तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

यमुना नदी अब संकट से गुजर रही है। पानी काला हो गया है, वातावरण में भी ताजगी नहीं रही। यमुना के दर्द को संजोए रवीश कुमार की खास रिपोर्ट...
पंजाब की खेती किसानी का सबसे बड़ा संकट आज यही है कि वह प्रकृति से अपनी रिश्तेदारी का लिहाज भूल गई है। पवन, पानी और धरती का तालमेल तोड़ने से ढेरों संकट बढ़े हैं। सारा संतुलन अस्त-व्यस्त हुआ है। पंजाब ने पिछले तीन दशकों में पेस्टीसाइड का इतना अधिक इस्तेमाल कर लिया कि पूरी धरती को ही तंदूर बना डाला है।
पंजाब सदियों से कृषि प्रधान राज्य का गौरव पाता रहा है। कभी सप्त सिंधु, कभी पंचनद तथा कभी पंजाब के नाम से इस क्षेत्र को जाना गया है। यह क्षेत्र अपने प्राकृतिक जल स्रोतों, उपजाऊ भूमि और संजीवनी हवाओं के कारण जाना जाता था। प्रकृति का यह खजाना ही यहां हुए हमलों का कारण रहा है। देश के बंटवारे के बाद ढाई दरिया छीने जाने के बावजूद बचे ढाई दरियाओं वाले प्रदेश ने देश के अन्न भंडार को समृद्ध किया है। किसानी का काम किसी भी देश या कौम का मूल काम माना गया है। हमारी परंपराओं में किसान को संसार का संचालन कर्ता माना गया है। यह भी कहा गया कि किसान दूसरे कामों में व्यस्त उन लोगों को भी जीवन देते हैं, जिन्होंने कभी जमीन पर हल नहीं चलाया। यह भी कहा गया है कि जो मात्र अपने ही पेट तक सीमित है, वह पापी है। मात्र स्वयं के पेट का मित्र स्वार्थी और महादोशी है। किसान का काम अपने लिए तो जीविका कमाना है ही, दूसरों के लिए भी रोटी का प्रबंध करना है। वह धरती को अपनी छुअन मात्र से उसके भीतर छिपी सृजन शक्ति को मानव मात्र की जरूरतों के अनुसार जगाता है। बीजाई के संकल्प को गुरुवाणी में बहुत ऊंचा स्थान प्राप्त है। गुरुवाणी में बीजाई को शुभ कारज (कार्य) के साथ-साथ बुनियादी कारज भी कहा गया है। किसानी एक ऐसा काम है जिसकी निर्भरता किसान के आचरण से जुड़ी है। इसलिए गुरुवाणी में यह भी बेहद स्पष्ट किया गया है कि मात्र बीजाई का काम ही यह निश्चित कर देता है कि फल कैसा ऊगेगा- जैसा बीजोगे, वैसा काटोगे।किसान ही एक मात्र ऐसा वैद्य है जो मिट्टी, पानी, हवा और कर्म के सुमेल से इंसान को जीने लायक बनाता है। कारखानों या कम्प्यूटर सेंटरों में सहायक साधन पैदा किए जा सकते हैं, जानकारियां बढ़ाई जा सकती हैं, दुनिया को मुट्ठी में किया जा सकता है। संसार को एक गांव में बदलने का नारा दिया जा सकता है। लेकिन जीवन दान नहीं दिया जा सकता।
ये योजनाएं पंजाब के किसान के पैरों की बेडि़यां बनती चली गईं। फिर नए-नए योजनाकार इन बेडि़यों में और नई योजनाओं की नई बेडि़यां जोड़ते गए। लुधियाना कृषि विश्वविद्यालय की जनवरी-2011 में छपी एक ताजी रिपोर्ट अब इन योजनाओं को बेडि़यां मान तो रही है, पर यह वह भूल गई है कि ये तो अपने ही कुकर्मों का सियापा है। ये योजनाकार अब लिखते हैं कि पंजाब के 40 प्रतिशत छोटे किसान या तो समाप्त हो चुके हैं या अपने ही बिक चुके खेतों में मजदूरी कर