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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

Submitted by Hindi on Thu, 01/05/2012 - 15:41
Source:
tehri dam landslide

महान गुरु गुरुनानक जी ने जिस नदी के किनारे बैठकर तप किया था, वह ही सूखने के कगार पर है। पंचनद का दंभ टूट चुका है। अपनी प्यास की चिंता छोड़कर कभी गधों को पानी पिलाने वाला प्रदेश अपने पानी को संभालने में असमर्थ साबित हो रहा है। जरूरत पंजाब को कम पानी की खेती व बागवानी की ओर लौटाने की है। पनबिजली

Submitted by admin on Tue, 01/03/2012 - 13:00
Source:
शौचालय के विकल्पवर्तमान में सेनिटेशन अपने आप में एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। लाखों लोगों को सेनिटेशन की बेसिक सुविधाए तक उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं जिसके चलते हवा-पानी और पर्यावरण सब कुछ
Submitted by Hindi on Sat, 12/31/2011 - 10:58
Source:
प्रभात खबर, 26 दिसम्बर 2011
chambal river

चंबल नदी की पवित्रता बरकरार रहने की वजह है धार्मिक आस्था। अगर धार्मिक दृष्टि से नदी को अपवित्र न कहा गया होता, तो शायद मनुष्य ने इस जलस्रोत को भी कब का अपवित्र कर दिया होता। कई पवित्र नदियां इस दुर्दशा का शिकार हो चुकी हैं। इसका उदाहरण है गंगा नदी, जिस पर भारतीय सभ्यता का विकास हुआ है। पर इस नदी की पवित्रता के साथ जिस तरह का खिलवाड़ हुआ है, उससे गंगा कई जगहों पर लुप्तप्राय हो गयी है। बनारस में अस्सी घाट पर गंगा में प्रदूषण और सभ्यता के क्षरण का नमूना देखा जा सकता है। इसी तरह चंबल नदी के साथ बहने वाली यमुना नदी तो मानवीय प्रदूषण की पराकाष्ठा है।

चंबल नदी की पवित्रता बरकरार रहने की वजह है धार्मिक आस्था। अगर धार्मिक दृष्टि से नदी को अपवित्र न कहा गया होता, तो शायद मनुष्य ने इस जलस्रोत को भी कब का अपवित्र कर दिया होता। चंबल अभिशप्त नदी है। हजारों वर्षों में इस नदी के किनारे किसी सभ्यता का उदय नहीं हुआ। कोई भी बड़ा शहर इस नदी के किनारे नहीं बसा। इसके बीहड़ अपराध व अराजकता के लिए जाने जाते थे। मान सिंह, माधो सिंह, मोहर सिंह, तहसीलदार सिंह जैसे कई नाम हैं, जो आतंक का पर्याय थे। हाल के दिनों में फूलन देवी, लालाराम जैसे कई गिरोह सरदार इन बीहड़ों में पनाह लेते रहे हैं। जाहिर है इस नदी के बीहड़ों में जिस संस्कृति का जन्म हुआ, वह थी-दस्यु संस्कृति। यानी जंगल का कानून। शक्तिशाली का भोजन कमजोर है। लगभग 80 और 90 के दशक तक इस क्षेत्र के सार्वजनिक जीवन का यह मूलमंत्र था। शायद ही कोई राजनीतिक दल व राजनेता ऐसा होगा, जिसका दस्यु गिरोह से संपर्क न हो। हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार भी चंबल नदी का अपवित्र माना जाना इस क्षेत्र के विकास में बाधक रहा।

पर हाल के दिनों में चंबल में एक नयी सभ्यता का विकास हो रहा है। इसकी एक बानगी आगरा के बाह तहसील में देखने को मिली। ताजमहल, लालकिला और फतेहपुर सीकरी देखने आये सैलानी को इस बात का शायद ही एहसास हो कि मानव सभ्यता किस तरह करवट लेती है। आगरा से 40 किमी दूर बाह तहसील अराजकता के लिए कुख्यात था। दस्यू गिरोहों का यहां बोलबाला था, पर आज के दिन यह सब एक कहानी सी लगती है। बाह का सामाजिक स्वरूप बदल चुका है। यहां के निवासी बंदूकों और असलहों के बजाय कंप्यूटर और आधुनिक खेती के उपकरण खरीद रहे हैं। बच्चों को अच्छी शिक्षा कैसे दी जाये और आमदनी को कानूनी तरीके अपनाते हुए किस तरह बढ़ाया जाये, इसके प्रयास जारी है। इसी क्रम में बाह के निवासी राम प्रताप सिंह ने एक अभूतपूर्व शुरुआत की। आईआईटी रुड़की से इंजीनियरिंग करने के बाद श्री सिंह इंडियन इंजीनियरिंग सर्विस में शामिल हुए। लगभग आठ साल काम करने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और बाह में समाज के लिए काम करने का मन बनाया।

