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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

Submitted by Hindi on Sun, 04/28/2013 - 14:43
Source:
राज्यसभा टीवी

'भारत की सभी नदियां गंगा परिवार की नदी हैं इन सारी नदियों के स्वास्थ्य का विचार करना जरूरी है। नदी को समग्रता से समझने की जरूरत है। नदी कोई दो किनारे के बीच बहने वाला जल नहीं है वह अपने संपूर्ण जल ग्रहण के साथ एक इकाई है, जो उसका कैचमेंट एरिया है उस कैचमेंट एरिया और जलग्रहण के साथ एक इकाई है। लोग आजकल नदी को वाटरबॉडी के नाम से पुकारते हैं।
Submitted by Hindi on Fri, 04/26/2013 - 16:34
Source:
नेशनल दुनिया, 25 अप्रैल 2013
आधुनिक सभ्यता में रची-बसी हमारी जीवनशैली बिजली के बिना सांस भी नहीं ले सकती है। रोशनी और पावर की प्यास और पानी की प्यास के बीच चुनाव जैसा कुछ बचा ही नहीं है। जालना में लोहे के कारखाने कुकुरमुत्तों की तरह उगे हैं और ये सारे नगर के पानी को जरूरत से ज्यादा पीते हैं। इनकी पानी भी रोका नहीं जा सकता है क्योंकि अगर ये उद्योग बंद हुए तो इनमें काम कर रहे 50 हजार से ज्यादा कामगार न केवल बेरोजगार हो जाएंगे बल्कि अपने गांव-नगर पहुंच कर पानी की ज्यादा मांग भी करेंगे।अकाल... सूखा... बाढ़...महामारी... आदि-आदि सब पहले कुछ खास प्रांतों की किस्मत में लिखे होते थे। जबसे सबकी समझ में यह आ गया है कि ये सब बेहिसाब कमाई के प्राकृतिक अवसर होते हैं, तब से ये जहां चाहें वहां आ जाते हैं। इन दिनों सूखा महाराष्ट्र में डेरा डाले हुए है। महाराष्ट्र सरकार इस मेहमान से बेहद चिंतित है। मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण अपना एक माह का वेतन सूखा राहत कोष में दे रहे हैं। मंत्रियों से भी ऐसा ही करने को कह रहे हैं। लेकिन मंत्रियों में कोई उत्साह नहीं दिखा। मंत्रियों की तरफ से बता दिया गया है कि हम अपना वेतन दे-देकर तो इस सूखे का मुकाबला नहीं कर सकते हैं। उपमुख्यमंत्री अजित पवार तो मंत्रियों से भी आगे निकल गए। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने तो जो मुंह में आया बोल दिया। कह दिया कि वे पेशाब कर-कर के भी सूखी नदियों को नहीं भर सकते हैं। सूखे से घिरे महाराष्ट्र में यह बयान सूबे की राजनीति में तूफान बरपा गया है।

Submitted by Hindi on Fri, 04/26/2013 - 11:22
Source:
सामयिक वार्ता, मार्च 2013

एक बुनियादी बात ध्यान में रखना जरूरी है। शोषणमुक्त समाज में पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने की क्षमता गैरबराबर समाज से अधिक होती है, क्योंकि गैरबराबरी से ही दिखावे के लिए बेजरूरत तामझाम पर खर्च जरूरी होता है, और बाजार आश्रित पूंजीवादी समाज में तो बेजरूरी वस्तुओं के उत्पादन व उपभोग की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण है कि इसे नियंत्रित करने से पूंजीवादी व्यवस्था ध्वस्त हो सकती है। इससे यह तो जरूर कहा जा सकता है कि प्रकृति से तालमेल बिठा कर चलने वाली कोई भी व्यवस्था समता के मूल्यों पर ही आधारित हो सकती है।

पूंजीवादी तकनीक की मदद से दुनिया को स्वर्ग बनाने की जो कल्पना मार्क्सवाद ने की थी, वह व्यस्त हो गई है। पर्यावरण का संकट बुनियादी संकट है, लेकिन विकसित देशों को धरती गरम होने से बर्फ पिघलने से उत्तरी गोलार्ध में खनिजों के नए भंडारों के दोहन और व्यापार की संभावना दिखने लगी है। भारत जैसे देशों को विकास की एक अलग राह खोजना होगा जो प्रकृति के साथ सामंजस्य, गांव, खेती, छोटी इकाई और समानता व सहयोग पर आधारित हो। इसके लिए राष्ट्र-राज्य, फौज और बड़े उद्योगों के गठजोड़ को तोड़ना होगा। क्यूबा जैसे प्रयोगों से भी हम सीख सकते हैं। वैकल्पिक विकास के मॉडल की बात करना आज उसी तरह अर्थहीन है जैसे कभी यूटोपिया की बात करना समाजवादी आंदोलन के प्रारंभिक काल में था। कोई भी व्यवस्था सामने की हकीक़त के संदर्भ में ही बनती है, बनी-बनाई कल्पना के अनुरूप नहीं। ऐसे किसी भी मनचाहे ब्लूप्रिंट को लागू करने का प्रयास या तो धर्मांधता को जन्म देता है या तानाशाही को। आज चूंकि पर्यावरण का संकट विविध रूपों में हमारे अस्तित्व के लिए सर्वाधिक महत्व का बन गया है, इसलिए हमें समाज निर्माण की वैसी दिशा अपनानी होगी जो पर्यावरण के लिए कम से कम नुक़सानदेह हो।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

नदियां कचरा ढोने का साधन नहीं हैं : अनिल माधव दवे

Submitted by Hindi on Sun, 04/28/2013 - 14:43
Author
राज्यसभा टीवी
Source
राज्यसभा टीवी

