लेखक
हमारे देश के गाँवों और शहरी क्षेत्र में सरकारी शौचालयों की दशा भी खराब है। देश के कई राज्यों में सरकारी प्राइमरी और जूनियर हाईस्कूलों में शौचालयों का निर्माण तो हुआ है। लेकिन यह केवल दिखावटी है। अधिकांश सार्वजनिक शौचालयों से जरूरी सामान गायब हो जाता है। जब तक हम इसे अपने आदत में नहीं लाएँगे। तब तक शौचालयों की छत पर लगी पानी की टंकी, पाइप कनेक्शन सब कुछ ऐसे गायब होते रहेंगे। अधिकांश स्कूलों के शौचालयों में ताले लटकते रहते हैं। अपने आस-पास को साफ रखने एवं पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिये अधिकांश देशों में अभियान चल रहा है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता पर विशेष ध्यान देते हुए साल भर पहले स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की है।
औद्योगिक इकाईयों के साथ ही मानव जनित प्रदूषण हमारे वातावरण को कम गन्दा नहीं करते हैं। इसका हमारे स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है। स्वच्छ भारत-स्वस्थ भारत के नारे के साथ चल रहे स्वच्छता अभियान के लिये शौचालयों का अभाव व व्यवस्था के लिये एक चुनौती है। तमाम प्रयास के बाद भी लोग खुले में शौच करने जाते हैं। इससे स्वच्छता अभियान की पोल खुल रही है।
ग्रामीण भारत की कौन कहे अभी शहरी भारत में भी हर व्यक्ति को शौचालय नसीब नहीं है। भारत सरकार ने शौचालय बनाने के लिये कई योजनाओं की शुरुआत की है। ग्रामीणों को शौचालयों के प्रयोग में जागरुकता लाने के लिये सरकारी भवनों में शौचालयों का निर्माण करके उन्हें प्रेरित करने का प्रयास भी किया जा रहा है। गाँवों में भी शौचालय बनाने के लिये अनुदान दिया जा रहा है।
भारत सरकार ने शत-प्रतिशत खुले में शौच से मुक्त शहरों के दावे का सत्यापन कर रही है। स्वच्छ भारत अभियान (शहरी) के तहत खुले में शौच जाने से मुक्ति (ओडीएफ) दावों के मद्देनजर शहरी विकास मंत्रालय ने तीसरे पक्ष द्वारा सत्यापन की प्रक्रिया शुरू की है। जिसके अनुरूप 10 नगरों को ओडीएफ के रूप में प्रमाणित किया गया है।
मंत्रालय ने देश के राज्यों के 11 नगरों द्वारा ओडीएफ दावे प्राप्त किये थे, जिन्हें भारतीय गुणवत्ता परिषद ने स्वतंत्र रूप से सत्यापित किया है। इस तरह के प्रमाणीकरण के लिये सम्बन्धित नियमों के तहत दावों को जाँचा गया। ओडीएफ प्रमाणित नगरों में महाराष्ट्र के कागल, पंचगनी, वेनगुरला, मुरगुड और पनहाला तथा तेलंगाना के सिद्दीपेट, शडनागा, सूर्यापेट, अचमापेट और हुजूरनगर शामिल हैं। तेलंगाना के भोनगिर के दावे का दोबारा मूल्यांकन किया जाएगा। इसमें पहले शहरों ने दावा किया कि उनका शहर अब खुले में शौच से मुक्त हो गया है।
इस योजना के तहत 7 राज्यों के कुल 141 नगरों ने ओडीएफ की दावेदारी की है, जिनमें महाराष्ट्र के 100 नगर शामिल हैं। इन दावों का सत्यापन किया जा रहा है। शहरी क्षेत्रों में स्वच्छ भारत अभियान की प्रगति का ब्यौरा मंत्रालय के अधिकारियों ने शहरी विकास मंत्री एम. वेंकैया नायडू द्वारा बुलाई गई समीक्षा बैठक में पेश किया।
सबसे बड़ी बात यह है कि नायडू नियमित रूप से अभियान की प्रगति का जयजा लेते हैं और उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे अभियान के उद्देश्यों को पूरा करने के लिये राज्यों के साथ प्रक्रिया को सुनिश्चित करें। गुजरात में ओडीएफ स्थिति का दावा करने वाले 13 नगरों में गाँधीधाम, नवसारी, रापड़ और मांडवी शामिल हैं।
