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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

Submitted by Hindi on Thu, 12/20/2012 - 14:58
Source:
अभिव्यक्ति, 24 अक्टूबर 2004
कोचाई मंडल के जीवन में पानी ही पानी था। वह अपना समय ज़मीन पर कम और पानी पर ज़्यादा गुज़ारता था। वह अपने को पानी का पहरेदार कहता था और लोग उसे पानी का मेंढक कहते थे। पानी के अंदर या पानी के ऊपर कोई कारोबार चलाना हो तो कोचाई से उपयुक्त व्यक्ति दूसरा कोई नहीं हो सकता था। नदी में, तालाब में, समुद्र में कोई दुर्घटना हो जाए, कोचाई का झट बुलावा आ जाता। कहते हैं जो काम सेना के गोताखोरों से भी संभव नहीं हो पाता, उसे कोचाई कर डालता था। पता नहीं किस अर्जुन ने या किस राम ने अग्निबाण चलाया कि सौ वर्षों से भी ज्यादा उम्र वाला कल्याण तालाब सूख गया। इसके लगातार घट रहे जल स्तर को देखकर सारे बूढ़े-बुजुर्ग हैरान थे। बचपन से लेकर आज तक ऐसा उन्होंने कभी नहीं देखा था कि इस तालाब का अक्षय कोष तिल भर के लिए भी घट जाए। अगम, रहस्यमय, अनेक क्रियाओं की रंगशाला और जीवंतता, गतिशीलता व शीतलता का अमृत-कुंड आज जैसे किसी श्मशान में परिवर्तित हो गया था। कल्याण सूख गया, इससे शायद बहुतों का जीवन अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुआ होगा लेकिन प्रत्यक्ष रूप से इससे जो सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ, उसका नाम था कोचाई मंडल। कल्याण क्या सूखा जैसा उसके जीवन के सारे स्रोत ही सूख गए। कल्याण उसकी संजीवनी था, कर्म-स्थल था, ऊर्जा-स्रोत था और कुल जमा पूँजी था।
Submitted by Hindi on Tue, 12/18/2012 - 15:28
Source:
नेशनल दुनिया, 16 दिसंबर 2012
basanti
उत्तराखंडवासियों के लिए जीवनदायिनी मानी जाने वाली कोसी नदी और क्षेत्र के वनों पर मंडराते खतरे के बादल हटाने के लिए बसंती के अभियान ने रंग दिखाया।

अल्मोड़ा को पानी की जरूरत कोसी नदी से पूरी होती है। कोसी वर्षा पर निर्भर नदी है। गर्मियों में अक्सर इस नदी में जल का प्रवाह कम हो जाता है। उस पर से वन क्षेत्र में आई कमी से स्थिति बेहद गंभीर हो जाती है। बसंती इन तमाम समस्याओं को देख-समझ रही थीं। उन्हें महसूस हुआ कि अगर जंगलों की कटाई नहीं रोकी गई और जंगलों में लगने वाली आग को फैलने से नहीं रोका गया तो दस वर्ष में कोसी का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। ऋषि कश्यप ने सहस्त्राब्दी पहले पानी और जंगलों के बीच सहजीवी रिश्ते की बात प्रतिपादित की थी। कहने का मतलब यह है कि अगर जंगल रहेंगे तभी नदी का अस्तित्व भी रहेगा। उत्तराखंड में कोसी नदी जीवनरेखा पानी जाती है लेकिन जंगलों की बेतहाशा कटाई और शहरीकरण ने पानी संग्रह करने के कई परंपरागत ढांचों को बर्बाद कर दिया। कई जल स्रोत सूख गए। इसका असर हुआ कि शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक में जल संकट की स्थिति पैदा हो गई। लोगों की प्यास बुझाना मुश्किल होने लगा। हालांकि विपदा की इस घड़ी में बसंती नामक एक जल योद्धा ने नदी जल संरक्षण की कमान संभाली और जंगलों की रक्षा का प्रण किया।
Submitted by Hindi on Fri, 12/14/2012 - 11:57
Source:
Toilet

जिस तेजी से मात्र पिछले 6 महीनों में दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की जलापूर्ति में पीपीपी को लागू किया गया है; पनबिजली परियोजनाओं में निजी निवेश बढ़ा है, उससे तो नहीं लगता कि सरकारें पानी से जुड़े किसी भी क्षेत्र की जिम्मेदारी को अब अपने पास रखना चाहती हैं। जलापूर्ति क्षेत्र में पीपीपी

