तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

जंगलसतत एवं सन्तुलित विकास के लिये प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षणोन्मुखी उपयोग आवश्यक होता है। लेकिन वर्तमान सदी में औद्योगिक विकास ने जहाँ इस तथ्य की अनदेखी करते हुए संसाधनों का अविवेकपूर्ण ढंग से अधिकाधिक दोहन किया और संरक्षण की दिशा में कोई व्यावहारिक परिणाममूलक कार्य योजना प्रस्तुत नहीं की, वहीं उपभोक्तावाद को चरम पर पहुँचाकर संरक्षणवादी विचार को ही विलुप्तप्राय कर दिया। इसका परिणाम हमारे सामने पारिस्थितिकीय एवं पर्यावरणी असन्तुलन के रूप में आया है।
ग्लोबल वार्मिंगजब भी हमारे शरीर का ताप बढ़ता है, हम कहते हैं कि हमें बुखार आ गया। ठीक इसी तरह जब धरती का ताप बढ़ता है तो हम कहते हैं कि इसे बुखार आ गया है। यह सुनने में कुछ अजीब लगता है। लेकिन, यह सच है। अतः मन में स्वाभाविक ही प्रश्न उठता है कि आखिर धरती को कैसे आता है बुखार?
आज के औद्योगिक दौर में कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसों की मात्रा लगातार बढ़ रही है और इसके कारण धरती के औसत ताप में लगातार वृद्धि हो रही है। यह धरती के बुखार का संकेत है।
जंगलसतत एवं सन्तुलित विकास के लिये प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षणोन्मुखी उपयोग आवश्यक होता है। लेकिन वर्तमान सदी में औद्योगिक विकास ने जहाँ इस तथ्य की अनदेखी करते हुए संसाधनों का अविवेकपूर्ण ढंग से अधिकाधिक दोहन किया और संरक्षण की दिशा में कोई व्यावहारिक परिणाममूलक कार्य योजना प्रस्तुत नहीं की, वहीं उपभोक्तावाद को चरम पर पहुँचाकर संरक्षणवादी विचार को ही विलुप्तप्राय कर दिया। इसका परिणाम हमारे सामने पारिस्थितिकीय एवं पर्यावरणी असन्तुलन के रूप में आया है।
ग्लोबल वार्मिंगजब भी हमारे शरीर का ताप बढ़ता है, हम कहते हैं कि हमें बुखार आ गया। ठीक इसी तरह जब धरती का ताप बढ़ता है तो हम कहते हैं कि इसे बुखार आ गया है। यह सुनने में कुछ अजीब लगता है। लेकिन, यह सच है। अतः मन में स्वाभाविक ही प्रश्न उठता है कि आखिर धरती को कैसे आता है बुखार?
आज के औद्योगिक दौर में कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसों की मात्रा लगातार बढ़ रही है और इसके कारण धरती के औसत ताप में लगातार वृद्धि हो रही है। यह धरती के बुखार का संकेत है।
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