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Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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Submitted by RuralWater on Tue, 07/28/2015 - 13:59
Source:
Polluted river
आज देश के सामने नदियों पर अस्तित्व का संकट मँडरा रहा है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के हालिया अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है कि देश की 35 नदियाँ बुरी तरह से प्रदूषण की चपेट में हैं। बोर्ड द्वारा 2005 से 2013 के बीच आँकड़ों के आधार पर किये अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है कि देश की 40 नदियों की प
Submitted by RuralWater on Sun, 07/26/2015 - 12:32
Source:
River
पनबिजली परियोजनाओं में जनसुनवाई बन गई खानापूर्ति
नदी घाटी सभ्यताओं ने मानव को आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक रूप से उन्नत बनाने में ऐतिहासिक भूमिका अदा की है। हिमालयी क्षेत्रों में उत्तराखण्ड से निकलने वाली सदानीर नदियाँ- गंगा तथा यमुना देश के करोड़ों लोगों की पेयजल तथा सिंचाई की जरूरत को पूरा कर रहीं हैं किन्तु अवैज्ञानिक एवं बेरोकटोक दोहन ने नदियों का अस्तित्व ही खतरे में डाल दिया है। जलविद्युत दोहन करने की धन पिपासु हवस ने गंगा के साथ ही यमुना घाटी में भी इन परियोजनाओं की जद में आ रहें हजारों लोगों के जीवन में भारी उथल-पुथल का खतरा पैदा कर दिया है।

देश की राजधानी दिल्ली में पहुॅंचकर हालांकि यमुना का पानी विषैले जल में तब्दील हो गया है। हरियाणा से गुजरती यमुना में शहरों के गन्दे जल एवं औद्योगिक अपशिष्टों के प्रवाहित होने से ये स्थिति आ रही है। किन्तु उत्तराखण्ड की सीमा के भीतर यमुना का प्राकृतिक स्वरूप काफी हद तक बना हुआ है।

हिमालय के बन्दरपूँछ शिखर के दक्षिण-पश्चिम में स्थित बन्दरपूँछ हिमनद (ग्लेशियर) से यमुना का उद्गम है। टौंस नदी यमुना की सहायक नदी है जो बन्दरपूँछ शिखर के ही पश्चिमी ढाल से निकल कर रूपिन तथा सूपीन दो सहायक नदियों का जल समेटे कालसी में यमुना में समाती है। उत्तरकाशी तथा देहरादून जिलों से गुजरते हुए यमुना हरियाणा में प्रवेश करती है।

यहाँ यह जिक्र करना भी प्रासंगिक है कि यमुना और उसकी सहायक नदी टौंस में वर्ष भर पर्याप्त जल बनाए रखने में इनमें मिलने वाले दर्जनों गाड़-गधेरे हैं वहीं चत्रागाड़, धरमीगाड़, दारागाड़, बेनालगाड़, चरत की गाड़, बगानी गाड़, लभराडा गाड़ कोटी नाला आदि पश्चिमी तरफ से और पाबर नदी पूर्वी दिशा से टौंस नदी में मिलकर इसके जल प्रवाह तंत्र को बनाते हैं। इसके साथ ही चान्दनी गाड़, सितकी गाड़, शलोन गाड़, मुख्यतः टौंस के दाहिने प्रवाह तंत्र की ताकत है।

यमुना, टौंस, रूपिन तथा सूपीन की घाटियाँ अपनी जल प्रचुरता, उत्पादकता, वन्य जीव-जन्तुओं के स्वाभाविक आवास, दुर्लभ वनस्पतियों की बहुतायत तथा प्राकृतिक सौन्दर्य के चलते मानवीय बस्तियों की बसावट के लिये सदियों से ही आकर्षण का केन्द्र रही। फल-सब्जी उत्पादन एवं भेड़ पालन ने क्षेत्र के लोगों को आय के नए स्रोत मुहैया कराए।

वहीं इसके साथ ही तीव्र शहरीकरण के साथ बदलती जीवनशैली भी माँगों को पूरा करने के लिये प्राकृतिक संसाधनों पर शोषणकारी दबाव ने अपेक्षाकृत शान्त रहने वाली यमुना एवं टौंस की घाटियों में उथल-पुथल का दौर शुरू कर दिया। पूँजीपतियों, धन्नासेठों और रसूखदारों ने इन क्षेत्रों की बेशकीमती जमीन हथियाने के साथ ही कृषि एवं बागवानी हेतु समृद्ध कही जाने वाली पट्टियों को उजाड़ना शुरू कर दिया है।

जल विद्युत योजनाओं की जद में आ रहे क्षेत्रों में जनसुनवाई को निर्माण कम्पनियाँ कितनी अहमियत देती हैं, इसका खुलासा पहले भी कई बार हो चुका है। टौंस नदी पर हनोल-त्यूणी (60 मेगावाट) परियोजना में भी जनसुनवाई एवं पर्यावरण सुनवाई को खानापूर्ति के लिये लगातार कोशिश हुई। हनोल-त्यूणी परियोजना का निर्माण निजी क्षेत्र की कम्पनी सनफ्लैग पावर लिमिटेड कर रही है। परियोजना में देहरादून जिले के कूणा एवं चातरा और उत्तरकाशी जिले के भंखवाड़ा, कुकरेड़ा तथा बेगल गाँवों के 36 परिवार प्रभावितों में बताए गए हैं।

सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी मिली है कि 425.42 करोड़ की लागत वाली हनोल-त्यूणी जल विद्युत परियोजना में भंखवाड़ (कुंजरा) में अनुसूचित जाति के काश्तकारों की 0.336 हेक्टेयर जमीन एवं कुकरेड़ा (तलवाड़), भंखवाड़, बेगल के सामान्य जाति के परिवारों की 1.796 हेक्टेयर जमीन और चातरा तथा कूणा के ग्रामवासियों की 2.294 हेक्टेयर निजी भूमि की अधिग्रहण की प्रक्रिया चल रही है। परियोजना निर्माण के लिये कुल 34.858 हेक्टेयर वन भूमि प्रस्तावित है। वहीं वन विभाग की आरक्षित वन भूमि से 0.759 हेक्टेयर क्षेत्र 10 वर्षों के लीज पर कम्पनी के हवाले किया जा चुका है।

सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मिली जानकारी में पता चलता है कि लखवाड़-व्यासी जल विद्युत परियोजना आरम्भ में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग को आवंटित की गई थी। जिसके लिये 1986 में फॉरेस्ट क्लिेयरेंस और 3 फरवरी 1987 को पर्यावरणीय स्वीकृति मिली। किन्तु किसी प्रकार की जनसुनवाई इसके लिये नहीं की गई। आज से दो-ढाई दशक पूर्व चूँकि लोगों के जल, जंगल, ज़मीन पर आक्रमण इतना नहीं था और ना ही पर्यावरण के प्रति जागरुकता थी इसलिये तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने परियोजना की जद में आ रही आबादी से उसकी राय एवं सुझाव जानने की जहमत उठाने का कोई प्रयास ही नहीं किया।परियोजना में 18.38 हेक्टेयर क्षेत्र पूरी तरह बैराज में डूब जाएगा। किन्तु पर्यावरण जनसुनवाई की सूचना को सार्वजनिक करने को उत्तराखण्ड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अंग्रेजी के ‘द टाइम्स ऑफ इण्डिया’ समाचार पत्र को सर्वाधिक उपयुक्त पाया। प्रभावितों की श्रेणी में आ रहे गाँवों में शायद ही ‘द टइम्स ऑफ इण्डिया’ के पाठक हों। यद्यपि अमर उजाला, दैनिक जागरण में भी जनसुनवाई की तिथियों की घोषणा की गई किन्तु प्रदेश में अच्छी प्रसार संख्या वाले किसी दूसरे समाचार पत्र की जगह दिल्ली से प्रकाशित अंग्रेजी के अखबार में प्रभावितों को सूचना देने की कवायद जनसुवाई के प्रति निर्माण कम्पनी एवं सरकारी एजेंसी के इरादों का पर्दाफ़ाश करती है।

