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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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Submitted by Hindi on Tue, 04/23/2013 - 10:47
Source:
सामयिक वार्ता, मार्च 2013
हमारे देश में पानी के उपयोग की प्राथमिकताएं तय की गई हैं। इसमें आमतौर पर पहले नंबर पर पेयजल, दूसरे नंबर पर सिंचाई और तीसरे नंबर पर उद्योगों को रखा जाता है। हर राज्य की अपनी जलनीति होती है, जिसमें यह वरीयता क्रम स्पष्ट किया जाता है। इसके बावजूद हर राज्य में बुनियादी ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ करके उद्योगों को और बड़े व्यापारिक प्रतिष्ठानों को पानी दिया जाता है। लेकिन महाराष्ट्र में तो इसे नीति का ही हिस्सा बना दिया गया। राज्य की 2003 की जल नीति में पानी के उपयोग की प्राथमिकताओं में पेयजल के बाद उद्योगों को रखा गया और खेती का नंबर उसके बाद कर दिया गया। पिछले साल का उत्तरार्ध महाराष्ट्र की राजनीति में काफी गरम रहा। सिंचाई योजनाओं में घोटाले और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप जल संसाधन विभाग पर लगे। उपमुख्यमंत्री अजित पवार के इस्तीफ़े और वापसी का नाटक हुआ। जले पर नमक छिड़कने की भूमिका राज्य सरकार की ही सालाना आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट ने निभाई। इस रिपोर्ट से पता चला कि पिछले दस सालों में राज्य के सिंचित क्षेत्र में केवल 0.1 फीसदी बढ़ोतरी हुई। यह तब हुआ जब इसी अवधि में प्रधानमंत्री ने विदर्भ के किसानों के लिए विशेष पैकेज दिया, जिसमें सिंचाई योजनाओं का प्रमुख स्थान था। इस रिपोर्ट से इस सवाल को बल मिला कि इन दस सालों में महाराष्ट्र में सिंचाई की मद में जो करीब 70,000 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, वो कहां गए। माहौल इतना गरम हुआ कि मुख्यमंत्री को सिंचाई हालत पर श्वेतपत्र निकालने की घोषणा करनी पड़ी। पंद्रह दिन में निकलने वाला श्वेतपत्र कई महीनों बाद नवंबर के अंत में निकला। इस श्वेतपत्र का विश्लेषण इस लेख का मकसद नहीं है। लेकिन इसमें सिंचाई में कमी के जो कारण बताए गए हैं, उनमें से एक महत्वपूर्ण कारण की चर्चा यहां की गई है।

Submitted by Hindi on Mon, 04/22/2013 - 10:02
Source:
save earth
यदि हम सचमुच प्रकृति के ग़ुलाम नहीं बनना चाहते, तो जरूरी है कि प्रकृति को अपना ग़ुलाम बनाने का हठ और दंभ छोड़े। नदियों को तोड़ने, मरोड़ने और बांधने की नापाक कोशिश न करें। पानी, हवा और जंगलों को नियोजित करने की बजाय प्राकृतिक रहने दें। बाढ़ और सुखाड़ के साथ जीना सीखें
Submitted by Hindi on Sun, 04/21/2013 - 15:52
Source:
जनसत्ता रविवारी, 21 अप्रैल 2013
इस धरती की सतह का सत्तर प्रतिशत हिस्सा सड़कों, खदानों और बढ़ते शहरीकरण की भेंट चढ़- गया है। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि 2050 तक हमारे वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा दोगुनी हो जाएगी और हम भयानक बीमारियों की गिरफ़्त में होंगे। दुनिया की आधी से अधिक नदियां प्रदूषित होंगी और इनका जल स्तर घट जाएगा। सदा नीरा यमुना और गंगा के हालात हमारे सामने हैं। संताप हरती इनकी ‘कल कल’ ध्वनि सुनने को कान आतुर-व्याकुल ही रह रहे हैं। भारतीय परंपरा और विश्वास कहता है कि मां की सेवा करने वाला सत्पुरुष कहलाता है। वह दीर्घायु, यश, कीर्ति, बल, पुण्य, सुख, लक्ष्मी और धनधान्य को प्राप्त करता है। यदि कोई मानता हो तो, यह भी कहा गया है कि ऐसा पुरुष स्वर्ग का अधिकारी भी हो सकता है। अब स्वर्ग किसने देखा है और अगर किसी ने देखा है तो आकर कब बताया है कि स्वर्ग कैसा होता है? पर, अगर कोई सत्पुरुष है, तो क्या यही कम है? सत्पुरुष होने के साथ जो बातें जुड़ी हैं और जिनका जिक्र हमने किया है क्या वहीं स्वर्गिक नहीं है? यही स्वर्ग है। स्वर्ग या नरक - सब इस धरती पर है। संपूर्ण प्राणी जगत इसी धरती के अंग है। इसी में सब समाए हुए हैं। हम कह सकते हैं कि यही धरती सब को अपने में समाए हुए हैं, सहेजे हुए हैं। इसीलिए धरित्री है। सबको अपने में धारण किए हैं। यही धरती का धर्म है।

यह धरती तो अपना धर्म निभा रही है, पर जिस धरती को हम मां कहते हैं, क्या हम मनुष्य भी अपना धर्म निभा रहे हैं? इसी धरती में रत्नगर्भा खनिज संपदा है।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