रहे हैं। पंजाब के 12644 गांवों में प्रतिवर्ष 10 से 15 परिवार उजड़ रहे हैं। खाली हाथ हो चुके किसान के साथ ऊपर से नीचे तक के अधिकारी कौए या गिद्ध जैसा बर्ताव करते हैं। किताबी कृषि पढ़ाने वाले प्रोफेसरों की तनख्वाहें बढ़ती चली गईं और पंजाब के खेतों में फाके का खरपतवार लगातार उगता चला गया। विकास के ये नए योद्धा यह भूल ही जाते हैं कि विकास के तथाकथित सिमेंटी युग में भी पेट तो अन्न से ही भरता है। कृषि योजनाकारों को याद ही नहीं रहा कि किसानी एक वृक्ष है जिसकी छाया के बिना कोई सुखी नहीं रह सकता। किसान ही एक मात्र ऐसा वैद्य है जो मिट्टी, पानी, हवा और कर्म के सुमेल से इंसान को जीने लायक बनाता है। कारखानों या कम्प्यूटर सेंटरों में सहायक साधन पैदा किए जा सकते हैं, जानकारियां बढ़ाई जा सकती हैं, दुनिया को मुट्ठी में लेने का भ्रम पैदा किया जा सकता है। संसार को एक गांव में बदलने का नारा दिया जा सकता है।पंजाब की किसानी का संकट चतुर सुजान कृषि विश्वविद्यालय और झूठी सरकारों तथा बैंक के कर्जों में नहीं बल्कि परंपराओं की धूल झाड़ने में है। ‘हरित क्रांति’ का नारा तो क्षणभंगुर जानकारी नुमा था। बुरा क्षण कभी भी भुला कर आगे बढ़ा जा सकता है।
आज पंजाब के अधिकतर गांव मरने के कगार पर हैं। सेहत, शिक्षा, आवाजाही तथा साफ सफाई की सुविधाएं भी मात्र शहर और कस्बा केंद्रित कर दी गई हैं। हां! फर्जी नीतियों पर सरकारें कैसे बदलें बजाती हैं, उसकी एक बानगी शिक्षा विभाग की देखें। वेंटिलेटर पर चल रहे सरकारी स्कूलों को बचाने के लिए इसी नए सत्र में पंजाब सरकार ने एक घोषणा के तहत कहा है कि अगर सरकारी स्कूल में पढ़ने वाला कोई बच्चा अपने साथ एक बच्चा और लाएगा तो उसे सौ रुपए दिए जाएंगे और अगर कोई बच्चा अपने साथ पांच बच्चे लाएगा तो उसे एक हजार रुपए दिए जाएंगे। जब सरकारें इस ढंग से काम करती हों तो बिना गुणा तक्सीम के अंदाजा लगाया जा सकता है कि भीतर से हमारे देश की हालत क्या होगी। जिस राज्य में हजारों किसान आत्महत्याएं कर रहे हों, उस राज्य में भी सरकार अपने जनसंपर्क विभाग को यही सीधा निर्देश देती है कि सरकारी आरती में मस्त अखबारों की जोत में विज्ञापनों का घी कम नहीं होना चाहिए। पिछले 30 साल में जहरीले कीटनाशकों से लीप दी गई धरती पर सेहत विभाग क्या करता होगा, वाहेगुरु ही जानें।हरित क्रांति से पूर्व पंजाब के किसान को खेतों का साधु कहा जाता था क्योंकि वह स्वनिर्भर था, स्वतंत्र था, संतुष्ट था, सेवा भावी था, संयमी था और सहज सरल था। परंपराओं से मुख मोड़ते ही ये सभी गुण काफूर हो गए।
