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उपलब्ध जल के अपरोधन, या संचयन के लिए निर्मित गड्ढों के जल से भर जाने एवं भू-सतह पर वर्षा की तीव्रता, मृदा की अंतःस्यंदन क्षमता से अधिक होने पर पृथ्वी की सतह पर जल प्रवाह होने लगता है। यह सतही प्रवाह के रूप में अपना रास्ता नदियों, झीलों या समुद्र की ओर करता है जो सतही अपवाह के रूप में जाना जाता है। फिर यह अन्य प्रवाह घटकों के साथ मिलकर संपूर्ण अपवाह बनाता है। अपवाह शब्द का उपयोग साधारणतया जब अकेले होता है तो इसे सतही अपवाह ही कहा जाता है।
कल्पना करें एक ऐसी बाल्टी की जिसके पेंदे में एक छेद हो। इस बाल्टी में रखा है पृथ्वी का संपूर्ण जलः सतही जल, भू-जल और वायुमंडल की आर्द्रता। यदि इसे ज्यों का त्यों छोड़ देंगे तो बाल्टी जल्दी ही खाली हो जाएगी। इस बाल्टी में जलस्तर बनाए रखने हेतु आवश्यक है कि जितनी मात्रा में इसका जल रिस रहा है, उतनी ही मात्रा में वह वापस आए। अनेक प्रक्रियाएं साथ-साथ चलते रहकर पृथ्वी के जल चक्र को गतिशील बनाए रखती हैं। यह सतत चक्र जलीय चक्र कहलाता है।जलीय चक्र
जलीय शास्त्र पृथ्वी के विज्ञान का वह अंग है जो संपूर्ण पृथ्वी के ऊपर और नीचे व्याप्त जल एवं उसके प्रवाह के बारे में जानकारी देता है। संपूर्ण वर्षा पृथ्वी के जलीय चक्र का परिणाम होती है।
‘हमारी पृथ्वी अन्य ज्ञात खगोल-पिंडों में अनूठी है: यहां जल है।’
पिछले कुछ वर्षों में विकास और विकास प्रक्रियाओं में जल की महत्ता की चेतना बढ़ी है। भूत, वर्तमान, भविष्य के समस्त समाजों विकास और जीवन के लिए पर्याप्त स्वच्छ जल की आवश्यकता होती है। साथ-ही-साथ स्वच्छ जल की उपलब्धता भौगोलिक और मौसमी कारणों से प्रभावित होती रही है और मानवीय सभ्यताओं ने इस पारिस्थितिकी को अनेक प्रकार से प्रभावित किया है, उनका अनेक प्रकार से दोहन किया है। इसकी जानकारी के लिए कि किस तरह स्वच्छ जल की कमी ने विकास के सामने अनेक बाधाएं खड़ी की हैं, विकासशील देशों की विकास नीतियों के अध्ययन की आवश्यकता है। प्रकृति के पांच उपादानों में जल सबसे महत्वपूर्ण है जो पृथ्वी पर जीवन को संभव करने में मदद करता है। जल का उपयोग बुनियादी मानवीय जीवन और विकास के लिए किया जाता है, साथ ही वह सारे जीवन-चक्र के लिए महत्वपूर्ण है। पानी हमेशा से सभ्याताओं का अवलंब रहा है। लगभग सभी प्राचीन सभ्यताएं, जिनमें से हमारी भी निकली है, जल के नज़दीक पली-बढ़ी हैं। पानी सदा से अपरिहार्य रहा है, न केवल मानवीय विकास के संदर्भ में बल्कि कृषि और मानवीय गतिविधियों के विकास में भी। पृथ्वी को अक्सर जल ग्रह कहा जाता है क्योंकि इसके 71 प्रतिशत भाग पर महासागरों का राज है। वर्षा के माध्यम से जल घटता भी है और फिर बढ़ता भी रहता है। इसलिए पानी के लिए चिंता करने की फिर क्या जरूरत है?
