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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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Submitted by Shivendra on Wed, 07/10/2019 - 10:58
Source:
A woman, balancing a tall bundle of long grasses on her head
पहाड़ी पर जंगल से अपने सिर पर घास रख गंतव्य के लिए जाती महिला। वनों और इंसानों का प्रारंभ से ही परस्पर संबंध रहा है। वन जहां पर्यावरण चक्र को संतुलित करने में अहम भूमिका निभाते हैं, वहीं मनुष्य के लिए प्राण वायु के रूप में ऑक्सीजन भी पेड़ ही पैदा करते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में इन्हीं वनों पर सभी जीवनयापन के लिए पूरी तरह निर्भर थे। भोजन के लिए अनाज, लकड़ी, घर बनाने के लिए पत्थर, बजरी, रेत आदि सभी का इंतेजाम जंगलों से ही होता था। भेड़, बकरी, गाय, भैंस आदि पशुओं के चारे का बंदोबस्त भी जंगलों से होता था। जंगल की सूखी लकड़ी, सूखे पत्तों का उपयोग उन्हें बीनकर चूल्हा जलाने के लिए किया जाता था, जिससे जंगलों में गर्मी के दौरान आग नहीं लगती थी। सभी स्थानीय लोग जंगलों की अपनत्व के साथ पूरी रक्षा करते थे, लेकिन वन संरक्षण के नाम पर वर्ष 1980 में वन (संरक्षण) अधिनियम बनने के बाद सब कुछ बदल गया। पुश्तैनी हक-हकूक छीनने से वनों पर पहाड़ी इलाकों के लोगों का कोई अधिकारी नहीं रहा। वन केवल सरकारी संपत्ति बनकर रह गए। लोगों के पास जंगल से एक पत्थर उठाने तक का अधिकार नहीं रहा। नतीजन उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों के लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट गहरा गया।
Submitted by Editorial Team on Wed, 07/10/2019 - 10:52
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गांव कनेक्शन, 07-13 जुलाई 2019
global warming
जलवायु परिवर्तन कृषि के लिए सबसे बड़ा खतरा है। फसल उत्पादन के फेल होने, फसल की उत्पादकता कम होने, खड़ी फसलों का नुकसान होना, नये फसली कीटों और बदलते खेती के तरीके की वजह से खेती में नुकसान उठाना पड़ता है। महाराष्ट्र, जो हाल-फिलहाल फिलहाल भयंकर सूखे से गुजर रहा है। किसान बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन कृषि के लिए सबसे बड़ा खतरा है। जलवायु परिवर्तन से मतलब है कि जलवायु की अवस्था में काफी समय के लिए बदलाव। जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक आंतरिक बदलावों या बाहरी कारणों जैसे ज्वालामुखियों में बदलाव या इंसानों की वजह से जलवायु में होने वाले बदलावों से माना जाता है।
Submitted by Editorial Team on Tue, 07/09/2019 - 11:16
Source:
 दैनिक अंबर, 7 मार्च 2016
water harvesting system
जल की समस्या साल-दर-साल बढ़ती जा रही है। गर्मी आते ही कुछ समाचारों का सिलसिला शुरू हो जाता है जैसे ‘आज फलां जगह पर पानी की किल्लत से धरना, हंगामा हुआ, मटके फोड़े गए, जल विभागाधिकारी का पुतला फूंका गया। इतना ही नहीं आजकल तो मोबाइल टावर टावर पर चढ़कर पानी की पूर्ति करने की धमकी देते हुए भी देखे जा सकते हैं'। क्या यह सब पानी की किल्लत दूर करने के सही कदम हैं? क्या हम आने वाली पीढ़ियों के लिए इस तरह कोई स्थाई हल निकल पाएंगे, बिल्कुल नहीं। हमारे पास ना तो ऐसा सोचने की शक्ति रही है और ना ही इतना दृढ़ निश्चय कि कुछ करके इसका स्थायी समाधान निकाल सकें।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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वनाधिकार आंदोलन : जंगल के वजूद और अपने पुश्तैनी हक-हकूक की लड़ाई

