तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

बिहार के पश्चिम-उत्तर छोर पर पश्चिम चंपारण जिले के एक चॅंवर से निकलती है नदी सिकरहना, जो नेपाल की ओर से आने वाली अनेक छोटी-छोटी जलधाराओं का पानी समेटते हुए चंपारण, मुजफफरपुर, समस्तीपुर जिलों से होकर खगड़िया जिले में गंगा में समाहित हो जाती है। यह पूरी तरह मैदानी नदी है और गंडक नदी के पूरब-उत्तर के पूरे इलाके में हुई बरसात के पानी की निकासी का साधन है। इस बार की बाढ़ की शुरूआत इसी सिकरहना नदी से हुई और चंपारण जिले के अनेक शहरों, कस्बों में पानी घूसा, सडकें टूट गई और रेलमार्ग बंद हो गया। यहाँ से पानी निकलेगा तो रास्ते के जिलों को डूबोते हुए बढ़ेगा।
टाइप I संश्लेषित पायरिथ्रॉएड्स के अवयव
एलथ्रिन व बायोएलथ्रिन
4.0%
डी एलथ्रिन
0.2 से 0.3%
डी ट्रांसएलथ्रिन
0.1 से 0.15%
एस बायोएलथ्रिन
1.9%
मानव स्वास्थ्य पर इन मच्छरनाशकों के बुरे प्रभाव जानने के लिये हमने नौ राज्यों के ग्रामीण एवं शहरी इलाकों में मच्छरनाशकों के उपयोगकर्ताओं और चिकित्सकों के बीच एक सर्वेक्षण किया। परिणामों के अनुसार लगभग 11.8 प्रतिशत उपयोगकर्ताओं ने (इसमें सभी आयु वर्ग के स्त्री व पुरुष दोनों आते हैं) अत्यधिक विषाक्तता की शिकायत की। यह नशीलापन मच्छरनाशक के उपयोग के तुरन्त बाद से लेकर कुछ घण्टों के उपयोग के दौरान तक आता है।
तालिका 1 : स्वास्थ्य पर मच्छरविकर्षियों का प्रभाव
तकलीफ
प्रभावित व्यक्ति (कुल 5920 में से)
साँस लेने में परेशानी
248
आँखों में जलन
165
खाँसी, जुकाम और छींके आना
99
सिर दर्द
78
दमा
28
श्वास नलिका में घरघराहट
27
जलन
20
नाक, कान और गले में दर्द
18
अन्य
19
कुल
702
कुछ शोधकर्ताओं ने मच्छरभगाऊ उपायों के उपयोग को लेकर चेतावनी दी है। विदेशों में हुए अध्ययन के अनुसार ये मच्छरनाशक मुख्यतः पायरिथ्रूमस नामक रसायन का उपयोग करते हैं जिससे नाक बहती है, साँसों में घरघराहट होती है और धमनियाँ तथा लीवर भी नष्ट हो सकते हैं। साथ ही दमा भी हो सकता है। भारत के नाक, कान व गला विशेषज्ञों को भी अपने मरीजों में इसी प्रकार के लक्षण दिखने लगे हैं। इंडस्ट्रियल टॉक्सिकोलॉजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट लखनऊ ने भी मच्छरनाशकों के उपयोग से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले गम्भीर प्रभावों को दर्ज किया है।
दिमाग का सेरिब्रल कॉर्टेक्स कई स्रोतों से आने वाली सूचनाओं की प्रोसेसिंग तथा शरीर की प्रतिक्रिया भी तय करता है। यह सब तंत्रिका तन्तुओं के जरिए आते-जाते विद्युत-रसायन आवेगों द्वारा होता है।