यह राम प्रताप सिंह के लिए थोड़ा आसान इसलिए था, क्योंकि उनकी पुश्तैनी जायदाद काफी थी। मसलन उनके पास सैकड़ों एकड़ अपनी जमीन थी। आसपास के लोगों से कुछ जमीन खरीदने के बाद उन्होंने जैविक खेती शुरू की और एक बड़ा सा फार्म हाउस बनाया। इसमें ही उन्होंने शुरू किया चंबल सफारी। यानी पर्यटन की दृष्टि से चंबल नदी और जंगलों में सैर। चंबल नदी को इस नजरिये से अब तक देखा नहीं गया था। चंबल के बीहड़ों में प्रकृति के कई स्वरूपों का अवलोकन वास्तव में अद्भुत है। इसकी एक खास वजह भी है। धर्मशास्त्रों में चंबल की अभिशप्तता ही नदी व इसके जीव-जंतुओं के लिए वरदान हो गई है। पिछले सप्ताह चंबल में अपने प्रवास के दौरान मैंने पाया कि इस नदी का पानी अद्भुत रूप से स्वच्छ है। इसके साथ ही यह मीठा भी है।

दिलचस्प तो यह है कि पर्यावरण की दृष्टि से भी इस नदी में जीव-जंतुओं और पक्षियों की कई प्रजातियां पायी जाती हैं। गंगा में जहां डॉल्फिन मछलियां खत्म होती जा रही हैं, वहीं बाह में चंबल नदी में डॉल्फिन मछलियां अधिक मात्रा में पायी जाती हैं। लगभग आठ फिट लंबी डॉल्फिन आपको पानी में गोते लगाती मिल जायेगी। इसी तरह मगरमच्छ और घड़ियाल की कई दुर्लभ प्रजातियों का पानी में तैरते पाया जाना आम बात है। ये जीव न सिर्फ पाये जाते हैं, बल्कि अच्छी तरह फलफूल रहे हैं। इसकी एक खास वजह है। इस क्षेत्र में औद्योगिक विकास न होने के कारण प्रदूषण इस नदी से कोसों दूर है। साथ ही इस नदी में पक्षियों और जीवों के शिकार पर पाबंदी है। इसी वजह से नदी की पुरातनता और वातावरण की शुद्धता बरकरार है। यह एक अजीब विडंबना है।

चंबल नदी अपवित्र होकर भी पवित्र हैचंबल नदी की पवित्रता बरकरार रहने की वजह है धार्मिक आस्था। अगर धार्मिक दृष्टि से नदी को अपवित्र न कहा गया होता, तो शायद मनुष्य ने इस जलस्रोत को भी कब का अपवित्र कर दिया होता। कई पवित्र नदियां इस दुर्दशा का शिकार हो चुकी हैं। इसका उदाहरण है गंगा नदी, जिस पर भारतीय सभ्यता का विकास हुआ है। पर इस नदी की पवित्रता के साथ जिस तरह का खिलवाड़ हुआ है, उससे गंगा कई जगहों पर लुप्तप्राय हो गयी है। बनारस में अस्सी घाट पर गंगा में प्रदूषण और सभ्यता के क्षरण का नमूना देखा जा सकता है। इसी तरह चंबल नदी के साथ बहने वाली यमुना नदी तो मानवीय प्रदूषण की पराकाष्ठा है। आगरा, मथुरा और दिल्ली जैसे बड़े शहर यमुना नदी के किनारे बसे हैं। यही वजह है कि यमुना नदी दिल्ली में एक गंदे नाले का स्वरूप ले लेती है। दिलचस्प यह है कि यमुना नदी धर्मग्रंथों के अनुसार पवित्रता में अग्रणी है। कमोबेश यही स्थिति भारत के ज्यादातर उन नदियों की है, जिन्हें धार्मिक दृष्टि से पवित्र माना गया है।

