तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

खबर है कि नदी जोड़ की पहली परियोजना जल्दी शुरू हो सकती है।जिस इलाके के जन प्रतिनिधि जनता के प्रति कुछ कम जवाबदेह हों, जहां जन जागरूकता कम हो, जो पहले से ही शोषित व पिछड़े हों, सरकार में बैठे लोग उस इलाके को नए-नए खतरनाक व चुनौतीपूर्ण प्रयोगों के लिए चुन लेते हैं। सामाजिक-आर्थिक नीति का यह मूल मंत्र है। बुंदेलखंड का पिछड़ापन जग-जाहिर है। भूकंप प्रभावित यह क्षेत्र हर तीन साल में सूखा झेलता है।
जीवकोपार्जन का मूल माध्यम खेती है लेकिन आधी जमीन सिंचाई के अभाव में कराह रही है। नदी जोड़ के प्रयोग के लिए इससे बेहतर इलाका कहां मिलता? सो देश के पहले नदी-जोड़ो अभियान का समझौता इसी क्षेत्र के लिए कर दिया गया।
निजीकरण का जिन्न एक बार फिर से सिर उठा रहा है। जी हां, खबर है कि दिल्ली में पेयजल आपूर्ति के निजीकरण के प्रयास चल रहे हैं। इस बात का प्रमाण यह है कि दक्षिणी दिल्ली के वसंत कुंज इलाके में दिल्ली जल बोर्ड द्वारा एक निजी कंपनी को जल आपूर्ति एवं रख-रखाव का जिम्मा सौंपा जा रहा है। हालांकि यह पायलट प्रोजेक्ट है, लेकिन इसके दूरगामी निहितार्थ हैं।
दिल्ली सहित कई अन्य शहरों में जल आपूर्ति का एक बड़ा हिस्सा वितरण एवं पारेषण क्षति के रुप में नष्ट हो जाता है। दूसरे अर्थो में कहा जाए तो पानी की चोरी, अवैध कनेक्शनों एवं पाइपों में लीकेज के माध्यम से पानी की क्षति हो जाती है। इसी बात को आधार बनाकर दिल्ली जल बोर्ड द्वारा एक पायलट परियोजना के तौर पर एक निजी कंपनी को यह जिम्मा सौंपा जा रहा है। एक मोटे अनुमान के अनुसार वसंत कुज में 14,500 फ्लैटों को करीब 31 लाख गैलन पानी की आपूर्ति प्रतिदिन होती है। प्रस्तावित परियोजना 3 चरणों में 36 माह में पूरी की जाएगी। दिल्ली सरकार चाहती है कि निजी कंपनी प्रस्तावित क्षेत्र में जल आपूर्ति के दौरान होने वाले तमाम क्षति को समाप्त करे और राजस्व वसूली
खबर है कि नदी जोड़ की पहली परियोजना जल्दी शुरू हो सकती है।जिस इलाके के जन प्रतिनिधि जनता के प्रति कुछ कम जवाबदेह हों, जहां जन जागरूकता कम हो, जो पहले से ही शोषित व पिछड़े हों, सरकार में बैठे लोग उस इलाके को नए-नए खतरनाक व चुनौतीपूर्ण प्रयोगों के लिए चुन लेते हैं। सामाजिक-आर्थिक नीति का यह मूल मंत्र है। बुंदेलखंड का पिछड़ापन जग-जाहिर है। भूकंप प्रभावित यह क्षेत्र हर तीन साल में सूखा झेलता है।
जीवकोपार्जन का मूल माध्यम खेती है लेकिन आधी जमीन सिंचाई के अभाव में कराह रही है। नदी जोड़ के प्रयोग के लिए इससे बेहतर इलाका कहां मिलता? सो देश के पहले नदी-जोड़ो अभियान का समझौता इसी क्षेत्र के लिए कर दिया गया।
निजीकरण का जिन्न एक बार फिर से सिर उठा रहा है। जी हां, खबर है कि दिल्ली में पेयजल आपूर्ति के निजीकरण के प्रयास चल रहे हैं। इस बात का प्रमाण यह है कि दक्षिणी दिल्ली के वसंत कुंज इलाके में दिल्ली जल बोर्ड द्वारा एक निजी कंपनी को जल आपूर्ति एवं रख-रखाव का जिम्मा सौंपा जा रहा है। हालांकि यह पायलट प्रोजेक्ट है, लेकिन इसके दूरगामी निहितार्थ हैं।
दिल्ली सहित कई अन्य शहरों में जल आपूर्ति का एक बड़ा हिस्सा वितरण एवं पारेषण क्षति के रुप में नष्ट हो जाता है। दूसरे अर्थो में कहा जाए तो पानी की चोरी, अवैध कनेक्शनों एवं पाइपों में लीकेज के माध्यम से पानी की क्षति हो जाती है। इसी बात को आधार बनाकर दिल्ली जल बोर्ड द्वारा एक पायलट परियोजना के तौर पर एक निजी कंपनी को यह जिम्मा सौंपा जा रहा है। एक मोटे अनुमान के अनुसार वसंत कुज में 14,500 फ्लैटों को करीब 31 लाख गैलन पानी की आपूर्ति प्रतिदिन होती है। प्रस्तावित परियोजना 3 चरणों में 36 माह में पूरी की जाएगी। दिल्ली सरकार चाहती है कि निजी कंपनी प्रस्तावित क्षेत्र में जल आपूर्ति के दौरान होने वाले तमाम क्षति को समाप्त करे और राजस्व वसूली
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