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महाराष्ट्र में पानी के लिये हाहाकार मचा हुआ है। लातूर और जलगाँव में पानी के लिये लोग कानून-व्यवस्था अपने हाथ में ले रहे हैं। हालात काबू में रखने के लिये प्रशासन को धारा 144 लगानी पड़ रही है। लेकिन बुरहानपुर के लोगों ने पानी की समस्या को सावधानी और सतर्कता के साथ सुलझाने की कोशिश की है। सोच और संकल्प यह है कि न तो पानी की रेलगाड़ी बुलाने की नौबत आये और न ही पानी की छीना-झपटी रोकने के लिये पुलिस को धारा 144 लगानी पड़े। गाँव के लोग पानी के लिये लड़ नहीं रहे, पानी बचाने का प्रयास कर रहे हैं। किसान को याद हो चला है कि वे पानी बना तो नहीं सकते, हाँ! पानी को बचा जरूर सकते हैं।
जसौंदी की सरपंच शोभाबाई रमेश प्रचंड गर्मी और पानी की किल्लत से दो-दो हांथ करने के लिये तैयार हैं। शोभाबाई कहती हैं- हमारी क्षेत्र की जनप्रतिनिधि अर्चना दीदी हमारे साथ हैं, हम पानी की किल्लत और सूखे से पार पा लेंगे।
राष्ट्रीय हरित पंचाट के इतिहास में चोरी और सीनाजोरी की ऐसी दबंग मिसाल शायद ही कोई और हो। शासन, प्रशासन से लेकर निजी कम्पनी तक कई ऐसे हैं, जिन्होंने हरित पंचाट के आदेशों को मानने में हीला-हवाली दिखाई है। पंचाट के कई आदेश हैं, जिनकी अनदेखी आज भी जारी है; किन्तु इससे पहले शायद ही कोई ऐसा आरोपी होगा, जिसने आदेश की अवमानना करने पर दंडित करने की हरित पंचाट की शक्ति को चुनौती देने की हिमाकत की हो। विश्व सांस्कृतिक उत्सव (11-13 मार्च, 2016 ) के आयोजक ने की है।
हालांकि हरित पंचाट ने यह स्पष्ट किया कि आदेश की अवमानना होने पर दंडित करने के हरित पंचाट को भी वही अधिकार प्राप्त हैं, जैसे किसी दूसरे सिविल कोर्ट को, किन्तु चुनौती देकर आयोजक के वकील ने यह सन्देश देने की कोशिश तो की ही कि वह आदेश की अवमानना करे भी तो हरित पंचाट उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
राजस्थान के ब्लाक आमेर में गाँव नांगल सुसावतान पंचायत की युवा सरपंच चांदनी तेज-तेज कदमों से गाँव के हर घर में घुसती और वहाँ बने शौचालय का दरवाजा खोलकर हमें दिखाती। गाँव के कच्चे-पक्के सभी घरों में शौचालय बने हुए थे। चांदनी पिछले दो महीनों से इसी काम में लगी है।
22 साल की चांदनी बीएड परीक्षा की तैयारी कर रही है। मई माह में ही उसकी परीक्षाएँ भी हैं। लेकिन उसे गाँवों के लोगों को खुले में शौच से मुक्त कराने की चुनौती की अधिक चिन्ता है। वह बताती है कि काम सरल नहीं था। बहुत से लोगों के घर पहले से शौचालय बने थे लेकिन उनके नाम सूची में थे। इन नामों को सूची से निकालना फिर नए नामों को शामिल करना, परिवारों को शौचालय निर्माण के लिये सरकार द्वारा 15 हजार रुपए का खर्च दिये जाने की जानकारी देना, फिर राशि को उनके अकाउंट में डलवाना। ये सभी प्रक्रिया पूरी करने में काफी भाग दौड़ करनी पड़ी।
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बुरहानपुर में पानी बचाने, पानी कमाने का जतन कर रहे लोग
