध बन रहे हैं, वहां लोगों की दुविधा यह भी है कि टिहरी जैसा विशालकाय बांध तो नहीं बन रहा है, जिसके कारण उन्हें विस्थापन की मार झेलनी पड़ सकती है। इसलिए कुछ लोग पुनर्वास की मांग करते भी दिखाई दे रहे हैं।
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