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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

Submitted by Hindi on Fri, 01/13/2012 - 15:52
Source:
विस्फोट, 24 दिसम्बर 2011

रेगिस्तान की सूचना पहाड़ में ग्लेशियर दे रहे हैं तो मैदानी इलाकों में मधुमक्खियों के छत्ते हमें बता रहे हैं कि हम संकट के मुहाने पर है। मधुमक्खियों के छत्ते इसलिए क्योंकि पर्यावरण का इससे सुंदर संकेतक दूसरा होना मुश्किल है। इन छत्तों को आप प्रकृति की सबसे अनूठी घड़ी भी कह सकते हैं। मधुमक्खियां अपने आस-पास के दो तीन किलोमीटर से पराग इकट्ठा करती हैं। यहां यह जान लेना महत्वपूर्ण है कि हम केवल उन मधुमक्खियों की बात कर रहे हैं जो मानवीय बस्ती के आस-पास छत्ते लगाती हैं। यानी वे मधुमक्खियां जो मनुष्य के निकट हैं। लेकिन जैसे-जैसे पर्यावरण में बदलाव आता है ये मधुमक्खियां उत्तर की ओर खिसकने लगती हैं।

इंसान जैसे-जैसे विकसित हुआ है वह अकेला पड़ता गया है। प्रकृति में मौजूद दूसरे जीवजंतु, प्राणी, वनस्पतियां सब उससे लगातार दूर होते गये हैं। ऐसा कोई एक दिन में नहीं हुआ लेकिन यह क्रम कभी रूका भी नहीं। जीवजंतु तो न जाने कब के हमारे लिए पालतू हो गये थे। मनुष्य ने सबसे पहले जिस जानवर को पालतू बनाया वह संभवतः गाय थी। उसके पहले तक का जो इतिहास हम देखते हैं वह यही है कि अस्तित्व में बने रहने के लिए मनुष्य भी पशुओं को उसी तरह मारता था जैसे एक पशु दूसरे को मारता था। लेकिन जिसे विकसित मनुष्य कह सकते हैं उसने जो कुछ किया उससे केवल पशुओं के अस्तित्व पर ही नहीं बल्कि वनस्पतियों के अस्तित्व पर भी संकट आ गया है। पहले मनुष्य ने पशुओं को मारा होगा लेकिन पशु उससे दूर नहीं भागे थे। लेकिन आज प्रकृति में मौजूद जीव धीरे-धीरे मनुष्य से दूर होते जा रहे हैं। याद करिए आखिरी बार आपने कब किसी घोसले को देखा था? याद करिए कि आपने अपने आस-पास किसी मधुमक्खी के छत्ते को कब देखा था?
Submitted by Hindi on Wed, 01/11/2012 - 13:07
Source:
जनसत्ता रविवारी, 08 जनवरी 2012
migratory bird
देश के पक्षी अभ्यारण्य कई तरह के बढ़ते प्रदूषण की वजह से खतरे में हैं। झीलों और तालाबों में पानी और आहार की कमी हो गई है। प्रवासी पक्षियों की आमद न होने से सैलानी भी अपना मुंह मोड़ रहे हैं। इस मुश्किल हालात का जायजा ले रहे हैं। प्रमोद भार्गव

जल, वनस्पति और झील को आवास, आहार और प्रजनन का स्थल बनाने वाले जीव-जंतुओं पर शोध की तैयारी की जा रही है। यह शोध आर्द्रभूमि शोध एवं प्रशिक्षण केंद्र करेगा। इसके तहत झील में अध्ययन बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के साथ मिलकर किया जाएगा। इसके अलावा पश्चिम बंगाल में सीआईएफआरआई के साथ विश्व बैंक के सहयोग से चल रहे एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन परियोजना के तहत मछली पारिस्थितिकी और विभिन्न तथ्यों के बारे में अध्ययन किया जाएगा। आधुनिक विकास झीलों, तालाबों और नदियों के लिए प्रदूषण का ऐसा कारण बन गया है, जिससे इंसान तो इंसान पक्षी भी हैरान-परेशान हैं।

देश में पर्यावरण के साथ खिलवाड़ की आंच अब परिंदों तक जा पहुँची है। पारिस्थितिकी तंत्र के बिगड़ने की वजह से पक्षियों के जीवनचक्र पर विपरीत असर पड़ रहा है। यही वजह है कि विश्व प्रसिद्ध घना पक्षी-अभ्यारण्य के अलावा दूसरे अभ्यारण्यों की मनोरम झीलों पर जो परिंदे हर साल हजारों की संख्या में डेरा डाला करते थे, वे इस साल नदारद हैं। मेहमान पक्षी तो हजारों किलोमीटर की यात्रा कर देश की उथली झीलों, तालाबों, दलदलों और नदियों के किनारों पर चार महीने बसेरा किया करते थे। उनकी संख्या में काफी कमी आई है। बदलती आबोहवा की वजह से कई परंपरागत आवास स्थलों पर इन प्रवासी पक्षियों ने शगुन के लिए भी पड़ाव नहीं डाला। यह स्थिति पर्यावरणविदों के लिए तो चिंताजनक है ही, पर्यटन व्यवसाय की नजर से भी गंभीर चेतावनी है। राजस्थान में भरतपुर का केवलादेव घना राष्ट्रीय पक्षी अभ्यारण्य देश में एक ऐसा मनोरम स्थल था, जहां प्रवासी पक्षियों का सबसे ज्यादा जमावड़ा होता था।
Submitted by Hindi on Thu, 01/05/2012 - 18:43
Source:
तहलका हिन्दी, जनवरी 2012
फरहाद कॉन्ट्रैक्टर

