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Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

Submitted by Hindi on Fri, 10/29/2010 - 10:09
Source:
चौथी दुनिया

नरेगा के अंतर्गत भ्रष्टाचार और सरकारी धन के अपव्यय को रोकने के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। इस योजना की संरचना में पर्यवेक्षण और निरीक्षण का खास ध्यान रखा गया है। इसके लिए फील्ड में जाकर ज़मीनी हक़ीक़त की जांच-पड़ताल, मस्टररोल का सार्वजनिक निरीक्षण, योजना के अंतर्गत पूरे किए जा चुके एवं चल रहे कामों को सूचनापट्ट पर प्रदर्शित एवं प्रचारित करने और सामाजिक अंकेक्षण पर विशेष ज़ोर दिया गया है। मस्टररोल को सार्वजनिक करने की व्यवस्था इसलिए की गई है, ताकि भ्रष्टाचार पर लगाम कसी जा सके। लेकिन इसका हर जगह पालन नहीं हो रहा और इससे तमाम तरह की आशंकाएं पैदा हो रही हैं। काम के लिए की गई मांग और मांग पूरी होने पर घर के सदस्यों के फोटो लगे जॉबकॉड्‌र्स की व्यवस्था भी भ्रष्टाचार को ध्यान में रखकर ही की गई है। सुनने में भले ही अटपटा लगे, लेकिन सच्चाई यही है कि उक्त तमाम भ्रष्टाचार रोधी उपाय शुरुआत में मनरेगा के क्रियान्वयन में एक बड़ी बाधा बन गए। स्वर्ण जयंती ग्राम रोज़गार योजना जैसी पहले की रोज़गार योजनाओं के मुक़ाबले मनरेगा में इन उपायों के चलते सरकारी धन में हेरफेर करना मुश्किल था और क्रियान्वयन के लिए ज़िम्मेदार संस्थाओं के लिए यही सबसे बड़ी अरुचि का कारण भी था।

स्वार्थी तत्वों ने मनरेगा में भी भ्रष्टाचार की संभावनाएं तलाश कर लीं और फिर उत्साह के साथ इसके क्रियान्वयन के लिए तैयार होने में भी ज़्यादा व़क्त नहीं लगा। यदि मीडिया की कुछ खबरों पर भरोसा करें तो पर्यवेक्षकों को न केवल बड़ी संख्या में नकली जॉबकाड्‌र्स के सबूत मिले हैं, बल्कि यह भी पता चला है कि क्रियान्वयन के लिए ज़िम्मेदार संस्थाएं और किसी खास क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर दबंग जातीय समूहों ने इन काड्‌र्स पर क़ब्ज़ा कर रखा है और इनकी मदद से अवैध रूप से पैसा बनाया जा रहा है।लेकिन मानव स्वभाव हर मुश्किल से बचने का तरीक़ा निकाल ही लेता है। स्वार्थी तत्वों ने मनरेगा में भी भ्रष्टाचार की संभावनाएं तलाश कर लीं और फिर उत्साह के साथ इसके क्रियान्वयन के लिए तैयार होने में भी ज़्यादा व़क्त नहीं लगा। यदि मीडिया की कुछ खबरों पर भरोसा करें तो पर्यवेक्षकों को न केवल बड़ी संख्या में नकली जॉबकाड्‌र्स के सबूत मिले हैं, बल्कि यह भी पता चला है कि क्रियान्वयन के लिए ज़िम्मेदार संस्थाएं और किसी खास क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर दबंग जातीय समूहों ने इन काड्‌र्स पर क़ब्ज़ा कर रखा है और इनकी मदद से अवैध रूप से पैसा बनाया जा रहा है। काम कराए बिना ही फर्ज़ी मस्टररोल्स बनाने की बात भी सामने आई है। यह तो केवल उदाहरण हैं। भ्रष्टाचारी तत्वों ने पैसे बनाने के ऐसे ही न जाने और कितने तरीके निकाल लिए हैं। फिर नज़रिये की बात भी है। जॉबकार्ड धारकों को काम उपलब्ध कराने को उनके अधिकार के बजाय उपकार के रूप में देखा जाता है। अधिकतर मौकों पर परिसंपत्तियों के निर्माण के लिए जगह का चुनाव भी राजनीतिक रूप से प्रेरित होता है। मनरेगा के अंतर्गत काम के लिए ऐसे स्थानों को चुना जाता है, जहां सत्ताधारी दल के समर्थकों की संख्या ज़्यादा हो। सत्ताधारी दल योजना के अंतर्गत काम के अधिकार अपने समर्थक कार्यकर्ताओं के बीच लॉलीपॉप की तरह बांटता है, लेकिन अन्य दलों के समर्थक बेरोजगार मज़दूरों को अपने अधिकार से वंचित होना पड़ता है।