'भारत की सभी नदियां गंगा परिवार की नदी हैं इन सारी नदियों के स्वास्थ्य का विचार करना जरूरी है। नदी को समग्रता से समझने की जरूरत है। नदी कोई दो किनारे के बीच बहने वाला जल नहीं है वह अपने संपूर्ण जल ग्रहण के साथ एक इकाई है, जो उसका कैचमेंट एरिया है उस कैचमेंट एरिया और जलग्रहण के साथ एक इकाई है। लोग आजकल नदी को वाटरबॉडी के नाम से पुकारते हैं।

वसंत लेकर आया है सूखा

Submitted by Hindi on Fri, 04/26/2013 - 16:34
Author
कुमार प्रशांत
Source
नेशनल दुनिया, 25 अप्रैल 2013
आधुनिक सभ्यता में रची-बसी हमारी जीवनशैली बिजली के बिना सांस भी नहीं ले सकती है। रोशनी और पावर की प्यास और पानी की प्यास के बीच चुनाव जैसा कुछ बचा ही नहीं है। जालना में लोहे के कारखाने कुकुरमुत्तों की तरह उगे हैं और ये सारे नगर के पानी को जरूरत से ज्यादा पीते हैं। इनकी पानी भी रोका नहीं जा सकता है क्योंकि अगर ये उद्योग बंद हुए तो इनमें काम कर रहे 50 हजार से ज्यादा कामगार न केवल बेरोजगार हो जाएंगे बल्कि अपने गांव-नगर पहुंच कर पानी की ज्यादा मांग भी करेंगे।अकाल... सूखा... बाढ़...महामारी... आदि-आदि सब पहले कुछ खास प्रांतों की किस्मत में लिखे होते थे। जबसे सबकी समझ में यह आ गया है कि ये सब बेहिसाब कमाई के प्राकृतिक अवसर होते हैं, तब से ये जहां चाहें वहां आ जाते हैं। इन दिनों सूखा महाराष्ट्र में डेरा डाले हुए है। महाराष्ट्र सरकार इस मेहमान से बेहद चिंतित है। मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण अपना एक माह का वेतन सूखा राहत कोष में दे रहे हैं। मंत्रियों से भी ऐसा ही करने को कह रहे हैं। लेकिन मंत्रियों में कोई उत्साह नहीं दिखा। मंत्रियों की तरफ से बता दिया गया है कि हम अपना वेतन दे-देकर तो इस सूखे का मुकाबला नहीं कर सकते हैं। उपमुख्यमंत्री अजित पवार तो मंत्रियों से भी आगे निकल गए। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने तो जो मुंह में आया बोल दिया। कह दिया कि वे पेशाब कर-कर के भी सूखी नदियों को नहीं भर सकते हैं। सूखे से घिरे महाराष्ट्र में यह बयान सूबे की राजनीति में तूफान बरपा गया है।

सभ्यता का संकट और विकल्प

Submitted by Hindi on Fri, 04/26/2013 - 11:22
Author
सच्चिदानंद सिन्हा
Source
सामयिक वार्ता, मार्च 2013

एक बुनियादी बात ध्यान में रखना जरूरी है। शोषणमुक्त समाज में पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने की क्षमता गैरबराबर समाज से अधिक होती है, क्योंकि गैरबराबरी से ही दिखावे के लिए बेजरूरत तामझाम पर खर्च जरूरी होता है, और बाजार आश्रित पूंजीवादी समाज में तो बेजरूरी वस्तुओं के उत्पादन व उपभोग की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण है कि इसे नियंत्रित करने से पूंजीवादी व्यवस्था ध्वस्त हो सकती है। इससे यह तो जरूर कहा जा सकता है कि प्रकृति से तालमेल बिठा कर चलने वाली कोई भी व्यवस्था समता के मूल्यों पर ही आधारित हो सकती है।

पूंजीवादी तकनीक की मदद से दुनिया को स्वर्ग बनाने की जो कल्पना मार्क्सवाद ने की थी, वह व्यस्त हो गई है। पर्यावरण का संकट बुनियादी संकट है, लेकिन विकसित देशों को धरती गरम होने से बर्फ पिघलने से उत्तरी गोलार्ध में खनिजों के नए भंडारों के दोहन और व्यापार की संभावना दिखने लगी है। भारत जैसे देशों को विकास की एक अलग राह खोजना होगा जो प्रकृति के साथ सामंजस्य, गांव, खेती, छोटी इकाई और समानता व सहयोग पर आधारित हो। इसके लिए राष्ट्र-राज्य, फौज और बड़े उद्योगों के गठजोड़ को तोड़ना होगा। क्यूबा जैसे प्रयोगों से भी हम सीख सकते हैं। वैकल्पिक विकास के मॉडल की बात करना आज उसी तरह अर्थहीन है जैसे कभी यूटोपिया की बात करना समाजवादी आंदोलन के प्रारंभिक काल में था। कोई भी व्यवस्था सामने की हकीक़त के संदर्भ में ही बनती है, बनी-बनाई कल्पना के अनुरूप नहीं। ऐसे किसी भी मनचाहे ब्लूप्रिंट को लागू करने का प्रयास या तो धर्मांधता को जन्म देता है या तानाशाही को। आज चूंकि पर्यावरण का संकट विविध रूपों में हमारे अस्तित्व के लिए सर्वाधिक महत्व का बन गया है, इसलिए हमें समाज निर्माण की वैसी दिशा अपनानी होगी जो पर्यावरण के लिए कम से कम नुक़सानदेह हो।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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