खास बात यह है कि परियोजना की देहरादून जिले के प्रभावितों हेतु 24 मई 2007 की डडवाली में हुई जन सुनवाई में तय हुआ था कि जिन प्रभावित परिवारों की 50 प्रतिशत से अधिक ज़मीन परियोजना के अन्तर्गत आ रही है, उन्हें परियोजना प्रबन्धन को दूसरी जगह पर जमीन मुहैया करानी होगी तथा पुनर्वास भत्ता भी देय होगा। यह देखने वाली बात है कि परियोजना प्रभावितों को जमीन के बदले जमीन मुहैया कराने से पल्ला झाड़ चुकी सरकार इस मामले में कम्पनी को क्या निर्देश देती है।

केन्द्र सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के निर्देशों के अनुसार निर्माणक कम्पनियों को जनसुनवाई के दैरान किये गए वायदों को पूरा करना चाहिए। सनफ्लैग कम्पनी भी किस तरह इसे पूरा करती है यह वक्त ही बतलाएगा। यही नहीं टौंस नदी पर ही मोरी-हनोल (63 मेगावाट) जलविद्युत परियोजना का निर्माण निजी कम्पनी कृष्णा निटवेयर कर रही है। इसके अन्तर्गत बैनोल, देई मौताड़, सल्ला, मोरा, मांदाल, ओगमेर, विजोति, बिन्द्री, थकरीयान आदि गाँवों की भूमि आंशिक तौर पर आ रही है।

कम्पनी का दावा है कि परियोजना के तहत किसी भी गाँव का पुर्नवास या विस्थापन नहीं हो रहा है। वहीं मोरी ब्लॉक के 6 लोगों को परियोजना में रोजगार देने की बात भी कम्पनी कर रही है। किन्तु परियोजना निर्माण की प्रक्रिया में अभी तक न तो जन सुनवाई हुई, ना ही पर्यावरण एवं तकनीकी स्वीकृति मिली है। इसके बावजूद कम्पनी प्रशासन प्रभावितों पर दबाव बनाने पर लगा हुआ है।

प्रदेश सरकार का उपक्रम उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम लिमिटेड देहरादून जिले के डाकपत्थर में यमुना नदी पर लखवाड़-व्यासी बाँध का निर्माण करा रहा है। इसमें लखवाड़ (300 मेगावाट) स्टोरेज तथा व्यासी (120 मेगावाट) रन ऑफ द रिवर परियोजनाएँ बताई जाती हैं। हैरत की बात है कि इन परियोजनाओं में जनसुनवाई की जरूरत तक महसूस नहीं की गई। चूँकि लखवाड़-ब्यासी परियोजना की प्रक्रिया 1986-87 से चल रही है और 1992 तक इसमें 30-35 प्रतिशत काम पूरा हो गया था किन्तु तब कोई जनसुनवाई नहीं हुई।

सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मिली जानकारी में पता चलता है कि लखवाड़-व्यासी जल विद्युत परियोजना आरम्भ में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग को आवंटित की गई थी। जिसके लिये 1986 में फॉरेस्ट क्लिेयरेंस और 3 फरवरी 1987 को पर्यावरणीय स्वीकृति मिली। किन्तु किसी प्रकार की जनसुनवाई इसके लिये नहीं की गई। आज से दो-ढाई दशक पूर्व चूँकि लोगों के जल, जंगल, ज़मीन पर आक्रमण इतना नहीं था और ना ही पर्यावरण के प्रति जागरुकता थी इसलिये तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने परियोजना की जद में आ रही आबादी से उसकी राय एवं सुझाव जानने की जहमत उठाने का कोई प्रयास ही नहीं किया। किन्तु वर्ष-1992 में परियोजना निर्माण कार्य पैसे की कमी के चलते ठप पड़ गया।

उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद उत्तराखण्ड सरकार ने लखवाड़-व्यासी परियोजना को दो भागों में विभक्त कर लखवाड़ (300 मेगावाट) एवं व्यासी (120 मेगावाट) दो परियोजनाओं को वर्ष-2004 में एनएचपीसी को आवंटित कर दिया जिसके लिये पुनः पर्यावरण स्वीकृति हेतु प्रस्ताव भेजा गया और वर्ष-2007 में पर्यावरण स्वीकृति हासिल हो गई। इसके बाद वर्ष-2008 में दोनों परियोजनाओं को एनएचपीसी से वापस लेकर सरकार ने इन्हें उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम लिमिटेड के हवाले कर दिया।

ग़ौरतलब है कि लखवाड़ एवं व्यासी जल विद्युुत परियोजनाओं में पुनरीक्षित डीपीआर की स्वीकृति का इन्तजार है जिसके बाद इनके निर्माण का काम पुनः शुरू हो जाएगा। लखवाड़ परियोजना के अन्तर्गत टिहरी जिले के 22 तथा देहरादून जिले के 10 गाँव प्रभावितों की सूची में हैं। इन प्रभावित 32 गाँवों में 6716 लोग प्रभावितों में शामिल हैं जिनमें अनुसूचित जाति के 98 परिवार, अनु. जन जाति के 141 परिवार, अन्य पिछड़ा वर्ग के 379 परिवार तथा सामान्य वर्ग के 30 परिवार शामिल हैं।

वहीं व्यासी परियोजना में देहरादून जिले के लोहारी, प्लानखेड़ा, बिन्हार, डिन्डाल, चुन्हों, कान्ड्रियान कुल 6 गाँवों के 749 लोग प्रभावितों में शामिल हैं। परिवार के रूप में प्रभावित कुल 137 परिवारों में अनुसूचित जाति के 18, अनु. जनजाति के 116, अन्यपिछड़ा वर्ग का 01 तथा सामन्य के 02 परिवार शामिल हैं। इस तरह देखा जाए तो लखवाड़-व्यासी जलविद्युत परियोजनाओं से प्रभावितों में समाज के कमजोर वर्ग के परिवारों की बहुतायत है। इसके साथ ही लखवाड़ परियोजना हेतु कुल 177.226 हेक्टेयर तथा व्यासी परियोजना में कुल 135.425 हेक्टेयर की जरूरत है।

इन परियोजनाओं में बड़े पैमाने पर वन भूमि भी भेट चढ़ रही है। निजी भूमि के लिये एक मात्र मुआवजा 1986-87 में ही दिया जा चुका था। सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी मिली है कि लखवाड़ परियोजना में भूमि अधिग्रहण के तहत अभी भी 14 करोड़ 16 लाख 45 हजार 20 रुपए की धनराशि अभी और भूमि अधिग्रहण का मुआवजा दिया जाना है।