स्वार्थी तत्व फर्ज़ी जॉबकार्ड बनाकर मस्टररोल एवं डेली अटेंडेंस रजिस्टर में फर्ज़ी एंट्री करते हैं और सरकारी धन पर अपना अवैध क़ब्ज़ा ज़माने में कामयाब होते हैं। अक्सर देखने में आया है कि जॉबकार्ड केवल उन्हीं लोगों को उपलब्ध कराया जाता है, जो सत्ताधारी दल के समर्थक हैं या फिर अधिकारियों की मुट्ठी गर्म कर सकते हैं। कई इलाकों से सरकारी अधिकारियों द्वारा मज़दूरों की मज़दूरी का एक हिस्सा कमीशन के रूप में काट लेने की खबरें भी मिली हैं। योजना के अंदर यह व्यवस्था की गई है कि मज़दूरों को उनके काम की मात्रा और गुणवत्ता के हिसाब से मज़दूरी मिले, न कि काम के दिनों के आधार पर, लेकिन वास्तव में होता इसका ठीक उल्टा है। अधिकारी खरगोश और कछुए को एक जैसा मानकर मज़दूरों को केवल श्रम दिवस के आधार पर भुगतान कर देते हैं, जबकि यह योजना के प्रावधानों के खिलाफ है। उद्देश्य यह था कि ज़्यादा काम करने वाले मज़दूर अपने काम के हिसाब से ज़्यादा कमाई कर सकें। सरकारी अधिकारियों का कहना है कि एक समान मज़दूरी का भुगतान एक व्यवहारिक मजबूरी है, क्योंकि मज़दूरी में अंतर से मज़दूरों के बीच असंतोष पैदा होता है।

कई जगहों से ऐसी शिकायतें भी मिली हैं, जिनमें मज़दूरों ने अधिकारियों के कहे मुताबिक़ काम के घंटों पर आपत्ति जताई है या कुछ दिन काम करने के बाद पहले से तय हुई मज़दूरी पर काम करने से इंकार कर दिया है। ऐसा केवल इसलिए कि मनरेगा एक सरकार प्रायोजित योजना है और मज़दूर कम काम करके अपने हिस्से की निश्चित मज़दूरी लेकर संतुष्ट हो जाते हैं। योजना को क्रियान्वित करने वाले अभिकरणों ने ऐसी शिकायतें की हैं, लेकिन अच्छी बात यह है कि ऐसी शिकायतें कम ही सुनने में आई हैं।

मनरेगा के उद्देश्यों के बारे में कोई खास संदेह नहीं, संदेह इसके क्रियान्वयन के तरीके को लेकर है। पहले की रोज़गार गारंटी योजनाओं से सीख लेकर सरकार ने मनरेगा में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए विशेष प्रावधान किए ज़रूर हैं, लेकिन इनका कहां तक पालन हो रहा है, यह संदेह का कारण है। यह भी सच्चाई है कि अब उक्त तरीके नाका़फी साबित हो रहे हैं, क्योंकि स्वार्थी तत्व इनके बीच से पैसे बनाने का रास्ता निकाल चुके हैं।

• (लेखक पश्चिम बंगाल में आईएएस अधिकारी हैं। आलेख में व्यक्त विचार उनके अपने हैं और इनका सरकार के विचारों से कोई संबंध नहीं है।)

