तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

विनम्र श्रद्धांजलि- (16 फरवरी 2018), डॉ. ध्रुव ज्योति घोष के जाने से ईस्ट कोलकाता वेटलैंड आज अनाथ हो गया।
डॉ. ध्रुव ज्योति घोेषप्रकृति-पर्यावरण को लेकर कुछ लोगों के काम को देखकर अनायास ही यह ख्याल जेहन में कौंध जाता है कि उनका इस धरती पर आने का उद्देश्य ही यही रहा होगा।
पानी को लेकर काम करने वाले अनुपम मिश्र के बारे में ऐसा ही कहा जा सकता है। कोलकाता में रह रहे एक और शख्स के काम को देखकर यही ख्याल आता है। वह शख्स थे डॉ. ध्रुवज्योति घोष।
गंगाअब यह एक स्थापित तथ्य है कि यदि गंगाजल में वर्षों रखने के बाद भी खराब न होने का विशेष रासायनिक गुण है, तो इसकी वजह है इसमें पाई जाने वाली एक अनन्य रचना। इस रचना को हम सभी ‘बैक्टीरियोफेज’ के नाम से जानते हैं।
बैक्टीरियोफेज, हिमालय में जन्मा एक ऐसा विचित्र ढाँचा है कि जो न साँस लेता है, न भोजन करता है और न ही अपनी किसी प्रतिकृति का निर्माण करता है। बैक्टीरियोफेज, अपने मेजबान में घुसकर क्रिया करता है और उसकी यह नायाब मेजबान है, गंगा की सिल्ट।
विनम्र श्रद्धांजलि- (16 फरवरी 2018), डॉ. ध्रुव ज्योति घोष के जाने से ईस्ट कोलकाता वेटलैंड आज अनाथ हो गया।डॉ. ध्रुव ज्योति घोेषप्रकृति-पर्यावरण को लेकर कुछ लोगों के काम को देखकर अनायास ही यह ख्याल जेहन में कौंध जाता है कि उनका इस धरती पर आने का उद्देश्य ही यही रहा होगा।
पानी को लेकर काम करने वाले अनुपम मिश्र के बारे में ऐसा ही कहा जा सकता है। कोलकाता में रह रहे एक और शख्स के काम को देखकर यही ख्याल आता है। वह शख्स थे डॉ. ध्रुवज्योति घोष।
गंगाअब यह एक स्थापित तथ्य है कि यदि गंगाजल में वर्षों रखने के बाद भी खराब न होने का विशेष रासायनिक गुण है, तो इसकी वजह है इसमें पाई जाने वाली एक अनन्य रचना। इस रचना को हम सभी ‘बैक्टीरियोफेज’ के नाम से जानते हैं।
बैक्टीरियोफेज, हिमालय में जन्मा एक ऐसा विचित्र ढाँचा है कि जो न साँस लेता है, न भोजन करता है और न ही अपनी किसी प्रतिकृति का निर्माण करता है। बैक्टीरियोफेज, अपने मेजबान में घुसकर क्रिया करता है और उसकी यह नायाब मेजबान है, गंगा की सिल्ट।
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