सरकारी एजेंसी उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम लिमिटेड ने हजारों लोगों के जीवनयापन एवं निवास को बुरी तरह प्रभावित करने वाली इन परियोजनाओं की जन सुनवाई की कोई कवायद नहीं की। प्रभावितों से उनकी राय भी न पूछने का यह तानाशाही रवैया उत्तराखण्ड की जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण में नग्न सच है जो लोगों के गुस्से का खास कारण बनकर सामने आ रहा है।

सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार सतलुज जल विद्युत निगम द्वारा निर्माणाधीन नैटवाड़-मोरी (60 मेगावाट) व जखोल-सांकरी (51 मेगावाट) जल विद्युत परियोजनाओं में भी यही सच सामने है कि अभी जनसुनवाई निर्धारित नहीं हुई है। इन परियोजनाओं में बैराज का निर्माण प्रस्तावित है। टौंस नदी पर प्रस्तावित नैटवाड़-मोरी प्रोजेक्ट में उत्तरकाशी जिले के बैनोल, नैटवाड़ तथा गैंचवाण गाँव प्रभावित गाँवों में हैं।

इन गाँवों के काश्तकारों की 7 हेक्टेयर निजी भूमि तथा 32 हेक्टेयर वन भूमि सहित कुल 39 हेक्टेयर भूमि नैटवाड़-मोरी परियोजना की भेंट चढ़ रही है। जबकि सूपीन नदी पर बन रही जखोल-साँकरी परियोजना में उत्तरकाशी जिले के सावणी, धारा, जखोल, सुनकुण्डी, पाँव मल्ला तथा सौड़ गाँवों के काश्तकारों की 12 हेक्टेयर निजी भूमि के साथ ही 21 हेक्टेयर वन भूमि भी प्रभावित हो रही है।

जंगल और जमीन को खासे प्रभावित करने वाली इन जलविद्युत परियोजनाओं में जनसुनवाई की कार्यवाही केवल खानापूर्ति की प्रक्रिया बनकर रह जाए तो आश्चर्य की बात नहीं। जब बड़ी एवं मध्यम श्रेणी की जलविद्युत परियोजनाओं मेें स्थानीय लोगों की राय को इस तरह बताया जा रहा है तो लघु जलविद्युत परियोजनओं की स्थिति क्या होगी इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है।

परियोजना प्रभावित कौन है?
वह परिवार/व्यक्ति जिसका निवास या दूसरी सम्पति या रोजगार के साधन पर परियोजना हेतु भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया का गहरा प्रभाव पड़ता है और जो परियोजना प्रभावित क्षेत्र घोषित होने के दिन से पूर्व तक वहाँ प्रभावित क्षेत्र घोषित होने के दिन तक वहाँ न्यूनतम 3 वर्षों से रह रहा हो या किसी व्यवसाय, व्यापार या धन्धे को परियोजना प्रभावित क्षेत्र घोषित होने के दिन तक वहाँ न्यूनतम 3 वर्षों से कर रहा हो। उत्तराखण्ड बनने के बाद राज्य सरकार ने परियोजना निर्माताओें को निर्देश दिये कि ऐसे परिवार जो परियोजना से पूर्ण प्रभावित की श्रेणी में हैं। उनके लिये भूमि का मुआवजा न्यूनतम 5 लाख रुपया प्रति परिवार रखा जाए।

व्यासी जल विद्युत परियोजना में मुआवजे की गणना इसी आधार पर की गई है। जबकि इस परियोजना में प्रभावित परिवारों को अचल सम्पत्ति का मुआवजा 1988-89 में दिया गया किन्तु बाद में वर्ष-2003 में उत्तराखण्ड सरकार के आदेश के तहत मुआवजे की नई दरें तय की गई। इसके अनुसार व्यासी परियोजना में देहरादून जिले के 5 गाँवों तथा टिहरी जिले के 01 गाँव को कुल 57 घर, 38 गौशालाएॅं, 07 पेयजल टैंक, 04 घराट, 07 नहरें अचल सम्पत्ति के तौर पर प्रभावित हैं, जिनके लिये कुल 61,28,390 रुपए का मुआवजा दिया जाना है इसमें से 26,79,365 रुपए पूर्व में ही उत्तर प्रदेश के समय भुगतान किया गया था। व्यासी परियोजना (120 मेगावाट) उत्तराखण्ड जलविद्युत निगम की परियोजना है। निर्माणाधीन इस परियोजना से उत्पादन की सम्भावना वर्ष 2013-14 निर्धारित है।

गोविन्द वन्य जीव पशु विहार पर भी परियोजनाओं की तलवार
यमुना, टौंस नदी घाटियों में निर्माणाधीन और प्रस्तावित ढाई दर्जन जल विद्युत परियोजनाओं की चपेट में न केवल सैकड़ों हेक्टेयर कृषि और वन भूमि आ रही है बल्कि राष्ट्रीय पार्क गोविन्द पशु विहार भी इनकी जद में है। उत्तराखण्ड जलविद्युत निगम की टौंस नदी पर प्रस्तावित तालुका-सांकरी (140 मेगावाट) से गोविन्द पशु विहार का क्षेत्र भी प्रभावित हो रहा है, जिसके चलते परियोजना के प्रथम चरण की पर्यावरण स्वीकृति का प्रस्ताव अस्वीकृत हो गया।

वहीं रूपीन तृतीय (3 मेगावाट), रूपीन चतुर्थ (10 मेगावाट) तथा रूपीन-पंचम (24 मेगावाट) जिनके विकासकार्य कमशः टौंस पावर, रूपीन टौंस पावर एवं टौंस वैलीपावर निजी कम्पनियाँ हैं, डीपीआर के चरण में अटकी हैं क्योंकि इन परियोजनाओं का दायरा गोविन्द पशु विहार क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है। वन्य जीवों के सुरक्षित क्षेत्र में अपना दायरा फैलाने को तैयार इन परियोजनाओं को स्वीकृति मिलती है या नहीं यह देखने वाली बात है।

यूजेवीएनएल चला रहा अंधेरे में तीर
लखवाड़ परियोजना विषयक, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय भारत सरकार के उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम लिमिटेड को 10 जनवरी 2011 को दिये गए पत्र से प्रदेश सरकार की जल विद्युत उत्पादन हेतु खासतौर पर गठित विशेषज्ञ एजेंसी की गम्भीरता के ऊपर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। इस पत्र में एक्सपर्ट कमेटी फॉर रिवर वैली एण्ड हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स ने यूजेवीएनएल द्वारा प्रस्तुत किये गए डिटेल प्रजेन्टेशन पर कई आपत्तियाँ उठाई हैं।

कमेटी ने कहा है कि कटापत्थर में बैराज बनाकर पानी का जमावकर सिंचाई की सुविधा बढ़ाने के प्रस्ताव के बाबत विस्तार से कुछ भी नहीं है और ना ही लखवाड़ से नदी के बहाव में नीचे की ओर बनने वाली व्यासी बाँध परियोजना का उद्देश्य स्पष्ट किया गया है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की विशेषज्ञ कमेटी ने पूछा है कि व्यासी बाँध में वाटर कन्डक्टर सिस्टम, पावर हाउस तथा टेलरेस की विस्तृत जानकारी कहाँ है।

