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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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Submitted by Hindi on Sat, 09/01/2012 - 10:18
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नए संशोधित मसौदे में पहले की तरह साफ शब्दों में तो नहीं लेकिन दबे स्वरों में और अप्रत्यक्ष रूप से निजीकरण की बात कही गई है। हालांकि यह कदम इस बात की राहत तो देता है कि अंधाधुंध अंतर्बेसिन हस्तांतरण नहीं होगा लेकिन दूसरी ओर यह विष भरा कनक घट ही साबित होगा क्योंकि यह उसी रिवर लिंकिंग परियोजना में एक पेबंद है जो लोगों को जड़ों से उखाड़ने पर आमादा है।

इंतजार खत्म हुआ और संशोधित राष्ट्रीय जलनीति - 2012 का सुधरा हुआ प्रारूप जारी हो गया है। इसी वर्ष जनवरी में जलनीति - 2012 का मसौदा आया था, जिसकी कई बातों पर विरोध जताया गया था। समाज के विभिन्न लोगों और संस्थाओं की ओर से आए करीब 600 सुझाव आए, जिन पर चालाकीपूर्वक विचार करने के बाद जल संसाधन मंत्रालय ने नए संशोधित मसौदे का प्रारूप तैयार किया है। राष्ट्रीय जलनीति का मुख्य उद्देश्य जल उपभोक्ताओं का निर्धारण और तद्नुरूप जल का वितरण करना है। मसौदे के अंतर्गत मुख्य रूप से दो क्षेत्रों पर कड़ा विरोध था, निजीकरण और जल प्रयोग की प्राथमिकता। हालांकि जुलाई में आए संशोधित मसौदे में सुधार के प्रयासों ने कुछ हद तक विरोध के स्वरों को शांत करने का प्रयास किया है फिर भी जो प्रयास हुए हैं वे नाकाफी हैं।
Submitted by Hindi on Thu, 08/30/2012 - 12:04
Source:
नेशनल दुनिया, 29 जुलाई 2012

मालदा के पंचानंदपुर और मुर्शिदाबाद के धुलियान कस्बों को कभी विकसित इलाका माना जाता था। लेकिन अब उनका अस्तित्व ही नहीं है। मालदा में 1980 से अब तक 4816 एकड़ जमीन नदी में समा चुकी है। मालदा जिले से 40 हजार परिवार विस्थापित हो चुके हैं। 1995 के बाद से 26 गांव पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं। इन गांवों में स्थित 100 प्राइमरी स्कूलों और 15 हाईस्कूलों का अब कहीं पता नहीं।

नाम: मंजूर आलम। उम्रः 52 साल। पताः खटियाखाना चक (द्वीप), हमीदपुर। कहने को तो यह हमीदपुर पश्चिम बंगाल मालदा जिले में पड़ना चाहिए। लेकिन बीच गंगा में नदी के इस द्वीप का पता कुछ भी नहीं है। मंजूर आलम ने 1979 में इस द्वीप के जिस छोर पर अपना घर बनाया था, वह जगह अब 15 किलोमीटर दूर निकल गई है। अब तक चार बार विस्थापित होकर नया आशियाना जोड़ते-जोड़ते अपना पता भी खो बैठा है मंजूर आलम। मालदा जिले में कालियाचक थ्री ब्लॉक के हमीदपुर ग्राम पंचायत इलाके में मंजूर आलम जैसे लगभग दो लाख लोगों में से लगभग हरेक की दास्तान है- जाएं तो कहां जाएं। नौ साल पहले तक ये सभी लोग पश्चिम बंगाल के नागरिक थे। लेकिन गंगा नदी में कटान के चलते उनका मूल गांव कटकर झारखंड की सीमा से जा लगा था।
Submitted by Hindi on Fri, 08/24/2012 - 12:11
Source:

भारत यायावर द्वारा संपादित फणीश्वरनाथ रेणु के चुनिंदा रिपोर्ताज रचनाओं के संग्रह से ‘पुरानी कहानी : नया पाठ’ रिपोर्ताज लिया गया है। रेणु रिपोर्ताज के काफी बड़े आयाम में बाढ़ फैला हुआ है। बाढ़ उनके जेहन में ऐसे फैला हुआ था कि रेणु घंटों-घंटों संस्मरण सुनाते रह सकते थे। ‘पुरानी कहानी : नया पाठ’ में रेणु ने कोसी की बाढ़ कथा को रिपोर्ताज के रूप में प्रस्तुत किया है।

बंगाल की खाड़ी में डिप्रेशन–तूफान–उठा!

हिमालय की किसी चोटी का बर्फ पिघला और तराई के घनघोर जंगलों के ऊपर काले-काले बादल मंडराने लगे। दिशाएं सांस रोके मौन-स्तब्ध!

कारी-कोसी के कछार पर चरते हुए पशु-गाय, बैल, भैंस-नदी में पानी पीते समय कुछ सूंघकर भड़के, आंतकित हुए। एक बूढ़ी गाय पूंछ उठाकर आर्त-नाद करती हुई भागी। बूढ़े चरवाहे ने नदी के जल को गौर से देखा। चुल्लू में लिया-कनकन ठंडा! सूवा-सचमुच, गेरुआ पानी!

गेरुआ पानी अर्थात पहाड़ का पानी-बाढ़ का पानी?
जवान चरवाहों ने उसकी बात को हंसी में उड़ा दिया। किंतु जानवरों की देह की कंपकंपी बढ़ती गयी। वे झुंड बांधकर कगार पर खड़े नदी की ओर देखते और भड़कते। फिर धरती पर मुँह नहीं रोपा किसी बछड़े ने भी।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

राष्ट्रीय जलनीति-2012: लोकतंत्र पर तानाशाही की जीत

Submitted by Hindi on Sat, 09/01/2012 - 10:18
Author
मीनाक्षी अरोड़ा एवं केसर

नए संशोधित मसौदे में पहले की तरह साफ शब्दों में तो नहीं लेकिन दबे स्वरों में और अप्रत्यक्ष रूप से निजीकरण की बात कही गई है। हालांकि यह कदम इस बात की राहत तो देता है कि अंधाधुंध अंतर्बेसिन हस्तांतरण नहीं होगा लेकिन दूसरी ओर यह विष भरा कनक घट ही साबित होगा क्योंकि यह उसी रिवर लिंकिंग परियोजना में एक पेबंद है जो लोगों को जड़ों से उखाड़ने पर आमादा है।

इंतजार खत्म हुआ और संशोधित राष्ट्रीय जलनीति - 2012 का सुधरा हुआ प्रारूप जारी हो गया है। इसी वर्ष जनवरी में जलनीति - 2012 का मसौदा आया था, जिसकी कई बातों पर विरोध जताया गया था। समाज के विभिन्न लोगों और संस्थाओं की ओर से आए करीब 600 सुझाव आए, जिन पर चालाकीपूर्वक विचार करने के बाद जल संसाधन मंत्रालय ने नए संशोधित मसौदे का प्रारूप तैयार किया है। राष्ट्रीय जलनीति का मुख्य उद्देश्य जल उपभोक्ताओं का निर्धारण और तद्नुरूप जल का वितरण करना है। मसौदे के अंतर्गत मुख्य रूप से दो क्षेत्रों पर कड़ा विरोध था, निजीकरण और जल प्रयोग की प्राथमिकता। हालांकि जुलाई में आए संशोधित मसौदे में सुधार के प्रयासों ने कुछ हद तक विरोध के स्वरों को शांत करने का प्रयास किया है फिर भी जो प्रयास हुए हैं वे नाकाफी हैं।

