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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

Submitted by Editorial Team on Fri, 09/15/2017 - 13:33
Source:
शौचालय
खुले में शौच जाने को मजबूर छात्र-छात्राएँ
विद्यालय के शौचालय के समक्ष खड़ी स्कूली छात्राएँपिछले दिनों उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जनपद की ऐसी खबर आई कि सम्पूर्ण जनपद शौचालय युक्त हो गया है। यह खबर कितनी सच है यह तो जमीनी हकीकत जानने से पता चलेगा। यहाँ हम उत्तरकाशी जनपद के अन्तर्गत राजकीय इण्टरमीडिएट काॅलेज गेंवला ब्रह्मखाल की ऐसी ही खबर का जिक्र करने जा रहे हैं, जहाँ 422 छात्र-छात्राएँ आज भी खुले में शौच जाने के लिये मजबूर हैं। 422 छात्रों में लगभग 200 छात्राएँ हैं। जबकि काॅलेज परिसर में चार शौचालय काॅलेज भवन के साथ बने थे। मगर ये शौचालय कभी उपयोग में नहीं लाये गए।

उल्लेखनीय हो कि एक तरफ स्वच्छ भारत अभियान की दुहाई दी जा रही है और दूसरी तरफ 422 छात्र-छात्राएँ आज भी खुले में शौच के आदी हो गए हैं। उत्तरकाशी जनपद मुख्यालय से महज 40 किमी के फासले पर राजकीय इण्टरमीडिएट काॅलेज गेंवला ब्रह्मखाल है। यह विद्यालय दूरस्थ की श्रेणी में भी नहीं आता है। यह विद्यालय तो विश्व प्रसिद्ध यमनोत्री, गंगोत्री धार्मिक स्थल को जाने वाली मुख्य मार्ग पर स्थित है।
Submitted by Hindi on Tue, 09/12/2017 - 16:15
Source:
समाज, प्रकृति और विज्ञान (समाज का प्रकृति एजेण्डा), माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय, भोपाल, 2017
samaj, prakriti aur vigyan book cover

गांधी जी ने पश्चिम की औद्योगिक सभ्यता को राक्षसी सभ्यता कहा है। असंयमी उपभोक्तावाद और लालची बाजारवाद ने सृष्टि विनाश की नींव रखी। भारत का परम्परागत संयमी जीवन-दर्शन ही त्रासद भविष्य से बचाव का मार्ग सुझाता है। समाज में वैज्ञानिक चेतना का प्रसार जरूरी है। इसके सघन प्रयास जरूरी हैं। परम्परागत ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का समन्वय जरूरी है, सम्यक सन्तुलन जरूरी है। इसके लिये हमें लोक संस्कृति, लोक संस्कार और लोक परम्पराओं के पास लौटना होगा।

भारतीय ज्ञान परम्परा में श्रुति और स्मृति का प्रचलन रहा है। प्रकृति के सान्निध्य में सृष्टि के समस्त जैव आयामों के साथ सामंजस्य और सह-अस्तित्व के बोध को जाग्रत करते हुए जीवन की पाठशाला अरण्य के गुरुकुल में आरम्भ होती थी। इसी परिवेश और पर्यावरण में 5000 वर्ष पहले विश्व के आदिग्रंथ वेद की रचना हुई। वेद हों या अन्यान्य वाङ्मय सनातन ज्ञान के आदि स्रोत ऐसी ऋचाओं, श्लोकों, आख्यानों से भरे पड़े हैं जिनमें प्रकृति की महिमा और महत्ता का गुणगान है। ये भारतीय संस्कृति की कालजयी धरोहर हैं। इनका सम्बन्ध मानव जीवन की सार्थकता से है। जीवन को उत्कृष्ट बनाने की दिशा में उत्तरोत्तर आगे बढ़ने से है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारे समाज के व्यवहार में आया यह ज्ञान लोक-विज्ञान है। कालान्तर में लोक संस्कृतियों ने लोक-विज्ञान को अपने इन्द्रधनुषी रंगों में रंगा। उसकी छटा दैनन्दिन रीति-रिवाज, संस्कार, मान्यताओं, परम्पराओं में लोक संस्कृति के माध्यम से विस्तार पाने लगी।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

पास में जंगल है, वरना शौच कहाँ जाते

Submitted by Editorial Team on Fri, 09/15/2017 - 13:33
Author
प्रेम पंचोली
शौचालय