इसी पत्र में कहा गया है कि यह अजीब बात है कि लखवाड़-व्यासी परियोजना के विकासकर्ता ने आधा-अधूरा दस्तावेज पेश किया जिसका खासतौर पर पर्यावरणीय पहलू से कोई सम्बन्ध नहीं है। जो प्रपत्र जरूरी है वह मौजूद नहीं जबकि अनावश्यक जानकारी नत्थी की गई है। अन्त में विशेषज्ञ कमेंटी ने सुझाव दिया है कि परियोजना को लखवाड़, व्यासी तथा कटापत्थर तीन अलग-अलग परियोजनाओं में बाँटा जाना चाहिए तथा उनके लिंकेज, स्पष्ट हाइड्रोलॉजिकल विवरण, दूसरे पर्यावरणीय मुद्दे जो परीक्षण एवं स्वीकृति के लिये जरूरी हैं, पूर्व की एमओईई, सीडब्लूसी, सीईए सभी स्वीकृतियाँ कमेटी को मुहैया कराई जाएँ।

परियोजना का नाम

क्षमता (MW)

जिला

नदी/सहायक

गाड़-गधेरा

विकासकर्ता

वर्तमान स्थिति

हनुमान चट्टी, स्याना चट्टी

44

उत्तरकाशी

यमुना

 

यूआईपीसी

निविदा 2012-13 में प्रस्तावित, कमिशनिंग 2014-15

गंगानी

8

उत्तरकाशी

यमुना

 

रिजेन्सी गंगानी एनर्जी

निर्माणाधीन, कमिशनिंग 2010-11

सौली-बर्नीगाड़, बड़कोट-कुंवा

5.50

उत्तरकाशी

यमुना

 

युआईपीसी

निविदा 2012-13 में प्रस्तावित, कमिशनिंग 2014-15

बर्निगाड़

6.50

उत्तरकाशी

यमुना

बर्निगाड़

आईपीची

आईआईपी से समझौता होना है।

डामटा-नैनगाँव

15

उत्तरकाशी

यमुना

 

यूआईपीसी

निविदा 2012-13 में प्रस्तावित, कमिशनिंग 2014-15

लखवाड़

300

देहरादून

यमुना

 

यूजेवीएनएल

डीपीआर चरण में, कमिशनिंग 2015-16

व्यासी

120

देहरादून

यमुना

 

यूजेवीएनएल

निर्माणाधीन, कमिशनिंग 2013-14

बड्यार

4.90

उत्तरकाशी

यमुना

बड़यार गाड़

रिजेंसी यमुना एनर्जी

निर्माणाधीन, कमिशनिंग 2010-11

रिखणीगाड़

0.05

उत्तरकाशी

 

रिखाणी गाड़

उरेडा

 

पालीगाड़

0.30

उत्तरकाशी

 

पाली गाड़

उरेडा

 

रिंगाली

1

टिहरी

अगलाड़

रिंगाली गाड़

उरेडा

 

लगरासु

3

टिहरी

अगलाड़

अगलाड़

अगलाड़ पावर

निर्माणाधीन, कमिशनिंग 2011-12

रायत

3

टिहरी

अगलाड़

अगलाड़

अगलाड़ पावर

निर्माणाधीन, कमिशनिंग 2010-11

तालुका सांकरी

140

उत्तरकाशी

टौंस

 

यूजेवीएनएल

गोविन्द पशु विहार के कारण रुकी है।

जखोल सांकरी

35

उत्तराकाशी

टौंस

सूपीन

एसजेवीएनएल

क्लियरेंस की प्रतीक्षा

नैटवाड़ मोरी

33

उत्तरकाशी

टौंस

 

एसजेवीएनएल

क्लियरेंस की प्रतीक्षा।

मोरी-हनोल

63

उत्तरकाशी

टौंस

 

कृष्णानिटवेयर

डीपीआर परीक्षणाधीन

हनोल त्यूणी

60

उत्तरकाशी

टौंस

 

सनफ्लेग

डीपीआर परीक्षण की स्वीकृति दी जानी है, कमिशनिंग 2014-15

केशाऊ बाँध

600

देहरादून

टौंस

 

यूजेवीएनएल

डीपीआर के चरण में कमिशनिंग 2020 तक

चिलुद गाड़

0.10

देहरादून

सूपीन

लिलुदु गाड़

उरेडा

 

खापु गाड़

0.04

उत्तरकाशी

सूपीन

खापु गाड़

उरेडा

 

तालुका

0.02

उत्तरकाशी

टौंस

गट्टू गाड़

उरेडा

 

रूपीन III

3

उत्तरकाशी

टौंस

रूपीन

टौंस पावर

गोविन्द पशु विहार क्षेत्र में दखल के कारण डीपीआर का परीक्षण होना है, कमिशनिंग अनिश्चित

पुरकुल

1

देहरादून

टौंस

टौंस

यूआईपीसी

निविदा हेतु तैयार, कमिशनिंग 2012-13

बिजापुर

0.20

देहरादून

टौंस

टौंस

यूआईपीसी

स्वीकृति नहीं मिली

त्यूणी प्लासु

66

देहरादून

टौंस

 

आईडी

विकासाधीन

आराकोट-त्यूणी

72

उत्तरकाशी

टौंस

पावर

आईडी

विकासाधीन

 



Submitted by RuralWater on Thu, 07/23/2015 - 13:53
Source:
जहाँ आज हमें पुनर्भरण बढ़ाने की जरूरत है वहाँ उसे घटाने का काम कर रहे हैं। हमारे पास जल संसाधन सीमित है। देश की ज़मीन पर प्रकृति हमें 4000 घन किलोमीटर पानी देती है। यह पानी वर्षा और हिमपात के रूप में होता है। इस 4000 घन किलोमीटर (4000 अरब घन मीटर या 4000 बीसीएम) पानी में से 20 फीसद से ज्यादा भाप बनकर उड़ जाता है। पचास से 60 फीसद पानी बाँधों, तालाबों, खेतों और कच्ची ज़मीन से रिसकर ज़मीन में चला जाता है। विश्व के सभी देश जल संकट से जूझ रहे हैं। प्राकृतिक रूप से जल विपन्न देशों के सामने यह संकट सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। भारतवर्ष भी तेजी से बढ़ी अपनी जनसंख्या के कारण अब जल विपन्न देशों की श्रेणी में है। साल-दर-साल जल प्रबन्धन करते हुए हम जैसे-तैसे काम चला रहे हैं। सिर्फ आज की स्थिति देखें तो हालात इतने डरावने हैं कि कल के इन्तज़ाम के लिये विशेषज्ञों को कोई भी विश्वसनीय और वैध उपाय सूझ नहीं रहा है।

इतनी भयावह स्थिति है कि ज़मीन के भीतर का पानी यानी भूजल ऊपर खींचकर काम चलाना पड़ रहा है। भूजल की स्थिति यह है कि पूरे देश में भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। हालांकि 80 और 90 के दशक में जल विज्ञानियों ने इस मामले में हमें आगाह किया था। इसके पहले सत्तर के दशक में तत्कालीन सरकार ने पूर्व सक्रियता दिखाते हुए भूजल प्रबन्धन के लिये केन्द्रीय भूजल बोर्ड के रूप में नियामक संस्था बना ली थी। तब की सरकार की चिन्ताशीलता का एक सबूत यह भी है कि 80 के दशक के मध्य में इनवायरनमेंट प्रोटेक्शन एक्ट बना लिया गया।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