इस परिप्रेक्ष्य में चंबल नदी की धार्मिक अपवित्रता ही उसकी पवित्रता का स्रोत बन गयी है। यही वजह है कि इस नयी चंबल सभ्यता का उदय सचमुच ही बड़ा रोचक है। राम प्रताप सिंह या उन जैसे कई सामाजिक उद्यमी का अथक प्रयास इस घाटी में रंग भी ला रहा है। चंबल सफारी के जरिये वहां आमदनी का एक नया जरिया बन रहा है। ऊंट पालने वाले पिछड़ी जाति के निवासियों को रोजगार का नया साधन मिल गया है। स्थानीय निवासियों में पर्यावरण को लेकर नयी चेतना का संचार हुआ है। नदी में डॉल्फिन, मगरमच्छ और घड़ियाल के संरक्षण को लेकर जनता में सकारात्मक सोच की पहल हुई है। तीस साल पहले जिसने चंबल घाटी को देखा होगा, उसके लिए विश्वास करना मुश्किल होगा कि ऐसा बदलाव यहां आ सकता है।

आगरा का बाह तहसील वहां के लोगों के असलहों के भंडार से जाना जाता था, पर आज परिस्थिति से एकदम विपरीत है। भले ही विकास के मानदंडों के आधार पर यह क्षेत्र अब भी काफी पिछड़ा हो, पर्यावरण, प्राकृतिक विषमताओं के संरक्षण में एक नया रास्ता दिखा रहा है। साथ ही धर्म और आस्था की एक नयी परिभाषा भी गढ़ रहा है, जहां मनुष्य का धर्म प्रकृति से सामंजस्यता का है, न कि शोषण का। नि:संदेह दो या तीन दशक का समय किसी सभ्यता के आकलन के लिए काफी कम है। फिर भी चंबल की इस नयी सभ्यता की पहल हर रूप में सकारात्मक है।

लेखक गवर्नेस नाउ पत्रिका के मैनेजिंग ऐडटर हैं

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

जल घोषणापत्र बनाकर करें नये साल का आगाज

Submitted by Hindi on Thu, 01/05/2012 - 15:41
Author
अरुण तिवारी
tehri dam landslide

महान गुरु गुरुनानक जी ने जिस नदी के किनारे बैठकर तप किया था, वह ही सूखने के कगार पर है। पंचनद का दंभ टूट चुका है। अपनी प्यास की चिंता छोड़कर कभी गधों को पानी पिलाने वाला प्रदेश अपने पानी को संभालने में असमर्थ साबित हो रहा है। जरूरत पंजाब को कम पानी की खेती व बागवानी की ओर लौटाने की है। पनबिजली

शौचालय के विकल्प

Submitted by admin on Tue, 01/03/2012 - 13:00
Author
जल और स्वच्छता मंत्रालय
शौचालय के विकल्पशौचालय के विकल्पवर्तमान में सेनिटेशन अपने आप में एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। लाखों लोगों को सेनिटेशन की बेसिक सुविधाए तक उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं जिसके चलते हवा-पानी और पर्यावरण सब कुछ

चंबल में नयी सभ्यता का उदय

Submitted by Hindi on Sat, 12/31/2011 - 10:58
Author
अजय सिंह
Source
प्रभात खबर, 26 दिसम्बर 2011
chambal river

चंबल नदी की पवित्रता बरकरार रहने की वजह है धार्मिक आस्था। अगर धार्मिक दृष्टि से नदी को अपवित्र न कहा गया होता, तो शायद मनुष्य ने इस जलस्रोत को भी कब का अपवित्र कर दिया होता। कई पवित्र नदियां इस दुर्दशा का शिकार हो चुकी हैं। इसका उदाहरण है गंगा नदी, जिस पर भारतीय सभ्यता का विकास हुआ है। पर इस नदी की पवित्रता के साथ जिस तरह का खिलवाड़ हुआ है, उससे गंगा कई जगहों पर लुप्तप्राय हो गयी है। बनारस में अस्सी घाट पर गंगा में प्रदूषण और सभ्यता के क्षरण का नमूना देखा जा सकता है। इसी तरह चंबल नदी के साथ बहने वाली यमुना नदी तो मानवीय प्रदूषण की पराकाष्ठा है।

