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Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

Submitted by Hindi on Mon, 10/18/2010 - 13:17
Source:
गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा
कृष्णा का कुटुम्ब काफी बड़ा है। कई छोटी-बड़ी नदीयां उससे आ मिलती हैं। गोदावरी के साथ-साथ कृष्णा को भी हम ‘महाराष्ट्र-माता’ कह सकते हैं। जिस समय आज की मराठी भाषा बोली नहीं जाती थी, उस समय का सारा महाराष्ट्र कृष्णा के ही घेरे के अंदर आता था।एकादशी का दिन था। गाड़ी में बैठकर हम माहुली चले। महाराष्ट्र की राजधानी सातारा से माहुली कुछ दूरी पर है। रास्ते में दाहिनी तरफ श्री शाहु महाराज के वफादार कुत्ते की समाधि आती है। रास्ते पर हमारी ही तरह बहुत से लोग माहुली की तरफ गाड़ियां दौड़ा रहे थे। आखिर हम नदी के किनारे पहुंचे। वहां इस पार से उस पार तक लोहे की एक जंजीर ऊंची तनी हुई थी। उसमें रस्सी से एक नाव लटकाई गई थी, जो मेरी बाल-आंखों को बड़ी ही भव्य मालूम होती थी।

Submitted by Hindi on Mon, 10/18/2010 - 11:41
Source:
गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा
आगे जाकर जब मैं कॉलेज में पढ़ने लगा तब इम्तहान के बाद हमारी भैयादूज होती है। फसल काटने के दिन होते। दो-दो दिन खेत में ही बिताने पड़ते। तब मार्कण्डी मुझे शकरकंद भी खिलाती और अमृत जैसा पानी भी पिलाती। जब यह देखने के लिए मैं जाता कि रात को ठंड के मारे वह कांप तो नहीं रही है, तब अपने आइने में वह मुझे मृगनक्षत्र दिखाती।क्या हरएक नदी माता ही होती है? नहीं। मार्कण्डी तो मेरी छुटपन की सखी है। वह इतनी छोटी है कि मैं उसे अपनी बड़ी बहन भी नहीं कह सकता।

बेलगुंदी के हमारे खेत में गूलर के पेड़ के नीचे दुपहर की छाया में जाकर बैठूं तो मार्कण्डी का मंद पवन मुझे जरूर बुलायेगा। मार्कण्डी के किनारे मैं कई बार बैठा हूं, और पवन की लहरों से डोलती हुई घास की पत्तियों को मैंने घंटों तक निहारा है। मार्कण्डी के किनारे असाधारण अद्भुत कुछ भी नहीं है। न कोई खास किस्म के फूल हैं, न तरह-तरह के रंगों की तितलियां हैं। सुन्दर पत्थर भी वहां नहीं हैं। अपने कलकूजन से चित्त को बेचैन कर डाले ऐसे छोटे-बड़े प्रपात भला वहां कहां से हों? वहां है केवल स्निग्ध शांति।

Submitted by admin on Sun, 10/17/2010 - 08:51
Source:
हिन्दुस्तान रीमिक्स, लाइव हिन्दुस्तान
पुष्कर लेकसोचो कि झीलों का शहर हो, लहरों पे अपना एक घर हो..। कोई बात नहीं जो झीलों के शहर में लहरों पर अपना घर नहीं हो पाए, कुछ समय तो ऐसा अनुभव प्राप्त कर ही सकते हैं जो आपको जिंदगी भर याद रहे। कहीं झीलों में तैरते घर तो कहीं, उसमें बोटिंग का रोमांचक आनन्द। कहीं झील किनारे बैठकर या वोटिंग करते हुए डॉलफिन मछली की करतबों का आनन्द तो कहीं धार्मिक आस्थाओं में सराबोर किस्से। ऐसी अनेक झीलें हैं हमारे देश में जिनमें से 10 महत्वपूर्ण झीलों पर एक रिपोर्ट।

डल लेकजहां लहरों पर दिखते हैं घर
डल लेक का तो नाम ही काफी है। देश की सबसे अधिक लोकप्रिय इस लेक को प्राकृतिक खूबसूरती के लिए तो दुनियाभर में जाना ही जाता है, यह लोगों की आस्था से भी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में इस लेक के किनारे देवी दुर्गा की निवास स्थली थी और इस स्थली का नाम था सुरेश्वरी। लेकिन यह झील ज्यादा लोकप्रिय हुई अपने प्राकृतिक और भौगोलिक

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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कृष्णा के संस्मरण

