तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

देश में आम जनता द्वारा प्राकृतिक संपदा के लूट और विनाशकारी परियोजना का इतना बड़ा विरोध शायद नर्मदा बांध के बाद सबसे बड़ा विरोध है लेकिन इस ओर न ही सरकारों का ध्यान जा रहा है और न ही बहुचर्चित अन्ना आंदोलन का। भ्रष्टाचार के खिलाफ शायद यह आंदोलन अन्ना द्वारा छेड़े जा रहे लोकपाल बिल लाने के आंदोलन से भी बड़ा है। लेकिन देश में इस तरह के आंदोलन की बहस नहीं हो पाती जो भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़े जाने वाले असली आंदोलन हैं, जो देश को विनाश से बचाने के आंदोलन हैं और जो आम गरीब, ग्रामीण, महिलाओं के नेतृत्व में लड़े जाने वाले आंदोलन हैं।
देश के उत्तर पूर्व के एक राज्य असम के लखीमपुर जिले में निर्माणाधीन लोअर सुबानसिरी को वहां के जनसंगठनों की तरफ से पिछले एक महीने से हजारों की संख्या में चक्का जाम कर बांध निर्माण को रोक दिया है। यह बांध असम और अरुणाचल प्रदेश की सीमा में ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपर बनाया जा रहा है जो कि अपने विकराल रूप के लिए सदियों से जानी जाती है। 14 जनवरी 2012 को असम की सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार द्वारा आंदोलनकारियों को तितर बितर करने के लिए गोली चलाई गई जिसमें 15 लोग घायल हो चुके हैं। लेकिन इसके बावजूद भी आंदोलन अभी तक थमा नहीं है। इस कड़ाके की सर्दी में हजारों महिलाएं अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर सड़क पर टस से मस होने को तैयार नहीं है। कृषक मुक्ति संग्राम समिति एवं आल असम स्टूडेंट्स यूनियन के नेतृत्व में चला आ रहा यह आंदोलन अब बिल्कुल सड़क पर उतर आया है जिसका समर्थन असम के मध्यम वर्ग एवं बुद्धिजीवी वर्ग को भी मिल रहा है।देश में आम जनता द्वारा प्राकृतिक संपदा के लूट और विनाशकारी परियोजना का इतना बड़ा विरोध शायद नर्मदा बांध के बाद सबसे बड़ा विरोध है लेकिन इस ओर न ही सरकारों का ध्यान जा रहा है और न ही बहुचर्चित अन्ना आंदोलन का। भ्रष्टाचार के खिलाफ शायद यह आंदोलन अन्ना द्वारा छेड़े जा रहे लोकपाल बिल लाने के आंदोलन से भी बड़ा है। लेकिन देश में इस तरह के आंदोलन की बहस नहीं हो पाती जो भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़े जाने वाले असली आंदोलन हैं, जो देश को विनाश से बचाने के आंदोलन हैं और जो आम गरीब, ग्रामीण, महिलाओं के नेतृत्व में लड़े जाने वाले आंदोलन हैं।
देश के उत्तर पूर्व के एक राज्य असम के लखीमपुर जिले में निर्माणाधीन लोअर सुबानसिरी को वहां के जनसंगठनों की तरफ से पिछले एक महीने से हजारों की संख्या में चक्का जाम कर बांध निर्माण को रोक दिया है। यह बांध असम और अरुणाचल प्रदेश की सीमा में ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपर बनाया जा रहा है जो कि अपने विकराल रूप के लिए सदियों से जानी जाती है। 14 जनवरी 2012 को असम की सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार द्वारा आंदोलनकारियों को तितर बितर करने के लिए गोली चलाई गई जिसमें 15 लोग घायल हो चुके हैं। लेकिन इसके बावजूद भी आंदोलन अभी तक थमा नहीं है। इस कड़ाके की सर्दी में हजारों महिलाएं अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर सड़क पर टस से मस होने को तैयार नहीं है। कृषक मुक्ति संग्राम समिति एवं आल असम स्टूडेंट्स यूनियन के नेतृत्व में चला आ रहा यह आंदोलन अब बिल्कुल सड़क पर उतर आया है जिसका समर्थन असम के मध्यम वर्ग एवं बुद्धिजीवी वर्ग को भी मिल रहा है।
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