इस ऊहा-पोह की स्थिति में काम बढ़ने लगे, हरित क्रांति का कनस्तर भी साथ-साथ पिटता रहा। दूसरे राज्यों से मजदूरों से भरी गाडि़यां भी आने लगीं। मेहनती माना जाने वाला किसान अब मेहनत से भी दूर होने लगा। शराब का नशा बेशक पहले से था ही, उसमें और भी छोटे-बड़े नशे जुड़ गए। जैसे हर फसल का भूसा होता है वैसे ही इन नशों के भूसे के एवज एड्स, छीना झपटी आदि की घटनाएं बढ़ने लगीं। ऐसा कोई नशा नहीं बचा जो पंजाब के युवा ने छका न हो। अफसोस तो यह है कि कृषि से जुड़े ढेरों कर्जों के साथ-साथ लोग नशों के लिए भी कर्ज लेने लगे हैं। घर की निकली शराब से स्मैक तथा कोकीन तक नशे का विकास हुआ है। कर्ज की हरियाली के कारण आंख जल भी खारा हो चला है।पंजाब प्रदेश के नाम में जुड़े शब्द ‘आब’ का एक अर्थ ‘पानी’ तो है ही, लेकिन इसका दूसरा गहरा अर्थ हैः चमक, इज्जत और आबरू। पंजाब अपने नाम का यह असली अर्थ न खो बैठे- आज हमें इसकी चिंता करनी है।
हरित क्रांति, सिर्फ और सिर्फ शहरीकरण और अब वैश्वीकरण ने पंजाब को काल का ग्रास बनने के कगार पर ला खड़ा किया है। पंजाब शायद संसार का पहला ऐसा राज्य होगा जहां से ‘कैंसर एक्सप्रेस’ नाम वाली रेलगाड़ी चलती है। जिस राजस्थान के साथ पंजाब पानी का एक घड़ा बांटने तैयार नहीं, उसी पंजाब के सभी कैंसर मरीजों को राजस्थान का बीकानेर मुफ्त इलाज देता है। कैंसर के साथ-साथ गुर्दा, जिगर रोगों की भयावहता भी बढ़ती जा रही है। जगह-जगह होटलनुमा अस्पताल खुल गए हैं। इनमें मरीजों की जान कितनी बचती कहा नहीं जा सकता, पर डाक्टरों का जीवन बनता जा रहा है। भ्रूण हत्याओं का विश्व रिकार्ड पंजाब के इन्हीं होटलनुमा निजी अस्पतालों को जाता है। मार्च 11 को जारी की गई जनगणना रिपोर्ट में यह बात अब सरकारी तौर पर भी सामने आ चुकी है। रुपयों के मोह में पंजाब ने अपने घर में पैदा हो रही लक्ष्मी को मारा है। इसी कारण पंजाब के जिन कुओं में नेकियां झिलमिलानी चाहिए थीं, उनमें हजारों भ्रूणों की आत्माएं तड़पती मिलती हैं।पंजाब की खेती किसानी का सबसे बड़ा संकट आज यही है कि वह प्रकृति से अपनी रिश्तेदारी का लिहाज भूल गई है। पवन, पानी और धरती का तालमेल तोड़ने से ढेरों संकट बढ़े हैं। सारा संतुलन अस्त-व्यस्त हुआ है। पंजाब ने पिछले तीन दशकों में पेस्टीसाइड का इतना अधिक इस्तेमाल कर लिया कि पूरी धरती को ही तंदूर बना डाला है।
पंजाब सदियों से कृषि प्रधान राज्य का गौरव पाता रहा है। कभी सप्त सिंधु, कभी पंचनद तथा कभी पंजाब के नाम से इस क्षेत्र को जाना गया है। यह क्षेत्र अपने प्राकृतिक जल स्रोतों, उपजाऊ भूमि और संजीवनी हवाओं के कारण जाना जाता था। प्रकृति का यह खजाना ही यहां हुए हमलों का कारण रहा है। देश के बंटवारे के बाद ढाई दरिया छीने जाने के बावजूद बचे ढाई दरियाओं वाले प्रदेश ने देश के अन्न भंडार को समृद्ध किया है। किसानी का काम किसी भी देश या कौम का मूल काम माना गया है। हमारी परंपराओं में किसान को संसार का संचालन कर्ता माना गया है। यह भी कहा गया कि किसान दूसरे कामों में व्यस्त उन लोगों को भी जीवन देते हैं, जिन्होंने कभी जमीन पर हल नहीं चलाया। यह भी कहा गया है कि जो मात्र अपने ही पेट तक सीमित है, वह पापी है। मात्र स्वयं के पेट का मित्र स्वार्थी और महादोशी है। किसान का काम अपने लिए तो जीविका कमाना है ही, दूसरों के लिए भी रोटी का प्रबंध करना है। वह धरती को अपनी छुअन मात्र से उसके भीतर छिपी सृजन शक्ति