चंबल नदी की पवित्रता बरकरार रहने की वजह है धार्मिक आस्था। अगर धार्मिक दृष्टि से नदी को अपवित्र न कहा गया होता, तो शायद मनुष्य ने इस जलस्रोत को भी कब का अपवित्र कर दिया होता। चंबल अभिशप्त नदी है। हजारों वर्षों में इस नदी के किनारे किसी सभ्यता का उदय नहीं हुआ। कोई भी बड़ा शहर इस नदी के किनारे नहीं बसा। इसके बीहड़ अपराध व अराजकता के लिए जाने जाते थे। मान सिंह, माधो सिंह, मोहर सिंह, तहसीलदार सिंह जैसे कई नाम हैं, जो आतंक का पर्याय थे। हाल के दिनों में फूलन देवी, लालाराम जैसे कई गिरोह सरदार इन बीहड़ों में पनाह लेते रहे हैं। जाहिर है इस नदी के बीहड़ों में जिस संस्कृति का जन्म हुआ, वह थी-दस्यु संस्कृति। यानी जंगल का कानून। शक्तिशाली का भोजन कमजोर है। लगभग 80 और 90 के दशक तक इस क्षेत्र के सार्वजनिक जीवन का यह मूलमंत्र था। शायद ही कोई राजनीतिक दल व राजनेता ऐसा होगा, जिसका दस्यु गिरोह से संपर्क न हो। हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार भी चंबल नदी का अपवित्र माना जाना इस क्षेत्र के विकास में बाधक रहा।

पर हाल के दिनों में चंबल में एक नयी सभ्यता का विकास हो रहा है। इसकी एक बानगी आगरा के बाह तहसील में देखने को मिली। ताजमहल, लालकिला और फतेहपुर सीकरी देखने आये सैलानी को इस बात का शायद ही एहसास हो कि मानव सभ्यता किस तरह करवट लेती है। आगरा से 40 किमी दूर बाह तहसील अराजकता के लिए कुख्यात था। दस्यू गिरोहों का यहां बोलबाला था, पर आज के दिन यह सब एक कहानी सी लगती है। बाह का सामाजिक स्वरूप बदल चुका है। यहां के निवासी बंदूकों और असलहों के बजाय कंप्यूटर और आधुनिक खेती के उपकरण खरीद रहे हैं। बच्चों को अच्छी शिक्षा कैसे दी जाये और आमदनी को कानूनी तरीके अपनाते हुए किस तरह बढ़ाया जाये, इसके प्रयास जारी है। इसी क्रम में बाह के निवासी राम प्रताप सिंह ने एक अभूतपूर्व शुरुआत की। आईआईटी रुड़की से इंजीनियरिंग करने के बाद श्री सिंह इंडियन इंजीनियरिंग सर्विस में शामिल हुए। लगभग आठ साल काम करने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और बाह में समाज के लिए काम करने का मन बनाया।

यह राम प्रताप सिंह के लिए थोड़ा आसान इसलिए था, क्योंकि उनकी पुश्तैनी जायदाद काफी थी। मसलन उनके पास सैकड़ों एकड़ अपनी जमीन थी। आसपास के लोगों से कुछ जमीन खरीदने के बाद उन्होंने जैविक खेती शुरू की और एक बड़ा सा फार्म हाउस बनाया। इसमें ही उन्होंने शुरू किया चंबल सफारी। यानी पर्यटन की दृष्टि से चंबल नदी और जंगलों में सैर। चंबल नदी को इस नजरिये से अब तक देखा नहीं गया था। चंबल के बीहड़ों में प्रकृति के कई स्वरूपों का अवलोकन वास्तव में अद्भुत है। इसकी एक खास वजह भी है। धर्मशास्त्रों में चंबल की अभिशप्तता ही नदी व इसके जीव-जंतुओं के लिए वरदान हो गई है। पिछले सप्ताह चंबल में अपने प्रवास के दौरान मैंने पाया कि इस नदी का पानी अद्भुत रूप से स्वच्छ है। इसके साथ ही यह मीठा भी है।

