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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

Submitted by Editorial Team on Thu, 04/13/2017 - 15:37
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64वें राष्ट्रीय पुरस्कार में फिल्म कड़वी हवा की सराहना



कड़वी हवाइस बार के नेशनल अवार्ड में सामाजिक मुद्दों पर फिल्में बनाने वाले फिल्म निर्देशक नील माधब पांडा की ताजा फिल्म ‘कड़वी हवा’ का विशेष तौर पर जिक्र (स्पेशल मेंशन) किया गया।

स्पेशल मेंशन में फिल्म की सराहना की जाती है और एक सर्टिफिकेट दिया जाता है, बस! बॉलीवुड से गायब होते सामाजिक मुद्दों के बीच सूखा और बढ़ते जलस्तर के मुद्दों पर बनी कड़वी हवा की सराहना और सर्टिफिकेट मिलना राहत देने वाली बात है।

फिल्म की कहानी दो ज्वलन्त मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती है-जलवायु परिवर्तन से बढ़ता जलस्तर व सूखा। फिल्म में एक तरफ सूखाग्रस्त बुन्देलखण्ड है तो दूसरी तरफ ओड़िशा के तटीय क्षेत्र हैं। बुन्देलखण्ड पिछले साल भीषण सूखा पड़ने के कारण सुर्खियों था। खबरें यह भी आई थीं कि अनाज नहीं होने के कारण लोगों को घास की रोटियाँ खानी पड़ी थी। कई खेतिहरों को घर-बार छोड़कर रोजी-रोजगार के लिये शहरों की तरफ पलायन करना पड़ा था।
Submitted by Editorial Team on Thu, 04/13/2017 - 12:36
Source:

लापरवाही के कारण उत्तराखण्ड के जंगलों में लगती आगपिछले कुछ वर्षों से जंगलों में लगातार आग लगने की घटनाओं ने सरकार, पर्यावरणविद तथा समाज को एक बार फिर सोचने पर मजबूर किया है। जंगलों में अचानक लगने वाली इस आग से बड़े पैमाने पर जन-धन हानि के साथ-ही पेड़-पौधों और वन्य जीवों को नुकसान होता है। इस बारे में व्यापक अध्ययन तथा आग की रोकथाम के लिये सरकार की ओर से विभागीय जाँच भी कराई जाती है।

कई बार कमेटियों का गठन कर दोषी लोगों को दंडित करने तथा भविष्य में इस तरह की व्यापक वनाग्नि को रोकने के लिये संस्तुतियाँ भी प्रस्तुत की जाती हैं। इसके बावजूद आग लगने की घटनाओं में कमी की बजाय ये बढ़ती ही जा रही हैं।
Submitted by Hindi on Thu, 04/13/2017 - 10:10
Source:
उत्तराखंड उदय (वार्षिकी), 2015, अमर उजाला पब्लिकेशन्स, नोएडा, उत्तर प्रदेश

चंडी प्रसाद भट्ट पहाड़ में जन्मे ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने पहाड़ पर ही रहना और वहाँ के लोगों की सेवा करना पसंद किया। उनके लिये गढ़वाल और गढ़वाली वैसे संसाधन नहीं थे, जिनका वह अपने करियर के लिये इस्तेमाल करते। उनका जीवन-कर्म पहाड़ के लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिये समर्पित रहा है - आर्थिक, सामाजिक और पारिस्थितिक रूप से आत्मनिर्भर। लेकिन उनके काम की प्रासंगिकता केवल हिमालय तक ही सीमित नहीं थी।

जून, 1981 के पहले सप्ताह में मैंने अलकनंदा की गहरी घाटियों में एक धर्मनिरपेक्ष तीर्थयात्रा शुरू की। मेरा गंतव्य गोपेश्वर था, जो हिंदू तीर्थस्थल बदरीनाथ मंदिर वाली पहाड़ी से सटा हुआ है। मैं यहाँ जिस समकालीन देवता के सम्मान में कुछ बातें बताना चाहता हूँ, वह चिपको आंदोलन के संस्थापक चंडी प्रसाद भट्ट हैं।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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‘कड़वी हवा’ का जिक्र एक मीठा एहसास