खुले में शौच जाने को मजबूर छात्र-छात्राएँ


विद्यालय के शौचालय के समक्ष खड़ी स्कूली छात्राएँविद्यालय के शौचालय के समक्ष खड़ी स्कूली छात्राएँपिछले दिनों उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जनपद की ऐसी खबर आई कि सम्पूर्ण जनपद शौचालय युक्त हो गया है। यह खबर कितनी सच है यह तो जमीनी हकीकत जानने से पता चलेगा। यहाँ हम उत्तरकाशी जनपद के अन्तर्गत राजकीय इण्टरमीडिएट काॅलेज गेंवला ब्रह्मखाल की ऐसी ही खबर का जिक्र करने जा रहे हैं, जहाँ 422 छात्र-छात्राएँ आज भी खुले में शौच जाने के लिये मजबूर हैं। 422 छात्रों में लगभग 200 छात्राएँ हैं। जबकि काॅलेज परिसर में चार शौचालय काॅलेज भवन के साथ बने थे। मगर ये शौचालय कभी उपयोग में नहीं लाये गए।

उल्लेखनीय हो कि एक तरफ स्वच्छ भारत अभियान की दुहाई दी जा रही है और दूसरी तरफ 422 छात्र-छात्राएँ आज भी खुले में शौच के आदी हो गए हैं। उत्तरकाशी जनपद मुख्यालय से महज 40 किमी के फासले पर राजकीय इण्टरमीडिएट काॅलेज गेंवला ब्रह्मखाल है। यह विद्यालय दूरस्थ की श्रेणी में भी नहीं आता है। यह विद्यालय तो विश्व प्रसिद्ध यमनोत्री, गंगोत्री धार्मिक स्थल को जाने वाली मुख्य मार्ग पर स्थित है।

आओ, बनाएँ पानीदार समाज

Submitted by Hindi on Tue, 09/12/2017 - 16:15
Author
विजयदत्त श्रीधर
Source
समाज, प्रकृति और विज्ञान (समाज का प्रकृति एजेण्डा), माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय, भोपाल, 2017
samaj, prakriti aur vigyan book cover

गांधी जी ने पश्चिम की औद्योगिक सभ्यता को राक्षसी सभ्यता कहा है। असंयमी उपभोक्तावाद और लालची बाजारवाद ने सृष्टि विनाश की नींव रखी। भारत का परम्परागत संयमी जीवन-दर्शन ही त्रासद भविष्य से बचाव का मार्ग सुझाता है। समाज में वैज्ञानिक चेतना का प्रसार जरूरी है। इसके सघन प्रयास जरूरी हैं। परम्परागत ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का समन्वय जरूरी है, सम्यक सन्तुलन जरूरी है। इसके लिये हमें लोक संस्कृति, लोक संस्कार और लोक परम्पराओं के पास लौटना होगा।

भारतीय ज्ञान परम्परा में श्रुति और स्मृति का प्रचलन रहा है। प्रकृति के सान्निध्य में सृष्टि के समस्त जैव आयामों के साथ सामंजस्य और सह-अस्तित्व के बोध को जाग्रत करते हुए जीवन की पाठशाला अरण्य के गुरुकुल में आरम्भ होती थी। इसी परिवेश और पर्यावरण में 5000 वर्ष पहले विश्व के आदिग्रंथ वेद की रचना हुई। वेद हों या अन्यान्य वाङ्मय सनातन ज्ञान के आदि स्रोत ऐसी ऋचाओं, श्लोकों, आख्यानों से भरे पड़े हैं जिनमें प्रकृति की महिमा और महत्ता का गुणगान है। ये भारतीय संस्कृति की कालजयी धरोहर हैं। इनका सम्बन्ध मानव जीवन की सार्थकता से है। जीवन को उत्कृष्ट बनाने की दिशा में उत्तरोत्तर आगे बढ़ने से है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारे समाज के व्यवहार में आया यह ज्ञान लोक-विज्ञान है। कालान्तर में लोक संस्कृतियों ने लोक-विज्ञान को अपने इन्द्रधनुषी रंगों में रंगा। उसकी छटा दैनन्दिन रीति-रिवाज, संस्कार, मान्यताओं, परम्पराओं में लोक संस्कृति के माध्यम से विस्तार पाने लगी।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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