दिलचस्प तो यह है कि पर्यावरण की दृष्टि से भी इस नदी में जीव-जंतुओं और पक्षियों की कई प्रजातियां पायी जाती हैं। गंगा में जहां डॉल्फिन मछलियां खत्म होती जा रही हैं, वहीं बाह में चंबल नदी में डॉल्फिन मछलियां अधिक मात्रा में पायी जाती हैं। लगभग आठ फिट लंबी डॉल्फिन आपको पानी में गोते लगाती मिल जायेगी। इसी तरह मगरमच्छ और घड़ियाल की कई दुर्लभ प्रजातियों का पानी में तैरते पाया जाना आम बात है। ये जीव न सिर्फ पाये जाते हैं, बल्कि अच्छी तरह फलफूल रहे हैं। इसकी एक खास वजह है। इस क्षेत्र में औद्योगिक विकास न होने के कारण प्रदूषण इस नदी से कोसों दूर है। साथ ही इस नदी में पक्षियों और जीवों के शिकार पर पाबंदी है। इसी वजह से नदी की पुरातनता और वातावरण की शुद्धता बरकरार है। यह एक अजीब विडंबना है।

चंबल नदी अपवित्र होकर भी पवित्र हैचंबल नदी अपवित्र होकर भी पवित्र हैचंबल नदी की पवित्रता बरकरार रहने की वजह है धार्मिक आस्था। अगर धार्मिक दृष्टि से नदी को अपवित्र न कहा गया होता, तो शायद मनुष्य ने इस जलस्रोत को भी कब का अपवित्र कर दिया होता। कई पवित्र नदियां इस दुर्दशा का शिकार हो चुकी हैं। इसका उदाहरण है गंगा नदी, जिस पर भारतीय सभ्यता का विकास हुआ है। पर इस नदी की पवित्रता के साथ जिस तरह का खिलवाड़ हुआ है, उससे गंगा कई जगहों पर लुप्तप्राय हो गयी है। बनारस में अस्सी घाट पर गंगा में प्रदूषण और सभ्यता के क्षरण का नमूना देखा जा सकता है। इसी तरह चंबल नदी के साथ बहने वाली यमुना नदी तो मानवीय प्रदूषण की पराकाष्ठा है। आगरा, मथुरा और दिल्ली जैसे बड़े शहर यमुना नदी के किनारे बसे हैं। यही वजह है कि यमुना नदी दिल्ली में एक गंदे नाले का स्वरूप ले लेती है। दिलचस्प यह है कि यमुना नदी धर्मग्रंथों के अनुसार पवित्रता में अग्रणी है। कमोबेश यही स्थिति भारत के ज्यादातर उन नदियों की है, जिन्हें धार्मिक दृष्टि से पवित्र माना गया है।

इस परिप्रेक्ष्य में चंबल नदी की धार्मिक अपवित्रता ही उसकी पवित्रता का स्रोत बन गयी है। यही वजह है कि इस नयी चंबल सभ्यता का उदय सचमुच ही बड़ा रोचक है। राम प्रताप सिंह या उन जैसे कई सामाजिक उद्यमी का अथक प्रयास इस घाटी में रंग भी ला रहा है। चंबल सफारी के जरिये वहां आमदनी का एक नया जरिया बन रहा है। ऊंट पालने वाले पिछड़ी जाति के निवासियों को रोजगार का नया साधन मिल गया है। स्थानीय निवासियों में पर्यावरण को लेकर नयी चेतना का संचार हुआ है। नदी में डॉल्फिन, मगरमच्छ और घड़ियाल के संरक्षण को लेकर जनता में सकारात्मक सोच की पहल हुई है। तीस साल पहले जिसने चंबल घाटी को देखा होगा, उसके लिए विश्वास करना मुश्किल होगा कि ऐसा बदलाव यहां आ सकता है।

आगरा का बाह तहसील वहां के लोगों के असलहों के भंडार से जाना जाता था, पर आज परिस्थिति से एकदम विपरीत है। भले ही विकास के मानदंडों के आधार पर यह क्षेत्र अब भी काफी पिछड़ा हो, पर्यावरण, प्राकृतिक विषमताओं के संरक्षण में एक नया रास्ता दिखा रहा है। साथ ही धर्म और आस्था की एक नयी परिभाषा भी गढ़ रहा है, जहां मनुष्य का धर्म प्रकृति से सामंजस्यता का है, न कि शोषण का। नि:संदेह दो या तीन दशक का समय किसी सभ्यता के आकलन के लिए काफी कम है। फिर भी चंबल की इस नयी सभ्यता की पहल हर रूप में सकारात्मक है।

लेखक गवर्नेस नाउ पत्रिका के मैनेजिंग ऐडटर हैं

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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