तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

तीन सौ साल से भी पुराने शहर कोलकाता के पूर्वी क्षेत्र में विशाल आर्द्रभूमि है। इसे ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स (पूर्व कोलकाता आर्द्रभूमि) कहा जाता है। इस आर्द्रभूमि के पीछे गगनचुम्बी ईमारतों की शृंखला देखी जा सकती है।
इस वेटलैंड्स की खासियत यह है कि इसमें शहर से निकलने वाले गन्दे पानी का परिशोधन प्राकृतिक तरीके से होता है लेकिन इन दिनों यह आर्द्रभूमि संकट में है। पता चला है कि इस जलमय भूखण्ड को बचाए रखने के लिये जितनी मात्रा में गन्दा पानी डाला जाना चाहिए उतना नहीं डाला जा रहा है।
मैंने उनका बैंक बैलेंस नहीं देखा। न मैंने उनकी बहस सुनी है और न अदालती मामलों में जीत-हार की सूची देखी है। मैंने सिर्फ उनकी सादगी और पर्यावरण के प्रति समर्पण देखा है। मैंने उन्हें कई सभाओं में आकर अक्सर पीछे की कुर्सियों में बैठते हुए देखा है।
पैंट से बाहर लटकती सादी कमीज, हल्की सफेद दाढ़ी, चेहरे पर शान्ति, बिन बिजली बैठकर बात करने में न कोई इनकार और न चेहरे पर खीझ। यूँ वह मितभाषी हैं, लेकिन पर्यावरण पर बात कीजिए, तो उनके पास शब्द-ही-शब्द हैं; चिन्ताएँ हैं; समाधान हैं। 69 की उम्र में भी पर्यावरण को बचाने के लिये कुछ कर गुजरने की बेचैनी है और जीत का भरोसा है। वह प्रतीक हैं कि कोई एक व्यक्ति भी चाहे, तो अपने आस-पास की दुनिया में बेहतरी पैदा कर सकता है।
तीन सौ साल से भी पुराने शहर कोलकाता के पूर्वी क्षेत्र में विशाल आर्द्रभूमि है। इसे ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स (पूर्व कोलकाता आर्द्रभूमि) कहा जाता है। इस आर्द्रभूमि के पीछे गगनचुम्बी ईमारतों की शृंखला देखी जा सकती है।
इस वेटलैंड्स की खासियत यह है कि इसमें शहर से निकलने वाले गन्दे पानी का परिशोधन प्राकृतिक तरीके से होता है लेकिन इन दिनों यह आर्द्रभूमि संकट में है। पता चला है कि इस जलमय भूखण्ड को बचाए रखने के लिये जितनी मात्रा में गन्दा पानी डाला जाना चाहिए उतना नहीं डाला जा रहा है।
मैंने उनका बैंक बैलेंस नहीं देखा। न मैंने उनकी बहस सुनी है और न अदालती मामलों में जीत-हार की सूची देखी है। मैंने सिर्फ उनकी सादगी और पर्यावरण के प्रति समर्पण देखा है। मैंने उन्हें कई सभाओं में आकर अक्सर पीछे की कुर्सियों में बैठते हुए देखा है।
पैंट से बाहर लटकती सादी कमीज, हल्की सफेद दाढ़ी, चेहरे पर शान्ति, बिन बिजली बैठकर बात करने में न कोई इनकार और न चेहरे पर खीझ। यूँ वह मितभाषी हैं, लेकिन पर्यावरण पर बात कीजिए, तो उनके पास शब्द-ही-शब्द हैं; चिन्ताएँ हैं; समाधान हैं। 69 की उम्र में भी पर्यावरण को बचाने के लिये कुछ कर गुजरने की बेचैनी है और जीत का भरोसा है। वह प्रतीक हैं कि कोई एक व्यक्ति भी चाहे, तो अपने आस-पास की दुनिया में बेहतरी पैदा कर सकता है।
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