वास्तव में विश्व के जल-भंडार का केवल एक प्रतिशत हमारे उपयोग योग्य है। लगभग 97 प्रतिशत जल समुद्री खारा जल है और पृथ्वी के कुल जल-भंडार का 2.7 प्रतिशत ही स्वच्छ जल है। उस 2.7 प्रतिशत का भी काफी हिस्सा हिमनदों और पहाड़ों की चोटियों पर जमा हुआ है।
09 दिसम्बर 2013 ग्राम नोहटा-नयांगांव, ब्लॉक जबेरा, दमोह। रामनारायण रावत जो नयांगांव कुलुआ में अपनी निजी 5 एकड़ भूमि पर खेती करते हैं। उनने बताया कि वर्ष 2008-09 में बलराम तालाब योजना से अपनी लगभग एक एकड़ भूमि पर तालाब निर्माण कराया, तालाब 6 फीट गहरा हुआ, और कड़े पत्थर के रूप में समस्या खड़ी हो गई। जैसे तैसे मशीनों का उपयोग कर पत्थर को तोड़कर तालाब की गहराई एक फीट और बढ़ाई गई और तालाब 7 फीट गहरा किया जिसमें लगभग एक लाख सोलह हजार रुपयें
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जल - एक संसाधन
उपलब्ध जल के अपरोधन, या संचयन के लिए निर्मित गड्ढों के जल से भर जाने एवं भू-सतह पर वर्षा की तीव्रता, मृदा की अंतःस्यंदन क्षमता से अधिक होने पर पृथ्वी की सतह पर जल प्रवाह होने लगता है। यह सतही प्रवाह के रूप में अपना रास्ता नदियों, झीलों या समुद्र की ओर करता है जो सतही अपवाह के रूप में जाना जाता है। फिर यह अन्य प्रवाह घटकों के साथ मिलकर संपूर्ण अपवाह बनाता है। अपवाह शब्द का उपयोग साधारणतया जब अकेले होता है तो इसे सतही अपवाह ही कहा जाता है।
कल्पना करें एक ऐसी बाल्टी की जिसके पेंदे में एक छेद हो। इस बाल्टी में रखा है पृथ्वी का संपूर्ण जलः सतही जल, भू-जल और वायुमंडल की आर्द्रता। यदि इसे ज्यों का त्यों छोड़ देंगे तो बाल्टी जल्दी ही खाली हो जाएगी। इस बाल्टी में जलस्तर बनाए रखने हेतु आवश्यक है कि जितनी मात्रा में इसका जल रिस रहा है, उतनी ही मात्रा में वह वापस आए। अनेक प्रक्रियाएं साथ-साथ चलते रहकर पृथ्वी के जल चक्र को गतिशील बनाए रखती हैं। यह सतत चक्र जलीय चक्र कहलाता है।जलीय चक्र
जलीय शास्त्र पृथ्वी के विज्ञान का वह अंग है जो संपूर्ण पृथ्वी के ऊपर और नीचे व्याप्त जल एवं उसके प्रवाह के बारे में जानकारी देता है। संपूर्ण वर्षा पृथ्वी के जलीय चक्र का परिणाम होती है।
जल संग्रहण एवं प्रबंध
भूमिका
‘हमारी पृथ्वी अन्य ज्ञात खगोल-पिंडों में अनूठी है: यहां जल है।’
पिछले कुछ वर्षों में विकास और विकास प्रक्रियाओं में जल की महत्ता की चेतना बढ़ी है। भूत, वर्तमान, भविष्य के समस्त समाजों विकास और जीवन के लिए पर्याप्त स्वच्छ जल की आवश्यकता होती है। साथ-ही-साथ स्वच्छ जल की उपलब्धता भौगोलिक और मौसमी कारणों से प्रभावित होती रही है और मानवीय सभ्यताओं ने इस पारिस्थितिकी को अनेक प्रकार से प्रभावित किया है, उनका अनेक प्रकार से दोहन किया है। इसकी जानकारी के लिए कि किस तरह स्वच्छ जल की कमी ने विकास के सामने अनेक बाधाएं खड़ी की हैं, विकासशील देशों की विकास नीतियों के अध्ययन की आवश्यकता है। प्रकृति के पांच उपादानों में जल सबसे महत्वपूर्ण है जो पृथ्वी पर जीवन को संभव करने में मदद करता है। जल का उपयोग बुनियादी मानवीय जीवन और विकास के लिए किया जाता है, साथ ही वह सारे जीवन-चक्र के लिए महत्वपूर्ण है। पानी हमेशा से सभ्याताओं का अवलंब रहा है। लगभग सभी प्राचीन सभ्यताएं, जिनमें से हमारी भी निकली है, जल के नज़दीक पली-बढ़ी हैं। पानी सदा से अपरिहार्य रहा है, न केवल मानवीय विकास के संदर्भ में बल्कि कृषि और मानवीय गतिविधियों के विकास में भी। पृथ्वी को अक्सर जल ग्रह कहा जाता है क्योंकि इसके 71 प्रतिशत भाग पर महासागरों का राज है। वर्षा के माध्यम से जल घटता भी है और फिर बढ़ता भी रहता है। इसलिए पानी के लिए चिंता करने की फिर क्या जरूरत है?
वास्तव में विश्व के जल-भंडार का केवल एक प्रतिशत हमारे उपयोग योग्य है। लगभग 97 प्रतिशत जल समुद्री खारा जल है और पृथ्वी के कुल जल-भंडार का 2.7 प्रतिशत ही स्वच्छ जल है। उस 2.7 प्रतिशत का भी काफी हिस्सा हिमनदों और पहाड़ों की चोटियों पर जमा हुआ है।
तालाब सही जगह नहीं, तो फायदा नहीं
09 दिसम्बर 2013 ग्राम नोहटा-नयांगांव, ब्लॉक जबेरा, दमोह। रामनारायण रावत जो नयांगांव कुलुआ में अपनी निजी 5 एकड़ भूमि पर खेती करते हैं। उनने बताया कि वर्ष 2008-09 में बलराम तालाब योजना से अपनी लगभग एक एकड़ भूमि पर तालाब निर्माण कराया, तालाब 6 फीट गहरा हुआ, और कड़े पत्थर के रूप में समस्या खड़ी हो गई। जैसे तैसे मशीनों का उपयोग कर पत्थर को तोड़कर तालाब की गहराई एक फीट और बढ़ाई गई और तालाब 7 फीट गहरा किया जिसमें लगभग एक लाख सोलह हजार रुपयें
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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