पानी के सामाजिक काम में सबसे जरूरी है लोगों का अपनी परंपराओं में विश्वास लौटाना। उन्हें याद दिलाना कि उनके पूर्वज एक गौरवशाली परंपरा छोड़ गए हैं, जल संचय की जो थोड़ी सामाजिकता से फिर लौट आए हैं। यहां छोटे-छोटे तालाबों का प्रचलन रहा है जिन्हें नाड़ी कहा जाता है। नाड़ियों का जीर्णोद्धार भी गांव के लोगों ने शुरु कर दिया है। ऐसे प्रयास करने के लिए धीरज और सहृदयता के साथ ही सबसे जरूरी होता है समाज के संबल का लौटना

यह संस्थाओं का जमाना है। सबसे बड़ी संस्था है सरकार। उससे बाहर जो हो वे गैरसरकारी कहलाती है। असरकारी दोनों कितनी होती हैं इसका जवाब देने की जरूरत नहीं है। जगह-जगह बोर्ड और शिलान्यास दिखते है बड़े-बड़े सामाजिक कामों के। पर काम थोड़ा कम ही दिखता है। कई पर सरकारी पदाधिकारियों के नाम होते हैं और कई पर गैरसरकारी संस्थाओं के। फरहाद कॉन्ट्रैक्टर ऐसे बोर्ड को पटिया कहते हैं। एक छोटी-मोटी संस्था उनकी भी है अहमदाबाद में, समभाव नाम से, जिसमें वे काम करते हैं। पिछले कुछ सालों में उन्होंने एक और संस्था के लिए काम करने की कोशिश की है। इस संस्था का कोई पटिया लगा नहीं मिलता पर है यह सबसे पुरानी इतिहास से भी पुरानी है। यह संस्था है समाज।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

सुनिए मधुमक्खी का संदेश

Submitted by Hindi on Fri, 01/13/2012 - 15:52
Author
जवाहरलाल कौल
Source
विस्फोट, 24 दिसम्बर 2011

रेगिस्तान की सूचना पहाड़ में ग्लेशियर दे रहे हैं तो मैदानी इलाकों में मधुमक्खियों के छत्ते हमें बता रहे हैं कि हम संकट के मुहाने पर है। मधुमक्खियों के छत्ते इसलिए क्योंकि पर्यावरण का इससे सुंदर संकेतक दूसरा होना मुश्किल है। इन छत्तों को आप प्रकृति की सबसे अनूठी घड़ी भी कह सकते हैं। मधुमक्खियां अपने आस-पास के दो तीन किलोमीटर से पराग इकट्ठा करती हैं। यहां यह जान लेना महत्वपूर्ण है कि हम केवल उन मधुमक्खियों की बात कर रहे हैं जो मानवीय बस्ती के आस-पास छत्ते लगाती हैं। यानी वे मधुमक्खियां जो मनुष्य के निकट हैं। लेकिन जैसे-जैसे पर्यावरण में बदलाव आता है ये मधुमक्खियां उत्तर की ओर खिसकने लगती हैं।

इंसान जैसे-जैसे विकसित हुआ है वह अकेला पड़ता गया है। प्रकृति में मौजूद दूसरे जीवजंतु, प्राणी, वनस्पतियां सब उससे लगातार दूर होते गये हैं। ऐसा कोई एक दिन में नहीं हुआ लेकिन यह क्रम कभी रूका भी नहीं। जीवजंतु तो न जाने कब के हमारे लिए पालतू हो गये थे। मनुष्य ने सबसे पहले जिस जानवर को पालतू बनाया वह संभवतः गाय थी। उसके पहले तक का जो इतिहास हम देखते हैं वह यही है कि अस्तित्व में बने रहने के लिए मनुष्य भी पशुओं को उसी तरह मारता था जैसे एक पशु दूसरे को मारता था। लेकिन जिसे विकसित मनुष्य कह सकते हैं उसने जो कुछ किया उससे केवल पशुओं के अस्तित्व पर ही नहीं बल्कि वनस्पतियों के अस्तित्व पर भी संकट आ गया है। पहले मनुष्य ने पशुओं को मारा होगा लेकिन पशु उससे दूर नहीं भागे थे। लेकिन आज प्रकृति में मौजूद जीव धीरे-धीरे मनुष्य से दूर होते जा रहे हैं। याद करिए आखिरी बार आपने कब किसी घोसले को देखा था? याद करिए कि आपने अपने आस-पास किसी मधुमक्खी के छत्ते को कब देखा था?