तेलंगाना में इस तरह का दावा करने वाले छह नगरों में गजवेल, इब्राहिमपत्तनम, जगतियाल, सत्तूसपल्लीक और सिरसिल्लो हैं। ओडीएफ का दावा करने वाले पश्चिम बंगाल के 10 नगरों में कृष्णानगर, नबाद्वीप, सांतीपुर और कल्याणी, छत्तीसगढ़ में अम्बिकापुर, धमन्तरी और अम्बातगढ़ चौकी, राजस्थान में डूँगरपुर तथा मणिपुर में मायरंग और काकचिंग शामिल हैं।
मंत्रालय में प्राप्त राज्यों की रिपोर्टों के अनुसार अगले वर्ष कुल 974 नगर और शहर खुले में शौच जाने से मुक्त हो जाएँगे। इनमें आन्ध्र प्रदेश के सभी 11 शहरी क्षेत्र, केरल के सभी 59, गुजरात के 195 में से 170, उत्तर प्रदेश के 648 में से 85, मध्य प्रदेश के 364 में से 68, कर्नाटक के 220 में से 50, छत्तीसगढ़ के 166 में से 42, असम के 88 में से 40, राजस्थान के 185 में से 34, तमिलनाडु के 721 में से 25 और जम्मू-कश्मीर के 86 में से 22 शहरी क्षेत्र आते हैं।
तीसरे पक्ष के सत्यापन और ओडीएफ स्थिति के प्रमाणीकरण के नियमों के अनुसार सबसे पहले प्रत्येक वार्ड और शहर को ओडीएफ की स्वयं घोषणा करनी होती है तथा सम्बन्धित शहरी स्थानीय निकायों अथवा राज्यों द्वारा इसकी शुरुआत करने के बाद मंत्रालय 30 दिन के अन्दर इन दावों का सत्यापन कराता है। यह सत्यापन आवासीय, सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण और उपलब्धता तथा तीसरे पक्ष द्वारा निष्पक्ष जाँच के आधार पर किया जाता है।
नगर/शहर के प्रत्येक सम्भाग के लिये न्यूनतम पाँच स्थानों का निरीक्षण किया जाएगा, जिनमें झुग्गी, स्कूल, बाजार, धार्मिक स्थान, आवासीय क्षेत्र और बस स्टैंड/रेलवे स्टेशन शामिल हैं। पाँच लाख से कम आबादी वाले शहर के लिये न्यूनतम 9 स्थानों का और पाँच लाख से अधिक आबादी वाले शहर के लिये 17 स्थानों का निरीक्षण होगा।
यदि एक दिन में किसी भी समय एक भी व्यक्ति खुले में शौच नहीं जाता है तो उस वार्ड या शहर को ओडीएफ के रूप में अधिसूचित किया जा सकता है।
हमारे देश के गाँवों और शहरी क्षेत्र में सरकारी शौचालयों की दशा भी खराब है। देश के कई राज्यों में सरकारी प्राइमरी और जूनियर हाईस्कूलों में शौचालयों का निर्माण तो हुआ है। लेकिन यह केवल दिखावटी है। अधिकांश सार्वजनिक शौचालयों से जरूरी सामान गायब हो जाता है। जब तक हम इसे अपने आदत में नहीं लाएँगे। तब तक शौचालयों की छत पर लगी पानी की टंकी, पाइप कनेक्शन सब कुछ ऐसे गायब होते रहेंगे।
अधिकांश स्कूलों के शौचालयों में ताले लटकते रहते हैं। कभी-कभार गुरुजी इसका उपयोग कर लेते हैं। स्वच्छता अभियान के तमाम प्रयासों के बाद भी देश की अधिकांश आबादी खुले में शौच जाने को मजबूर है। अधिकांश सार्वजनिक स्थलों में यह प्रयोग लायक भी नहीं रहता है। वहीं दूसरी ओर आर्थिक विपन्नता भी शौचालय निर्माण की राह में रोड़ा बनकर उभरा है।
राम मनोहर लोहिया गाँवों को छोड़ दिया जाय तो फिर सामान्य गाँवों में सरकार की ओर से शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है। अम्बेडकर गाँवों में जो शौचालय बने थे वे अब प्रयोग के लायक नहीं हैं। क्योंकि इनके निर्माण में कोरम पूर्ति ही की गई थी।