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केन एवं बेतवा नदी गंगा नदी घाटी की प्रमुख उत्तर प्रवाही नदियां है। बुंदेलखंड क्षेत्र की जीवनदायनी मानी जाने वाली इन नदियों पर आज संकट आ खड़ा हुआ है। भारत सरकर की देश भर की नदियों को आपस में जोड़ने की योजना के तहत केन एवं बेतवा नदियों को भी आपस में जोड़ने की योजना है। केन-बेतवा नदीजोड़ योजना पर शायद सबसे पहले अमलीकरण प्रस्तावित है। जबसे इस परियोजना के बारे में नदियों को जोड़ने के लिए बने कार्यदल की सबसे पहली बैठक फरवरी 2003 में चर्चा हुई थी तभी से केन-बेतवा नदीजोड़ पर बुंदेलखंड के लोगों की प्रतिक्रियाएं बढ़नी शुरू हुईं। केन एवं बेतवा के बारे में लोगों का विरोध धीरे-धीरे यह एक आन्दोलन का स्वरूप लेता नजर आ रहा है।
माना तो यह भी जा रहा है कि नदीजोड़ योजना के माध्यम से देश भर में नदियों एवं प्राकृतिक संसाधनों के निजीकरण की व्यापक कोशिश की जा रही है। सैण्ड्रप ने देश के अलग-अलग क्षेत्रों में कार्यशालाओं के माध्यम से इस विषय पर व्यापक व खुली चर्चा भी आयोजित की। सैण्ड्रप द्वारा प्रकाशित “डैम्स, रिवर्स एंड पिपुल”
स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद - 21वाँ कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है:
तैने तो मेरे मन की कह दी
तरुण के भविष्य को लेकर मेरी चिन्ता बढ़ती गई। मैं क्या करुँ? इस प्रश्न के उत्तर की तलाश में मैं घर गया; पिताजी के पास। मेरी माँ तो तब नहीं थीं। मैंने पिताजी को अपनी चिन्ता से अवगत कराया। उसके बाद मैं दिल्ली लौट आया। लौटने पर सोचता रहा कि क्यों न मैं तरुण को गोद ले लूँ।
मैंने पिताजी को अपना विचार बताया, तो वह बहुत खुश हुए। भरे गले से बोले- “तैने तो मेरे मन की कह दी।’’ अब तरुण की माँ को तैयार करने की बात थी। यह जिम्मेदारी मैंने बाबा को दे दी। इस तरह आर्यसमाजी संस्कार विधि के साथ 1984 में मैंने तरुण को विधिवत गोद ले लिया।
विश्व पर्यावरण दिवस, 05 जून 2016 पर विशेष
झाँसी शहर से करीब 70 किलोमीटर दूर खरेला गाँव है। भीषण गर्मी और तेज धूप के बीच गाँव बेहद शान्त लगता है। खबर थी कि यहाँ के तालाब बुरे हाल में हैं। जब बूँद-बूँद पानी के लिये लोग भटक रहे हों। पानी के लिये संघर्ष बनी हो। पुलिस के पहरे के बीच पानी बँट रहा हो। पानी बिक रहा हो। ऐसे में तालाब जिन्हें भुला दिया गया, काफी प्रासंगिक हो जाते हैं।
इसी प्रसंग के साथ गाँव में घुसने के बाद तालाबों को तलाश करते हैं, लेकिन निगाहों को कामयाबी नहीं मिलती। बातचीत के बीच गाँव के लोग बताते हैं जहाँ हम खड़े थे उसी जगह एक जिन्दा तालाब था। हैरत हुई कि जहाँ हम खड़े थे वहाँ कुछ साल पहले तक 7 बीघा में फैला तालाब हुआ करता था। 7 बीघा के मैदान को देख अन्दाजा लगाना मुश्किल था कि यहाँ कभी तालाब भी फैला हुआ था।
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पुस्तक : केन-बेतवा नदीजोड़