महाराष्ट्र का सिंचाई घोटाला

Submitted by Hindi on Tue, 04/23/2013 - 10:47
Author
श्रीपाद धर्माधिकारी
Source
सामयिक वार्ता, मार्च 2013
हमारे देश में पानी के उपयोग की प्राथमिकताएं तय की गई हैं। इसमें आमतौर पर पहले नंबर पर पेयजल, दूसरे नंबर पर सिंचाई और तीसरे नंबर पर उद्योगों को रखा जाता है। हर राज्य की अपनी जलनीति होती है, जिसमें यह वरीयता क्रम स्पष्ट किया जाता है। इसके बावजूद हर राज्य में बुनियादी ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ करके उद्योगों को और बड़े व्यापारिक प्रतिष्ठानों को पानी दिया जाता है। लेकिन महाराष्ट्र में तो इसे नीति का ही हिस्सा बना दिया गया। राज्य की 2003 की जल नीति में पानी के उपयोग की प्राथमिकताओं में पेयजल के बाद उद्योगों को रखा गया और खेती का नंबर उसके बाद कर दिया गया। पिछले साल का उत्तरार्ध महाराष्ट्र की राजनीति में काफी गरम रहा। सिंचाई योजनाओं में घोटाले और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप जल संसाधन विभाग पर लगे। उपमुख्यमंत्री अजित पवार के इस्तीफ़े और वापसी का नाटक हुआ। जले पर नमक छिड़कने की भूमिका राज्य सरकार की ही सालाना आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट ने निभाई। इस रिपोर्ट से पता चला कि पिछले दस सालों में राज्य के सिंचित क्षेत्र में केवल 0.1 फीसदी बढ़ोतरी हुई। यह तब हुआ जब इसी अवधि में प्रधानमंत्री ने विदर्भ के किसानों के लिए विशेष पैकेज दिया, जिसमें सिंचाई योजनाओं का प्रमुख स्थान था। इस रिपोर्ट से इस सवाल को बल मिला कि इन दस सालों में महाराष्ट्र में सिंचाई की मद में जो करीब 70,000 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, वो कहां गए। माहौल इतना गरम हुआ कि मुख्यमंत्री को सिंचाई हालत पर श्वेतपत्र निकालने की घोषणा करनी पड़ी। पंद्रह दिन में निकलने वाला श्वेतपत्र कई महीनों बाद नवंबर के अंत में निकला। इस श्वेतपत्र का विश्लेषण इस लेख का मकसद नहीं है। लेकिन इसमें सिंचाई में कमी के जो कारण बताए गए हैं, उनमें से एक महत्वपूर्ण कारण की चर्चा यहां की गई है।

धरती की डाक सुनो रे केऊ

Submitted by Hindi on Mon, 04/22/2013 - 10:02
Author
अरुण तिवारी
save earth
यदि हम सचमुच प्रकृति के ग़ुलाम नहीं बनना चाहते, तो जरूरी है कि प्रकृति को अपना ग़ुलाम बनाने का हठ और दंभ छोड़े। नदियों को तोड़ने, मरोड़ने और बांधने की नापाक कोशिश न करें। पानी, हवा और जंगलों को नियोजित करने की बजाय प्राकृतिक रहने दें। बाढ़ और सुखाड़ के साथ जीना सीखें

सांसत में धरती

Submitted by Hindi on Sun, 04/21/2013 - 15:52
Author
शुभू पटवा
Source
जनसत्ता रविवारी, 21 अप्रैल 2013
इस धरती की सतह का सत्तर प्रतिशत हिस्सा सड़कों, खदानों और बढ़ते शहरीकरण की भेंट चढ़- गया है। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि 2050 तक हमारे वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा दोगुनी हो जाएगी और हम भयानक बीमारियों की गिरफ़्त में होंगे। दुनिया की आधी से अधिक नदियां प्रदूषित होंगी और इनका जल स्तर घट जाएगा। सदा नीरा यमुना और गंगा के हालात हमारे सामने हैं। संताप हरती इनकी ‘कल कल’ ध्वनि सुनने को कान आतुर-व्याकुल ही रह रहे हैं। भारतीय परंपरा और विश्वास कहता है कि मां की सेवा करने वाला सत्पुरुष कहलाता है। वह दीर्घायु, यश, कीर्ति, बल, पुण्य, सुख, लक्ष्मी और धनधान्य को प्राप्त करता है। यदि कोई मानता हो तो, यह भी कहा गया है कि ऐसा पुरुष स्वर्ग का अधिकारी भी हो सकता है। अब स्वर्ग किसने देखा है और अगर किसी ने देखा है तो आकर कब बताया है कि स्वर्ग कैसा होता है? पर, अगर कोई सत्पुरुष है, तो क्या यही कम है? सत्पुरुष होने के साथ जो बातें जुड़ी हैं और जिनका जिक्र हमने किया है क्या वहीं स्वर्गिक नहीं है? यही स्वर्ग है। स्वर्ग या नरक - सब इस धरती पर है। संपूर्ण प्राणी जगत इसी धरती के अंग है। इसी में सब समाए हुए हैं। हम कह सकते हैं कि यही धरती सब को अपने में समाए हुए हैं, सहेजे हुए हैं। इसीलिए धरित्री है। सबको अपने में धारण किए हैं। यही धरती का धर्म है।

यह धरती तो अपना धर्म निभा रही है, पर जिस धरती को हम मां कहते हैं, क्या हम मनुष्य भी अपना धर्म निभा रहे हैं? इसी धरती में रत्नगर्भा खनिज संपदा है।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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