Submitted by Hindi on Thu, 10/28/2010 - 12:14
Source:
अभिव्यक्ति

सतपुड़ा-मैकल और विंध्य पर्वत शृंखला के संधि स्थल पर सुरम्य नील वादियों में बसा अमरकंटक ग्रीष्मकाल के लिए अनुपम पर्यटन स्थल है। इसे प्रकृति और पौराणिकता ने विविध संपदा की धरोहर बख्शी है। चारों ओर हरियाली, दूधधारा और कपिलधारा के झरनों का मनोरम दृश्य, सोननदी की कलकल करती धारा, नर्मदा कुंड की पवित्रता, पहाड़ियों की हरी-भरी ऊँचाइयाँ है और खाई का प्रकृति प्रदत्त मनोरम दृश्य मन की गहराइयों को छू जाता है। अमरत्व बोध के इस अलौकिक धाम की यात्रा सचमुच उसके नाम के साथ जुड़े 'कंटक' शब्द को सार्थक करती है। हम जहाँ दुनिया के छोटी हो जाने का ज़िक्र करते थकते नहीं, वहीं अमरकंटक की यात्रा आज भी अनुभवों मे
Submitted by Hindi on Wed, 10/27/2010 - 11:20
Source:
जनसत्ता, अक्तूबर 2010
Disaster
बढ़ती आबादी से उत्तराखंड के भंगुर पारिस्थितिकी तंत्र पर लगातार बोझ बढ़ रहा है। आधुनिक बदलाव ने प्रकृति पर बुरा असर डाला है।उत्तराखंड में इस बार बारिश ने सैकड़ों जानें लीं। हजारों घर-घाट लगा दिए। लेकिन दिल्ली और देहरादून की सरकारें राहत राशि और मुआवजे की सियास

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

Latest

खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

मनरेगा : भ्रष्टाचार रोकने के उपाय नाका़फी

Submitted by Hindi on Fri, 10/29/2010 - 10:09
Author
डा. सौमित्र मोहन
Source
चौथी दुनिया

नरेगा के अंतर्गत भ्रष्टाचार और सरकारी धन के अपव्यय को रोकने के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। इस योजना की संरचना में पर्यवेक्षण और निरीक्षण का खास ध्यान रखा गया है। इसके लिए फील्ड में जाकर ज़मीनी हक़ीक़त की जांच-पड़ताल, मस्टररोल का सार्वजनिक निरीक्षण, योजना के अंतर्गत पूरे किए जा चुके एवं चल रहे कामों को सूचनापट्ट पर प्रदर्शित एवं प्रचारित करने और सामाजिक अंकेक्षण पर विशेष ज़ोर दिया गया है। मस्टररोल को सार्वजनिक करने की व्यवस्था इसलिए की गई है, ताकि भ्रष्टाचार पर लगाम कसी जा सके। लेकिन इसका हर जगह पालन नहीं हो रहा और इससे तमाम तरह की आशंकाएं पैदा हो रही हैं। काम के लिए की गई मांग और मांग पूरी होने पर घर के सदस्यों के फोटो लगे जॉबकॉड्‌र्स की व्यवस्था भी भ्रष्टाचार को ध्यान में रखकर ही की गई है। सुनने में भले ही अटपटा लगे, लेकिन सच्चाई यही है कि उक्त तमाम भ्रष्टाचार रोधी उपाय शुरुआत में मनरेगा के क्रियान्वयन में एक बड़ी बाधा बन गए। स्वर्ण जयंती ग्राम रोज़गार योजना जैसी पहले की रोज़गार योजनाओं के मुक़ाबले मनरेगा में इन उपायों के चलते सरकारी धन में हेरफेर करना मुश्किल था और क्रियान्वयन के लिए ज़िम्मेदार संस्थाओं के लिए यही सबसे बड़ी अरुचि का कारण भी था।

