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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

Submitted by Anonymous on Sun, 01/18/2015 - 16:01
Source:
कल्पतरु एक्सप्रेस, 18 जनवरी 2015
हमारी सभ्यता का उद्भव और विकास नदियों के किनारों से जुड़ा रहा है। नदियों से शुरू हुआ हमारा विकास क्रम आज नदियों के विनाश तक जा पहुंचा है। गंगा और यमुना हमारे जीवन का आज भी आधार-भूत तत्व हैं। स्वांतः सुखाय विकास की आधुनिक अवधारणा आज नदी रूपी हमारी जीवनदायी स्रोत के लिए अभिशाप बन गई है। पतित् पावनी गंगा पिछले तीन दशकों से मुक्ति की बाट जोह रही है। गंगा मुक्ति की चिंता सरकार से ज्यादा देश की सर्वोच्च अदालत को है और वह हर बार सरकार से यक्ष प्रश्न करती है कि गंगा की सफाई कब तक होगी? इसी सवाल की पड़ताल करती सामयिकी।

देश की पावन नदी गंगा दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है। उत्तर भारत की यमुना, पश्चिम की साबरमती, दक्षिण की पम्बा की भी हालत बहुत ही खराब है। देश की कई नदियां जैविक लिहाज से मर चुकी हैं। इसका असर पर्यावरण के साथ लोगों पर भी पड़ रहा है।

वर्ल्ड रिसोर्सेज रिपोर्ट के मुताबिक 70 फीसदी भारतीय गंदा पानी पीते हैं। पीलिया, हैजा, टायफाइड और मलेरिया जैसी कई बीमारियां गंदे पानी की वजह से होती हैं। रासायनिक खाद भी भू-जल को दूषित कर रहे हैं। कारखानों और उद्योगों की वजह से हालत और बुरी हो गई है।
Submitted by Shivendra on Sun, 01/18/2015 - 11:32
Source:
book cover

‘राजस्थान’ देश का सबसे बड़ा दूसरा राज्य है परन्तु जल के फल में इसका स्थान अन्तिम है। यहाँ औसत वर्षा 60 सेण्टीमीटर है जबकि देश के लिए यह आँकड़ा 110 सेमी है। लेकिन इन आँकड़ों से राज्य की जल कुण्डली नहीं बाची जा सकती। राज्य के एक छोर से दूसरे तक बारिश असमान रहती है, कहीं 100 सेमी तो कहीं 25 सेमी तो कहीं 10 सेमी तक भी।

यदि कुछ सालों की अतिवृष्टि को छोड़ दें तो चुरू, बीकानेर, जैलमेर, बाड़मेर, श्रीगंगानगर, जोधपुर आदि में साल में 10 सेमी से भी कम पानी बरसता है। दिल्ली में 150 सेमी से ज्यादा पानी गिरता है, यहाँ यमुना बहती है, सत्ता का केन्द्र है और यहाँ पूरे साल पानी की मारा-मारी रहती है, वहीं रेतीले राजस्थान में पानी की जगह सूरज की तपन बरसती है।

Submitted by Hindi on Sat, 01/17/2015 - 13:31
Source:
गांधी-मार्ग, जनवरी-फरवरी 2015
आज देश में कहीं भी सादा नमक नहीं मिल सकता। पशु आहार और बर्फ बनाने वाली फैक्टरियों के नाम पर कहीं सादे नमक के डले, बोरे दिख जाएं तो अलग बात, लेकिन हमारे आपके भोजन में अब आयोडीन मिला नमक ही इस्तेमाल होता है। इसकी शुरुआत सन् 1990 से हुई है। उससे पहले की परिस्थिति बता रहा है डाॅ ज्योति प्रकाश का यह लेख जो उन्होंने सन् 1986 में लिखा था- घेंघा या थायराइड रोग पर सामाजिक दृष्टि से कुछ बुनियादी काम करते हुए।

नमक आयुक्त ने घोषणा की है कि सन् 1990 तक देश में बनने-बिकने वाले सारे नमक को आयोडीन युक्त कर दिया जाएगा। कहा जा रहा है कि यह कदम आयोडीन की कमी से होने वाले घेंघा, थायराइड रोग से लड़ने के लिए उठाया गया है।

घेंघा रोग से लड़ने की यह कोई पहली कोशिश नहीं है। पिछले 20 साल से ‘राष्ट्रीय घेंघा नियंत्रण कार्यक्रम’ इसी उद्देश्य से चलाया जा रहा है, पर वह समस्या को कुरेद तक नहीं पाया। शोषण की शिकार और कई सामाजिक कारणों से आयोडीन की कमी झेल रही गरीब आबादी को आज तक आयोडीन वाला नमक न दे पाने वाले जिम्मेदार नेताओं और अधिकारियों की आलोचना कम नहीं हुई है।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