क्या नदियाँ बची रह पाएँगी

Submitted by RuralWater on Tue, 07/28/2015 - 13:59
Author
ज्ञानेन्द्र रावत
Polluted river
. आज देश के सामने नदियों पर अस्तित्व का संकट मँडरा रहा है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के हालिया अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है कि देश की 35 नदियाँ बुरी तरह से प्रदूषण की चपेट में हैं। बोर्ड द्वारा 2005 से 2013 के बीच आँकड़ों के आधार पर किये अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है कि देश की 40 नदियों की प

यमुना के अस्तित्व पर भारी संकट

Submitted by RuralWater on Sun, 07/26/2015 - 12:32
Author
प्रेम पंचोली
River

पनबिजली परियोजनाओं में जनसुनवाई बन गई खानापूर्ति


. नदी घाटी सभ्यताओं ने मानव को आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक रूप से उन्नत बनाने में ऐतिहासिक भूमिका अदा की है। हिमालयी क्षेत्रों में उत्तराखण्ड से निकलने वाली सदानीर नदियाँ- गंगा तथा यमुना देश के करोड़ों लोगों की पेयजल तथा सिंचाई की जरूरत को पूरा कर रहीं हैं किन्तु अवैज्ञानिक एवं बेरोकटोक दोहन ने नदियों का अस्तित्व ही खतरे में डाल दिया है। जलविद्युत दोहन करने की धन पिपासु हवस ने गंगा के साथ ही यमुना घाटी में भी इन परियोजनाओं की जद में आ रहें हजारों लोगों के जीवन में भारी उथल-पुथल का खतरा पैदा कर दिया है।

देश की राजधानी दिल्ली में पहुॅंचकर हालांकि यमुना का पानी विषैले जल में तब्दील हो गया है। हरियाणा से गुजरती यमुना में शहरों के गन्दे जल एवं औद्योगिक अपशिष्टों के प्रवाहित होने से ये स्थिति आ रही है। किन्तु उत्तराखण्ड की सीमा के भीतर यमुना का प्राकृतिक स्वरूप काफी हद तक बना हुआ है।

हिमालय के बन्दरपूँछ शिखर के दक्षिण-पश्चिम में स्थित बन्दरपूँछ हिमनद (ग्लेशियर) से यमुना का उद्गम है। टौंस नदी यमुना की सहायक नदी है जो बन्दरपूँछ शिखर के ही पश्चिमी ढाल से निकल कर रूपिन तथा सूपीन दो सहायक नदियों का जल समेटे कालसी में यमुना में समाती है। उत्तरकाशी तथा देहरादून जिलों से गुजरते हुए यमुना हरियाणा में प्रवेश करती है।

यहाँ यह जिक्र करना भी प्रासंगिक है कि यमुना और उसकी सहायक नदी टौंस में वर्ष भर पर्याप्त जल बनाए रखने में इनमें मिलने वाले दर्जनों गाड़-गधेरे हैं वहीं चत्रागाड़, धरमीगाड़, दारागाड़, बेनालगाड़, चरत की गाड़, बगानी गाड़, लभराडा गाड़ कोटी नाला आदि पश्चिमी तरफ से और पाबर नदी पूर्वी दिशा से टौंस नदी में मिलकर इसके जल प्रवाह तंत्र को बनाते हैं। इसके साथ ही चान्दनी गाड़, सितकी गाड़, शलोन गाड़, मुख्यतः टौंस के दाहिने प्रवाह तंत्र की ताकत है।

यमुना, टौंस, रूपिन तथा सूपीन की घाटियाँ अपनी जल प्रचुरता, उत्पादकता, वन्य जीव-जन्तुओं के स्वाभाविक आवास, दुर्लभ वनस्पतियों की बहुतायत तथा प्राकृतिक सौन्दर्य के चलते मानवीय बस्तियों की बसावट के लिये सदियों से ही आकर्षण का केन्द्र रही। फल-सब्जी उत्पादन एवं भेड़ पालन ने क्षेत्र के लोगों को आय के नए स्रोत मुहैया कराए।

वहीं इसके साथ ही तीव्र शहरीकरण के साथ बदलती जीवनशैली भी माँगों को पूरा करने के लिये प्राकृतिक संसाधनों पर शोषणकारी दबाव ने अपेक्षाकृत शान्त रहने वाली यमुना एवं टौंस की घाटियों में उथल-पुथल का दौर शुरू कर दिया। पूँजीपतियों, धन्नासेठों और रसूखदारों ने इन क्षेत्रों की बेशकीमती जमीन हथियाने के साथ ही कृषि एवं बागवानी हेतु समृद्ध कही जाने वाली पट्टियों को उजाड़ना शुरू कर दिया है।

जल विद्युत योजनाओं की जद में आ रहे क्षेत्रों में जनसुनवाई को निर्माण कम्पनियाँ कितनी अहमियत देती हैं, इसका खुलासा पहले भी कई बार हो चुका है। टौंस नदी पर हनोल-त्यूणी (60 मेगावाट) परियोजना में भी जनसुनवाई एवं पर्यावरण सुनवाई को खानापूर्ति के लिये लगातार कोशिश हुई। हनोल-त्यूणी परियोजना का निर्माण निजी क्षेत्र की कम्पनी सनफ्लैग पावर लिमिटेड कर रही है। परियोजना में देहरादून जिले के कूणा एवं चातरा और उत्तरकाशी जिले के भंखवाड़ा, कुकरेड़ा तथा बेगल गाँवों के 36 परिवार प्रभावितों में बताए गए हैं।

सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी मिली है कि 425.42 करोड़ की लागत वाली हनोल-त्यूणी जल विद्युत परियोजना में भंखवाड़ (कुंजरा) में अनुसूचित जाति के काश्तकारों की 0.336 हेक्टेयर जमीन एवं कुकरेड़ा (तलवाड़), भंखवाड़, बेगल के सामान्य जाति के परिवारों की 1.796 हेक्टेयर जमीन और चातरा तथा कूणा के ग्रामवासियों की 2.294 हेक्टेयर निजी भूमि की अधिग्रहण की प्रक्रिया चल रही है। परियोजना निर्माण के लिये कुल 34.858 हेक्टेयर वन भूमि प्रस्तावित है। वहीं वन विभाग की आरक्षित वन भूमि से 0.759 हेक्टेयर क्षेत्र 10 वर्षों के लीज पर कम्पनी के हवाले किया जा चुका है।

सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मिली जानकारी में पता चलता है कि लखवाड़-व्यासी जल विद्युत परियोजना आरम्भ में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग को आवंटित की गई थी। जिसके लिये 1986 में फॉरेस्ट क्लिेयरेंस और 3 फरवरी 1987 को पर्यावरणीय स्वीकृति मिली। किन्तु किसी प्रकार की जनसुनवाई इसके लिये नहीं की गई। आज से दो-ढाई दशक पूर्व चूँकि लोगों के जल, जंगल, ज़मीन पर आक्रमण इतना नहीं था और ना ही पर्यावरण के प्रति जागरुकता थी इसलिये तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने परियोजना की जद में आ रही आबादी से उसकी राय एवं सुझाव जानने की जहमत उठाने का कोई प्रयास ही नहीं किया।परियोजना में 18.38 हेक्टेयर क्षेत्र पूरी तरह बैराज में डूब जाएगा। किन्तु पर्यावरण जनसुनवाई की सूचना को सार्वजनिक करने को उत्तराखण्ड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अंग्रेजी के ‘द टाइम्स ऑफ इण्डिया’ समाचार पत्र को सर्वाधिक उपयुक्त पाया। प्रभावितों की श्रेणी में आ रहे गाँवों में शायद ही ‘द टइम्स ऑफ इण्डिया’ के पाठक हों। यद्यपि अमर उजाला, दैनिक जागरण में भी जनसुनवाई की तिथियों की घोषणा की गई किन्तु प्रदेश में अच्छी प्रसार संख्या वाले किसी दूसरे समाचार पत्र की जगह दिल्ली से प्रकाशित अंग्रेजी के अखबार में प्रभावितों को सूचना देने की कवायद जनसुवाई के प्रति निर्माण कम्पनी एवं सरकारी एजेंसी के इरादों का पर्दाफ़ाश करती है।