स्वार्थी तत्वों ने मनरेगा में भी भ्रष्टाचार की संभावनाएं तलाश कर लीं और फिर उत्साह के साथ इसके क्रियान्वयन के लिए तैयार होने में भी ज़्यादा व़क्त नहीं लगा। यदि मीडिया की कुछ खबरों पर भरोसा करें तो पर्यवेक्षकों को न केवल बड़ी संख्या में नकली जॉबकाड्‌र्स के सबूत मिले हैं, बल्कि यह भी पता चला है कि क्रियान्वयन के लिए ज़िम्मेदार संस्थाएं और किसी खास क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर दबंग जातीय समूहों ने इन काड्‌र्स पर क़ब्ज़ा कर रखा है और इनकी मदद से अवैध रूप से पैसा बनाया जा रहा है।लेकिन मानव स्वभाव हर मुश्किल से बचने का तरीक़ा निकाल ही लेता है। स्वार्थी तत्वों ने मनरेगा में भी भ्रष्टाचार की संभावनाएं तलाश कर लीं और फिर उत्साह के साथ इसके क्रियान्वयन के लिए तैयार होने में भी ज़्यादा व़क्त नहीं लगा। यदि मीडिया की कुछ खबरों पर भरोसा करें तो पर्यवेक्षकों को न केवल बड़ी संख्या में नकली जॉबकाड्‌र्स के सबूत मिले हैं, बल्कि यह भी पता चला है कि क्रियान्वयन के लिए ज़िम्मेदार संस्थाएं और किसी खास क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर दबंग जातीय समूहों ने इन काड्‌र्स पर क़ब्ज़ा कर रखा है और इनकी मदद से अवैध रूप से पैसा बनाया जा रहा है। काम कराए बिना ही फर्ज़ी मस्टररोल्स बनाने की बात भी सामने आई है। यह तो केवल उदाहरण हैं। भ्रष्टाचारी तत्वों ने पैसे बनाने के ऐसे ही न जाने और कितने तरीके निकाल लिए हैं। फिर नज़रिये की बात भी है। जॉबकार्ड धारकों को काम उपलब्ध कराने को उनके अधिकार के बजाय उपकार के रूप में देखा जाता है। अधिकतर मौकों पर परिसंपत्तियों के निर्माण के लिए जगह का चुनाव भी राजनीतिक रूप से प्रेरित होता है। मनरेगा के अंतर्गत काम के लिए ऐसे स्थानों को चुना जाता है, जहां सत्ताधारी दल के समर्थकों की संख्या ज़्यादा हो। सत्ताधारी दल योजना के अंतर्गत काम के अधिकार अपने समर्थक कार्यकर्ताओं के बीच लॉलीपॉप की तरह बांटता है, लेकिन अन्य दलों के समर्थक बेरोजगार मज़दूरों को अपने अधिकार से वंचित होना पड़ता है।

स्वार्थी तत्व फर्ज़ी जॉबकार्ड बनाकर मस्टररोल एवं डेली अटेंडेंस रजिस्टर में फर्ज़ी एंट्री करते हैं और सरकारी धन पर अपना अवैध क़ब्ज़ा ज़माने में कामयाब होते हैं। अक्सर देखने में आया है कि जॉबकार्ड केवल उन्हीं लोगों को उपलब्ध कराया जाता है, जो सत्ताधारी दल के समर्थक हैं या फिर अधिकारियों की मुट्ठी गर्म कर सकते हैं। कई इलाकों से सरकारी अधिकारियों द्वारा मज़दूरों की मज़दूरी का एक हिस्सा कमीशन के रूप में काट लेने की खबरें भी मिली हैं। योजना के अंदर यह व्यवस्था की गई है कि मज़दूरों को उनके काम की मात्रा और गुणवत्ता के हिसाब से मज़दूरी मिले, न कि काम के दिनों के आधार पर, लेकिन वास्तव में होता इसका ठीक उल्टा है। अधिकारी खरगोश और कछुए को एक जैसा मानकर मज़दूरों को केवल श्रम दिवस के आधार पर भुगतान कर देते हैं, जबकि यह योजना के प्रावधानों के खिलाफ है। उद्देश्य यह था कि ज़्यादा काम करने वाले मज़दूर अपने काम के हिसाब से ज़्यादा कमाई कर सकें। सरकारी अधिकारियों का कहना है कि एक समान मज़दूरी का भुगतान एक व्यवहारिक मजबूरी है, क्योंकि मज़दूरी में अंतर से मज़दूरों के बीच असंतोष पैदा होता है।