को मानव मात्र की जरूरतों के अनुसार जगाता है। बीजाई के संकल्प को गुरुवाणी में बहुत ऊंचा स्थान प्राप्त है। गुरुवाणी में बीजाई को शुभ कारज (कार्य) के साथ-साथ बुनियादी कारज भी कहा गया है। किसानी एक ऐसा काम है जिसकी निर्भरता किसान के आचरण से जुड़ी है। इसलिए गुरुवाणी में यह भी बेहद स्पष्ट किया गया है कि मात्र बीजाई का काम ही यह निश्चित कर देता है कि फल कैसा ऊगेगा- जैसा बीजोगे, वैसा काटोगे।किसान ही एक मात्र ऐसा वैद्य है जो मिट्टी, पानी, हवा और कर्म के सुमेल से इंसान को जीने लायक बनाता है। कारखानों या कम्प्यूटर सेंटरों में सहायक साधन पैदा किए जा सकते हैं, जानकारियां बढ़ाई जा सकती हैं, दुनिया को मुट्ठी में किया जा सकता है। संसार को एक गांव में बदलने का नारा दिया जा सकता है। लेकिन जीवन दान नहीं दिया जा सकता।
ये योजनाएं पंजाब के किसान के पैरों की बेडि़यां बनती चली गईं। फिर नए-नए योजनाकार इन बेडि़यों में और नई योजनाओं की नई बेडि़यां जोड़ते गए। लुधियाना कृषि विश्वविद्यालय की जनवरी-2011 में छपी एक ताजी रिपोर्ट अब इन योजनाओं को बेडि़यां मान तो रही है, पर यह वह भूल गई है कि ये तो अपने ही कुकर्मों का सियापा है। ये योजनाकार अब लिखते हैं कि पंजाब के 40 प्रतिशत छोटे किसान या तो समाप्त हो चुके हैं या अपने ही बिक चुके खेतों में मजदूरी कर रहे हैं। पंजाब के 12644 गांवों में प्रतिवर्ष 10 से 15 परिवार उजड़ रहे हैं। खाली हाथ हो चुके किसान के साथ ऊपर से नीचे तक के अधिकारी कौए या गिद्ध जैसा बर्ताव करते हैं। किताबी कृषि पढ़ाने वाले प्रोफेसरों की तनख्वाहें बढ़ती चली गईं और पंजाब के खेतों में फाके का खरपतवार लगातार उगता चला गया। विकास के ये नए योद्धा यह भूल ही जाते हैं कि विकास के तथाकथित सिमेंटी युग में भी पेट तो अन्न से ही भरता है। कृषि योजनाकारों को याद ही नहीं रहा कि किसानी एक वृक्ष है जिसकी छाया के बिना कोई सुखी नहीं रह सकता। किसान ही एक मात्र ऐसा वैद्य है जो मिट्टी, पानी, हवा और कर्म के सुमेल से इंसान को जीने लायक बनाता है। कारखानों या कम्प्यूटर सेंटरों में सहायक साधन पैदा किए जा सकते हैं, जानकारियां बढ़ाई जा सकती हैं, दुनिया को मुट्ठी में लेने का भ्रम पैदा किया जा सकता है। संसार को एक गांव में बदलने का नारा दिया जा सकता है।पंजाब की किसानी का संकट चतुर सुजान कृषि विश्वविद्यालय और झूठी सरकारों तथा बैंक के कर्जों में नहीं बल्कि परंपराओं की धूल झाड़ने में है। ‘हरित क्रांति’ का नारा तो क्षणभंगुर जानकारी नुमा था। बुरा क्षण कभी भी भुला कर आगे बढ़ा जा सकता है।
