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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

Submitted by Editorial Team on Wed, 03/16/2022 - 15:30
Source:
डॉ. विनोद कुमार शर्मा, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, नई दिल्ली, 2020
बाढ़ प्रभावित क्षेत्र, साभार - यान्गशु मोहक, orfonline.org
नदी का असामान्य स्तर/उच्च स्तर जिस पर नदी अपने बैंकों (मुहानों) को ओवरफ्लो करती है और आस-पास के क्षेत्रों को जलमग्न करती हो ‘‘बाढ़’’ के रूप में परिभाषित किया जाता है। जल का अप्रत्याशित स्तर जिसमें नदी या बंधों के किनारों से ऊपर पानी निकलकर बड़े क्षेत्र को डूबा कर और अपार जन-धन की स्थिति को ही बाढ़ की विभिषिका/आपदा कहा जाता है। बाढ़ के कारण नदी के आस-पास के समतल क्षेत्र जलमग्न हो जाते हैं (चित्र- 8.1) और खेती, पशु-धन और मकानों आदि को प्रभावित करते हैं जिससे जान-माल की क्षति होती है। वास्तव में क्षति का कारण जल स्तर में उत्तरोत्तर वृद्धि, नदी के मैदानों की भू आकृति, नदी बहाव के पूर्व पथ में शहरीकरण अथवा कृषि भूमि और आवासों का निर्माण होने की स्थिति ही बाढ़ आपदा का कारण होता है।
Submitted by Editorial Team on Wed, 03/16/2022 - 14:15
Source:
होली पर विशेष
हमारे पूर्वज हमेशा इस बात का ध्यान रखते थे कि कोई भी परम्परा पर्यावरण के लिये संकट का पर्याय न बन जाये। इसलिये होली जलाने के लिये भी लकड़ी की जगह गाय के गोबर से बने कंडों का उपयोग ही करते थे। कंडों के जलने से प्रदूषण नहीं फैलता है। पहले गाँवों में एक कस्बों में अधिकतम दो और शहरों में चार-पाँच स्थानों पर ही होलिका दहन हुआ करता था लेकिन अब बढ़ते चलन और लोगों के आपसी प्रेम कम होते जाने से शहरों में पाँच से बीस हजार स्थानों, कस्बों में बीस से पचास स्थानों और गाँवों तक में आठ से पन्द्रह तक स्थानों पर होलिका दहन किया जाता है। अकेले इन्दौर शहर में 20 हजार से ज्यादा होलिका स्थान हैं।
Submitted by admin on Tue, 03/15/2022 - 16:18
Source:
ईको फ्रेंडली होली
एक अध्ययन के अनुसार होली के रंगों को बनाने के लिए जिन जहरीले रसायनों का प्रयोग किया जाता है उनका स्वास्थ्य पर बहुत विपरीत प्रभाव पड़ता है। जैसे काला रंग बनाने के लिए लेड ऑक्साइड का प्रयोग किया जाता है जिससे किडनी फेल होने का खतरा होता है। इसी तरह हरा रंग कॉपर सल्फेट से बनता है इसका कुप्रभाव सीधा आँखों पर पड़ता है, जिसके कारण आँखों में एलर्जी, सूजन तथा व्यक्ति अस्थायी रूप से अंधा भी हो सकता है। लाल रंग मरक्यूरी सल्फाइट से बनता है, यह रसायन अत्यंत जहरीला होता है और इससे त्वचा का कैंसर हो सकता है।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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बाढ़ आपदा क्या है, बाढ़ आने के कारण और उपाय ( What is a flood disaster, causes of floods and measures to prevent floods)

Submitted by Editorial Team on Wed, 03/16/2022 - 15:30
Source
डॉ. विनोद कुमार शर्मा, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, नई दिल्ली, 2020
बाढ़ प्रभावित क्षेत्र, साभार - यान्गशु मोहक, orfonline.org
नदी का असामान्य स्तर/उच्च स्तर जिस पर नदी अपने बैंकों (मुहानों) को ओवरफ्लो करती है और आस-पास के क्षेत्रों को जलमग्न करती हो ‘‘बाढ़’’ के रूप में परिभाषित किया जाता है। जल का अप्रत्याशित स्तर जिसमें नदी या बंधों के किनारों से ऊपर पानी निकलकर बड़े क्षेत्र को डूबा कर और अपार जन-धन की स्थिति को ही बाढ़ की विभिषिका/आपदा कहा जाता है। बाढ़ के कारण नदी के आस-पास के समतल क्षेत्र जलमग्न हो जाते हैं (चित्र- 8.1) और खेती, पशु-धन और मकानों आदि को प्रभावित करते हैं जिससे जान-माल की क्षति होती है। वास्तव में क्षति का कारण जल स्तर में उत्तरोत्तर वृद्धि, नदी के मैदानों की भू आकृति, नदी बहाव के पूर्व पथ में शहरीकरण अथवा कृषि भूमि और आवासों का निर्माण होने की स्थिति ही बाढ़ आपदा का कारण होता है।

होली पर विशेष: कैसे होली पर बचाएँ पानी और जंगल

Submitted by Editorial Team on Wed, 03/16/2022 - 14:15
Author
मनीष वैद्य
होली पर विशेष
हमारे पूर्वज हमेशा इस बात का ध्यान रखते थे कि कोई भी परम्परा पर्यावरण के लिये संकट का पर्याय न बन जाये। इसलिये होली जलाने के लिये भी लकड़ी की जगह गाय के गोबर से बने कंडों का उपयोग ही करते थे। कंडों के जलने से प्रदूषण नहीं फैलता है। पहले गाँवों में एक कस्बों में अधिकतम दो और शहरों में चार-पाँच स्थानों पर ही होलिका दहन हुआ करता था लेकिन अब बढ़ते चलन और लोगों के आपसी प्रेम कम होते जाने से शहरों में पाँच से बीस हजार स्थानों, कस्बों में बीस से पचास स्थानों और गाँवों तक में आठ से पन्द्रह तक स्थानों पर होलिका दहन किया जाता है। अकेले इन्दौर शहर में 20 हजार से ज्यादा होलिका स्थान हैं।

ऐसे घर बैठे बनाएं रंग,खेले ईको फ्रेंडली होली

Submitted by admin on Tue, 03/15/2022 - 16:18
Author
प्रतिभा वाजपेयी
ईको फ्रेंडली होली
एक अध्ययन के अनुसार होली के रंगों को बनाने के लिए जिन जहरीले रसायनों का प्रयोग किया जाता है उनका स्वास्थ्य पर बहुत विपरीत प्रभाव पड़ता है। जैसे काला रंग बनाने के लिए लेड ऑक्साइड का प्रयोग किया जाता है जिससे किडनी फेल होने का खतरा होता है। इसी तरह हरा रंग कॉपर सल्फेट से बनता है इसका कुप्रभाव सीधा आँखों पर पड़ता है, जिसके कारण आँखों में एलर्जी, सूजन तथा व्यक्ति अस्थायी रूप से अंधा भी हो सकता है। लाल रंग मरक्यूरी सल्फाइट से बनता है, यह रसायन अत्यंत जहरीला होता है और इससे त्वचा का कैंसर हो सकता है।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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