मत रोको, गंगा को बहने दो…

Submitted by Anonymous (not verified) on Sun, 01/18/2015 - 16:01
Author
विवेक दत्त मथुरिया
Source
कल्पतरु एक्सप्रेस, 18 जनवरी 2015
हमारी सभ्यता का उद्भव और विकास नदियों के किनारों से जुड़ा रहा है। नदियों से शुरू हुआ हमारा विकास क्रम आज नदियों के विनाश तक जा पहुंचा है। गंगा और यमुना हमारे जीवन का आज भी आधार-भूत तत्व हैं। स्वांतः सुखाय विकास की आधुनिक अवधारणा आज नदी रूपी हमारी जीवनदायी स्रोत के लिए अभिशाप बन गई है। पतित् पावनी गंगा पिछले तीन दशकों से मुक्ति की बाट जोह रही है। गंगा मुक्ति की चिंता सरकार से ज्यादा देश की सर्वोच्च अदालत को है और वह हर बार सरकार से यक्ष प्रश्न करती है कि गंगा की सफाई कब तक होगी? इसी सवाल की पड़ताल करती सामयिकी।

.देश की पावन नदी गंगा दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है। उत्तर भारत की यमुना, पश्चिम की साबरमती, दक्षिण की पम्बा की भी हालत बहुत ही खराब है। देश की कई नदियां जैविक लिहाज से मर चुकी हैं। इसका असर पर्यावरण के साथ लोगों पर भी पड़ रहा है।

वर्ल्ड रिसोर्सेज रिपोर्ट के मुताबिक 70 फीसदी भारतीय गंदा पानी पीते हैं। पीलिया, हैजा, टायफाइड और मलेरिया जैसी कई बीमारियां गंदे पानी की वजह से होती हैं। रासायनिक खाद भी भू-जल को दूषित कर रहे हैं। कारखानों और उद्योगों की वजह से हालत और बुरी हो गई है।

मरूभूमि की प्यास को झुठलाते पारम्परिक जल साधन

Submitted by Shivendra on Sun, 01/18/2015 - 11:32
Author
पंकज चतुर्वेदी
book cover

.‘राजस्थान’ देश का सबसे बड़ा दूसरा राज्य है परन्तु जल के फल में इसका स्थान अन्तिम है। यहाँ औसत वर्षा 60 सेण्टीमीटर है जबकि देश के लिए यह आँकड़ा 110 सेमी है। लेकिन इन आँकड़ों से राज्य की जल कुण्डली नहीं बाची जा सकती। राज्य के एक छोर से दूसरे तक बारिश असमान रहती है, कहीं 100 सेमी तो कहीं 25 सेमी तो कहीं 10 सेमी तक भी।

यदि कुछ सालों की अतिवृष्टि को छोड़ दें तो चुरू, बीकानेर, जैलमेर, बाड़मेर, श्रीगंगानगर, जोधपुर आदि में साल में 10 सेमी से भी कम पानी बरसता है। दिल्ली में 150 सेमी से ज्यादा पानी गिरता है, यहाँ यमुना बहती है, सत्ता का केन्द्र है और यहाँ पूरे साल पानी की मारा-मारी रहती है, वहीं रेतीले राजस्थान में पानी की जगह सूरज की तपन बरसती है।

असली बीमारी तो लूट की है

Submitted by Hindi on Sat, 01/17/2015 - 13:31
Author
ज्योति प्रकाश
Source
गांधी-मार्ग, जनवरी-फरवरी 2015
आज देश में कहीं भी सादा नमक नहीं मिल सकता। पशु आहार और बर्फ बनाने वाली फैक्टरियों के नाम पर कहीं सादे नमक के डले, बोरे दिख जाएं तो अलग बात, लेकिन हमारे आपके भोजन में अब आयोडीन मिला नमक ही इस्तेमाल होता है। इसकी शुरुआत सन् 1990 से हुई है। उससे पहले की परिस्थिति बता रहा है डाॅ ज्योति प्रकाश का यह लेख जो उन्होंने सन् 1986 में लिखा था- घेंघा या थायराइड रोग पर सामाजिक दृष्टि से कुछ बुनियादी काम करते हुए।

. नमक आयुक्त ने घोषणा की है कि सन् 1990 तक देश में बनने-बिकने वाले सारे नमक को आयोडीन युक्त कर दिया जाएगा। कहा जा रहा है कि यह कदम आयोडीन की कमी से होने वाले घेंघा, थायराइड रोग से लड़ने के लिए उठाया गया है।

घेंघा रोग से लड़ने की यह कोई पहली कोशिश नहीं है। पिछले 20 साल से ‘राष्ट्रीय घेंघा नियंत्रण कार्यक्रम’ इसी उद्देश्य से चलाया जा रहा है, पर वह समस्या को कुरेद तक नहीं पाया। शोषण की शिकार और कई सामाजिक कारणों से आयोडीन की कमी झेल रही गरीब आबादी को आज तक आयोडीन वाला नमक न दे पाने वाले जिम्मेदार नेताओं और अधिकारियों की आलोचना कम नहीं हुई है।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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