आज पंजाब के अधिकतर गांव मरने के कगार पर हैं। सेहत, शिक्षा, आवाजाही तथा साफ सफाई की सुविधाएं भी मात्र शहर और कस्बा केंद्रित कर दी गई हैं। हां! फर्जी नीतियों पर सरकारें कैसे बदलें बजाती हैं, उसकी एक बानगी शिक्षा विभाग की देखें। वेंटिलेटर पर चल रहे सरकारी स्कूलों को बचाने के लिए इसी नए सत्र में पंजाब सरकार ने एक घोषणा के तहत कहा है कि अगर सरकारी स्कूल में पढ़ने वाला कोई बच्चा अपने साथ एक बच्चा और लाएगा तो उसे सौ रुपए दिए जाएंगे और अगर कोई बच्चा अपने साथ पांच बच्चे लाएगा तो उसे एक हजार रुपए दिए जाएंगे। जब सरकारें इस ढंग से काम करती हों तो बिना गुणा तक्सीम के अंदाजा लगाया जा सकता है कि भीतर से हमारे देश की हालत क्या होगी। जिस राज्य में हजारों किसान आत्महत्याएं कर रहे हों, उस राज्य में भी सरकार अपने जनसंपर्क विभाग को यही सीधा निर्देश देती है कि सरकारी आरती में मस्त अखबारों की जोत में विज्ञापनों का घी कम नहीं होना चाहिए। पिछले 30 साल में जहरीले कीटनाशकों से लीप दी गई धरती पर सेहत विभाग क्या करता होगा, वाहेगुरु ही जानें।हरित क्रांति से पूर्व पंजाब के किसान को खेतों का साधु कहा जाता था क्योंकि वह स्वनिर्भर था, स्वतंत्र था, संतुष्ट था, सेवा भावी था, संयमी था और सहज सरल था। परंपराओं से मुख मोड़ते ही ये सभी गुण काफूर हो गए।
इस ऊहा-पोह की स्थिति में काम बढ़ने लगे, हरित क्रांति का कनस्तर भी साथ-साथ पिटता रहा। दूसरे राज्यों से मजदूरों से भरी गाडि़यां भी आने लगीं। मेहनती माना जाने वाला किसान अब मेहनत से भी दूर होने लगा। शराब का नशा बेशक पहले से था ही, उसमें और भी छोटे-बड़े नशे जुड़ गए। जैसे हर फसल का भूसा होता है वैसे ही इन नशों के भूसे के एवज एड्स, छीना झपटी आदि की घटनाएं बढ़ने लगीं। ऐसा कोई नशा नहीं बचा जो पंजाब के युवा ने छका न हो। अफसोस तो यह है कि कृषि से जुड़े ढेरों कर्जों के साथ-साथ लोग नशों के लिए भी कर्ज लेने लगे हैं। घर की निकली शराब से स्मैक तथा कोकीन तक नशे का विकास हुआ है। कर्ज की हरियाली के कारण आंख जल भी खारा हो चला है।पंजाब प्रदेश के नाम में जुड़े शब्द ‘आब’ का एक अर्थ ‘पानी’ तो है ही, लेकिन इसका दूसरा गहरा अर्थ हैः चमक, इज्जत और आबरू। पंजाब अपने नाम का यह असली अर्थ न खो बैठे- आज हमें इसकी चिंता करनी है।
हरित क्रांति, सिर्फ और सिर्फ शहरीकरण और अब वैश्वीकरण ने पंजाब को काल का ग्रास बनने के कगार पर ला खड़ा किया है। पंजाब शायद संसार का पहला ऐसा राज्य होगा जहां से ‘कैंसर एक्सप्रेस’ नाम वाली रेलगाड़ी चलती है। जिस राजस्थान के साथ पंजाब पानी का एक घड़ा बांटने तैयार नहीं, उसी पंजाब के सभी कैंसर मरीजों को राजस्थान का बीकानेर मुफ्त इलाज देता है। कैंसर के साथ-साथ गुर्दा, जिगर रोगों की भयावहता भी बढ़ती जा रही है। जगह-जगह होटलनुमा अस्पताल खुल गए हैं। इनमें मरीजों की जान कितनी बचती कहा नहीं जा सकता, पर डाक्टरों का जीवन बनता जा रहा है। भ्रूण हत्याओं का विश्व रिकार्ड पंजाब के इन्हीं होटलनुमा निजी अस्पतालों को जाता है। मार्च 11 को जारी की गई जनगणना रिपोर्ट में यह बात अब सरकारी तौर पर भी सामने आ चुकी है। रुपयों के मोह में पंजाब ने अपने घर में पैदा हो रही लक्ष्मी को मारा है। इसी कारण पंजाब के जिन कुओं में नेकियां झिलमिलानी चाहिए थीं, उनमें हजारों भ्रूणों की आत्माएं तड़पती मिलती हैं।
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