कई जगहों से ऐसी शिकायतें भी मिली हैं, जिनमें मज़दूरों ने अधिकारियों के कहे मुताबिक़ काम के घंटों पर आपत्ति जताई है या कुछ दिन काम करने के बाद पहले से तय हुई मज़दूरी पर काम करने से इंकार कर दिया है। ऐसा केवल इसलिए कि मनरेगा एक सरकार प्रायोजित योजना है और मज़दूर कम काम करके अपने हिस्से की निश्चित मज़दूरी लेकर संतुष्ट हो जाते हैं। योजना को क्रियान्वित करने वाले अभिकरणों ने ऐसी शिकायतें की हैं, लेकिन अच्छी बात यह है कि ऐसी शिकायतें कम ही सुनने में आई हैं।

मनरेगा के उद्देश्यों के बारे में कोई खास संदेह नहीं, संदेह इसके क्रियान्वयन के तरीके को लेकर है। पहले की रोज़गार गारंटी योजनाओं से सीख लेकर सरकार ने मनरेगा में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए विशेष प्रावधान किए ज़रूर हैं, लेकिन इनका कहां तक पालन हो रहा है, यह संदेह का कारण है। यह भी सच्चाई है कि अब उक्त तरीके नाका़फी साबित हो रहे हैं, क्योंकि स्वार्थी तत्व इनके बीच से पैसे बनाने का रास्ता निकाल चुके हैं।

(लेखक पश्चिम बंगाल में आईएएस अधिकारी हैं। आलेख में व्यक्त विचार उनके अपने हैं और इनका सरकार के विचारों से कोई संबंध नहीं है।)

चरो रे भैया, चलिहें नरबदा के तीर

Submitted by Hindi on Thu, 10/28/2010 - 12:14
Author
प्रो. अश्विनी केशरवानी
Source
अभिव्यक्ति

सतपुड़ा-मैकल और विंध्य पर्वत शृंखला के संधि स्थल पर सुरम्य नील वादियों में बसा अमरकंटक ग्रीष्मकाल के लिए अनुपम पर्यटन स्थल है। इसे प्रकृति और पौराणिकता ने विविध संपदा की धरोहर बख्शी है। चारों ओर हरियाली, दूधधारा और कपिलधारा के झरनों का मनोरम दृश्य, सोननदी की कलकल करती धारा, नर्मदा कुंड की पवित्रता, पहाड़ियों की हरी-भरी ऊँचाइयाँ है और खाई का प्रकृति प्रदत्त मनोरम दृश्य मन की गहराइयों को छू जाता है। अमरत्व बोध के इस अलौकिक धाम की यात्रा सचमुच उसके नाम के साथ जुड़े 'कंटक' शब्द को सार्थक करती है। हम जहाँ दुनिया के छोटी हो जाने का ज़िक्र करते थकते नहीं, वहीं अमरकंटक की यात्रा आज भी अनुभवों मे

चेतने की बारी

Submitted by Hindi on Wed, 10/27/2010 - 11:20
Author
प्रयाग पांडे
Source
जनसत्ता, अक्तूबर 2010
Disaster
बढ़ती आबादी से उत्तराखंड के भंगुर पारिस्थितिकी तंत्र पर लगातार बोझ बढ़ रहा है। आधुनिक बदलाव ने प्रकृति पर बुरा असर डाला है।उत्तराखंड में इस बार बारिश ने सैकड़ों जानें लीं। हजारों घर-घाट लगा दिए। लेकिन दिल्ली और देहरादून की सरकारें राहत राशि और मुआवजे की सियास

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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