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जनसत्ता रविवारी, 21 अप्रैल 2013
इस धरती की सतह का सत्तर प्रतिशत हिस्सा सड़कों, खदानों और बढ़ते शहरीकरण की भेंट चढ़- गया है। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि 2050 तक हमारे वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा दोगुनी हो जाएगी और हम भयानक बीमारियों की गिरफ़्त में होंगे। दुनिया की आधी से अधिक नदियां प्रदूषित होंगी और इनका जल स्तर घट जाएगा। सदा नीरा यमुना और गंगा के हालात हमारे सामने हैं। संताप हरती इनकी ‘कल कल’ ध्वनि सुनने को कान आतुर-व्याकुल ही रह रहे हैं। भारतीय परंपरा और विश्वास कहता है कि मां की सेवा करने वाला सत्पुरुष कहलाता है। वह दीर्घायु, यश, कीर्ति, बल, पुण्य, सुख, लक्ष्मी और धनधान्य को प्राप्त करता है। यदि कोई मानता हो तो, यह भी कहा गया है कि ऐसा पुरुष स्वर्ग का अधिकारी भी हो सकता है। अब स्वर्ग किसने देखा है और अगर किसी ने देखा है तो आकर कब बताया है कि स्वर्ग कैसा होता है? पर, अगर कोई सत्पुरुष है, तो क्या यही कम है? सत्पुरुष होने के साथ जो बातें जुड़ी हैं और जिनका जिक्र हमने किया है क्या वहीं स्वर्गिक नहीं है? यही स्वर्ग है। स्वर्ग या नरक - सब इस धरती पर है। संपूर्ण प्राणी जगत इसी धरती के अंग है। इसी में सब समाए हुए हैं। हम कह सकते हैं कि यही धरती सब को अपने में समाए हुए हैं, सहेजे हुए हैं। इसीलिए धरित्री है। सबको अपने में धारण किए हैं। यही धरती का धर्म है।
यह धरती तो अपना धर्म निभा रही है, पर जिस धरती को हम मां कहते हैं, क्या हम मनुष्य भी अपना धर्म निभा रहे हैं? इसी धरती में रत्नगर्भा खनिज संपदा है।
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