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नहीं रहे जल विषयों के अय्यार
पानी को पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को ठीक से समझने वाला एक नाम पिछले दिनों हमारे बीच नहीं रहा। यह सच है कि उसके जाने की चर्चा हिन्दी पट्टी में थोड़ी कम हुई। लेकिन पानी के लिये किया गया उनका काम हिन्दी हो या तेलगू, पंजाबी हो या तमिल सबके लिये एक तरह से उपयोगी रहेगा।
यहाँ हम बात कर रहे हैं, पानी से जुड़े मुद्दों के गहरे जानकार रामास्वामी आर अय्यर की। वे 1929 में तमिलनाडू में जन्मे और 86 साल की उम्र में 09 सितम्बर को वायरल का प्रकोप उनकी मौत का कारण बना। उनकी मृत्यु दिल्ली में हुई।
जिन लोगों ने अय्यर साहब का नाम नहीं सुना, उन्हें जानना चाहिए कि उन्होंने 1987 में भारत की पहली जल नीति तैयार की।
मीठे जल के स्रोत के रूप में अनादि काल से इंसानों को हर तरह की सुविधा उपलब्ध कराने वाली नदियाँ क्या किसी मानव समूह के लिये निरन्तर दुख की वजह बन सकती हैं? जिस नदियों के किनारे दुनिया भर की सभ्यताएँ विकसित हुई हैं, उद्योग-धंधे पाँव पसारने को आतुर रहते हैं, खेती की फसलें लहलहाती हैं, उन्हीं नदियों के किनारे बसी उत्तर बिहार की एक बड़ी आबादी गरीबी और लाचारी भरा जीवन जीने को विवश है।
दुनिया भर में नदियों के किनारे बसे लोग लगातार समृद्ध होते रहे हैं, मगर इन इलाकों के लोग आज भी अठारहवीं सदी वाला जीवन जी रहे हैं। आखिर इसकी वजह क्या है? कहा जाता है कि सालाना बाढ़ की वजह से ऐसा होता है, मगर क्या बात इतनी सरल है?
नेपाल की सीमा से सटे उत्तर बिहार के तराई इलाकों से होकर बिहार में सात बड़ी नदियाँ गुजरती हैं।
उत्तर बिहार में बहुत सी नदियों के किनारे तटबन्ध बने हुए हैं। इन तटबन्धों के बीच बहुत से गाँव बसे हुए है जिनका पुनर्वास होना चाहिए था मगर लोग पुनर्वास स्थलों पर या तो गए ही नहीं या जाकर लौट आये। कारण यह था कि उन्हें खेती की ज़मीन के बदले ज़मीन नहीं दी गई थी और मजबूरन उनकी वापसी हुई।
कोसी के अलावा दूसरी नदियों में या तो घर बनाने के लिये कुछ रुपए दे दिये गए या फिर बागमती में जैसा हुआ कि सिर्फ घर उठा कर पुनर्वास में सामान ले जाने की लिये कुछ रुपये दे दिये गए और हो गया पुनर्वास। कई जगहों पर पुनर्वास स्थलों में जल-जमाव हो गया और लोग अपने पुश्तैनी ज़मीन पर वापस आने के लिये मजबूर हुए।
आमतौर पर उत्तर बिहार की सभी नदियों के साथ यही हुआ। आज कोसी तटबन्धों के बीच 380 गाँव भारत के और 61 गाँव नेपाल के फँसे हुए है और इनकी आबादी अब 15 लाख के आस-पास होगी।
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नहीं रहे पानी वाले 'अय्यर साहब'
विश्व नदी दिवस, 27 सितम्बर 2015 पर विशेष
नहीं रहे जल विषयों के अय्यार
पानी को पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को ठीक से समझने वाला एक नाम पिछले दिनों हमारे बीच नहीं रहा। यह सच है कि उसके जाने की चर्चा हिन्दी पट्टी में थोड़ी कम हुई। लेकिन पानी के लिये किया गया उनका काम हिन्दी हो या तेलगू, पंजाबी हो या तमिल सबके लिये एक तरह से उपयोगी रहेगा।
यहाँ हम बात कर रहे हैं, पानी से जुड़े मुद्दों के गहरे जानकार रामास्वामी आर अय्यर की। वे 1929 में तमिलनाडू में जन्मे और 86 साल की उम्र में 09 सितम्बर को वायरल का प्रकोप उनकी मौत का कारण बना। उनकी मृत्यु दिल्ली में हुई।
जिन लोगों ने अय्यर साहब का नाम नहीं सुना, उन्हें जानना चाहिए कि उन्होंने 1987 में भारत की पहली जल नीति तैयार की।
क्यों शोक का कारण बन जाती हैं उत्तर बिहार की नदियाँ
विश्व नदी दिवस 27 सितम्बर 2015 पर विशेष
मीठे जल के स्रोत के रूप में अनादि काल से इंसानों को हर तरह की सुविधा उपलब्ध कराने वाली नदियाँ क्या किसी मानव समूह के लिये निरन्तर दुख की वजह बन सकती हैं? जिस नदियों के किनारे दुनिया भर की सभ्यताएँ विकसित हुई हैं, उद्योग-धंधे पाँव पसारने को आतुर रहते हैं, खेती की फसलें लहलहाती हैं, उन्हीं नदियों के किनारे बसी उत्तर बिहार की एक बड़ी आबादी गरीबी और लाचारी भरा जीवन जीने को विवश है।
दुनिया भर में नदियों के किनारे बसे लोग लगातार समृद्ध होते रहे हैं, मगर इन इलाकों के लोग आज भी अठारहवीं सदी वाला जीवन जी रहे हैं। आखिर इसकी वजह क्या है? कहा जाता है कि सालाना बाढ़ की वजह से ऐसा होता है, मगर क्या बात इतनी सरल है?
नेपाल की सीमा से सटे उत्तर बिहार के तराई इलाकों से होकर बिहार में सात बड़ी नदियाँ गुजरती हैं।
उत्तर बिहार : अच्छे दिन कब आएँगे
विश्व नदी दिवस, 27 सितम्बर 2015 पर विशेष
उत्तर बिहार में बहुत सी नदियों के किनारे तटबन्ध बने हुए हैं। इन तटबन्धों के बीच बहुत से गाँव बसे हुए है जिनका पुनर्वास होना चाहिए था मगर लोग पुनर्वास स्थलों पर या तो गए ही नहीं या जाकर लौट आये। कारण यह था कि उन्हें खेती की ज़मीन के बदले ज़मीन नहीं दी गई थी और मजबूरन उनकी वापसी हुई।
कोसी के अलावा दूसरी नदियों में या तो घर बनाने के लिये कुछ रुपए दे दिये गए या फिर बागमती में जैसा हुआ कि सिर्फ घर उठा कर पुनर्वास में सामान ले जाने की लिये कुछ रुपये दे दिये गए और हो गया पुनर्वास। कई जगहों पर पुनर्वास स्थलों में जल-जमाव हो गया और लोग अपने पुश्तैनी ज़मीन पर वापस आने के लिये मजबूर हुए।
आमतौर पर उत्तर बिहार की सभी नदियों के साथ यही हुआ। आज कोसी तटबन्धों के बीच 380 गाँव भारत के और 61 गाँव नेपाल के फँसे हुए है और इनकी आबादी अब 15 लाख के आस-पास होगी।
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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