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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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Submitted by Shivendra on Sat, 01/15/2022 - 17:41
Source:
चरखा फीचर
समस्या जल नहीं, जल विभाग है
गांव में पानी की समस्या का सबसे नकारात्मक प्रभाव महिलाओं और किशोरियों पर पड़ा है. इससे जहां महिलाओं के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ रहा है वहीं किशोरियों की शिक्षा भी प्रभावित हो रही है. किशोरियों को अपनी पढ़ाई छोड़कर पानी के लिए दूर दूर जाना पड़ रहा है. लड़कियां सर पर पानी ढ़ोकर ला रही हैं. दूर दराज के लोग घोड़ों के द्वारा पानी अपने घर पहुंचा रहे हैं और कुछ लोग ऑटो में भर कर पीने के पानी की व्यवस्था कर रहे हैं. जब यहां के लोग जल विभाग के जेईई से मिले और बात की तब वह स्वयं गांव में पहुंचे और सारी स्थिति को देखा फिर उन्होंने जो लाइनमैन काम नहीं कर रहा था उसकी जगह पर दूसरा लाइनमैन भेजा, हालांकि वह जल विभाग में स्थाई कर्मचारी नहीं है, लेकिन इसके बावजूद उसने लोगों तक पानी पहुंचाने की पूरी कोशिश की, जिसका स्थानीय निवासियों को काफी लाभ भी हुआ. 
Submitted by Shivendra on Fri, 01/14/2022 - 12:26
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पानी पत्रक
चंडीगढ़-शिमला राजमार्ग के चौड़ा होने से खत्म हुआ एक झरना
हिमाचल प्रदेश की एनवायरनमेंट रिसर्च एंड एक्शन कलेक्टिव “हिमधारा” की सह-संस्थापक, मानशी आशेर कहती हैं “पर्वतीय क्षेत्रों में झरने, पानी के प्रमुख स्रोतों में से एक हैं। लोग, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, पीने और सिंचाई के लिए इन पारंपरिक जल स्रोतों पर निर्भर हैं। लेकिन अब, 70 फीसदी से अधिक झरने खत्म चुके हैं और अन्य मौसमी हो गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप हिमाचल के गांवों में पानी की भारी कमी हो गई है।"नीति आयोग के अनुसार, इस बात के प्रमाण बढ़ रहे हैं कि पूरे भारतीय हिमालयी क्षेत्र में झरने सूख रहे हैं या उनका निर्ववन कम हो रहा है। ऐसा अनुमान है कि भारतीय हिमालय के आधे झरने सूख चुके हैं। जल संसाधनों की एक निर्देशिका का दावा है कि हिमाचल के गांवों में लगभग 0,542 पारंपरिक जल स्रोत हैं। लेकिन हिमाचल प्रदेश विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण परिषद ने पाया कि केवल 30.4 प्रतिशत जल स्रोत ठीक से रिचार्ज कर रहे हैं, जबकि 69.59 प्रतिशत स्रोत “निकट भविष्य में सूखने वाले हैं।"
Submitted by Shivendra on Thu, 01/13/2022 - 14:24
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नदियों को जिंदा रखने के लिए वन जरूरी संपदा
 जंगल में उगी वनस्पतियों, पेड़ पौधे अपनी जड़ों के माध्यम से भु गर्भ में वर्षा जल का संग्रह करते, घने जंगल बरसात की बूंदों की प्रहारक क्षमता को कम करते हैं। वृक्षों के पत्तों से बरसा पानी  मिट्टी व सुखे पत्तों द्वारा नमी बनाए रखने के साथ पानी अधिक समय धरती के संपर्क में बना रहता, अधिक मात्रा में धरती में रिश्ता,भु गर्भ में स्थित जल टेंको को भरने में मददगार बनते, अधिकांश वन भूमि की परतों की मोटाई , सरंध्रता, पानी ग्रहण करने की क्षमता अच्छी होने से भूजल का संचय अधिक होता है। राजस्थान राज्य के अलवर जिले में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण (जल जंगल) ग्रामीण आजीविका को लेकर काम कर रहे स्वैच्छिक संगठन एल पी एस विकास संस्थान द्वारा दस हेक्टेयर में तैयार किये वन क्षेत्र में बनी आर्द्रता, मिट्टी में पानी ग्रहण करने की क्षमता को  देख कर आप अच्छे से समझ सकते हैं

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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समस्या जल नहीं, जल विभाग है