खास बात यह है कि परियोजना की देहरादून जिले के प्रभावितों हेतु 24 मई 2007 की डडवाली में हुई जन सुनवाई में तय हुआ था कि जिन प्रभावित परिवारों की 50 प्रतिशत से अधिक ज़मीन परियोजना के अन्तर्गत आ रही है, उन्हें परियोजना प्रबन्धन को दूसरी जगह पर जमीन मुहैया करानी होगी तथा पुनर्वास भत्ता भी देय होगा। यह देखने वाली बात है कि परियोजना प्रभावितों को जमीन के बदले जमीन मुहैया कराने से पल्ला झाड़ चुकी सरकार इस मामले में कम्पनी को क्या निर्देश देती है।

केन्द्र सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के निर्देशों के अनुसार निर्माणक कम्पनियों को जनसुनवाई के दैरान किये गए वायदों को पूरा करना चाहिए। सनफ्लैग कम्पनी भी किस तरह इसे पूरा करती है यह वक्त ही बतलाएगा। यही नहीं टौंस नदी पर ही मोरी-हनोल (63 मेगावाट) जलविद्युत परियोजना का निर्माण निजी कम्पनी कृष्णा निटवेयर कर रही है। इसके अन्तर्गत बैनोल, देई मौताड़, सल्ला, मोरा, मांदाल, ओगमेर, विजोति, बिन्द्री, थकरीयान आदि गाँवों की भूमि आंशिक तौर पर आ रही है।

कम्पनी का दावा है कि परियोजना के तहत किसी भी गाँव का पुर्नवास या विस्थापन नहीं हो रहा है। वहीं मोरी ब्लॉक के 6 लोगों को परियोजना में रोजगार देने की बात भी कम्पनी कर रही है। किन्तु परियोजना निर्माण की प्रक्रिया में अभी तक न तो जन सुनवाई हुई, ना ही पर्यावरण एवं तकनीकी स्वीकृति मिली है। इसके बावजूद कम्पनी प्रशासन प्रभावितों पर दबाव बनाने पर लगा हुआ है।

प्रदेश सरकार का उपक्रम उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम लिमिटेड देहरादून जिले के डाकपत्थर में यमुना नदी पर लखवाड़-व्यासी बाँध का निर्माण करा रहा है। इसमें लखवाड़ (300 मेगावाट) स्टोरेज तथा व्यासी (120 मेगावाट) रन ऑफ द रिवर परियोजनाएँ बताई जाती हैं। हैरत की बात है कि इन परियोजनाओं में जनसुनवाई की जरूरत तक महसूस नहीं की गई। चूँकि लखवाड़-ब्यासी परियोजना की प्रक्रिया 1986-87 से चल रही है और 1992 तक इसमें 30-35 प्रतिशत काम पूरा हो गया था किन्तु तब कोई जनसुनवाई नहीं हुई।

सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मिली जानकारी में पता चलता है कि लखवाड़-व्यासी जल विद्युत परियोजना आरम्भ में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग को आवंटित की गई थी। जिसके लिये 1986 में फॉरेस्ट क्लिेयरेंस और 3 फरवरी 1987 को पर्यावरणीय स्वीकृति मिली। किन्तु किसी प्रकार की जनसुनवाई इसके लिये नहीं की गई। आज से दो-ढाई दशक पूर्व चूँकि लोगों के जल, जंगल, ज़मीन पर आक्रमण इतना नहीं था और ना ही पर्यावरण के प्रति जागरुकता थी इसलिये तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने परियोजना की जद में आ रही आबादी से उसकी राय एवं सुझाव जानने की जहमत उठाने का कोई प्रयास ही नहीं किया। किन्तु वर्ष-1992 में परियोजना निर्माण कार्य पैसे की कमी के चलते ठप पड़ गया।

टौंस नदीउत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद उत्तराखण्ड सरकार ने लखवाड़-व्यासी परियोजना को दो भागों में विभक्त कर लखवाड़ (300 मेगावाट) एवं व्यासी (120 मेगावाट) दो परियोजनाओं को वर्ष-2004 में एनएचपीसी को आवंटित कर दिया जिसके लिये पुनः पर्यावरण स्वीकृति हेतु प्रस्ताव भेजा गया और वर्ष-2007 में पर्यावरण स्वीकृति हासिल हो गई। इसके बाद वर्ष-2008 में दोनों परियोजनाओं को एनएचपीसी से वापस लेकर सरकार ने इन्हें उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम लिमिटेड के हवाले कर दिया।

ग़ौरतलब है कि लखवाड़ एवं व्यासी जल विद्युुत परियोजनाओं में पुनरीक्षित डीपीआर की स्वीकृति का इन्तजार है जिसके बाद इनके निर्माण का काम पुनः शुरू हो जाएगा। लखवाड़ परियोजना के अन्तर्गत टिहरी जिले के 22 तथा देहरादून जिले के 10 गाँव प्रभावितों की सूची में हैं। इन प्रभावित 32 गाँवों में 6716 लोग प्रभावितों में शामिल हैं जिनमें अनुसूचित जाति के 98 परिवार, अनु. जन जाति के 141 परिवार, अन्य पिछड़ा वर्ग के 379 परिवार तथा सामान्य वर्ग के 30 परिवार शामिल हैं।

वहीं व्यासी परियोजना में देहरादून जिले के लोहारी, प्लानखेड़ा, बिन्हार, डिन्डाल, चुन्हों, कान्ड्रियान कुल 6 गाँवों के 749 लोग प्रभावितों में शामिल हैं। परिवार के रूप में प्रभावित कुल 137 परिवारों में अनुसूचित जाति के 18, अनु. जनजाति के 116, अन्यपिछड़ा वर्ग का 01 तथा सामन्य के 02 परिवार शामिल हैं। इस तरह देखा जाए तो लखवाड़-व्यासी जलविद्युत परियोजनाओं से प्रभावितों में समाज के कमजोर वर्ग के परिवारों की बहुतायत है। इसके साथ ही लखवाड़ परियोजना हेतु कुल 177.226 हेक्टेयर तथा व्यासी परियोजना में कुल 135.425 हेक्टेयर की जरूरत है।

इन परियोजनाओं में बड़े पैमाने पर वन भूमि भी भेट चढ़ रही है। निजी भूमि के लिये एक मात्र मुआवजा 1986-87 में ही दिया जा चुका था। सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी मिली है कि लखवाड़ परियोजना में भूमि अधिग्रहण के तहत अभी भी 14 करोड़ 16 लाख 45 हजार 20 रुपए की धनराशि अभी और भूमि अधिग्रहण का मुआवजा दिया जाना है।

