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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

Submitted by Hindi on Thu, 10/21/2010 - 10:35
Source:
गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा
हरिकी पैंड़ी के आसपास बनारस की शोभा का सौवां हिस्सा भी आपको नहीं मिलेगा। फिर भी यहां पर प्रकृति और मनुष्य ने एक-दूसरे के बैरी न होते हुए गंगा की शोभा बढ़ाने का काम सहयोग से किया है।त्रिपथगा गंगा के तीन अवतार हैं। गंगोत्री या गोमुख से लेकर हरिद्वार तक की गंगा उसका प्रथम अवतार है। हरिद्वार से लेकर प्रयागराज तक की गंगा उसका दूसरा अवतार है प्रथम अवतार में वह पहाड़ के बंधन से-शिवजी की जटाओं से-मुक्त होने के लिए प्रयत्न करती है। दूसरे अवतार में वह अपनी बहन यमुना से मिलने के लिए आतुर है। प्रयागराज से गंगा यमुना से मिलकर अपने बड़े प्रवाह के साथ सरित्पति सागर में विलीन होने की चाह रखती है। यह है उसका तीसरा अवतार। गंगोत्री, हरिद्वार, प्रयाग और गंगासागर, गंगापुत्र आर्यों के लिए चार बड़े से बड़े तीर्थस्थान हैं। जितना ऊपर चढ़े उतना तीर्थ का माहात्म्य अधिक, ऐसा माना जाता है।
Submitted by Hindi on Thu, 10/21/2010 - 10:26
Source:
गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा
ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों मिलकर जिस तरह दत्तात्रेय जी बनते हैं, उसी तरह अलकनंदा, मंदाकिनी और भागीरथी मिलकर गंगामैया बनती हैं। ये तीनों गंगा की बहनें नहीं हैं, बल्कि गंगा के अंग हैं।ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों मिलकर जिस तरह दत्तात्रेय जी बनते हैं, उसी तरह अलकनंदा, मंदाकिनी और भागीरथी मिलकर गंगामैया बनती हैं। ये तीनों गंगा की बहनें नहीं हैं, बल्कि गंगा के अंग हैं। भागीरथी भले गंगोत्री से आती हो, तो भी मंदाकिनी का केदारनाथ और अलकनंदा का बद्रीनारायण भी गंगा के ही उद्गम है।
ब्रह्मकपाल से होकर जो अलकनंदा बहती है और वहां एक बार श्राद्ध करने से जो अशेष पूर्वजों को एक साथ हमेशा के लिए मुक्ति देती है उस अलकनंदा का उद्गम स्थान क्या गंगोत्री से कम पवित्र है?
Submitted by Hindi on Wed, 10/20/2010 - 10:06
Source:
गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा
एक काव्य-हृदयी ऋषि वहां यमुना के किनारे रहकर हमेशा गंगास्नान के लिए जाया करता था। किन्तु भोजन के लिए वापिस यमुना के ही घर आ जाता था। जब वह बूढ़ा हुआ-ऋषि भी अंत में बूढ़े होते हैं-तब उसके थके मांदे पांवों पर तरस खाकर गंगा ने अपना प्रतिनिधि रूप एक छोटा-सा झरना यमुना के तीर पर ऋषि के आश्रम में भेज दिया। आज भी वह छोटा सा सफेद प्रवाह उस ऋषि का स्मरण कराता हुआ बह रहा है।हिमालय तो भव्यता का भंडार है। जहां-तहां भव्यता को बिखेरकर भव्यता की भव्यता को कम करते रहना ही मानो हिमालय का व्यवसाय है। फिर भी ऐसे हिमालय में एक ऐसा स्थान है, जिसकी ऊर्जस्विता हिमालय वासियों का भी ध्यान खींचती हैं। यह है यमराज की बहन का उद्गम-स्थान।

ऊंचाई से बर्फ पिघलकर एक बड़ा प्रपात गिरता है। इर्द-गिर्द गगनचुंबी नहीं, बल्कि गगनभेदी पुराने वृक्ष आड़े गिरकर गल जाते हैं। उत्तुंग पहाड़ यमदुतों की तरह रक्षण करने के लिए खड़ें हैं। कभी पानी जमकर बर्फ बन जाता है, और कभी बर्फ पिघलकर उसका बर्फ के जितना ठंडा पानी बन जाता है। ऐसे स्थान में जमीन के अंदर से एक अद्भुत ढंग से उबलता हुआ पानी उछलता रहता है। जमीन के भीतर से ऐसी आवाज निकलती है।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

