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पानी सिर्फ पानी नहीं है। वह एक औषधि भी है। इसीलिये उसे अमृत कहा जाता है। प्राकृतिक जल-चिकित्सा पानी के इसी गुण पर आधारित है। इसमें पानी का इस्तेमाल कैसे किया जाये इस पर जोर दिया जाता है ताकि वह औषधीय रूप में रोगों से हमारी रक्षा करे। पानी का ठीक से उपयोग इसी विचार का हिस्सा है।
हवा के बाद पानी का हमारे जीवन में दूसरा महत्त्वपूर्ण स्थान है। बिना हवा और पानी के हम जीवित नहीं रह सकते हैं। हमारे शरीर में भी पानी की मात्रा लगभग 70 प्रतिशत है। हमारा शरीर और यह ब्रम्हांड पंचमहाभूतों अर्थात पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश से बना है अर्थात हमारे जीवन में जल का महत्त्वपूर्ण स्थान माना जाता है।
सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक हम अनेकानेक रूपों में जल का प्रयोग करते हैं, चाहे वह बाहरी रूप से हो या आन्तरिक रूप से। दैनिक स्नान से लेकर पानी पीने तक हम हमेशा जल के सम्पर्क में रहते हैं, पर क्या कभी आपने सोचा है कि यही जल हमारे लिये ‘संजीवनी’ का काम कर सकता है? हमारे रोगों के निवारण में हमारी मदद कर सकता है और इतना ही नहीं कई रोगों से हमारा बचाव भी कर सकता है।
फ्लोराइड से बुरी तरह प्रभावित नलगोंडा में सरकार सुरक्षित पेयजल मुहैया कराने में सफल रही है, लेकिन स्थानीय भूजल में फ्लोराइड का स्तर इतना अधिक है कि उससे पूरी निजात सम्भव नहीं। खेती के लिये भी यह चिन्ता का विषय बना हुआ है।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आँकड़ों के मुताबिक नव-निर्मित राज्य तेलंगाना की करीब 1200 बस्तियाँ फ्लोरोसिस की समस्या से ग्रस्त हैं। इसमें भी सबसे बुरी स्थिति नलगोंडा जिले की है।
जिले के 17 मण्डल फ्लोराइड की अधिकता के कारण फ्लोरोसिस से बुरी तरह जूझ रहे हैं। फ्लोरोसिस वह स्थिति है जो शरीर में फ्लोराइड की अधिकता से उत्पन्न होती है। यह फ्लोराइड पेयजल तथा अन्य माध्यमों से हमारे शरीर में जाता है। इसकी वजह से लोगों के शरीर में अस्थि विकृतियाँ तथा अन्य समस्याएँ उत्पन्न होने लगती हैं।
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार मानसून ऐसी सामयिक हवाएँ हैं जिनकी दिशाओं में प्रत्येक वर्ष दो बार उलट-पटल होती है। उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम में मानसूनी हवाओं की दिशाओं में बदलाव वैज्ञानिक भाषा में कोरिओलिक बल के चलते होता है। यह बल गतिशील पिंडों पर असर डालता है।
हमारी पृथ्वी भी गतिशील पिंड है जिसकी दो गतियाँ हैं- दैनिक गति और वार्षिक गति। नतीजन, उत्तरी गोलार्द्ध में मानसूनी हवाएँ दाईं ओर मुड़ जाती हैं और दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर। वायुगति के इस परिवर्तन की खोज फेरल नामक वैज्ञानिक ने की थी। इसीलिये इस नियम को ‘फेरल का नियम’ कहते हैं।
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दवा भी है पानी
पानी सिर्फ पानी नहीं है। वह एक औषधि भी है। इसीलिये उसे अमृत कहा जाता है। प्राकृतिक जल-चिकित्सा पानी के इसी गुण पर आधारित है। इसमें पानी का इस्तेमाल कैसे किया जाये इस पर जोर दिया जाता है ताकि वह औषधीय रूप में रोगों से हमारी रक्षा करे। पानी का ठीक से उपयोग इसी विचार का हिस्सा है।
हवा के बाद पानी का हमारे जीवन में दूसरा महत्त्वपूर्ण स्थान है। बिना हवा और पानी के हम जीवित नहीं रह सकते हैं। हमारे शरीर में भी पानी की मात्रा लगभग 70 प्रतिशत है। हमारा शरीर और यह ब्रम्हांड पंचमहाभूतों अर्थात पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश से बना है अर्थात हमारे जीवन में जल का महत्त्वपूर्ण स्थान माना जाता है।
सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक हम अनेकानेक रूपों में जल का प्रयोग करते हैं, चाहे वह बाहरी रूप से हो या आन्तरिक रूप से। दैनिक स्नान से लेकर पानी पीने तक हम हमेशा जल के सम्पर्क में रहते हैं, पर क्या कभी आपने सोचा है कि यही जल हमारे लिये ‘संजीवनी’ का काम कर सकता है? हमारे रोगों के निवारण में हमारी मदद कर सकता है और इतना ही नहीं कई रोगों से हमारा बचाव भी कर सकता है।
नलगोंडा ने सीख लिया है फ्लोराइड के साथ जीना
फ्लोराइड से बुरी तरह प्रभावित नलगोंडा में सरकार सुरक्षित पेयजल मुहैया कराने में सफल रही है, लेकिन स्थानीय भूजल में फ्लोराइड का स्तर इतना अधिक है कि उससे पूरी निजात सम्भव नहीं। खेती के लिये भी यह चिन्ता का विषय बना हुआ है।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आँकड़ों के मुताबिक नव-निर्मित राज्य तेलंगाना की करीब 1200 बस्तियाँ फ्लोरोसिस की समस्या से ग्रस्त हैं। इसमें भी सबसे बुरी स्थिति नलगोंडा जिले की है।
जिले के 17 मण्डल फ्लोराइड की अधिकता के कारण फ्लोरोसिस से बुरी तरह जूझ रहे हैं। फ्लोरोसिस वह स्थिति है जो शरीर में फ्लोराइड की अधिकता से उत्पन्न होती है। यह फ्लोराइड पेयजल तथा अन्य माध्यमों से हमारे शरीर में जाता है। इसकी वजह से लोगों के शरीर में अस्थि विकृतियाँ तथा अन्य समस्याएँ उत्पन्न होने लगती हैं।
कैसे होता है आगमन मनमौजी मानसून का
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार मानसून ऐसी सामयिक हवाएँ हैं जिनकी दिशाओं में प्रत्येक वर्ष दो बार उलट-पटल होती है। उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम में मानसूनी हवाओं की दिशाओं में बदलाव वैज्ञानिक भाषा में कोरिओलिक बल के चलते होता है। यह बल गतिशील पिंडों पर असर डालता है।
हमारी पृथ्वी भी गतिशील पिंड है जिसकी दो गतियाँ हैं- दैनिक गति और वार्षिक गति। नतीजन, उत्तरी गोलार्द्ध में मानसूनी हवाएँ दाईं ओर मुड़ जाती हैं और दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर। वायुगति के इस परिवर्तन की खोज फेरल नामक वैज्ञानिक ने की थी। इसीलिये इस नियम को ‘फेरल का नियम’ कहते हैं।
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
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