सरकारी एजेंसी उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम लिमिटेड ने हजारों लोगों के जीवनयापन एवं निवास को बुरी तरह प्रभावित करने वाली इन परियोजनाओं की जन सुनवाई की कोई कवायद नहीं की। प्रभावितों से उनकी राय भी न पूछने का यह तानाशाही रवैया उत्तराखण्ड की जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण में नग्न सच है जो लोगों के गुस्से का खास कारण बनकर सामने आ रहा है।

सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार सतलुज जल विद्युत निगम द्वारा निर्माणाधीन नैटवाड़-मोरी (60 मेगावाट) व जखोल-सांकरी (51 मेगावाट) जल विद्युत परियोजनाओं में भी यही सच सामने है कि अभी जनसुनवाई निर्धारित नहीं हुई है। इन परियोजनाओं में बैराज का निर्माण प्रस्तावित है। टौंस नदी पर प्रस्तावित नैटवाड़-मोरी प्रोजेक्ट में उत्तरकाशी जिले के बैनोल, नैटवाड़ तथा गैंचवाण गाँव प्रभावित गाँवों में हैं।

इन गाँवों के काश्तकारों की 7 हेक्टेयर निजी भूमि तथा 32 हेक्टेयर वन भूमि सहित कुल 39 हेक्टेयर भूमि नैटवाड़-मोरी परियोजना की भेंट चढ़ रही है। जबकि सूपीन नदी पर बन रही जखोल-साँकरी परियोजना में उत्तरकाशी जिले के सावणी, धारा, जखोल, सुनकुण्डी, पाँव मल्ला तथा सौड़ गाँवों के काश्तकारों की 12 हेक्टेयर निजी भूमि के साथ ही 21 हेक्टेयर वन भूमि भी प्रभावित हो रही है।

जंगल और जमीन को खासे प्रभावित करने वाली इन जलविद्युत परियोजनाओं में जनसुनवाई की कार्यवाही केवल खानापूर्ति की प्रक्रिया बनकर रह जाए तो आश्चर्य की बात नहीं। जब बड़ी एवं मध्यम श्रेणी की जलविद्युत परियोजनाओं मेें स्थानीय लोगों की राय को इस तरह बताया जा रहा है तो लघु जलविद्युत परियोजनओं की स्थिति क्या होगी इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है।

परियोजना प्रभावित कौन है?


टौंस नदीवह परिवार/व्यक्ति जिसका निवास या दूसरी सम्पति या रोजगार के साधन पर परियोजना हेतु भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया का गहरा प्रभाव पड़ता है और जो परियोजना प्रभावित क्षेत्र घोषित होने के दिन से पूर्व तक वहाँ प्रभावित क्षेत्र घोषित होने के दिन तक वहाँ न्यूनतम 3 वर्षों से रह रहा हो या किसी व्यवसाय, व्यापार या धन्धे को परियोजना प्रभावित क्षेत्र घोषित होने के दिन तक वहाँ न्यूनतम 3 वर्षों से कर रहा हो। उत्तराखण्ड बनने के बाद राज्य सरकार ने परियोजना निर्माताओें को निर्देश दिये कि ऐसे परिवार जो परियोजना से पूर्ण प्रभावित की श्रेणी में हैं। उनके लिये भूमि का मुआवजा न्यूनतम 5 लाख रुपया प्रति परिवार रखा जाए।

व्यासी जल विद्युत परियोजना में मुआवजे की गणना इसी आधार पर की गई है। जबकि इस परियोजना में प्रभावित परिवारों को अचल सम्पत्ति का मुआवजा 1988-89 में दिया गया किन्तु बाद में वर्ष-2003 में उत्तराखण्ड सरकार के आदेश के तहत मुआवजे की नई दरें तय की गई। इसके अनुसार व्यासी परियोजना में देहरादून जिले के 5 गाँवों तथा टिहरी जिले के 01 गाँव को कुल 57 घर, 38 गौशालाएॅं, 07 पेयजल टैंक, 04 घराट, 07 नहरें अचल सम्पत्ति के तौर पर प्रभावित हैं, जिनके लिये कुल 61,28,390 रुपए का मुआवजा दिया जाना है इसमें से 26,79,365 रुपए पूर्व में ही उत्तर प्रदेश के समय भुगतान किया गया था। व्यासी परियोजना (120 मेगावाट) उत्तराखण्ड जलविद्युत निगम की परियोजना है। निर्माणाधीन इस परियोजना से उत्पादन की सम्भावना वर्ष 2013-14 निर्धारित है।

गोविन्द वन्य जीव पशु विहार पर भी परियोजनाओं की तलवार


यमुना, टौंस नदी घाटियों में निर्माणाधीन और प्रस्तावित ढाई दर्जन जल विद्युत परियोजनाओं की चपेट में न केवल सैकड़ों हेक्टेयर कृषि और वन भूमि आ रही है बल्कि राष्ट्रीय पार्क गोविन्द पशु विहार भी इनकी जद में है। उत्तराखण्ड जलविद्युत निगम की टौंस नदी पर प्रस्तावित तालुका-सांकरी (140 मेगावाट) से गोविन्द पशु विहार का क्षेत्र भी प्रभावित हो रहा है, जिसके चलते परियोजना के प्रथम चरण की पर्यावरण स्वीकृति का प्रस्ताव अस्वीकृत हो गया।

वहीं रूपीन तृतीय (3 मेगावाट), रूपीन चतुर्थ (10 मेगावाट) तथा रूपीन-पंचम (24 मेगावाट) जिनके विकासकार्य कमशः टौंस पावर, रूपीन टौंस पावर एवं टौंस वैलीपावर निजी कम्पनियाँ हैं, डीपीआर के चरण में अटकी हैं क्योंकि इन परियोजनाओं का दायरा गोविन्द पशु विहार क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है। वन्य जीवों के सुरक्षित क्षेत्र में अपना दायरा फैलाने को तैयार इन परियोजनाओं को स्वीकृति मिलती है या नहीं यह देखने वाली बात है।

यूजेवीएनएल चला रहा अंधेरे में तीर


लखवाड़ परियोजना विषयक, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय भारत सरकार के उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम लिमिटेड को 10 जनवरी 2011 को दिये गए पत्र से प्रदेश सरकार की जल विद्युत उत्पादन हेतु खासतौर पर गठित विशेषज्ञ एजेंसी की गम्भीरता के ऊपर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। इस पत्र में एक्सपर्ट कमेटी फॉर रिवर वैली एण्ड हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स ने यूजेवीएनएल द्वारा प्रस्तुत किये गए डिटेल प्रजेन्टेशन पर कई आपत्तियाँ उठाई हैं।

कमेटी ने कहा है कि कटापत्थर में बैराज बनाकर पानी का जमावकर सिंचाई की सुविधा बढ़ाने के प्रस्ताव के बाबत विस्तार से कुछ भी नहीं है और ना ही लखवाड़ से नदी के बहाव में नीचे की ओर बनने वाली व्यासी बाँध परियोजना का उद्देश्य स्पष्ट किया गया है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की विशेषज्ञ कमेटी ने पूछा है कि व्यासी बाँध में वाटर कन्डक्टर सिस्टम, पावर हाउस तथा टेलरेस की विस्तृत जानकारी कहाँ है।

