तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

पारम्परिक जलस्रोतों की अनदेखी ने बढ़ाया जल संकटपंजाब, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, गोवा और मणिपुर - पाँच राज्य, एक से सात चरणों में चुनाव। 04 फरवरी से 08 मार्च के बीच मतदान; 11 मार्च को वोटों की गिनती और 15 मार्च तक चुनाव प्रक्रिया सम्पन्न। मीडिया कह रहा है - बिगुल बज चुका है। दल से लेकर उम्मीदवार तक वार पर वार कर रहे हैं।
रिश्ते, नाते, नैतिकता, आदर्श.. सब ताक पर हैं। कहीं चोर-चोर मौसरे भाई हो गए हैं, तो कोई दुश्मन का दुश्मन दोस्त वाली कहावत चरितार्थ करने में लगे हैं। कौन जीतेगा? कौन हारेगा? रार-तकरार इस पर भी कम नहीं। गोया जनप्रतिनिधियों का चुनाव न होकर युद्ध हो। सारी लड़ाई, सारे वार-तकरार.. षड़यंत्र, वोट के लिये है। किन्तु वोटर के लिये यह युद्ध नहीं, शादी है।
सरस्वती नदी मैपनदी संस्कृति के मामले में भारत कभी सिरमौर था। संसार के किसी भी क्षेत्र की तुलना में सर्वाधिक नदियाँ हिमालय अधिष्ठाता शिव की जटाओं से निकलकर भारत के कोने-कोने को शस्य-श्यामला बनती रही हैं। तमाम नदियाँ करोड़ों लोगों की जीवन का सेतु और आजीविका का स्थायी स्रोत होने के साथ-साथ जैव विविधता, पर्यावरणीय और पारिस्थितिक सन्तुलन की मुख्य जीवनरेखा रही हैं।
ऋग्वेद में वर्णित सरस्वती नदी भी इनमें से एक थी। करीब पाँच हजार वर्ष पहले सरस्वती के विलुप्त होने के कारण चाहे कुछ भी रहे हों, लेकिन सरस्वती की याद दिलाने वाले इस पावन स्तोत्र को करोड़ों-करोड़ लोग आज भी गुनगुनाते हैं।
पारम्परिक जलस्रोतों की अनदेखी ने बढ़ाया जल संकटपंजाब, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, गोवा और मणिपुर - पाँच राज्य, एक से सात चरणों में चुनाव। 04 फरवरी से 08 मार्च के बीच मतदान; 11 मार्च को वोटों की गिनती और 15 मार्च तक चुनाव प्रक्रिया सम्पन्न। मीडिया कह रहा है - बिगुल बज चुका है। दल से लेकर उम्मीदवार तक वार पर वार कर रहे हैं।
रिश्ते, नाते, नैतिकता, आदर्श.. सब ताक पर हैं। कहीं चोर-चोर मौसरे भाई हो गए हैं, तो कोई दुश्मन का दुश्मन दोस्त वाली कहावत चरितार्थ करने में लगे हैं। कौन जीतेगा? कौन हारेगा? रार-तकरार इस पर भी कम नहीं। गोया जनप्रतिनिधियों का चुनाव न होकर युद्ध हो। सारी लड़ाई, सारे वार-तकरार.. षड़यंत्र, वोट के लिये है। किन्तु वोटर के लिये यह युद्ध नहीं, शादी है।
सरस्वती नदी मैपनदी संस्कृति के मामले में भारत कभी सिरमौर था। संसार के किसी भी क्षेत्र की तुलना में सर्वाधिक नदियाँ हिमालय अधिष्ठाता शिव की जटाओं से निकलकर भारत के कोने-कोने को शस्य-श्यामला बनती रही हैं। तमाम नदियाँ करोड़ों लोगों की जीवन का सेतु और आजीविका का स्थायी स्रोत होने के साथ-साथ जैव विविधता, पर्यावरणीय और पारिस्थितिक सन्तुलन की मुख्य जीवनरेखा रही हैं।
ऋग्वेद में वर्णित सरस्वती नदी भी इनमें से एक थी। करीब पाँच हजार वर्ष पहले सरस्वती के विलुप्त होने के कारण चाहे कुछ भी रहे हों, लेकिन सरस्वती की याद दिलाने वाले इस पावन स्तोत्र को करोड़ों-करोड़ लोग आज भी गुनगुनाते हैं।
पसंदीदा आलेख