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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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Submitted by Shivendra on Wed, 11/16/2022 - 12:30
Source:
जलभराव
जनपद प्रयागराज जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर और तहसील मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पे गंगा के किनारे पर बसा मद्रा मुकुंदपुर गाँव है जहाँ आधे गाँव के घरो का पानी सड़को पर जमा हो जाता है ग्रामीण बताते है की पहले यहाँ एक पुलिया हुआ करती थी  जिसके माध्यम से ये गंदा पानी नालियों में बहकर आगे निकल जाता था और बरसात के पानी की निकासी भी इसी तरह पुलिया से होते हुए नाली में  चले जाती थी
Submitted by Editorial Team on Wed, 11/16/2022 - 12:06
Source:
नवम्बर-2022, लोकसम्मान पत्रिका
गढ़मुक्तेश्वर में बहती गंगा नदी, फोटो साभार : https://bharatdiscovery.org/
भारत भूषण बताते हैं कि पुष्पावती पूठ घाट कौरव और पांडवों की शिक्षास्थली के रूप में विख्यात रहा। परंतु कालांतर में यह स्थान अपनी ऐतिहासिकता को विस्मरण करते हुए अव्यवस्थाओं का शिकार हो गया। सन 2002 में जब इस घाट को गोद लिया गया तब यहां श्रद्धालुओं की संख्या भी कम थी लेकिन जो भी लोग आते थे वह गंदगी अपने साथ लेकर आते थे जिससे मन में बड़ी पीड़ा होती थी। उन्हें समझाने में काफी समय लगता था और अधिकांश श्रद्धालु असहमत होते हुए हम से भिड़ने के लिए भी तैयार रहते थे। जब हम इसके मूल में गए तब हमने जाना इसके पीछे उनकी वह श्रद्धा है जो उन्हें उनके पंडित जी ने बताई है कि इस पूजा सामग्री को गंगा जी में प्रवाहित कर देना। हमें यहीं से अपने कार्य करने की दिशा प्राप्त हो गई। हम लोगों ने ब्राह्मण समाज की छोटी-छोटी बैठकें करनी प्रारंभ कर दीं तथा उनसे आग्रह किया कि वे लोग जिनके यहां भी किसी भी प्रकार का कोई संस्कार, यज्ञ आदि करें। तब उन्हें उक्त पूजा सामग्री को गंगा में या अन्य किसी नदी में प्रवाहित करने के लिए ना कहें, अपितु इस सभी सामग्री को खेतों में डालने की बात कहें। हमने देखा कि कुछ ही समय में इसका सकारात्मक प्रभाव दिखाई देने लगा। सन 2005 में बृजघाट से नरोरा तक ऊपरी गंगा नदी को डॉल्फिन संरक्षण के लिए रामसर साइट घोषित किया गया तब हमारा कार्य क्षेत्र बृजघाट से लेकर नरोरा तक लगभग 120 किलोमीटर लंबाई में फैल गया। तब हमने और अधिक गति से कार्य करना प्रारंभ कर दिया। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के साथ मिलकर हम लोग प्रत्येक वर्ष डॉल्फिन काउंटिंग में जाने लगे तब ध्यान में आया कि गंगा नदी के दोनों किनारे सूने-सूने हैं। वहां से प्रत्येक प्रकार की वनस्पति को समाप्त करने का दुष्चक्र चल रहा है।
Submitted by Editorial Team on Sat, 11/12/2022 - 13:02
Source:
नवम्बर-2022, लोकसम्मान पत्रिका
चाल-खाल की एक तस्वीर, फोटो साभार - मोहन चन्द्र कांडपाल
पहले गांव के नजदीक के स्रोत से पानी नल के माध्यम से लाया गया। वह सूख गया तो पास के गाड-गधेरों से नल में लाया गया। उसमें पानी कम हुआ तो पाप की बड़ी नदी से पानी लाया गया। उम्ममें भी कम हुआ तो पिंडर व अलकनंद से पानी लाने की आवाज उठ रही हैं। आखिर कब तक नदियों से पानी मिलता रहेगा? आखिर नदियां भी तो छोटे-छोटे जल स्रोतों से बनी हैं। स्रोत झूख जाएंगे तो निश्चित एक दिन नदियां झूख जाएंगी। हमारेपूर्वज फसल बोने के साथ-साथ पानी भी खेत में बोने का प्रयास करते थे। उन्होंने पहाड़ों में गांव वहां बसाए जहां जल झोत थे क्योंकि वह जानते थे कि पानी नहींतोगांवनहीं। लेकिन पिछले 50-60 वर्षों में नौलों घारों, खावों, तालाबों व पोखरों की संस्कृति समाप्त हो गई हैं।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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जिस गांव में एसडीएम से लेकर कमिश्नर तक का है घर वहाँ पानी ने पैदा कर दी सबसे बड़ी समस्या