तंत्रिका तन्तुओं की कोशिका झिल्ली में होने वाले बदलावों से आवेग आगे बढ़ते हैं। झिल्ली सामान्यतः अलग-अलग सान्द्रता वाले विद्युत आवेशित पोटैशियम आयनों और सोडियम आयनों के लिये अवरोध का काम करती है। पोटैशियम आयन तंत्रिका तन्तु के भीतर होते हैं और सोडियम आयन शरीर के द्रव में। लेकिन जब तंत्रिका आवेग पैदा होते हैं तो कोशिका झिल्ली में कुछ समय के लिये बदलाव हो जाते हैं। वह पोटैशियम आयनों को बाहर बढ़ने देती है और सोडियम आयनों को भीतर आने देती है। इस आवक-जावक से नन्हा विद्युतीय विभव पैदा होता है जो तंत्रिका आवेग को पैदा करता है। जब तंत्रिका के हिस्से पर पर्याप्त विभव बन जाता है तो अगली कोशिका उत्तेजित हो जाती है। एक बार आवेग के आगे बढ़ जाने पर कोशिकीय झिल्ली अपनी पुरानी अवरोधक भूमिका फिर से अपना लेती है जब तक कि अगला आवेग न आए।
सोडियम चैनल
तंत्रिका आवेग विद्युतीय आवेशों की एक कड़ी हैं जो विद्युतरोधी तंत्रिका तन्तुओं के जरिए आगे बढ़ते हैं। सोडियम आयन से घिरे एक तन्तु के ऋणात्मक भीतरी हिस्से में पोटैशियम आयन होते हैं। जब भी संवेदी तंत्रिका का सिरा उत्तेजित होता है तो सोडियम आयन अस्थाई तौर पर तंत्रिका के जोड़ों में पहुँचते हैं। नतीजे में उत्पन्न ऋणात्मक आवेश जोड़ों से होता हुआ केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र तक पहुँचता है।
2. मल-जल निकासी की उत्तम व्यवस्था : नालियों में रुके पानी को निकालने के लिये समुचित ढाल दी जाए। जल की निकासी अधिक फैली न हो तथा निकासी गड्ढे गहरे हों। समय-समय पर नालियों में से गाद निकाली जाती रहे। सीवर तथा नालियों को वर्षा पूर्व साफ किया जाए ताकि पानी बिना अवरोध के नालियों में से बह जाए।
बिहार के पश्चिम-उत्तर छोर पर पश्चिम चंपारण जिले के एक चॅंवर से निकलती है नदी सिकरहना, जो नेपाल की ओर से आने वाली अनेक छोटी-छोटी जलधाराओं का पानी समेटते हुए चंपारण, मुजफफरपुर, समस्तीपुर जिलों से होकर खगड़िया जिले में गंगा में समाहित हो जाती है। यह पूरी तरह मैदानी नदी है और गंडक नदी के पूरब-उत्तर के पूरे इलाके में हुई बरसात के पानी की निकासी का साधन है। इस बार की बाढ़ की शुरूआत इसी सिकरहना नदी से हुई और चंपारण जिले के अनेक शहरों, कस्बों में पानी घूसा, सडकें टूट गई और रेलमार्ग बंद हो गया। यहाँ से पानी निकलेगा तो रास्ते के जिलों को डूबोते हुए बढ़ेगा।
टाइप I संश्लेषित पायरिथ्रॉएड्स के अवयव | |
एलथ्रिन व बायोएलथ्रिन | 4.0% |
डी एलथ्रिन | 0.2 से 0.3% |
डी ट्रांसएलथ्रिन | 0.1 से 0.15% |
एस बायोएलथ्रिन | 1.9% |
मानव स्वास्थ्य पर इन मच्छरनाशकों के बुरे प्रभाव जानने के लिये हमने नौ राज्यों के ग्रामीण एवं शहरी इलाकों में मच्छरनाशकों के उपयोगकर्ताओं और चिकित्सकों के बीच एक सर्वेक्षण किया। परिणामों के अनुसार लगभग 11.8 प्रतिशत उपयोगकर्ताओं ने (इसमें सभी आयु वर्ग के स्त्री व पुरुष दोनों आते हैं) अत्यधिक विषाक्तता की शिकायत की। यह नशीलापन मच्छरनाशक के उपयोग के तुरन्त बाद से लेकर कुछ घण्टों के उपयोग के दौरान तक आता है।
