तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

गंगा नदीगंगा अपने मायके में ही मैली हो जाती है। गोमुख से उत्तरकाशी के बीच दस छोटे-बड़े कस्बे हैं। तीर्थयात्रा-काल में इन स्थानों पर औसतन एक लाख लोग होते हैं। इनमें से कहीं भी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है। करीब छह हजार की स्थायी आबादी वाले देवप्रयाग कस्बे में भागीरथी और अलकनंदा के मिलने के बाद गंगा बनती है। इस कस्बे में छह नाले सीधे गंगा में गिरते हैं, ट्रीटमेंट प्लांट 2010 से बन ही रहा है। ऋषिकेश में 12 नाले गंगा में जाते हैं, वहाँ लक्ष्मण झूला और त्रिवेणी घाट के बीच ट्रीटमेंट प्लांट तो बन गया है, पर उसके संचालन में कठिनाई है और मलजल सीधे गंगा में प्रवाहित करने का आसान रास्ता अपनाया जाता है।
समाजिक कार्यकर्ता सुरेश भाई बताते हैं कि उत्तराखण्ड के 76 कस्बों व शहरों से रोजाना लगभग 860 लाख लीटर मलजल गंगा में बहाया जाता है। इसके अलावा 17 नगर निकायों से निकला लगभग 70 टन कचरा भी गंगा के हिस्से आता है।
गंगा नदीगंगा अपने मायके में ही मैली हो जाती है। गोमुख से उत्तरकाशी के बीच दस छोटे-बड़े कस्बे हैं। तीर्थयात्रा-काल में इन स्थानों पर औसतन एक लाख लोग होते हैं। इनमें से कहीं भी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है। करीब छह हजार की स्थायी आबादी वाले देवप्रयाग कस्बे में भागीरथी और अलकनंदा के मिलने के बाद गंगा बनती है। इस कस्बे में छह नाले सीधे गंगा में गिरते हैं, ट्रीटमेंट प्लांट 2010 से बन ही रहा है। ऋषिकेश में 12 नाले गंगा में जाते हैं, वहाँ लक्ष्मण झूला और त्रिवेणी घाट के बीच ट्रीटमेंट प्लांट तो बन गया है, पर उसके संचालन में कठिनाई है और मलजल सीधे गंगा में प्रवाहित करने का आसान रास्ता अपनाया जाता है।
समाजिक कार्यकर्ता सुरेश भाई बताते हैं कि उत्तराखण्ड के 76 कस्बों व शहरों से रोजाना लगभग 860 लाख लीटर मलजल गंगा में बहाया जाता है। इसके अलावा 17 नगर निकायों से निकला लगभग 70 टन कचरा भी गंगा के हिस्से आता है।
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