तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

आज तो केवल एक तिहाई आबादी के पास ही शौचालय की सुविधा है। इनमें से जितना मैला पानी गटर में जाता है, उसे साफ करने की व्यवस्था हमारे पास नहीं है। परिणाम आप किसी भी नदी में देख सकते हैं। जितना बड़ा शहर, उतने ही ज्यादा शौचालय और उतनी ही ज्यादा दूषित नदियां।
अक्सर व्यंग में कहा जाता है और शायद आपने पढ़ा भी हो कि हमारे देश में आज संडास से ज्यादा मोबाइल फोन हैं। अगर यहां हर व्यक्ति के पास मल त्यागने के लिए संडास हो तो कैसा रहे? लाखों लोग शहर और कस्बों में शौच की जगह तलाशते हैं और मल के साथ उन्हें अपनी गरिमा भी त्यागनी पड़ती है। महिलाएं जो कठिनाई झेलती हैं उसे बतलाना बहुत ही कठिन है। शर्मसार वो भी होते हैं, जिन्हें दूसरों को खुले में शौच जाते हुए देखना पड़ता है, तो कितना अच्छा हो कि हर किसी को एक संडास मिल जाए और ऐसा करने के लिए कई लोगों ने भरसक कोशिश की भी है। जैसे गुजरात में ईश्वरभाई पटेल का बनाया सफाई विद्यालय और बिंदेश्वरी पाठक के सुलभ शौचालय।भीमशंकर वनों में निवास करने वाला यह समाज न्यूनतम उपभोग वाली ऐसी जीवनशैली का पालन करता है, जिसमें सब कुछ बहुत मितव्यय से इस्तेमाल किया जाता है। उनके घर पत्थर और मिट्टी के बने होते हैं और इन लोगों के पास कुछ बहुत आवश्यक वस्तुएं ही होती हैं। वे ऐसे आत्मीय समुदायों में रहते हैं जहां आपसी सहयोग ही जीवन जीने का तरीका है। वे एक साथ योजना बनाते हैं और फिर सब मिलकर एक साथ काम करते हैं।
महाराष्ट्र के पुणे जिले में सुदूर पश्चिम घाट के अत्यधिक वर्षा वाले पहाड़ी ढलान में अम्बेगांव विकास खंड में स्थित है भीमशंकर वन। यह एक अनछुआ, बारहमासी, चार तलीय वन है जहां बादल भी अठखेलियां करते नजर आते हैं। यहां की उपजाऊ मिट्टी उथली है। उसके नीचे कठोर चट्टानें। यहां भूगर्भ जल है ही नहीं। इसलिए यदि एक बार ये वन नष्ट हो गए तो उनका दोबारा फलना-फूलना बहुत कठिन है। यहां पर चलने वाली तेज हवाओं और भारी भूक्षरण को ये वन संभाल लेते हैं। ऊंचे पेड़, छोटे पेड़, घनी झाड़ियां, घास आदि मिलकर वर्षा के जल को अपने में समाहित कर यहां की कीमती मिट्टी को भी बहने से बचाते हैं।आज तो केवल एक तिहाई आबादी के पास ही शौचालय की सुविधा है। इनमें से जितना मैला पानी गटर में जाता है, उसे साफ करने की व्यवस्था हमारे पास नहीं है। परिणाम आप किसी भी नदी में देख सकते हैं। जितना बड़ा शहर, उतने ही ज्यादा शौचालय और उतनी ही ज्यादा दूषित नदियां।
अक्सर व्यंग में कहा जाता है और शायद आपने पढ़ा भी हो कि हमारे देश में आज संडास से ज्यादा मोबाइल फोन हैं। अगर यहां हर व्यक्ति के पास मल त्यागने के लिए संडास हो तो कैसा रहे? लाखों लोग शहर और कस्बों में शौच की जगह तलाशते हैं और मल के साथ उन्हें अपनी गरिमा भी त्यागनी पड़ती है। महिलाएं जो कठिनाई झेलती हैं उसे बतलाना बहुत ही कठिन है। शर्मसार वो भी होते हैं, जिन्हें दूसरों को खुले में शौच जाते हुए देखना पड़ता है, तो कितना अच्छा हो कि हर किसी को एक संडास मिल जाए और ऐसा करने के लिए कई लोगों ने भरसक कोशिश की भी है। जैसे गुजरात में ईश्वरभाई पटेल का बनाया सफाई विद्यालय और बिंदेश्वरी पाठक के सुलभ शौचालय।भीमशंकर वनों में निवास करने वाला यह समाज न्यूनतम उपभोग वाली ऐसी जीवनशैली का पालन करता है, जिसमें सब कुछ बहुत मितव्यय से इस्तेमाल किया जाता है। उनके घर पत्थर और मिट्टी के बने होते हैं और इन लोगों के पास कुछ बहुत आवश्यक वस्तुएं ही होती हैं। वे ऐसे आत्मीय समुदायों में रहते हैं जहां आपसी सहयोग ही जीवन जीने का तरीका है। वे एक साथ योजना बनाते हैं और फिर सब मिलकर एक साथ काम करते हैं।
महाराष्ट्र के पुणे जिले में सुदूर पश्चिम घाट के अत्यधिक वर्षा वाले पहाड़ी ढलान में अम्बेगांव विकास खंड में स्थित है भीमशंकर वन। यह एक अनछुआ, बारहमासी, चार तलीय वन है जहां बादल भी अठखेलियां करते नजर आते हैं। यहां की उपजाऊ मिट्टी उथली है। उसके नीचे कठोर चट्टानें। यहां भूगर्भ जल है ही नहीं। इसलिए यदि एक बार ये वन नष्ट हो गए तो उनका दोबारा फलना-फूलना बहुत कठिन है। यहां पर चलने वाली तेज हवाओं और भारी भूक्षरण को ये वन संभाल लेते हैं। ऊंचे पेड़, छोटे पेड़, घनी झाड़ियां, घास आदि मिलकर वर्षा के जल को अपने में समाहित कर यहां की कीमती मिट्टी को भी बहने से बचाते हैं।
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