जीवनतीर्थ हरिद्वार

Submitted by Hindi on Thu, 10/21/2010 - 10:35
Author
काका कालेलकर
Source
गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा
हरिकी पैंड़ी के आसपास बनारस की शोभा का सौवां हिस्सा भी आपको नहीं मिलेगा। फिर भी यहां पर प्रकृति और मनुष्य ने एक-दूसरे के बैरी न होते हुए गंगा की शोभा बढ़ाने का काम सहयोग से किया है।त्रिपथगा गंगा के तीन अवतार हैं। गंगोत्री या गोमुख से लेकर हरिद्वार तक की गंगा उसका प्रथम अवतार है। हरिद्वार से लेकर प्रयागराज तक की गंगा उसका दूसरा अवतार है प्रथम अवतार में वह पहाड़ के बंधन से-शिवजी की जटाओं से-मुक्त होने के लिए प्रयत्न करती है। दूसरे अवतार में वह अपनी बहन यमुना से मिलने के लिए आतुर है। प्रयागराज से गंगा यमुना से मिलकर अपने बड़े प्रवाह के साथ सरित्पति सागर में विलीन होने की चाह रखती है। यह है उसका तीसरा अवतार। गंगोत्री, हरिद्वार, प्रयाग और गंगासागर, गंगापुत्र आर्यों के लिए चार बड़े से बड़े तीर्थस्थान हैं। जितना ऊपर चढ़े उतना तीर्थ का माहात्म्य अधिक, ऐसा माना जाता है।

मूल त्रिवेणी

Submitted by Hindi on Thu, 10/21/2010 - 10:26
Author
काका कालेलकर
Source
गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा
ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों मिलकर जिस तरह दत्तात्रेय जी बनते हैं, उसी तरह अलकनंदा, मंदाकिनी और भागीरथी मिलकर गंगामैया बनती हैं। ये तीनों गंगा की बहनें नहीं हैं, बल्कि गंगा के अंग हैं।ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों मिलकर जिस तरह दत्तात्रेय जी बनते हैं, उसी तरह अलकनंदा, मंदाकिनी और भागीरथी मिलकर गंगामैया बनती हैं। ये तीनों गंगा की बहनें नहीं हैं, बल्कि गंगा के अंग हैं। भागीरथी भले गंगोत्री से आती हो, तो भी मंदाकिनी का केदारनाथ और अलकनंदा का बद्रीनारायण भी गंगा के ही उद्गम है।
ब्रह्मकपाल से होकर जो अलकनंदा बहती है और वहां एक बार श्राद्ध करने से जो अशेष पूर्वजों को एक साथ हमेशा के लिए मुक्ति देती है उस अलकनंदा का उद्गम स्थान क्या गंगोत्री से कम पवित्र है?

यमुना रानी

Submitted by Hindi on Wed, 10/20/2010 - 10:06
Author
काका कालेलकर
Source
गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा
एक काव्य-हृदयी ऋषि वहां यमुना के किनारे रहकर हमेशा गंगास्नान के लिए जाया करता था। किन्तु भोजन के लिए वापिस यमुना के ही घर आ जाता था। जब वह बूढ़ा हुआ-ऋषि भी अंत में बूढ़े होते हैं-तब उसके थके मांदे पांवों पर तरस खाकर गंगा ने अपना प्रतिनिधि रूप एक छोटा-सा झरना यमुना के तीर पर ऋषि के आश्रम में भेज दिया। आज भी वह छोटा सा सफेद प्रवाह उस ऋषि का स्मरण कराता हुआ बह रहा है।हिमालय तो भव्यता का भंडार है। जहां-तहां भव्यता को बिखेरकर भव्यता की भव्यता को कम करते रहना ही मानो हिमालय का व्यवसाय है। फिर भी ऐसे हिमालय में एक ऐसा स्थान है, जिसकी ऊर्जस्विता हिमालय वासियों का भी ध्यान खींचती हैं। यह है यमराज की बहन का उद्गम-स्थान।

ऊंचाई से बर्फ पिघलकर एक बड़ा प्रपात गिरता है। इर्द-गिर्द गगनचुंबी नहीं, बल्कि गगनभेदी पुराने वृक्ष आड़े गिरकर गल जाते हैं। उत्तुंग पहाड़ यमदुतों की तरह रक्षण करने के लिए खड़ें हैं। कभी पानी जमकर बर्फ बन जाता है, और कभी बर्फ पिघलकर उसका बर्फ के जितना ठंडा पानी बन जाता है। ऐसे स्थान में जमीन के अंदर से एक अद्भुत ढंग से उबलता हुआ पानी उछलता रहता है। जमीन के भीतर से ऐसी आवाज निकलती है।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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