महाराष्ट्र में पानी के लिये हाहाकार मचा हुआ है। लातूर और जलगाँव में पानी के लिये लोग कानून-व्यवस्था अपने हाथ में ले रहे हैं। हालात काबू में रखने के लिये प्रशासन को धारा 144 लगानी पड़ रही है। लेकिन बुरहानपुर के लोगों ने पानी की समस्या को सावधानी और सतर्कता के साथ सुलझाने की कोशिश की है। सोच और संकल्प यह है कि न तो पानी की रेलगाड़ी बुलाने की नौबत आये और न ही पानी की छीना-झपटी रोकने के लिये पुलिस को धारा 144 लगानी पड़े। गाँव के लोग पानी के लिये लड़ नहीं रहे, पानी बचाने का प्रयास कर रहे हैं। किसान को याद हो चला है कि वे पानी बना तो नहीं सकते, हाँ! पानी को बचा जरूर सकते हैं।
जसौंदी की सरपंच शोभाबाई रमेश प्रचंड गर्मी और पानी की किल्लत से दो-दो हांथ करने के लिये तैयार हैं। शोभाबाई कहती हैं- हमारी क्षेत्र की जनप्रतिनिधि अर्चना दीदी हमारे साथ हैं, हम पानी की किल्लत और सूखे से पार पा लेंगे।
श्री श्री-यमुना विवाद : चोरी और सीनाजोरी
राष्ट्रीय हरित पंचाट के इतिहास में चोरी और सीनाजोरी की ऐसी दबंग मिसाल शायद ही कोई और हो। शासन, प्रशासन से लेकर निजी कम्पनी तक कई ऐसे हैं, जिन्होंने हरित पंचाट के आदेशों को मानने में हीला-हवाली दिखाई है। पंचाट के कई आदेश हैं, जिनकी अनदेखी आज भी जारी है; किन्तु इससे पहले शायद ही कोई ऐसा आरोपी होगा, जिसने आदेश की अवमानना करने पर दंडित करने की हरित पंचाट की शक्ति को चुनौती देने की हिमाकत की हो। विश्व सांस्कृतिक उत्सव (11-13 मार्च, 2016 ) के आयोजक ने की है।
हालांकि हरित पंचाट ने यह स्पष्ट किया कि आदेश की अवमानना होने पर दंडित करने के हरित पंचाट को भी वही अधिकार प्राप्त हैं, जैसे किसी दूसरे सिविल कोर्ट को, किन्तु चुनौती देकर आयोजक के वकील ने यह सन्देश देने की कोशिश तो की ही कि वह आदेश की अवमानना करे भी तो हरित पंचाट उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
पंचायतों की महिलाएँ और स्वच्छता अभियान
स्वच्छता अभियान की ‘चैम्पियन’ पंचायतों की महिलाएँ
राजस्थान के ब्लाक आमेर में गाँव नांगल सुसावतान पंचायत की युवा सरपंच चांदनी तेज-तेज कदमों से गाँव के हर घर में घुसती और वहाँ बने शौचालय का दरवाजा खोलकर हमें दिखाती। गाँव के कच्चे-पक्के सभी घरों में शौचालय बने हुए थे। चांदनी पिछले दो महीनों से इसी काम में लगी है।
22 साल की चांदनी बीएड परीक्षा की तैयारी कर रही है। मई माह में ही उसकी परीक्षाएँ भी हैं। लेकिन उसे गाँवों के लोगों को खुले में शौच से मुक्त कराने की चुनौती की अधिक चिन्ता है। वह बताती है कि काम सरल नहीं था। बहुत से लोगों के घर पहले से शौचालय बने थे लेकिन उनके नाम सूची में थे। इन नामों को सूची से निकालना फिर नए नामों को शामिल करना, परिवारों को शौचालय निर्माण के लिये सरकार द्वारा 15 हजार रुपए का खर्च दिये जाने की जानकारी देना, फिर राशि को उनके अकाउंट में डलवाना। ये सभी प्रक्रिया पूरी करने में काफी भाग दौड़ करनी पड़ी।
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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