तालिका 1 : स्वास्थ्य पर मच्छरविकर्षियों का प्रभाव | |
तकलीफ | प्रभावित व्यक्ति (कुल 5920 में से) |
साँस लेने में परेशानी | 248 |
आँखों में जलन | 165 |
खाँसी, जुकाम और छींके आना | 99 |
सिर दर्द | 78 |
दमा | 28 |
श्वास नलिका में घरघराहट | 27 |
जलन | 20 |
नाक, कान और गले में दर्द | 18 |
अन्य | 19 |
कुल | 702 |
कुछ शोधकर्ताओं ने मच्छरभगाऊ उपायों के उपयोग को लेकर चेतावनी दी है। विदेशों में हुए अध्ययन के अनुसार ये मच्छरनाशक मुख्यतः पायरिथ्रूमस नामक रसायन का उपयोग करते हैं जिससे नाक बहती है, साँसों में घरघराहट होती है और धमनियाँ तथा लीवर भी नष्ट हो सकते हैं। साथ ही दमा भी हो सकता है। भारत के नाक, कान व गला विशेषज्ञों को भी अपने मरीजों में इसी प्रकार के लक्षण दिखने लगे हैं। इंडस्ट्रियल टॉक्सिकोलॉजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट लखनऊ ने भी मच्छरनाशकों के उपयोग से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले गम्भीर प्रभावों को दर्ज किया है।
दिमाग का सेरिब्रल कॉर्टेक्स कई स्रोतों से आने वाली सूचनाओं की प्रोसेसिंग तथा शरीर की प्रतिक्रिया भी तय करता है। यह सब तंत्रिका तन्तुओं के जरिए आते-जाते विद्युत-रसायन आवेगों द्वारा होता है। तंत्रिका तन्तुओं की कोशिका झिल्ली में होने वाले बदलावों से आवेग आगे बढ़ते हैं। झिल्ली सामान्यतः अलग-अलग सान्द्रता वाले विद्युत आवेशित पोटैशियम आयनों और सोडियम आयनों के लिये अवरोध का काम करती है। पोटैशियम आयन तंत्रिका तन्तु के भीतर होते हैं और सोडियम आयन शरीर के द्रव में। लेकिन जब तंत्रिका आवेग पैदा होते हैं तो कोशिका झिल्ली में कुछ समय के लिये बदलाव हो जाते हैं। वह पोटैशियम आयनों को बाहर बढ़ने देती है और सोडियम आयनों को भीतर आने देती है। इस आवक-जावक से नन्हा विद्युतीय विभव पैदा होता है जो तंत्रिका आवेग को पैदा करता है। जब तंत्रिका के हिस्से पर पर्याप्त विभव बन जाता है तो अगली कोशिका उत्तेजित हो जाती है। एक बार आवेग के आगे बढ़ जाने पर कोशिकीय झिल्ली अपनी पुरानी अवरोधक भूमिका फिर से अपना लेती है जब तक कि अगला आवेग न आए। सोडियम चैनल तंत्रिका आवेग विद्युतीय आवेशों की एक कड़ी हैं जो विद्युतरोधी तंत्रिका तन्तुओं के जरिए आगे बढ़ते हैं। सोडियम आयन से घिरे एक तन्तु के ऋणात्मक भीतरी हिस्से में पोटैशियम आयन होते हैं। जब भी संवेदी तंत्रिका का सिरा उत्तेजित होता है तो सोडियम आयन अस्थाई तौर पर तंत्रिका के जोड़ों में पहुँचते हैं। नतीजे में उत्पन्न ऋणात्मक आवेश जोड़ों से होता हुआ केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र तक पहुँचता है। |
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