केन एवं बेतवा नदी गंगा नदी घाटी की प्रमुख उत्तर प्रवाही नदियां है। बुंदेलखंड क्षेत्र की जीवनदायनी मानी जाने वाली इन नदियों पर आज संकट आ खड़ा हुआ है। भारत सरकर की देश भर की नदियों को आपस में जोड़ने की योजना के तहत केन एवं बेतवा नदियों को भी आपस में जोड़ने की योजना है। केन-बेतवा नदीजोड़ योजना पर शायद सबसे पहले अमलीकरण प्रस्तावित है। जबसे इस परियोजना के बारे में नदियों को जोड़ने के लिए बने कार्यदल की सबसे पहली बैठक फरवरी 2003 में चर्चा हुई थी तभी से केन-बेतवा नदीजोड़ पर बुंदेलखंड के लोगों की प्रतिक्रियाएं बढ़नी शुरू हुईं। केन एवं बेतवा के बारे में लोगों का विरोध धीरे-धीरे यह एक आन्दोलन का स्वरूप लेता नजर आ रहा है।
माना तो यह भी जा रहा है कि नदीजोड़ योजना के माध्यम से देश भर में नदियों एवं प्राकृतिक संसाधनों के निजीकरण की व्यापक कोशिश की जा रही है। सैण्ड्रप ने देश के अलग-अलग क्षेत्रों में कार्यशालाओं के माध्यम से इस विषय पर व्यापक व खुली चर्चा भी आयोजित की। सैण्ड्रप द्वारा प्रकाशित “डैम्स, रिवर्स एंड पिपुल”
मेरा देह दान हो, श्राद्ध नहीं - स्वामी सानंद
स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद - 21वाँ कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है:
तैने तो मेरे मन की कह दी
तरुण के भविष्य को लेकर मेरी चिन्ता बढ़ती गई। मैं क्या करुँ? इस प्रश्न के उत्तर की तलाश में मैं घर गया; पिताजी के पास। मेरी माँ तो तब नहीं थीं। मैंने पिताजी को अपनी चिन्ता से अवगत कराया। उसके बाद मैं दिल्ली लौट आया। लौटने पर सोचता रहा कि क्यों न मैं तरुण को गोद ले लूँ।
मैंने पिताजी को अपना विचार बताया, तो वह बहुत खुश हुए। भरे गले से बोले- “तैने तो मेरे मन की कह दी।’’ अब तरुण की माँ को तैयार करने की बात थी। यह जिम्मेदारी मैंने बाबा को दे दी। इस तरह आर्यसमाजी संस्कार विधि के साथ 1984 में मैंने तरुण को विधिवत गोद ले लिया।
तो कहानियों में भी नहीं होगा पानी
विश्व पर्यावरण दिवस, 05 जून 2016 पर विशेष
झाँसी शहर से करीब 70 किलोमीटर दूर खरेला गाँव है। भीषण गर्मी और तेज धूप के बीच गाँव बेहद शान्त लगता है। खबर थी कि यहाँ के तालाब बुरे हाल में हैं। जब बूँद-बूँद पानी के लिये लोग भटक रहे हों। पानी के लिये संघर्ष बनी हो। पुलिस के पहरे के बीच पानी बँट रहा हो। पानी बिक रहा हो। ऐसे में तालाब जिन्हें भुला दिया गया, काफी प्रासंगिक हो जाते हैं।
इसी प्रसंग के साथ गाँव में घुसने के बाद तालाबों को तलाश करते हैं, लेकिन निगाहों को कामयाबी नहीं मिलती। बातचीत के बीच गाँव के लोग बताते हैं जहाँ हम खड़े थे उसी जगह एक जिन्दा तालाब था। हैरत हुई कि जहाँ हम खड़े थे वहाँ कुछ साल पहले तक 7 बीघा में फैला तालाब हुआ करता था। 7 बीघा के मैदान को देख अन्दाजा लगाना मुश्किल था कि यहाँ कभी तालाब भी फैला हुआ था।
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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