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बुंदेलखंड की पारंपरिक संस्कृति का अभिन्न अंग रहे हैं ‘तालाब। आम बुंदेली गांव की बसावट एक पहाड़, उससे सटे तालाब के इर्द-गिर्द हुआ करती थी। यहां के टीकमगढ़ जिले के तालाब नौंवी से 12वी सदी के बीच वहां के शासक रहे चंदेल राजाओं की तकनीकी सूझबूझ के अद्वितीय उदाहरण है। कालांतर में टीकमगढ़ जिले में 1100 से अधिक चंदेलकालीन तालाब हुआ करते थे। कुछ को समय की गर्त लील गई और कुछ आधुनिकीकरण की आंधी में ओझल हो गए।
सतलुज का उद्गम राक्षस ताल से हुआ है। राक्षस ताल तिब्बत के पश्चिमी पठार में है। यह सुविख्यात मानसरोवर से कोई दो कि.मी. की दूरी पर है। सतलुज शिप्कीला से भारत के किन्नर लोक में प्रवेश करती है। किन्नर देश में सतलुज को लाने का श्रेय वाणासुर को दिया जाता है जैसे गंगा को लाने का श्रेय भगीरथ को है और इसी कारण गंगा का नाम भागीरथी भी है। किंतु सतलुज का नाम वाणशिवरी नहीं हैं। एक कथा के अनुसार पहले किन्नर दो राज्यों में विभक्त था। एक की राजधानी शोणितपुर (सराहन) थी और दूसरे की कामरू। इन राज्यों में बड़ा बैर था और अक्सर युद्द हुआ करते थे। वाणासुर शोणितपुर में तीन भाई राजकाज करते थे। वाणासुर और उसकी प्रजा को मार डालने के लिए उन तीनों भाइयों ने किन्नर देश में बहने वाली एक नदी में हज़ारों मन ज़हर घोल दिया। इससे हज़ारों लोग, पशु-पक्षी मर गए। भयंकर अकाल पड़ गया।
मसौदा के बारे में श्री चौबे ने स्पष्ट करते हुए कहा कि सरकार की नीति में पीने के पानी को शीर्ष प्राथमिकता होगी। सरकार दोहरी जल आपूर्ति पर भी काम कर रही है। ताकि जल को साफ किया जा सके। सरकार जिला स्तर और राज्य स्तर पर निगरानी समितियाँ भी बनायेगी जो सतही पानी, जमीनी पानी और वर्षा जल के अधिकतम के समूचित उपयोग पर नियंत्रण रखेंगी। बिहार सरकार एक भूजल विनियामक प्राधिकरण भी स्थापित करेगी जो भूजल संरक्षण और उपयोग पर नियंत्रण रखेगी।
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खतरे में है टीकमगढ़ की तालाब संस्कृति: भाग 1
बुंदेलखंड की पारंपरिक संस्कृति का अभिन्न अंग रहे हैं ‘तालाब। आम बुंदेली गांव की बसावट एक पहाड़, उससे सटे तालाब के इर्द-गिर्द हुआ करती थी। यहां के टीकमगढ़ जिले के तालाब नौंवी से 12वी सदी के बीच वहां के शासक रहे चंदेल राजाओं की तकनीकी सूझबूझ के अद्वितीय उदाहरण है। कालांतर में टीकमगढ़ जिले में 1100 से अधिक चंदेलकालीन तालाब हुआ करते थे। कुछ को समय की गर्त लील गई और कुछ आधुनिकीकरण की आंधी में ओझल हो गए।
सतलुज की कहानी
सतलुज का उद्गम राक्षस ताल से हुआ है। राक्षस ताल तिब्बत के पश्चिमी पठार में है। यह सुविख्यात मानसरोवर से कोई दो कि.मी. की दूरी पर है। सतलुज शिप्कीला से भारत के किन्नर लोक में प्रवेश करती है। किन्नर देश में सतलुज को लाने का श्रेय वाणासुर को दिया जाता है जैसे गंगा को लाने का श्रेय भगीरथ को है और इसी कारण गंगा का नाम भागीरथी भी है। किंतु सतलुज का नाम वाणशिवरी नहीं हैं। एक कथा के अनुसार पहले किन्नर दो राज्यों में विभक्त था। एक की राजधानी शोणितपुर (सराहन) थी और दूसरे की कामरू। इन राज्यों में बड़ा बैर था और अक्सर युद्द हुआ करते थे। वाणासुर शोणितपुर में तीन भाई राजकाज करते थे। वाणासुर और उसकी प्रजा को मार डालने के लिए उन तीनों भाइयों ने किन्नर देश में बहने वाली एक नदी में हज़ारों मन ज़हर घोल दिया। इससे हज़ारों लोग, पशु-पक्षी मर गए। भयंकर अकाल पड़ गया।
पेयजल और स्वच्छता नीति का मसौदा
मसौदा के बारे में श्री चौबे ने स्पष्ट करते हुए कहा कि सरकार की नीति में पीने के पानी को शीर्ष प्राथमिकता होगी। सरकार दोहरी जल आपूर्ति पर भी काम कर रही है। ताकि जल को साफ किया जा सके। सरकार जिला स्तर और राज्य स्तर पर निगरानी समितियाँ भी बनायेगी जो सतही पानी, जमीनी पानी और वर्षा जल के अधिकतम के समूचित उपयोग पर नियंत्रण रखेंगी। बिहार सरकार एक भूजल विनियामक प्राधिकरण भी स्थापित करेगी जो भूजल संरक्षण और उपयोग पर नियंत्रण रखेगी।
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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