धारा से ध्वस्त होती नागरिकता

Submitted by Hindi on Thu, 08/30/2012 - 12:04
Author
दीपक रस्तोगी
Source
नेशनल दुनिया, 29 जुलाई 2012

मालदा के पंचानंदपुर और मुर्शिदाबाद के धुलियान कस्बों को कभी विकसित इलाका माना जाता था। लेकिन अब उनका अस्तित्व ही नहीं है। मालदा में 1980 से अब तक 4816 एकड़ जमीन नदी में समा चुकी है। मालदा जिले से 40 हजार परिवार विस्थापित हो चुके हैं। 1995 के बाद से 26 गांव पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं। इन गांवों में स्थित 100 प्राइमरी स्कूलों और 15 हाईस्कूलों का अब कहीं पता नहीं।

नाम: मंजूर आलम। उम्रः 52 साल। पताः खटियाखाना चक (द्वीप), हमीदपुर। कहने को तो यह हमीदपुर पश्चिम बंगाल मालदा जिले में पड़ना चाहिए। लेकिन बीच गंगा में नदी के इस द्वीप का पता कुछ भी नहीं है। मंजूर आलम ने 1979 में इस द्वीप के जिस छोर पर अपना घर बनाया था, वह जगह अब 15 किलोमीटर दूर निकल गई है। अब तक चार बार विस्थापित होकर नया आशियाना जोड़ते-जोड़ते अपना पता भी खो बैठा है मंजूर आलम। मालदा जिले में कालियाचक थ्री ब्लॉक के हमीदपुर ग्राम पंचायत इलाके में मंजूर आलम जैसे लगभग दो लाख लोगों में से लगभग हरेक की दास्तान है- जाएं तो कहां जाएं। नौ साल पहले तक ये सभी लोग पश्चिम बंगाल के नागरिक थे। लेकिन गंगा नदी में कटान के चलते उनका मूल गांव कटकर झारखंड की सीमा से जा लगा था।

कोसी: पुरानी कहानी, नया पाठ

Submitted by Hindi on Fri, 08/24/2012 - 12:11
Author
फणीश्वरनाथ रेणु

भारत यायावर द्वारा संपादित फणीश्वरनाथ रेणु के चुनिंदा रिपोर्ताज रचनाओं के संग्रह से ‘पुरानी कहानी : नया पाठ’ रिपोर्ताज लिया गया है। रेणु रिपोर्ताज के काफी बड़े आयाम में बाढ़ फैला हुआ है। बाढ़ उनके जेहन में ऐसे फैला हुआ था कि रेणु घंटों-घंटों संस्मरण सुनाते रह सकते थे। ‘पुरानी कहानी : नया पाठ’ में रेणु ने कोसी की बाढ़ कथा को रिपोर्ताज के रूप में प्रस्तुत किया है।

बंगाल की खाड़ी में डिप्रेशन–तूफान–उठा!

हिमालय की किसी चोटी का बर्फ पिघला और तराई के घनघोर जंगलों के ऊपर काले-काले बादल मंडराने लगे। दिशाएं सांस रोके मौन-स्तब्ध!

कारी-कोसी के कछार पर चरते हुए पशु-गाय, बैल, भैंस-नदी में पानी पीते समय कुछ सूंघकर भड़के, आंतकित हुए। एक बूढ़ी गाय पूंछ उठाकर आर्त-नाद करती हुई भागी। बूढ़े चरवाहे ने नदी के जल को गौर से देखा। चुल्लू में लिया-कनकन ठंडा! सूवा-सचमुच, गेरुआ पानी!

गेरुआ पानी अर्थात पहाड़ का पानी-बाढ़ का पानी?
जवान चरवाहों ने उसकी बात को हंसी में उड़ा दिया। किंतु जानवरों की देह की कंपकंपी बढ़ती गयी। वे झुंड बांधकर कगार पर खड़े नदी की ओर देखते और भड़कते। फिर धरती पर मुँह नहीं रोपा किसी बछड़े ने भी।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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