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ताज्जुब है कि प्रेम और शान्ति के सन्देश के नाम पर श्री श्री रविशंकर और उनके अनुयायी उस धारा को ही भूलने को तैयार हैं, जो शान्ति की निर्मल यमुनोत्री से निकलकर, प्रेम का प्रतीक बने ताजमहल को आज भी सींचती है! बांकेबिहारी को पूजने वाले भी भला कैसे भूल सकते हैं कि कालियादेह पर नन्हें कान्हा का मंथन-नृतन कृष्ण की कृष्णा को विषमुक्त कराने की ही क्रिया थी?
आज है कोई जो कान्हा बन कालियादेह को सबक सिखाए? पुरानी दिल्ली वालों को भी भूलने का हक नहीं कि तुगलकाबाद के किले से लाकर कश्मीरी गेट से अजमेरी गेट के बीच देल्ही को बसाने वाली यमुना ही थी। जिस लालकिले की प्राचीर से उगते हुए आजादी का सूरज कभी सारी दुनिया ने देखा था, उसकी पिछली दीवार से जिसने इश्क किया, वे लहरें भी इसी यमुना की थी। भला कोई भारतीय यह कैसे भूल सकता है!
स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद - सातवाँ कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है:
आठ सितम्बर को चातुर्मास समाप्त हो गया। मेरा स्वास्थ्य अच्छा था। मैं जगन्नाथपुरी गया, मालूम नहीं क्यों? अकेला गया; पुरुषोत्तम एक्सप्रेस से। नक्सल के कारण वह टाटानगर में 10 घंटे खड़ी रही। पुरी में स्वामी निश्चलानन्द जी से मिला। उनसे बातचीत कर लगा कि वह भारतीय संस्कृति के काम में लगे हैं, लेकिन गंगाजी में उनकी पकड़ नहीं है। फिर मैं स्वरूपानन्द जी के पास गया।
एक हायर सेकेण्डरी स्कूल, जो शंकराचार्य जी ने अपनी माँ की याद में स्थापित किया था, वहाँ 10 हजार की भीड़ थी। उन्होंने वहीं मुझे सम्मानित भी किया और बोलने का मौका भी दिया। स्वरूपानन्द जी ने मंच से कहा - “पहले हमने इनका अनशन सहजता से लिया, लेकिन इस बार जल छोड़ दिया, तो हमें चिन्ता हुई और मैंने प्रधानमंत्री जी से कहा कि इनकी रक्षा होनी चाहिए।’’
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जमुना जी को दरद न जाने कोय
ताज्जुब है कि प्रेम और शान्ति के सन्देश के नाम पर श्री श्री रविशंकर और उनके अनुयायी उस धारा को ही भूलने को तैयार हैं, जो शान्ति की निर्मल यमुनोत्री से निकलकर, प्रेम का प्रतीक बने ताजमहल को आज भी सींचती है! बांकेबिहारी को पूजने वाले भी भला कैसे भूल सकते हैं कि कालियादेह पर नन्हें कान्हा का मंथन-नृतन कृष्ण की कृष्णा को विषमुक्त कराने की ही क्रिया थी?
आज है कोई जो कान्हा बन कालियादेह को सबक सिखाए? पुरानी दिल्ली वालों को भी भूलने का हक नहीं कि तुगलकाबाद के किले से लाकर कश्मीरी गेट से अजमेरी गेट के बीच देल्ही को बसाने वाली यमुना ही थी। जिस लालकिले की प्राचीर से उगते हुए आजादी का सूरज कभी सारी दुनिया ने देखा था, उसकी पिछली दीवार से जिसने इश्क किया, वे लहरें भी इसी यमुना की थी। भला कोई भारतीय यह कैसे भूल सकता है!
अलकनन्दा के लिये नया चोला, नया नाम, नई जिम्मेदारी
स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद - सातवाँ कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है:
आठ सितम्बर को चातुर्मास समाप्त हो गया। मेरा स्वास्थ्य अच्छा था। मैं जगन्नाथपुरी गया, मालूम नहीं क्यों? अकेला गया; पुरुषोत्तम एक्सप्रेस से। नक्सल के कारण वह टाटानगर में 10 घंटे खड़ी रही। पुरी में स्वामी निश्चलानन्द जी से मिला। उनसे बातचीत कर लगा कि वह भारतीय संस्कृति के काम में लगे हैं, लेकिन गंगाजी में उनकी पकड़ नहीं है। फिर मैं स्वरूपानन्द जी के पास गया।
एक हायर सेकेण्डरी स्कूल, जो शंकराचार्य जी ने अपनी माँ की याद में स्थापित किया था, वहाँ 10 हजार की भीड़ थी। उन्होंने वहीं मुझे सम्मानित भी किया और बोलने का मौका भी दिया। स्वरूपानन्द जी ने मंच से कहा - “पहले हमने इनका अनशन सहजता से लिया, लेकिन इस बार जल छोड़ दिया, तो हमें चिन्ता हुई और मैंने प्रधानमंत्री जी से कहा कि इनकी रक्षा होनी चाहिए।’’
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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