तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

उन्होंने कहा- “मैं आया नहीं हूँ, माँ गंगा ने बुलाया है।’’ लोगों ने समझा कि वह गंगा की सेवा करेंगे। बनारसी बाबू लोगों ने उन्हें बनारस का घाट दे दिया; शेष ने देश का राज-पाट दे दिया। उन्होंने ‘नमामि गंगे’ कहा; जल मंत्रालय के साथ ‘गंगा पुनर्जीवन’ शब्द जोड़ा; एक गेरुआ वस्त्र धारिणी को गंगा की मंत्री बनाया। पाँच साल के लिये 20 हजार करोड़ रुपए का बजट तय किया। अनिवासी भारतीयों से आह्वान किया। नमामि गंगे कोष बनाया। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की स्थापना की।
राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण का पुनर्गठन किया। बनारस के अस्सी घाट पर उन्होंने स्वयं श्रमदान किया। गंगा ने समझा कि यह उसके प्रति भारतीय संस्कृति की पोषक पार्टी के प्रतिनिधि और देश के प्रधानमंत्री की आस्था है।
डाक द्वारा गंगाजल आपके द्वार पर भेजने की ‘सुविधा’ सरकार शुरू करने जा रही है और इस सुविधा की आड़ में गंगा को बेचने की पहली कोशिश को साकार किया जा रहा है। साधु सन्तों ने इस सरकारी कोशिश के खिलाफ बिगुल बजा दिया है जिससे ये भ्रम पैदा होता है कि गंगा को अर्थ स्वरूप में बदले जाने की सबसे ज्यादा चिन्ता इन्हें ही है।
बहरहाल जो डाक घर चिट्ठी ठीक से नहीं पहुँचा सकते वे आपके घर गंगाजल पहुँचाएँगे इसमें सन्देह है। एक काँच की बोतल जो विशेष तौर पर डाक विभाग गंगाजल के लिये डिजाइन करवाएगा (प्लास्टिक की बोतल या पानी का पाउच जैसी पैकिंग से पर्यावरणविदों को एकदम नया कष्ट होगा।) इस बोतल के खर्चे के अलावा गंगाजल स्टोरेज का खर्चा आदि मिलाकर 251 रुपए से कम में गंगाजल आपके घर तक नहीं पहुँचेगा।
उन्होंने कहा- “मैं आया नहीं हूँ, माँ गंगा ने बुलाया है।’’ लोगों ने समझा कि वह गंगा की सेवा करेंगे। बनारसी बाबू लोगों ने उन्हें बनारस का घाट दे दिया; शेष ने देश का राज-पाट दे दिया। उन्होंने ‘नमामि गंगे’ कहा; जल मंत्रालय के साथ ‘गंगा पुनर्जीवन’ शब्द जोड़ा; एक गेरुआ वस्त्र धारिणी को गंगा की मंत्री बनाया। पाँच साल के लिये 20 हजार करोड़ रुपए का बजट तय किया। अनिवासी भारतीयों से आह्वान किया। नमामि गंगे कोष बनाया। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की स्थापना की।
राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण का पुनर्गठन किया। बनारस के अस्सी घाट पर उन्होंने स्वयं श्रमदान किया। गंगा ने समझा कि यह उसके प्रति भारतीय संस्कृति की पोषक पार्टी के प्रतिनिधि और देश के प्रधानमंत्री की आस्था है।
डाक द्वारा गंगाजल आपके द्वार पर भेजने की ‘सुविधा’ सरकार शुरू करने जा रही है और इस सुविधा की आड़ में गंगा को बेचने की पहली कोशिश को साकार किया जा रहा है। साधु सन्तों ने इस सरकारी कोशिश के खिलाफ बिगुल बजा दिया है जिससे ये भ्रम पैदा होता है कि गंगा को अर्थ स्वरूप में बदले जाने की सबसे ज्यादा चिन्ता इन्हें ही है।
बहरहाल जो डाक घर चिट्ठी ठीक से नहीं पहुँचा सकते वे आपके घर गंगाजल पहुँचाएँगे इसमें सन्देह है। एक काँच की बोतल जो विशेष तौर पर डाक विभाग गंगाजल के लिये डिजाइन करवाएगा (प्लास्टिक की बोतल या पानी का पाउच जैसी पैकिंग से पर्यावरणविदों को एकदम नया कष्ट होगा।) इस बोतल के खर्चे के अलावा गंगाजल स्टोरेज का खर्चा आदि मिलाकर 251 रुपए से कम में गंगाजल आपके घर तक नहीं पहुँचेगा।
पसंदीदा आलेख