रूठे रूठे से हैं मेहमान परिंदे

Submitted by Hindi on Wed, 01/11/2012 - 13:07
Author
प्रमोद भार्गव
Source
जनसत्ता रविवारी, 08 जनवरी 2012
migratory bird
देश के पक्षी अभ्यारण्य कई तरह के बढ़ते प्रदूषण की वजह से खतरे में हैं। झीलों और तालाबों में पानी और आहार की कमी हो गई है। प्रवासी पक्षियों की आमद न होने से सैलानी भी अपना मुंह मोड़ रहे हैं। इस मुश्किल हालात का जायजा ले रहे हैं। प्रमोद भार्गव

जल, वनस्पति और झील को आवास, आहार और प्रजनन का स्थल बनाने वाले जीव-जंतुओं पर शोध की तैयारी की जा रही है। यह शोध आर्द्रभूमि शोध एवं प्रशिक्षण केंद्र करेगा। इसके तहत झील में अध्ययन बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के साथ मिलकर किया जाएगा। इसके अलावा पश्चिम बंगाल में सीआईएफआरआई के साथ विश्व बैंक के सहयोग से चल रहे एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन परियोजना के तहत मछली पारिस्थितिकी और विभिन्न तथ्यों के बारे में अध्ययन किया जाएगा। आधुनिक विकास झीलों, तालाबों और नदियों के लिए प्रदूषण का ऐसा कारण बन गया है, जिससे इंसान तो इंसान पक्षी भी हैरान-परेशान हैं।

देश में पर्यावरण के साथ खिलवाड़ की आंच अब परिंदों तक जा पहुँची है। पारिस्थितिकी तंत्र के बिगड़ने की वजह से पक्षियों के जीवनचक्र पर विपरीत असर पड़ रहा है। यही वजह है कि विश्व प्रसिद्ध घना पक्षी-अभ्यारण्य के अलावा दूसरे अभ्यारण्यों की मनोरम झीलों पर जो परिंदे हर साल हजारों की संख्या में डेरा डाला करते थे, वे इस साल नदारद हैं। मेहमान पक्षी तो हजारों किलोमीटर की यात्रा कर देश की उथली झीलों, तालाबों, दलदलों और नदियों के किनारों पर चार महीने बसेरा किया करते थे। उनकी संख्या में काफी कमी आई है। बदलती आबोहवा की वजह से कई परंपरागत आवास स्थलों पर इन प्रवासी पक्षियों ने शगुन के लिए भी पड़ाव नहीं डाला। यह स्थिति पर्यावरणविदों के लिए तो चिंताजनक है ही, पर्यटन व्यवसाय की नजर से भी गंभीर चेतावनी है। राजस्थान में भरतपुर का केवलादेव घना राष्ट्रीय पक्षी अभ्यारण्य देश में एक ऐसा मनोरम स्थल था, जहां प्रवासी पक्षियों का सबसे ज्यादा जमावड़ा होता था।

रेत में नीर बहाने वाले

Submitted by Hindi on Thu, 01/05/2012 - 18:43
Author
सोपान जोशी
Source
तहलका हिन्दी, जनवरी 2012

फरहाद कॉन्ट्रैक्टर


पानी के सामाजिक काम में सबसे जरूरी है लोगों का अपनी परंपराओं में विश्वास लौटाना। उन्हें याद दिलाना कि उनके पूर्वज एक गौरवशाली परंपरा छोड़ गए हैं, जल संचय की जो थोड़ी सामाजिकता से फिर लौट आए हैं। यहां छोटे-छोटे तालाबों का प्रचलन रहा है जिन्हें नाड़ी कहा जाता है। नाड़ियों का जीर्णोद्धार भी गांव के लोगों ने शुरु कर दिया है। ऐसे प्रयास करने के लिए धीरज और सहृदयता के साथ ही सबसे जरूरी होता है समाज के संबल का लौटना

यह संस्थाओं का जमाना है। सबसे बड़ी संस्था है सरकार। उससे बाहर जो हो वे गैरसरकारी कहलाती है। असरकारी दोनों कितनी होती हैं इसका जवाब देने की जरूरत नहीं है। जगह-जगह बोर्ड और शिलान्यास दिखते है बड़े-बड़े सामाजिक कामों के। पर काम थोड़ा कम ही दिखता है। कई पर सरकारी पदाधिकारियों के नाम होते हैं और कई पर गैरसरकारी संस्थाओं के। फरहाद कॉन्ट्रैक्टर ऐसे बोर्ड को पटिया कहते हैं। एक छोटी-मोटी संस्था उनकी भी है अहमदाबाद में, समभाव नाम से, जिसमें वे काम करते हैं। पिछले कुछ सालों में उन्होंने एक और संस्था के लिए काम करने की कोशिश की है। इस संस्था का कोई पटिया लगा नहीं मिलता पर है यह सबसे पुरानी इतिहास से भी पुरानी है। यह संस्था है समाज।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
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Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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