Submitted by Hindi on Mon, 10/18/2010 - 13:17
Author
काका कालेलकर
Source
गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा
कृष्णा का कुटुम्ब काफी बड़ा है। कई छोटी-बड़ी नदीयां उससे आ मिलती हैं। गोदावरी के साथ-साथ कृष्णा को भी हम ‘महाराष्ट्र-माता’ कह सकते हैं। जिस समय आज की मराठी भाषा बोली नहीं जाती थी, उस समय का सारा महाराष्ट्र कृष्णा के ही घेरे के अंदर आता था।एकादशी का दिन था। गाड़ी में बैठकर हम माहुली चले। महाराष्ट्र की राजधानी सातारा से माहुली कुछ दूरी पर है। रास्ते में दाहिनी तरफ श्री शाहु महाराज के वफादार कुत्ते की समाधि आती है। रास्ते पर हमारी ही तरह बहुत से लोग माहुली की तरफ गाड़ियां दौड़ा रहे थे। आखिर हम नदी के किनारे पहुंचे। वहां इस पार से उस पार तक लोहे की एक जंजीर ऊंची तनी हुई थी। उसमें रस्सी से एक नाव लटकाई गई थी, जो मेरी बाल-आंखों को बड़ी ही भव्य मालूम होती थी।

सखी मार्कण्डी

Submitted by Hindi on Mon, 10/18/2010 - 11:41
Author
काका कालेलकर
Source
गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा
आगे जाकर जब मैं कॉलेज में पढ़ने लगा तब इम्तहान के बाद हमारी भैयादूज होती है। फसल काटने के दिन होते। दो-दो दिन खेत में ही बिताने पड़ते। तब मार्कण्डी मुझे शकरकंद भी खिलाती और अमृत जैसा पानी भी पिलाती। जब यह देखने के लिए मैं जाता कि रात को ठंड के मारे वह कांप तो नहीं रही है, तब अपने आइने में वह मुझे मृगनक्षत्र दिखाती।क्या हरएक नदी माता ही होती है? नहीं। मार्कण्डी तो मेरी छुटपन की सखी है। वह इतनी छोटी है कि मैं उसे अपनी बड़ी बहन भी नहीं कह सकता।

बेलगुंदी के हमारे खेत में गूलर के पेड़ के नीचे दुपहर की छाया में जाकर बैठूं तो मार्कण्डी का मंद पवन मुझे जरूर बुलायेगा। मार्कण्डी के किनारे मैं कई बार बैठा हूं, और पवन की लहरों से डोलती हुई घास की पत्तियों को मैंने घंटों तक निहारा है। मार्कण्डी के किनारे असाधारण अद्भुत कुछ भी नहीं है। न कोई खास किस्म के फूल हैं, न तरह-तरह के रंगों की तितलियां हैं। सुन्दर पत्थर भी वहां नहीं हैं। अपने कलकूजन से चित्त को बेचैन कर डाले ऐसे छोटे-बड़े प्रपात भला वहां कहां से हों? वहां है केवल स्निग्ध शांति।

कहीं झीलों का शहर कहीं लहरों पर घर

Submitted by admin on Sun, 10/17/2010 - 08:51
Author
दैनिक हिन्दुस्तान
Source
हिन्दुस्तान रीमिक्स, लाइव हिन्दुस्तान
पुष्कर लेकपुष्कर लेकसोचो कि झीलों का शहर हो, लहरों पे अपना एक घर हो..। कोई बात नहीं जो झीलों के शहर में लहरों पर अपना घर नहीं हो पाए, कुछ समय तो ऐसा अनुभव प्राप्त कर ही सकते हैं जो आपको जिंदगी भर याद रहे। कहीं झीलों में तैरते घर तो कहीं, उसमें बोटिंग का रोमांचक आनन्द। कहीं झील किनारे बैठकर या वोटिंग करते हुए डॉलफिन मछली की करतबों का आनन्द तो कहीं धार्मिक आस्थाओं में सराबोर किस्से। ऐसी अनेक झीलें हैं हमारे देश में जिनमें से 10 महत्वपूर्ण झीलों पर एक रिपोर्ट।

डल लेक

जहां लहरों पर दिखते हैं घर


डल लेक का तो नाम ही काफी है। देश की सबसे अधिक लोकप्रिय इस लेक को प्राकृतिक खूबसूरती के लिए तो दुनियाभर में जाना ही जाता है, यह लोगों की आस्था से भी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में इस लेक के किनारे देवी दुर्गा की निवास स्थली थी और इस स्थली का नाम था सुरेश्वरी। लेकिन यह झील ज्यादा लोकप्रिय हुई अपने प्राकृतिक और भौगोलिक

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
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Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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