पिथौरागढ़ नगर के सभी प्राकृतिक जलस्रोतों की हालत बदतर होती जा रही है। देख-रेख के अभाव के कारण इन जलस्रोतों के आसपास कूड़े के ढेर बनने लगे हैं। अभी सर्दी का मौसम है मगर गर्मियों में यही हाल रहा तो ये सूखने की कगार पर आ रहे प्राकृतिक जलस्रोत ही बीमारियों को न्यौता देेंगे। बता दें कि पहाड़ों में अधिकांश गाँव उसी स्थान पर बसे हैं जहाँ प्रकृतिक जलस्रोत मौजूद हैं।
आज भी लोग इन्हीं प्राकृतिक जलस्रोतों से अपनी छोटी-मोटी जरूरतें पूरी कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में दिन की शुरुआत इन प्राकृतिक जलस्रोतों को साफ करते देखा जा सकता है। जबकि जो क्षेत्र पिथौरागढ़ के अनुसार नगरीय हो चले हैं वहाँ पर लोग ऐसे सहभागिता के कामों के लिये नगर प्रशासन पर निर्भर हो जाते हैं।
अब देखा यह जा रहा है कि पिथौरागढ़ नगरार्न्तगत के नौलों, धारों व अन्य जलस्रोतों की हालत बेहद खराब दिखाई दे रही है। हाल ही में कुमाऊ मण्डल ऑनर्स यूनियन के बस स्टेशन के नजदीक का जलधारा कभी लोेगों से गुलजार रहा करता था। पर आज लोेग वहाँ स्थायी रूप से नहीं रहते परन्तु बस अड्डे के कारण वहाँ पर लोगों को आना-जाना भारी मात्रा में होता है।
मौजूदा समय में इस क्षेत्र की देख-रेख नगर प्रशासन के अधीन है। हालात इस कदर है कि मुसाफिर लोग इस जलधारे के हालात पर रोना रो रहे हैं तो पालिका प्रशासन की उदासीनता के चलते यह नौला भी बुरे दौर से गुजर रहा है। वैसे पूर्व में एक बार पालिका द्वारा इस जगह पर महंगी टाइल्स बिछाई गई थी और इस नौले के पास महिलाओं व पुरुषों के लिये अलग-अलग जगह बनाई गई थी। लेकिन महिलाओं के लिये बनाई गई जगह को खुला रखा गया।
शान्ति देवी का कहना है कि कई बार महिलाओं द्वारा इस जगह पर दीवार लगवाने की माँग के लिये पालिका से कहा गया है परन्तु सुनने वाला कोई नहीं है। सिर्फ बजट को कैसे ठिकाने लगाना है उस पर जनप्रतिनिधियों की ऊर्जा दोगुनी हो जाती है। कहती है कि इस जलधारे की स्थिति कैसी है, क्या यह सूख रहा है, क्या इसे कभी साफ करना है इत्यादि जैसे कामों के लिये स्थानीय जनप्रतिनिधियों की उदासीनता साफ दिखाई देती है।
स्थानीय निवासी प्रदीप तेवाड़ी का कहना है कि इस नौले के ऊपर एक स्टोरेज टैंक भी बनाया गया है लेकिन सफाई के अभाव में इस टैंक के भीतर गन्दगी का ढेर जम चुका है। यही नहीं इस टैंक के भीतर आस-पास की सीवर लाइन का पानी भी रिसता है। जबकि कुमाऊ मण्डल ऑनर्स यूनियन के बस स्टेशन के पास यह नौला लोगों को राहत देने के लिये काफी प्रसिद्ध था।
गर्मी के दिनों में जब आस-पास के प्राकृतिक जलस्रोत सूख जाते थे, तब भी इस स्थान पर बने दोनों धारों पर पर्याप्त मात्रा में पानी मिलता था। पर एक तरफ इस नौले का पानी सूखने के कगार पर है और दूसरी तरफ जो इस नौले में पानी आ भी रहा है वह इतना गन्दला हो गया कि बदबू के कारण यहाँ पर खड़ा रहना ही मुश्किल हो जाता है। ऐसा ही हाल नगर के अन्य नौलों व धारों का बना हुआ है।
सफाई व देख-रेख के अभाव के चलते अनेक स्थानों के जलस्रोत सूखने की कगार पर आ चुके हैं। कभी आधे नगर की प्यास बुझाने वाला प्रसिद्व चिमस्यानौला आज अपने अस्तित्व के लिये जूझ रहा है। इस प्राकृतिक जलस्रोत पर जल संस्थान ने यह पानी पीने योग्य नहीं है का बोर्ड लगा दिया है। जिसमें स्थिति का अन्दाजा लगाया जा सकता है कि लोगों की प्यास बुझाने का दम्भ भरने वाला संस्थान जलस्रोत की सुरक्षा व संरक्षण की बात तो नहीं करता बल्कि लोगों को यह सन्देश देने में कतई नहीं कतरा रहा है कि अमुक जलस्रोत का पानी विषैला हो गया है, जो पीने योग्य नहीं है।
मात्र पिथौरागढ़ नगर में जलस्रोतों की हालात ऐसी नहीं है बजाय ऐसे ही हाल जिला मुख्यालय से लगे शिवालयधारा, कुमौड़, जाखनी, धनौड़ा, पुनेड़ी, लिंठूड़ा, सिल्पाटा, खड़कोट के नौलों व धारों का भी देखा जा रहा है। कभी ग्रामीणों के साथ-साथ क्षेत्रीय जनता की जरूरतों को पूरा करने वाले धारों का पानी आज नहाने, धोने के लायक भी नहीं रह गए हैं। जैसे-जैसे इन प्राकृतिक जलस्रोतों के आस-पास बसासतें बढ़ती जा रही हैं। वैसे-वैसे इन जलस्रोतों का पानी भी दूषित होता जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण सीवर लाइन की कमी बताई जा रही है।
प्रायः देखा गया कि लोगों द्वारा अपने सीवर लाइन खुले में ही बना दिये गए हैं। जिसके चलते इनका पानी आस-पास निकलने वाले प्राकृतिक जलस्रोतों से मिल रहा है और प्राकृतिक जलस्रोत दूषित हो रहे हैं। इसके अलावा तेजी से कंक्रीट के जंगल में बदलते शहरों ने भी इस मुसीबत में आग में घी डालने का काम कर दिया है। मकानों की सघनता के कारण इन जलस्रोतों को बरसात में जितनी नमी मिलनी चाहिए थी उतनी नहीं मिल पा रही है। जिसके चलते इनका पानी दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है।
इस दिशा में नगर के कई पर्यावरणविदों की भी यही राय है कि अगर वक्त रहते इनके संरक्षण की दिशा में कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले समय में लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। जल संकट और जल प्रदूषण के प्रति पिथौरागढ़ नगरवासियों, जिला प्रशासन व पालिका प्रशासन द्वारा इस दिशा में कोई ठोस कार्य करने की जहमत अब तक किसी ने भी नहीं उठाई है। कहना ना होगा कि ऐसी मूल समस्या के समाधान के लिये लोगों को खुद ही आगे आना होगा।
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