दिल्ली में पानी की कमी है। दूसरे राज्यों से आने वाला पानी दिल्ली की प्यास बुझाता है। एक समय था जब दिल्ली में पानी की कोई कमी नहीं थी। दिल्ली के शासकों ने भी शहर में बड़े-बड़े तालाब और झील बनवाए थे। नीला हौज, हौज खास, भलस्वा और दक्षिणी दिल्ली रिज में कई बड़े झील थे। तब दिल्ली के तालाबों और झीलों में लबालब पानी भरा होता था जो पीने और सिंचाई के काम आता था। लेकिन आज अधिकांश झील सूखे और गन्दगी के शिकार हैं।
नीला हौज झील कभी दक्षिणी दिल्ली की प्यास बुझाने के काम आता था लेकिन अब यह खुद ही प्यासी है। झील में स्वच्छ पानी के जगह कूड़े और गन्दगी का अम्बार है। झील में गिरने वाली कॉलोनियों का सीवर पानी को दूषित कर चुका है। वसंत कुंज स्थित इस झील की गिनती कभी दिल्ली के प्राकृतिक झीलों में हुआ करती थी। हरियाली से भरे इस क्षेत्र में झील की स्थिति दयनीय है। इसमें तैरते थर्माकोल और प्लास्टिक के टुकड़े झील के सौंदर्य और अस्तित्व पर ग्रहण लगा रहे हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने झील को संरक्षित करने का आदेश दिया है। लेकिन दिल्ली विकास प्राधिकरण और सार्वजनिक निर्माण विभाग की आपसी खींचतान की वजह से इसके स्वरूप में कोई खास परिवर्तन नहीं आया है। झील सरकारी अतिक्रमण और गन्दगी का शिकार है। झील के किनारे बने सड़क ने पहले इसके क्षेत्र को सीमित किया। अब फ्लाईओवर ने रही सही कसर पूरी कर दी है। झील को बचाने के लिये स्थानीय नागरिक अदालत की शरण में हैं।
यह किसी एक झील की कहानी नहीं है। बल्कि राजधानी के अधिकांश झीलों एवं तालाबों का यही हाल है। जलाशयों को पाटकर बड़े-बड़े बिल्डिंग और शॉपिंग मॉल बनाए जा रहे हैं। शहरीकरण के शोर में दिल्ली के तालाब धीरे-धीरे अपना वजूद खोते जा रहे हैं। कुछ सालों पहले तक जिन तालाबों, पोखरों और बावड़ियों में लबालब पानी भरा होता था आज उनमें से अधिकांश सूखे पड़े हैं।
सूखे तालाबों पर बिल्डर और भूमाफियाओं के साथ ही दिल्ली विकास प्राधिकरण और अन्य सरकारी एजेंसियाँ अतिक्रमण करके कंक्रीट के जंगल उगा रही हैं, जिसके कारण दिल्ली में तालाबों की संख्या दिनोंदिन कम होती जा रही है। दिल्ली सरकार के राजस्व विभाग के दस्तावेज़ों के अनुसार राजधानी में कुल 1012 तालाब हैं। लेकिन उच्च न्यायालय में दिये हलफनामें में राज्य सरकार ने स्वीकार किया है कि राजधानी में अब केवल 629 तालाब ही सही सलामत हैं।
सैकड़ों तालाब अतिक्रमण के शिकार हैं। कई तालाब तो अपना वजूद ही खो चुके हैं, जिसके कारण उन्हें चिन्हित ही नहीं किया जा सकता है। पर्यावरण विभाग के 'पार्क एंड गार्डेन सोसायटी' के आँकड़ों पर विश्वास करें तो तालाबों पर अतिक्रमण की यह तस्वीर बहुत भयावह है। राजस्व विभाग के दस्तावेजों को आधार बनाकर जब इस विभाग ने सर्वेक्षण किया तो पाया कि अधिकांश तालाब बदहाल हैं। सोसायटी अपने सर्वे में 905 तालाबों का ही भौतिक सत्यापन कर सकी।
107 तालाबों को चिन्हित नहीं किया जा सका, क्योंकि उन तालाबों पर अब कॉलोनियाँ बसा दी गईं हैं। जबकि 70 तालाबों पर आंशिक रूप से अतिक्रमण तो 98 तालाबों पर पूरी तरह से अतिक्रमण किया जा चुका है। वहीं पर विभिन्न सरकारी विभागों ने अतिक्रमण को कानूनी जामा पहनाते हुए 78 तालाबों पर निर्माण करके उनके अस्तित्व पर कंक्रीट का आलीशान जंगल खड़ा कर दिया है तो 39 तालाबों पर अवैध रूप से निर्माण किया गया है।
दिल्ली में तालाब, बावड़ी, कुएँ, और नहरों का जाल बिछा था। दिल्ली में पहली नहर 1860 में बनी थी। तब यह पंजाब राज्य का एक सूबा हुआ करता था। तालाबों के पानी का उपयोग सिचाईं में होता था। तालाबों में इकट्ठा वर्षाजल यमुना के पानी को रिचार्ज करता था। लेकिन सरकार की उदासीनता ने तालाबों को गन्दगी इकट्ठा करने का केन्द्र बना दिया है। अतिक्रमण को बढ़ावा दिया है। आज दिल्ली पेयजल के लिये दूसरे राज्यों पर निर्भर है।
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