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अनुपम मिश्रहम सभी के अपने श्री अनुपम मिश्र नहीं रहे। इस समाचार ने पानी-पर्यावरण जगत से जुड़े लोगों को विशेष तौर पर आहत किया। अनुपम जी ने जीवन भर क्या किया; इसका एक अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अनुपम जी के प्रति श्रद्धांजलि सभाओं के आयोजन का दौर इस संवाद को लिखे जाने के वक्त भी देश भर में जारी है।
पंजाब-हरियाणा में आयोजित श्रद्धांजलि सभाओं से भाग लेकर दिल्ली पहुँचे पानी कार्यकर्ता राजेन्द्र सिंह ने खुद यह समाचार मुझे दिया। राजेन्द्र जी से इन सभाओं का वृतान्त जानने 23 दिसम्बर को गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान पहुँचा, तो सूरज काफी चढ़ चुका था; 10 बज चुके थे; बावजूद इसके राजेन्द्र जी बिस्तर की कैद में दिखे। कारण पूछता, इससे पहले उनकी आँखें भर आईं और आवाज भरभरा उठी।
अनुपम मिश्रविश्वविद्यालय परिसर में अनेकों बार उनसे मुलाकात हुई, साथ बैठने का सानिध्य भी मिला। जबसे कुछ-कुछ समझने लगा हूँ- दो दशक में, लोग मिले लेकिन चेहरे अलग और मुखौटे के पीछे कुछ और। बहुत कम मिले, जो भीतर-बाहर एक समान हों, उनमें से सहज-सरल-प्रतिभा सम्पन्न शख्स जो होगा, जाहिर तौर पर अनुपम ही होगा।
मिश्र जी जब सहजता से हाथ पकड़कर, समझाते थे तो लगता कि यह कोई संरक्षक या गुरुत्व का आडम्बर नहीं ओढ़े हैं, सहज मित्रवत, या उनके ही शब्दों में “भक्ति सूरदास सी जिसमें छोटे-बड़े का भाव ही नहीं है, फिर काहे ढँकना-छिपाना। या कि होगा कोई बड़े घराने का या कि राजकुमार, जब साथ है तो कोई क्या गरीब-क्या अमीर, कृष्ण-सुदामा सा सख्यभाव।”
अनुपम मिश्रयह कागद मैं उन्हीं अनुपम मिश्र और उनके काम पर काले कर रहा हूँ, जिनका जिक्र आपने कई बार देखा और पढ़ा होगा। यह जीने का वह रवैया है जिसे पहले समझे बिना अनुपम मिश्र के काम और उसे करने के तरीके को समझना मुश्किल है। जो बहुत सीधा-सपाट और समर्पित दिखता है वह वैसा ही होता तो जिन्दगी रेगिस्तान की सीधी और समतल सड़क की तरह उबाऊ होती।
आप, हम सब एक पहलू के लोग होते और दुनिया लम्बाई चौड़ाई और गहराई के तीन पहलुओं वाली बहुरूपी और अनन्त सम्भावनाओं से भरी नहीं होती। विराट पुरुष की कृपा है कि जीवन-संसार अनन्त और अगम्य है।
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तालाब जितने सुन्दर व श्रेष्ठ होंगे, अनुपम की आत्मा उतना सुख पाएगी - राजेन्द्र सिंह
हम सभी के अपने श्री अनुपम मिश्र नहीं रहे। इस समाचार ने पानी-पर्यावरण जगत से जुड़े लोगों को विशेष तौर पर आहत किया। अनुपम जी ने जीवन भर क्या किया; इसका एक अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अनुपम जी के प्रति श्रद्धांजलि सभाओं के आयोजन का दौर इस संवाद को लिखे जाने के वक्त भी देश भर में जारी है।
पंजाब-हरियाणा में आयोजित श्रद्धांजलि सभाओं से भाग लेकर दिल्ली पहुँचे पानी कार्यकर्ता राजेन्द्र सिंह ने खुद यह समाचार मुझे दिया। राजेन्द्र जी से इन सभाओं का वृतान्त जानने 23 दिसम्बर को गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान पहुँचा, तो सूरज काफी चढ़ चुका था; 10 बज चुके थे; बावजूद इसके राजेन्द्र जी बिस्तर की कैद में दिखे। कारण पूछता, इससे पहले उनकी आँखें भर आईं और आवाज भरभरा उठी।
अच्छे-अच्छे काम करते जाना
सच्चाई और साफगोई के व्यक्तित्व-अनुपम मिश्र को समर्पित
विश्वविद्यालय परिसर में अनेकों बार उनसे मुलाकात हुई, साथ बैठने का सानिध्य भी मिला। जबसे कुछ-कुछ समझने लगा हूँ- दो दशक में, लोग मिले लेकिन चेहरे अलग और मुखौटे के पीछे कुछ और। बहुत कम मिले, जो भीतर-बाहर एक समान हों, उनमें से सहज-सरल-प्रतिभा सम्पन्न शख्स जो होगा, जाहिर तौर पर अनुपम ही होगा।
मिश्र जी जब सहजता से हाथ पकड़कर, समझाते थे तो लगता कि यह कोई संरक्षक या गुरुत्व का आडम्बर नहीं ओढ़े हैं, सहज मित्रवत, या उनके ही शब्दों में “भक्ति सूरदास सी जिसमें छोटे-बड़े का भाव ही नहीं है, फिर काहे ढँकना-छिपाना। या कि होगा कोई बड़े घराने का या कि राजकुमार, जब साथ है तो कोई क्या गरीब-क्या अमीर, कृष्ण-सुदामा सा सख्यभाव।”
यह अनुपम आदमी
यह कागद मैं उन्हीं अनुपम मिश्र और उनके काम पर काले कर रहा हूँ, जिनका जिक्र आपने कई बार देखा और पढ़ा होगा। यह जीने का वह रवैया है जिसे पहले समझे बिना अनुपम मिश्र के काम और उसे करने के तरीके को समझना मुश्किल है। जो बहुत सीधा-सपाट और समर्पित दिखता है वह वैसा ही होता तो जिन्दगी रेगिस्तान की सीधी और समतल सड़क की तरह उबाऊ होती।
आप, हम सब एक पहलू के लोग होते और दुनिया लम्बाई चौड़ाई और गहराई के तीन पहलुओं वाली बहुरूपी और अनन्त सम्भावनाओं से भरी नहीं होती। विराट पुरुष की कृपा है कि जीवन-संसार अनन्त और अगम्य है।
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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