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

कल्याण का अंत

Submitted by Hindi on Thu, 12/20/2012 - 14:58
Author
जयनंदन
Source
अभिव्यक्ति, 24 अक्टूबर 2004
कोचाई मंडल के जीवन में पानी ही पानी था। वह अपना समय ज़मीन पर कम और पानी पर ज़्यादा गुज़ारता था। वह अपने को पानी का पहरेदार कहता था और लोग उसे पानी का मेंढक कहते थे। पानी के अंदर या पानी के ऊपर कोई कारोबार चलाना हो तो कोचाई से उपयुक्त व्यक्ति दूसरा कोई नहीं हो सकता था। नदी में, तालाब में, समुद्र में कोई दुर्घटना हो जाए, कोचाई का झट बुलावा आ जाता। कहते हैं जो काम सेना के गोताखोरों से भी संभव नहीं हो पाता, उसे कोचाई कर डालता था। पता नहीं किस अर्जुन ने या किस राम ने अग्निबाण चलाया कि सौ वर्षों से भी ज्यादा उम्र वाला कल्याण तालाब सूख गया। इसके लगातार घट रहे जल स्तर को देखकर सारे बूढ़े-बुजुर्ग हैरान थे। बचपन से लेकर आज तक ऐसा उन्होंने कभी नहीं देखा था कि इस तालाब का अक्षय कोष तिल भर के लिए भी घट जाए। अगम, रहस्यमय, अनेक क्रियाओं की रंगशाला और जीवंतता, गतिशीलता व शीतलता का अमृत-कुंड आज जैसे किसी श्मशान में परिवर्तित हो गया था। कल्याण सूख गया, इससे शायद बहुतों का जीवन अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुआ होगा लेकिन प्रत्यक्ष रूप से इससे जो सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ, उसका नाम था कोचाई मंडल। कल्याण क्या सूखा जैसा उसके जीवन के सारे स्रोत ही सूख गए। कल्याण उसकी संजीवनी था, कर्म-स्थल था, ऊर्जा-स्रोत था और कुल जमा पूँजी था।

संकट में जल योद्धा बनीं बसंती

Submitted by Hindi on Tue, 12/18/2012 - 15:28
Author
अंशु सिंह
Source
नेशनल दुनिया, 16 दिसंबर 2012
basanti
उत्तराखंडवासियों के लिए जीवनदायिनी मानी जाने वाली कोसी नदी और क्षेत्र के वनों पर मंडराते खतरे के बादल हटाने के लिए बसंती के अभियान ने रंग दिखाया।

अल्मोड़ा को पानी की जरूरत कोसी नदी से पूरी होती है। कोसी वर्षा पर निर्भर नदी है। गर्मियों में अक्सर इस नदी में जल का प्रवाह कम हो जाता है। उस पर से वन क्षेत्र में आई कमी से स्थिति बेहद गंभीर हो जाती है। बसंती इन तमाम समस्याओं को देख-समझ रही थीं। उन्हें महसूस हुआ कि अगर जंगलों की कटाई नहीं रोकी गई और जंगलों में लगने वाली आग को फैलने से नहीं रोका गया तो दस वर्ष में कोसी का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। ऋषि कश्यप ने सहस्त्राब्दी पहले पानी और जंगलों के बीच सहजीवी रिश्ते की बात प्रतिपादित की थी। कहने का मतलब यह है कि अगर जंगल रहेंगे तभी नदी का अस्तित्व भी रहेगा। उत्तराखंड में कोसी नदी जीवनरेखा पानी जाती है लेकिन जंगलों की बेतहाशा कटाई और शहरीकरण ने पानी संग्रह करने के कई परंपरागत ढांचों को बर्बाद कर दिया। कई जल स्रोत सूख गए। इसका असर हुआ कि शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक में जल संकट की स्थिति पैदा हो गई। लोगों की प्यास बुझाना मुश्किल होने लगा। हालांकि विपदा की इस घड़ी में बसंती नामक एक जल योद्धा ने नदी जल संरक्षण की कमान संभाली और जंगलों की रक्षा का प्रण किया।

शौच सफाई में भी मुनाफे की ताक में कंपनियां

Submitted by Hindi on Fri, 12/14/2012 - 11:57
Author
अरुण तिवारी
Toilet

जिस तेजी से मात्र पिछले 6 महीनों में दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की जलापूर्ति में पीपीपी को लागू किया गया है; पनबिजली परियोजनाओं में निजी निवेश बढ़ा है, उससे तो नहीं लगता कि सरकारें पानी से जुड़े किसी भी क्षेत्र की जिम्मेदारी को अब अपने पास रखना चाहती हैं। जलापूर्ति क्षेत्र में पीपीपी

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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