इसी पत्र में कहा गया है कि यह अजीब बात है कि लखवाड़-व्यासी परियोजना के विकासकर्ता ने आधा-अधूरा दस्तावेज पेश किया जिसका खासतौर पर पर्यावरणीय पहलू से कोई सम्बन्ध नहीं है। जो प्रपत्र जरूरी है वह मौजूद नहीं जबकि अनावश्यक जानकारी नत्थी की गई है। अन्त में विशेषज्ञ कमेंटी ने सुझाव दिया है कि परियोजना को लखवाड़, व्यासी तथा कटापत्थर तीन अलग-अलग परियोजनाओं में बाँटा जाना चाहिए तथा उनके लिंकेज, स्पष्ट हाइड्रोलॉजिकल विवरण, दूसरे पर्यावरणीय मुद्दे जो परीक्षण एवं स्वीकृति के लिये जरूरी हैं, पूर्व की एमओईई, सीडब्लूसी, सीईए सभी स्वीकृतियाँ कमेटी को मुहैया कराई जाएँ।

परियोजना का नाम

क्षमता (MW)

जिला

नदी/सहायक

गाड़-गधेरा

विकासकर्ता

वर्तमान स्थिति

हनुमान चट्टी, स्याना चट्टी

44

उत्तरकाशी

यमुना

 

यूआईपीसी

निविदा 2012-13 में प्रस्तावित, कमिशनिंग 2014-15

गंगानी

8

उत्तरकाशी

यमुना

 

रिजेन्सी गंगानी एनर्जी

निर्माणाधीन, कमिशनिंग 2010-11

सौली-बर्नीगाड़, बड़कोट-कुंवा

5.50

उत्तरकाशी

यमुना

 

युआईपीसी

निविदा 2012-13 में प्रस्तावित, कमिशनिंग 2014-15

बर्निगाड़

6.50

उत्तरकाशी

यमुना

बर्निगाड़

आईपीची

आईआईपी से समझौता होना है।

डामटा-नैनगाँव

15

उत्तरकाशी

यमुना

 

यूआईपीसी

निविदा 2012-13 में प्रस्तावित, कमिशनिंग 2014-15

लखवाड़

300

देहरादून

यमुना

 

यूजेवीएनएल

डीपीआर चरण में, कमिशनिंग 2015-16

व्यासी

120

देहरादून

यमुना

 

यूजेवीएनएल

निर्माणाधीन, कमिशनिंग 2013-14

बड्यार

4.90

उत्तरकाशी

यमुना

बड़यार गाड़

रिजेंसी यमुना एनर्जी

निर्माणाधीन, कमिशनिंग 2010-11

रिखणीगाड़

0.05

उत्तरकाशी

 

रिखाणी गाड़

उरेडा

 

पालीगाड़

0.30

उत्तरकाशी

 

पाली गाड़

उरेडा

 

रिंगाली

1

टिहरी

अगलाड़

रिंगाली गाड़

उरेडा

 

लगरासु

3

टिहरी

अगलाड़

अगलाड़

अगलाड़ पावर

निर्माणाधीन, कमिशनिंग 2011-12

रायत

3

टिहरी

अगलाड़

अगलाड़

अगलाड़ पावर

निर्माणाधीन, कमिशनिंग 2010-11

तालुका सांकरी

140

उत्तरकाशी

टौंस

 

यूजेवीएनएल

गोविन्द पशु विहार के कारण रुकी है।

जखोल सांकरी

35

उत्तराकाशी

टौंस

सूपीन

एसजेवीएनएल

क्लियरेंस की प्रतीक्षा

नैटवाड़ मोरी

33

उत्तरकाशी

टौंस

 

एसजेवीएनएल

क्लियरेंस की प्रतीक्षा।

मोरी-हनोल

63

उत्तरकाशी

टौंस

 

कृष्णानिटवेयर

डीपीआर परीक्षणाधीन

हनोल त्यूणी

60

उत्तरकाशी

टौंस

 

सनफ्लेग

डीपीआर परीक्षण की स्वीकृति दी जानी है, कमिशनिंग 2014-15

केशाऊ बाँध

600

देहरादून

टौंस

 

यूजेवीएनएल

डीपीआर के चरण में कमिशनिंग 2020 तक

चिलुद गाड़

0.10

देहरादून

सूपीन

लिलुदु गाड़

उरेडा

 

खापु गाड़

0.04

उत्तरकाशी

सूपीन

खापु गाड़

उरेडा

 

तालुका

0.02

उत्तरकाशी

टौंस

गट्टू गाड़

उरेडा

 

रूपीन III

3

उत्तरकाशी

टौंस

रूपीन

टौंस पावर

गोविन्द पशु विहार क्षेत्र में दखल के कारण डीपीआर का परीक्षण होना है, कमिशनिंग अनिश्चित

पुरकुल

1

देहरादून

टौंस

टौंस

यूआईपीसी

निविदा हेतु तैयार, कमिशनिंग 2012-13

बिजापुर

0.20

देहरादून

टौंस

टौंस

यूआईपीसी

स्वीकृति नहीं मिली

त्यूणी प्लासु

66

देहरादून

टौंस

 

आईडी

विकासाधीन

आराकोट-त्यूणी

72

उत्तरकाशी

टौंस

पावर

आईडी

विकासाधीन

 



चुक रहा है भूजल

Submitted by RuralWater on Thu, 07/23/2015 - 13:53
Author
सुधीर जैन और केके जैन
जहाँ आज हमें पुनर्भरण बढ़ाने की जरूरत है वहाँ उसे घटाने का काम कर रहे हैं। हमारे पास जल संसाधन सीमित है। देश की ज़मीन पर प्रकृति हमें 4000 घन किलोमीटर पानी देती है। यह पानी वर्षा और हिमपात के रूप में होता है। इस 4000 घन किलोमीटर (4000 अरब घन मीटर या 4000 बीसीएम) पानी में से 20 फीसद से ज्यादा भाप बनकर उड़ जाता है। पचास से 60 फीसद पानी बाँधों, तालाबों, खेतों और कच्ची ज़मीन से रिसकर ज़मीन में चला जाता है। विश्व के सभी देश जल संकट से जूझ रहे हैं। प्राकृतिक रूप से जल विपन्न देशों के सामने यह संकट सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। भारतवर्ष भी तेजी से बढ़ी अपनी जनसंख्या के कारण अब जल विपन्न देशों की श्रेणी में है। साल-दर-साल जल प्रबन्धन करते हुए हम जैसे-तैसे काम चला रहे हैं। सिर्फ आज की स्थिति देखें तो हालात इतने डरावने हैं कि कल के इन्तज़ाम के लिये विशेषज्ञों को कोई भी विश्वसनीय और वैध उपाय सूझ नहीं रहा है।

इतनी भयावह स्थिति है कि ज़मीन के भीतर का पानी यानी भूजल ऊपर खींचकर काम चलाना पड़ रहा है। भूजल की स्थिति यह है कि पूरे देश में भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। हालांकि 80 और 90 के दशक में जल विज्ञानियों ने इस मामले में हमें आगाह किया था। इसके पहले सत्तर के दशक में तत्कालीन सरकार ने पूर्व सक्रियता दिखाते हुए भूजल प्रबन्धन के लिये केन्द्रीय भूजल बोर्ड के रूप में नियामक संस्था बना ली थी। तब की सरकार की चिन्ताशीलता का एक सबूत यह भी है कि 80 के दशक के मध्य में इनवायरनमेंट प्रोटेक्शन एक्ट बना लिया गया।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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