नया ताजा
आगामी कार्यक्रम
खासम-खास
Content
सिंचित खेती में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ यहाँ भूमिगत जल के स्तर में गिरावट आने लगी, लिहाजा लोगों को और गहराई तक जाने के लिये मजबूर होना पड़ा। बिजली ने काफी अधिक गहराई से पानी बाहर निकालने की सुविधा उपलब्ध करा दी है, जिसकी वजह से अधिक दूषित भूजल बाहर आने लगा है।
दिल्ली तक आते-आते ये मेघ लगभग पच्चीस सौ से चार हजार किलोमीटर की यात्रा कर चुके होते हैं। बूँद, बारिश, मेघ और मानसून के इस मिले-जुले खेल का रूप है वर्षाऋतु। प्रकृति ने धरती की सतह का दो-तिहाई भाग को समुद्र बनाया है। पानी की कोई कमी नहीं छोड़ी है। सूरज की तपस्या से, सूरज के तपने से समुद्र का पानी भाप बनता है। बूँद-बूँद भाप बनकर ऊपर उठती है और नीचे जो खारा समुद्र है, उसका कुछ अंश उठाकर आकाश में निर्मल जल का एक और सागर तैरा देती है।
भारत में फ्लोरोसिस का पता 1930 के दशक में चला और तब से तकरीबन एक सदी बीतने के बावजूद यह एक विकराल समस्या के रूप में हमारे सामने मौजूद है। 1970 के दशक तक इस मसले पर कुछ गम्भीर शोध किये गए, मगर उस वक्त से अब तक इस विषय को लेकर कोई ढंग का रचनात्मक शोध नहीं हुआ है। जबकि इस दौरान समस्या और जटिल होती चली गई, जिससे इस समस्या पर काम करने वालों के लिये इससे जुड़कर आगे बढ़ना ही मुश्किल हो गया।
इस रोग से लाखों लोगों के पीड़ित होने के बावजूद वैश्विक स्तर पर इसके निदान के लिये कोई कार्यक्रम तैयार नहीं हुआ है और कोई ऐसी संस्था नहीं है जिसके पास इस रोग से मुकाबले की विशेषज्ञता हो, कुछ छोटे संस्थानों को छोड़कर जो इस दिशा में शोध कर रहे हैं और अपने नतीजों के सहारे फ्लोरोसिस से मुकाबला कर रहे हैं।
Pagination
प्रयास
नोटिस बोर्ड
Latest
खासम-खास
Content
सुरक्षित जलापूर्ति – लोगों के लिये आशा की किरण
सिंचित खेती में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ यहाँ भूमिगत जल के स्तर में गिरावट आने लगी, लिहाजा लोगों को और गहराई तक जाने के लिये मजबूर होना पड़ा। बिजली ने काफी अधिक गहराई से पानी बाहर निकालने की सुविधा उपलब्ध करा दी है, जिसकी वजह से अधिक दूषित भूजल बाहर आने लगा है।
उड़ती नदी, बहता बादल
दिल्ली तक आते-आते ये मेघ लगभग पच्चीस सौ से चार हजार किलोमीटर की यात्रा कर चुके होते हैं। बूँद, बारिश, मेघ और मानसून के इस मिले-जुले खेल का रूप है वर्षाऋतु। प्रकृति ने धरती की सतह का दो-तिहाई भाग को समुद्र बनाया है। पानी की कोई कमी नहीं छोड़ी है। सूरज की तपस्या से, सूरज के तपने से समुद्र का पानी भाप बनता है। बूँद-बूँद भाप बनकर ऊपर उठती है और नीचे जो खारा समुद्र है, उसका कुछ अंश उठाकर आकाश में निर्मल जल का एक और सागर तैरा देती है।
फ्लोरोसिस के साथ जिन्दगी
भारत में फ्लोरोसिस का पता 1930 के दशक में चला और तब से तकरीबन एक सदी बीतने के बावजूद यह एक विकराल समस्या के रूप में हमारे सामने मौजूद है। 1970 के दशक तक इस मसले पर कुछ गम्भीर शोध किये गए, मगर उस वक्त से अब तक इस विषय को लेकर कोई ढंग का रचनात्मक शोध नहीं हुआ है। जबकि इस दौरान समस्या और जटिल होती चली गई, जिससे इस समस्या पर काम करने वालों के लिये इससे जुड़कर आगे बढ़ना ही मुश्किल हो गया।
इस रोग से लाखों लोगों के पीड़ित होने के बावजूद वैश्विक स्तर पर इसके निदान के लिये कोई कार्यक्रम तैयार नहीं हुआ है और कोई ऐसी संस्था नहीं है जिसके पास इस रोग से मुकाबले की विशेषज्ञता हो, कुछ छोटे संस्थानों को छोड़कर जो इस दिशा में शोध कर रहे हैं और अपने नतीजों के सहारे फ्लोरोसिस से मुकाबला कर रहे हैं।
Pagination
प्रयास
सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
- Read more about सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
- Comments
नोटिस बोर्ड
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
- Read more about 28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
- Comments
पसंदीदा आलेख