Submitted by Shivendra on Sat, 01/15/2022 - 17:41
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चरखा फीचर
समस्या जल नहीं, जल विभाग है
गांव में पानी की समस्या का सबसे नकारात्मक प्रभाव महिलाओं और किशोरियों पर पड़ा है. इससे जहां महिलाओं के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ रहा है वहीं किशोरियों की शिक्षा भी प्रभावित हो रही है. किशोरियों को अपनी पढ़ाई छोड़कर पानी के लिए दूर दूर जाना पड़ रहा है. लड़कियां सर पर पानी ढ़ोकर ला रही हैं. दूर दराज के लोग घोड़ों के द्वारा पानी अपने घर पहुंचा रहे हैं और कुछ लोग ऑटो में भर कर पीने के पानी की व्यवस्था कर रहे हैं. जब यहां के लोग जल विभाग के जेईई से मिले और बात की तब वह स्वयं गांव में पहुंचे और सारी स्थिति को देखा फिर उन्होंने जो लाइनमैन काम नहीं कर रहा था उसकी जगह पर दूसरा लाइनमैन भेजा, हालांकि वह जल विभाग में स्थाई कर्मचारी नहीं है, लेकिन इसके बावजूद उसने लोगों तक पानी पहुंचाने की पूरी कोशिश की, जिसका स्थानीय निवासियों को काफी लाभ भी हुआ. 

पूरे हिमाचल प्रदेश में सूख रहे हैं झरने

Submitted by Shivendra on Fri, 01/14/2022 - 12:26
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पानी पत्रक
चंडीगढ़-शिमला राजमार्ग के चौड़ा होने से खत्म हुआ एक झरना
हिमाचल प्रदेश की एनवायरनमेंट रिसर्च एंड एक्शन कलेक्टिव “हिमधारा” की सह-संस्थापक, मानशी आशेर कहती हैं “पर्वतीय क्षेत्रों में झरने, पानी के प्रमुख स्रोतों में से एक हैं। लोग, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, पीने और सिंचाई के लिए इन पारंपरिक जल स्रोतों पर निर्भर हैं। लेकिन अब, 70 फीसदी से अधिक झरने खत्म चुके हैं और अन्य मौसमी हो गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप हिमाचल के गांवों में पानी की भारी कमी हो गई है।"नीति आयोग के अनुसार, इस बात के प्रमाण बढ़ रहे हैं कि पूरे भारतीय हिमालयी क्षेत्र में झरने सूख रहे हैं या उनका निर्ववन कम हो रहा है। ऐसा अनुमान है कि भारतीय हिमालय के आधे झरने सूख चुके हैं। जल संसाधनों की एक निर्देशिका का दावा है कि हिमाचल के गांवों में लगभग 0,542 पारंपरिक जल स्रोत हैं। लेकिन हिमाचल प्रदेश विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण परिषद ने पाया कि केवल 30.4 प्रतिशत जल स्रोत ठीक से रिचार्ज कर रहे हैं, जबकि 69.59 प्रतिशत स्रोत “निकट भविष्य में सूखने वाले हैं।"

नदियों को जिंदा रखने के लिए वन जरूरी संपदा

Submitted by Shivendra on Thu, 01/13/2022 - 14:24
नदियों  को जिंदा रखने के लिए वन जरूरी संपदा
 जंगल में उगी वनस्पतियों, पेड़ पौधे अपनी जड़ों के माध्यम से भु गर्भ में वर्षा जल का संग्रह करते, घने जंगल बरसात की बूंदों की प्रहारक क्षमता को कम करते हैं। वृक्षों के पत्तों से बरसा पानी  मिट्टी व सुखे पत्तों द्वारा नमी बनाए रखने के साथ पानी अधिक समय धरती के संपर्क में बना रहता, अधिक मात्रा में धरती में रिश्ता,भु गर्भ में स्थित जल टेंको को भरने में मददगार बनते, अधिकांश वन भूमि की परतों की मोटाई , सरंध्रता, पानी ग्रहण करने की क्षमता अच्छी होने से भूजल का संचय अधिक होता है। राजस्थान राज्य के अलवर जिले में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण (जल जंगल) ग्रामीण आजीविका को लेकर काम कर रहे स्वैच्छिक संगठन एल पी एस विकास संस्थान द्वारा दस हेक्टेयर में तैयार किये वन क्षेत्र में बनी आर्द्रता, मिट्टी में पानी ग्रहण करने की क्षमता को  देख कर आप अच्छे से समझ सकते हैं

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
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Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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