Submitted by Shivendra on Wed, 07/10/2019 - 10:58
A woman, balancing a tall bundle of long grasses on her head
पहाड़ी पर जंगल से अपने सिर पर घास रख गंतव्य के लिए जाती महिला।पहाड़ी पर जंगल से अपने सिर पर घास रख गंतव्य के लिए जाती महिला। वनों और इंसानों का प्रारंभ से ही परस्पर संबंध रहा है। वन जहां पर्यावरण चक्र को संतुलित करने में अहम भूमिका निभाते हैं, वहीं मनुष्य के लिए प्राण वायु के रूप में ऑक्सीजन भी पेड़ ही पैदा करते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में इन्हीं वनों पर सभी जीवनयापन के लिए पूरी तरह निर्भर थे। भोजन के लिए अनाज, लकड़ी, घर बनाने के लिए पत्थर, बजरी, रेत आदि सभी का इंतेजाम जंगलों से ही होता था। भेड़, बकरी, गाय, भैंस आदि पशुओं के चारे का बंदोबस्त भी जंगलों से होता था। जंगल की सूखी लकड़ी, सूखे पत्तों का उपयोग उन्हें बीनकर चूल्हा जलाने के लिए किया जाता था, जिससे जंगलों में गर्मी के दौरान आग नहीं लगती थी। सभी स्थानीय लोग जंगलों की अपनत्व के साथ पूरी रक्षा करते थे, लेकिन वन संरक्षण के नाम पर वर्ष 1980 में वन (संरक्षण) अधिनियम बनने के बाद सब कुछ बदल गया। पुश्तैनी हक-हकूक छीनने से वनों पर पहाड़ी इलाकों के लोगों का कोई अधिकारी नहीं रहा। वन केवल सरकारी संपत्ति बनकर रह गए। लोगों के पास जंगल से एक पत्थर उठाने तक का अधिकार नहीं रहा। नतीजन उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों के लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट गहरा गया।

जलवायु परिवर्तन खेती के लिए बड़ी चुनौती

Submitted by Editorial Team on Wed, 07/10/2019 - 10:52
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गांव कनेक्शन, 07-13 जुलाई 2019
global warming
जलवायु परिवर्तन कृषि के लिए सबसे बड़ा खतरा है। जलवायु परिवर्तन कृषि के लिए सबसे बड़ा खतरा है। फसल उत्पादन के फेल होने, फसल की उत्पादकता कम होने, खड़ी फसलों का नुकसान होना, नये फसली कीटों और बदलते खेती के तरीके की वजह से खेती में नुकसान उठाना पड़ता है। महाराष्ट्र, जो हाल-फिलहाल फिलहाल भयंकर सूखे से गुजर रहा है। किसान बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन कृषि के लिए सबसे बड़ा खतरा है। जलवायु परिवर्तन से मतलब है कि जलवायु की अवस्था में काफी समय के लिए बदलाव। जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक आंतरिक बदलावों या बाहरी कारणों जैसे ज्वालामुखियों में बदलाव या इंसानों की वजह से जलवायु में होने वाले बदलावों से माना जाता है।

जल प्रबंधन प्रणाली एवं उपेक्षित आदर्श मूल्य

Submitted by Editorial Team on Tue, 07/09/2019 - 11:16
Source
 दैनिक अंबर, 7 मार्च 2016
water harvesting system
जल की समस्या साल-दर-साल बढ़ती जा रही है।जल की समस्या साल-दर-साल बढ़ती जा रही है। गर्मी आते ही कुछ समाचारों का सिलसिला शुरू हो जाता है जैसे ‘आज फलां जगह पर पानी की किल्लत से धरना, हंगामा हुआ, मटके फोड़े गए, जल विभागाधिकारी का पुतला फूंका गया। इतना ही नहीं आजकल तो मोबाइल टावर टावर पर चढ़कर पानी की पूर्ति करने की धमकी देते हुए भी देखे जा सकते हैं'। क्या यह सब पानी की किल्लत दूर करने के सही कदम हैं? क्या हम आने वाली पीढ़ियों के लिए इस तरह कोई स्थाई हल निकल पाएंगे, बिल्कुल नहीं। हमारे पास ना तो ऐसा सोचने की शक्ति रही है और ना ही इतना दृढ़ निश्चय कि कुछ करके इसका स्थायी समाधान निकाल सकें।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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