Submitted by Shivendra on Wed, 11/16/2022 - 12:30
jis-ganv-mein-sdm-se-lekar-commissioner-tak-ka-hai-ghar-vahan-pani-ne-paida-kar-di-sabse-badi-samasya
 जलभराव
जनपद प्रयागराज जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर और तहसील मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पे गंगा के किनारे पर बसा मद्रा मुकुंदपुर गाँव है जहाँ आधे गाँव के घरो का पानी सड़को पर जमा हो जाता है ग्रामीण बताते है की पहले यहाँ एक पुलिया हुआ करती थी  जिसके माध्यम से ये गंदा पानी नालियों में बहकर आगे निकल जाता था और बरसात के पानी की निकासी भी इसी तरह पुलिया से होते हुए नाली में  चले जाती थी

गढ़मुक्तेश्वर के गंगाघाट: जहां पहले पॉलीथिन तैरती थीं, वहां अब डॉलफिन तैरती हैं

Submitted by Editorial Team on Wed, 11/16/2022 - 12:06
gadhamukteshvar-ke-gangaghat:-jahan-pahle-polythene-tairati-thin,-vahan-ab-dolphin-tairati-hain
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नवम्बर-2022, लोकसम्मान पत्रिका
गढ़मुक्तेश्वर में बहती गंगा नदी, फोटो साभार : https://bharatdiscovery.org/
भारत भूषण बताते हैं कि पुष्पावती पूठ घाट कौरव और पांडवों की शिक्षास्थली के रूप में विख्यात रहा। परंतु कालांतर में यह स्थान अपनी ऐतिहासिकता को विस्मरण करते हुए अव्यवस्थाओं का शिकार हो गया। सन 2002 में जब इस घाट को गोद लिया गया तब यहां श्रद्धालुओं की संख्या भी कम थी लेकिन जो भी लोग आते थे वह गंदगी अपने साथ लेकर आते थे जिससे मन में बड़ी पीड़ा होती थी। उन्हें समझाने में काफी समय लगता था और अधिकांश श्रद्धालु असहमत होते हुए हम से भिड़ने के लिए भी तैयार रहते थे। जब हम इसके मूल में गए तब हमने जाना इसके पीछे उनकी वह श्रद्धा है जो उन्हें उनके पंडित जी ने बताई है कि इस पूजा सामग्री को गंगा जी में प्रवाहित कर देना। हमें यहीं से अपने कार्य करने की दिशा प्राप्त हो गई। हम लोगों ने ब्राह्मण समाज की छोटी-छोटी बैठकें करनी प्रारंभ कर दीं तथा उनसे आग्रह किया कि वे लोग जिनके यहां भी किसी भी प्रकार का कोई संस्कार, यज्ञ आदि करें। तब उन्हें उक्त पूजा सामग्री को गंगा में या अन्य किसी नदी में प्रवाहित करने के लिए ना कहें, अपितु इस सभी सामग्री को खेतों में डालने की बात कहें। हमने देखा कि कुछ ही समय में इसका सकारात्मक प्रभाव दिखाई देने लगा। सन 2005 में बृजघाट से नरोरा तक ऊपरी गंगा नदी को डॉल्फिन संरक्षण के लिए रामसर साइट घोषित किया गया तब हमारा कार्य क्षेत्र बृजघाट से लेकर नरोरा तक लगभग 120 किलोमीटर लंबाई में फैल गया। तब हमने और अधिक गति से कार्य करना प्रारंभ कर दिया। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के साथ मिलकर हम लोग प्रत्येक वर्ष डॉल्फिन काउंटिंग में जाने लगे तब ध्यान में आया कि गंगा नदी के दोनों किनारे सूने-सूने हैं। वहां से प्रत्येक प्रकार की वनस्पति को समाप्त करने का दुष्चक्र चल रहा है।

द्वाराहाट, अल्मोड़ा में पानी बोओ, पानी उगाओ

Submitted by Editorial Team on Sat, 11/12/2022 - 13:02
dwarahat,-almoda-mein-pani-boo,-pani-ugao
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नवम्बर-2022, लोकसम्मान पत्रिका
चाल-खाल की एक तस्वीर, फोटो साभार - मोहन चन्द्र कांडपाल
पहले गांव के नजदीक के स्रोत से पानी नल के माध्यम से लाया गया। वह सूख गया तो पास के गाड-गधेरों से नल में लाया गया। उसमें पानी कम हुआ तो पाप की बड़ी नदी से पानी लाया गया। उम्ममें भी कम हुआ तो पिंडर व अलकनंद से पानी लाने की आवाज उठ रही हैं। आखिर कब तक नदियों से पानी मिलता रहेगा? आखिर नदियां भी तो छोटे-छोटे जल स्रोतों से बनी हैं। स्रोत झूख जाएंगे तो निश्चित एक दिन नदियां झूख जाएंगी। हमारेपूर्वज फसल बोने के साथ-साथ पानी भी खेत में बोने का प्रयास करते थे। उन्होंने पहाड़ों में गांव वहां बसाए जहां जल झोत थे क्योंकि वह जानते थे कि पानी नहींतोगांवनहीं। लेकिन पिछले 50-60 वर्षों में नौलों घारों, खावों, तालाबों व पोखरों की संस्कृति समाप्त हो गई हैं।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
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चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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