Submitted by Editorial Team on Thu, 04/13/2017 - 15:37
Author
उमेश कुमार राय

64वें राष्ट्रीय पुरस्कार में फिल्म कड़वी हवा की सराहना



कड़वी हवाकड़वी हवाइस बार के नेशनल अवार्ड में सामाजिक मुद्दों पर फिल्में बनाने वाले फिल्म निर्देशक नील माधब पांडा की ताजा फिल्म ‘कड़वी हवा’ का विशेष तौर पर जिक्र (स्पेशल मेंशन) किया गया।

स्पेशल मेंशन में फिल्म की सराहना की जाती है और एक सर्टिफिकेट दिया जाता है, बस! बॉलीवुड से गायब होते सामाजिक मुद्दों के बीच सूखा और बढ़ते जलस्तर के मुद्दों पर बनी कड़वी हवा की सराहना और सर्टिफिकेट मिलना राहत देने वाली बात है।

फिल्म की कहानी दो ज्वलन्त मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती है-जलवायु परिवर्तन से बढ़ता जलस्तर व सूखा। फिल्म में एक तरफ सूखाग्रस्त बुन्देलखण्ड है तो दूसरी तरफ ओड़िशा के तटीय क्षेत्र हैं। बुन्देलखण्ड पिछले साल भीषण सूखा पड़ने के कारण सुर्खियों था। खबरें यह भी आई थीं कि अनाज नहीं होने के कारण लोगों को घास की रोटियाँ खानी पड़ी थी। कई खेतिहरों को घर-बार छोड़कर रोजी-रोजगार के लिये शहरों की तरफ पलायन करना पड़ा था।

वनाग्नि - मानव और पर्यावरण के लिये गम्भीर खतरा

Submitted by Editorial Team on Thu, 04/13/2017 - 12:36
Author
सुशील कुमार

लापरवाही के कारण उत्तराखण्ड के जंगलों में लगती आगलापरवाही के कारण उत्तराखण्ड के जंगलों में लगती आगपिछले कुछ वर्षों से जंगलों में लगातार आग लगने की घटनाओं ने सरकार, पर्यावरणविद तथा समाज को एक बार फिर सोचने पर मजबूर किया है। जंगलों में अचानक लगने वाली इस आग से बड़े पैमाने पर जन-धन हानि के साथ-ही पेड़-पौधों और वन्य जीवों को नुकसान होता है। इस बारे में व्यापक अध्ययन तथा आग की रोकथाम के लिये सरकार की ओर से विभागीय जाँच भी कराई जाती है।

कई बार कमेटियों का गठन कर दोषी लोगों को दंडित करने तथा भविष्य में इस तरह की व्यापक वनाग्नि को रोकने के लिये संस्तुतियाँ भी प्रस्तुत की जाती हैं। इसके बावजूद आग लगने की घटनाओं में कमी की बजाय ये बढ़ती ही जा रही हैं।

चिपको आंदोलन और चंडी प्रसाद भट्ट

Submitted by Hindi on Thu, 04/13/2017 - 10:10
Author
रामचंद्र गुहा
Source
उत्तराखंड उदय (वार्षिकी), 2015, अमर उजाला पब्लिकेशन्स, नोएडा, उत्तर प्रदेश

चंडी प्रसाद भट्ट पहाड़ में जन्मे ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने पहाड़ पर ही रहना और वहाँ के लोगों की सेवा करना पसंद किया। उनके लिये गढ़वाल और गढ़वाली वैसे संसाधन नहीं थे, जिनका वह अपने करियर के लिये इस्तेमाल करते। उनका जीवन-कर्म पहाड़ के लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिये समर्पित रहा है - आर्थिक, सामाजिक और पारिस्थितिक रूप से आत्मनिर्भर। लेकिन उनके काम की प्रासंगिकता केवल हिमालय तक ही सीमित नहीं थी।

चंडी प्रसाद भट्टजून, 1981 के पहले सप्ताह में मैंने अलकनंदा की गहरी घाटियों में एक धर्मनिरपेक्ष तीर्थयात्रा शुरू की। मेरा गंतव्य गोपेश्वर था, जो हिंदू तीर्थस्थल बदरीनाथ मंदिर वाली पहाड़ी से सटा हुआ है। मैं यहाँ जिस समकालीन देवता के सम्मान में कुछ बातें बताना चाहता हूँ, वह चिपको आंदोलन के संस्थापक चंडी प्रसाद भट्ट हैं।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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