तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

इस वक्त हम है उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद में। ये इलाका जिसे पंडित नेहरु ने भारत का स्विट्जरलेंड कहा था, विकास कि अंधी दौड़ में विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित और अभावग्रस्त क्षेत्रों में शामिल हो गया है। आदिवासी बहुल इस जनपद में प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुन्ध दोहन से जिस चीज पर सर्वाधिक असर पड़ा वो था जल। जल के अभाव ने यहां के आदिवासी गिरिजनों को अकाल मौत के मुहाने पर ला खड़ा किया। इस बीच लगभग दो दशक पहले उम्मीद की एक किरण नजर आई वो उम्मीद थी डाक्टर रमेश कुमार गुप्ता के रूप में। एक प्रख्यात चिकित्सक और एक पर्यावरणविद् जिसने जलदान की अभिनव परम्परा शुरू कर जल संकट से त्राहि - त्राहि कर आदिवासी-गिरिजनों के जीवन को बदल कर रख दिया। डाक्टर गुप्ता द्वारा बनायी गयी बंधियां आज यहां के आदिवासियों के लिए अमृत कलश है। डॉ आर के गुप्ता से बात की आवेश तिवारी ने।
आवेश तिवारी -डाक्टर साहब ये बतायें सोनभद्र के आदिवासी क्षेत्रों में बंधियां बनाने की योजना आपके मन में कैसे आई ?
डॉ गुप्ता -हम शुरू में एक आश्रम में जाते थे ये मिर्चाधुरी स्टेशन से करीब दो किलोमीटर दूर गुलालीडीह गांव
इस वक्त हम है उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद में। ये इलाका जिसे पंडित नेहरु ने भारत का स्विट्जरलेंड कहा था, विकास कि अंधी दौड़ में विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित और अभावग्रस्त क्षेत्रों में शामिल हो गया है। आदिवासी बहुल इस जनपद में प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुन्ध दोहन से जिस चीज पर सर्वाधिक असर पड़ा वो था जल। जल के अभाव ने यहां के आदिवासी गिरिजनों को अकाल मौत के मुहाने पर ला खड़ा किया। इस बीच लगभग दो दशक पहले उम्मीद की एक किरण नजर आई वो उम्मीद थी डाक्टर रमेश कुमार गुप्ता के रूप में। एक प्रख्यात चिकित्सक और एक पर्यावरणविद् जिसने जलदान की अभिनव परम्परा शुरू कर जल संकट से त्राहि - त्राहि कर आदिवासी-गिरिजनों के जीवन को बदल कर रख दिया। डाक्टर गुप्ता द्वारा बनायी गयी बंधियां आज यहां के आदिवासियों के लिए अमृत कलश है। डॉ आर के गुप्ता से बात की आवेश तिवारी ने।
आवेश तिवारी -डाक्टर साहब ये बतायें सोनभद्र के आदिवासी क्षेत्रों में बंधियां बनाने की योजना आपके मन में कैसे आई ?
डॉ गुप्ता -हम शुरू में एक आश्रम में जाते थे ये मिर्चाधुरी स्टेशन से करीब दो किलोमीटर दूर गुलालीडीह गांव
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